Sunday 24 April 2016

योजना आयोग से नीति आयोग तक

            योजना आयोग से नीति आयोग तक
आज़ादी के बाद देश ने भले ही संघीय ढाँचे को स्वीकार किया था, लेकिन देश के समक्ष मौजूद चुनौतियों के राष्ट्रीय स्वरूप के मद्देनज़र ऐसे संस्थागत ढाँचे की ज़रूरत महसूस हुई जो संघीय अपेक्षाओं पर भी खरा उतरे और राष्ट्रीय चुनौतियों के समाधान में भी समर्थ हो सके। यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें 1950 में योजना आयोग की स्थापना हुई थी। लेकिन, कांग्रेस के केन्द्रीय राजनीति के साथ-साथ प्रांतीय राजनीति में प्रभुत्व ने योजना आयोग को सलाहकारी संस्था नहीं रहने दिया। व्यवहार में संघीय अपेक्षाओं के विपरीत इसकी सलाहें राज्यों के लिए बाध्यकारी होतीं चलीं गईं और राष्ट्रीय विकास परिषद का अनुमोदन महज़ औपचारिकता में तब्दील हो गया। यह स्थिति लगभग 1980 के दशक के पहले तक बनी रही.
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योजना आयोग की भूमिका को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत:
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1967
के बाद प्रांतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व का क्षरण शुरू हुआ है, फिर भी अधिकांश राज्यों में कांग्रेस की सरकारें मौजूद रहीं। लेकिन, 1980 के दशक तक आते-आते प्रांतों के स्तर पर आने वाले राजनीतिक बदलावों ने क्षेत्रवाद के उभार को संभव बनाया। क्षेत्रवाद के इस उभार ने केन्द्रवादी रूझान वाले भारतीय संघवाद को  सहकारी संघवाद की ओर उन्मुख होने के लिए विवश किया। स्पष्ट है कि क्षेत्रवाद के द्वारा प्रस्तुत चुनौती ने सरकारिया आयोग के गठन के मार्ग को प्रशस्त किया और सरकारिया आयोग ने राजनीतिक-प्रशासनिक विकेंद्रीकरण के मार्ग को. ध्यातव्य है कि इस समय तक आते-आते स्थानीय चुनौतियों से निबटना कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
1989-1990
में साम्यवादी ब्लॉक के बिखराव और साम्यवाद के अवसान की पृष्ठभूमि में भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था समाजवादी रूझानों से पूँजीवादी बाजारवाद की ओर उन्मुख हुई और इसी की अपेक्षाओं के अनुरूप भारतीय आयोजन भी आदेशात्मकता से निर्देशात्मकता की ओर.
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योजना आयोग द्वारा बदलती परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया: नीति आयोग के गठन की पृष्ठभूमि:
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ऐसा नहीं कि योजना आयोग ने बदलती हुई परिस्थिति के अनुरूप ख़ुद को बदलने की कोशिश नहीं की, लेकिन योजना आयोग द्वारा की गई पहलें उन बदलावों के साथ तालमेल बैठा पाने में सफल नहीं रही क्योंकि योजना आयोग में बदलाव की गति अत्यंत धीमी रही, जबकि बाहरी दुनिया में बदलाव की गति कहीं तीव्र थी। इसीलिए योजना आयोग न तो ख़ुद को सहकारी संघवादी ढाँचे के अनुरूप ढाल पाया और न ही विकेन्द्रीकरण के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित कर पाया। न तो निर्णय-प्रक्रिया को स्पष्ट एवं पारदर्शी बना पाया और न ही सुशासन एवं सहभागिता की अपेक्षाओं पर ही खड़ा उतर पाया। यहाँ तक कि अपने तिरेसठ वर्ष के जीवन-काल में उन समस्याओं का हल देते हुए संतुलित और समावेशी विकास को भी सुनिश्चित नहीं कर पाया. इन सबके लिए आवश्यकता थी संस्थागत एवं क्रियाप्रणालीगत सुधारों के जरिये बदलती हुयी सामाजिक-आर्थिक अपेक्षाओं पर खरा उतरने की.
यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें दो ही विकल्प शेष रह गए थे: या तो  योजना आयोग की संरचना, स्वरूप एवम् क्रियाप्रणाली में मूलभूत बदलाव लाए जाएँ या फिर योजना आयोग की जगह किसी नए संस्थागत ढाँचे को खड़ा किया जाए।
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नीति आयोग की संरचना :
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भारत के प्रधानमंत्री नीति आयोग के पदेन अध्यक्ष होंगे. उन्हीं के द्वारा नीति आयोग के उपाध्यक्ष की नियुक्ति की जाएगी. इसके अलावा नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी होंगे जिनकी नियुक्ति प्रधान मंत्री के द्वारा की जायेगी,जो सचिव रैंक के अधिकारी होंगे और जिनका निश्चित कार्यकाल होगा.
आयोग के अंतर्गत गवर्निंग काउंसिल और क्षेत्रीय परिषद् होगा. गवर्निंग कौंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और संघशासित प्रदेश के लेफ्टिनेंट गवर्नर एवं प्रशासक शामिल होंगे. क्षेत्रीय काउंसिल एक से अधिक राज्यों से जुड़े हुए विशिष्ट मसलों को सुलझाएगा या फिर एक से अधिक राज्यों को प्रभावित करने वाली आकस्मिकताओं से निबटेगा.
इसके अलावा प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में मौजूद होंगे.
आयोग की पूर्णकालिक सांगठनिक फ्रेमवर्क में अध्यक्ष,उपाध्यक्ष, मुख्य कार्यकारी अधिकारी,अग्रणी अनुसन्धान संस्थानों से दो अंशकालिक सदस्य (रोटेशनल आधार पर),पूर्णकालिक सदस्य और चार कैबिनेट मंत्री (पदेन,प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत) शामिल होंगे.
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नीति आयोग के गठन का उद्देश्य:
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नीति आयोग का गठन थिंक टैंक के रूप में किया गया। इसका उद्देश्य आर्थिक मसले पर विभिन्न हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श हेतु प्लेटफ़ार्म उपलब्ध कराना है ताकि राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रकों एवं रणनीतियों के संदर्भ में साझे विजन का विकास हो सके। इससे स्थानीय, क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय आवश्यकताओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करते हुए उन्हें पूरा कर पाना संभव हो सकेगा।
इसके लिए यह नीतियों और योजनाओं के निर्माण के स्तर पर राज्यों को भागीदारी देते हुए केन्द्र एवं राज्य के बीच बेहतर तालमेल को सुनिश्चित करने के साथ-साथ सहयोगी संघवाद को मज़बूती प्रदान करता है तथा इसके लिए एक संस्थागत ढाँचे को उपलब्ध कराता है। इसके अतिरिक्त इसके ज़रिए सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ऐसा सपोर्ट सिस्टम विकसित करना है जो ज्ञान, नवाचार एवं उद्यमता को प्रोत्साहन दे। 


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नीति आयोग-योजना आयोग तुलना:
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केन्द्र में सत्तारूढ़ वर्तमान सरकार चीन के आर्थिक संवृद्धि के मॉडल से कहीं अधिक प्रभावित और प्रेरित दिखती है। उसकी इच्छा है गुजरात मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाने की और इसके लिए आवश्यक है निर्णय-प्रक्रिया में मौजूद अवरोधों को दूर करते हुए त्वरित निर्णय को संभव बनाना। नीति आयोग इसी दिशा में एक प्रभावी पहल है।
नीति आयोग का गठन एक थिंक-टैंक के रूप में किया गया है. इससे यह अपेक्षा की गई है कि यह देश और देश के बाहर नीतिगत मामलों में फीडबैक लेते हुए काम करेगा. यह अंतर्राष्ट्रीय थिंक-टैंक और भारतीय उच्च शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों के साथ भ्हर्तिया नीति-निर्माताओं की बेहतर अनुक्रिया और परसपर संवाद-संपर्क पर बल देता है। यह लोगों की भागीदारी के ज़रिए शासन में सुधार पर बल देता है। योजना आयोग की भी परिकल्पना एक सलाहकारी विशेषज्ञ संस्था के रूप में ही की गई थी. अब प्रश्न उठता है कि इसके गठन के पहले तक तो योजना आयोग की भूमिका भी कुछ ऐसी ही थी, तो फिर फर्क क्या है दोनों में? इस फर्क को निम्न सन्दर्भों में देखा जा सकता है:
1.  संरचना:
योजना आयोग को राष्ट्रीय विकास परिषद् को रिपोर्ट करना होता था जिसमें राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होते थे. इसके विपरीत नीति आयोग प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है नीति आयोग में संघीय गवर्निंग कौंसिल की परिकल्पना की गई है जिसमें सभी राज्य के मुख्यमंत्रियों और केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासकों को शामिल किया जाता है.
