Thursday 10 September 2020

टूटती ‘सत्ता की हनक’ (कविता)

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    टूटती ‘सत्ता की हनक’ 

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सत्ता! 

हाँ, सत्ता!

तुमने ‘रिरियाती रिया’ को देखना चाहा

और देखना चाहा

‘कंगना की सनक’ को टूटते हुए; 

पर तुम अभिशप्त हो:

मौन, किन्तु दृढ़प्रतिज्ञ रिया

और कंगना की खनक का सामना करने के लिए।

रिया ने तो मौन को ही ढ़ाल बना लिया

मीडिया के उन्मादी तेवर,

और उस तेवर में सुकून तलाशते 

उन्मादग्रस्त भीड़ का सामना करने के लिए,

और फिर रिया का मौन 

मुखर होता चला गया,

मुखर मीडिया और मुखर सत्ता को बेनक़ाब करते हुए।

और, कंगना तो

तुम पर ही भारी पड़ी, 

ब्रह्मत्व के क़रीब पहुँची सर्वोच्च सत्ता की सरपरस्ती में 

तुम्हारे प्रहारों को ही ढ़ाल बनाया उसने,

अपने लिए,

तुम्हारा तुम्हारे ही ख़िलाफ़ इस्तेमाल करते हुए,

और फिर,

पिल पड़ी वह, तुम्हारे ऊपर।

वह भारी पड़ी तुमपे, और 

आगे भी भारी पड़ेगी तुम पर,

याद रखना!

हाँ, याद रखना!

पर उसकी तुलना में रिया ज़्यादा मज़बूत दिखी मुझे,

उसके मौन प्रतिरोध का आकर्षण 

भारी पड़ा मुझ पर;

इसलिए नहीं 

कि वह निर्दोष है, या फिर

इसलिए नहीं 

कि मैं मानता हूँ कि सुशान्त ने आत्महत्या ही की है, वरन् 

इसलिए कि 

उसने अपना साथ देना स्वीकार किया

तनकर,

अपने साथ खड़ा होना स्वीकार किया

तनकर,

विशेष कर तब 

जब दुनिया उसके ख़िलाफ़ खड़ी थी,

और चाहती थी 

कि उसे सूली पर चढ़ा देना,

कल नहीं, आज ही;

सत्ता की पूरी ताक़त भी लगी रही 

उसे हाशिए पर डालने के लिए;

फिर भी, वह खड़ी रही

सत्ता की हनक के खिलाफ 

सत्ता की सनक के ख़िलाफ़

नारी की प्रतिरोधी चेतना की प्रतीक बनकर,

अपने दम पर, 

अपने ही बल-बूते।

उसके लिए तो 

न सत्ता का दिल पसीजा, 

न अदालत का;

उसके संरक्षण के लिए तो

न सत्ता सामने आई,

और न ही अदालत।

उसे तो अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ी, 

सत्ता के ख़िलाफ़,

बिना किसी संरक्षण के;

पर उसने विवश किया,

नहीं, नहीं,

सत्ता की हनक और

मीडिया की सनक ने 

विवश किया,

हम जैसों को,

उसका साथ देने के लिए।

पर, कंगना हो या रिया,

प्रतीक बन चुकी हैं वो

प्रतिरोधी चेतना की, 

प्रतिरोधी चेतना की,

जो सत्ता की हनक के ख़िलाफ़ स्वत:स्फूर्त है,

और जिसमें सशक्त नारी की आकांक्षा अंतर्निहित है,

मानो या न मानो। 

बस, फ़र्क़ यह है 

कि एक में वह मुखर है,

इतना मुखर,

कि छिछलेपन के स्तर तक चला जाता;

दूसरे में वह मौन है,

इतना मौन,

कि गहरे उतरता चला जाता,

उद्वेलित करता हुआ, 

विचलित करता हुआ;

एक में वर्तमान की संभावनाएँ हैं, तो 

दूसरे में भविष्य की संभावनाएँ अंतर्निहित;

एक में तात्कालिकता है, तो 

दूसरे में दीर्घकालिकता;

इसलिए मुझे दोनों प्रिय हैं।

#रिया #कंगना #Riya #Kangana

1 comment:

  1. ye antar taqatwar aur kamjor ka hai.
    yadi satta aur prashashan chaah le to bina kisi crime ke criminal declare kiya ja sakta hai,
    bina drugs mile NDPS act lag sakta hai,
    sadiyon purane whats app chats evidence ban sakte hain.
    Kya nirdosh saabit hone ke baad bhi riya ye humiliation bhul paayegi?
    Kya kabhi un adhikariyon, netao aur media houses par karwai hogi jo use criminal declare karchuke hain?

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