2.  संगठन:
योजना आयोग की तरह ही प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं और उन्हीं के द्वारा इसके उपाध्यक्ष की नियुक्ति की जाती है.योजना आयोग में इन दोनों के अलावा सदस्य-सचिव और आठ पूर्णकालिक सदस्य होते थे, जबकि नीति आयोग में मुख्य कार्यकारी अधिकारी(CEO) का नया पद सृजित किया गया है जो सचिव स्तर के अधिकारी होंगे. साथ ही, इसमें दो पूर्णकालिक और दो अंशकालिक सदस्य होंगे.
3.  एप्रोच:
योजना आयोग के द्वारा जहाँ टॉप-डाउन एप्रोच को अपनाया जाता था,वहीं नीति आयोग द्वारा बॉटम-अप एप्रोच को.
4.  दायरा:
योजना आयोग के द्वारा पारंपरिक रूप से नीतियों का निर्माण किया जाता था और उसके बाद फंडों के आवंटन के पहले राज्यों से संपर्क किया जाता था. फिर राष्ट्रीय विकास परिषद् को अंतिम रूप से उसका अनुमोदन करना होता था. लेकिन, व्यवहार में योजना आयोग का दायरा नीतियों के निर्माण से आगे उनके क्रियान्वयन और निगरानी तक जाता था. इसके विपरीत नीति आयोग का लक्ष्य है क्षमता-विकास, विभिन्न स्तरों पर समन्वय तथा प्रेरक के दायित्वों का निर्वाह। योजनाओं का निर्माण, क्रियान्वयन और पर्यवेक्षण इसका लक्ष्य नहीं है।
5.  विवेकाधीन मदों में फंड-आवंटन:
योजना आयोग के पास राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय स्कीमों पर चलायी जानेवाली विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए सरकारी फंडों के आवंटन के निर्धारण की शक्ति भी थी,लेकिन नीति आयोग के पास राज्यों के बीच विवेकाधीन अनुदान के वितरण की ऐसी कोई जिम्मेवारी इसे नहीं सौंपी गई है.
6.   संस्था का स्वरुप:
यद्यपि योजना आयोग एक सलाहकारी विशेषज्ञ संस्था थी,तथापि व्यावहारिक रूप में इसके फैसले राज्यों के लिए बाध्यकारी होते थे क्योंकि उसके द्वारा फंडों को उसके द्वारा तैयार की जानेवाली परियोजनाओं के क्रियान्वयन से जोड़ दिया जाता था. इसके कारण अक्सर योजना आयोग पर राजनीतिक आधार पर भेदभाव और केन्द्रीय प्रभुत्व को सुनिश्चित करने वाली संस्था होने के आरोप लगते थे. इसके विपरीत नीति आयोग विशुद्ध रूप से थिंक-टैंक के रूप में काम करती है और यह एक सलाहकारी संस्था है.
7.   परिसंघीय स्वरुप:
योजना आयोग की संरचना और क्रियाप्रणाली देश के संघीय ढांचे के विपरीत था, जबकि नीति आयोग में राज्यों को प्रतिनिधित्व देकर इसे देश के संघीय ढांचे के अनुरूप ढालने की कोशिश की गई है. नीति आयोग न तो राज्यों से बिना पूछे योजनाओं का निर्माण करती है और न ही उसे राज्यों के ऊपर थोपने का काम करती है.
8.  आयोजन से सम्बन्ध:
योजना आयोग योजनाओं का निर्माण करने वाली शीर्ष केन्द्रीय संस्था थी, मगर नीति आयोग के सन्दर्भ में अबतक यह स्पष्ट नहीं है कि इसका सम्बन्ध आयोजन से होगा या नहीं, या फिर नीति आयोग के ज़माने में आयोजन को जारी भी रखा जायेगा या नहीं?
9.   नीति आयोग सामर्थ्यकारी सरकार की अवधारणा पर बल देता है, जबकि योजना आयोग का बल सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी पर है। यहाँ पर इस बात को ध्यान में रखने की ज़रुरत है कि योजना आयोग के रहते हुए ही सामर्थ्यकारी सरकार की अवधारणा पर चर्चा शुरू हो चुकी थी और आर्थिक समीक्षा का एक पूरा-का-पूरा चैप्टर इसी पर केन्द्रित था.
10.               नीति आयोग का एक और काम जो इसे योजना आयोग से भिन्न बनाता है और वह है आर्थिक सन्दर्भों में राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करना. यह अंतर्मंत्रालय-संवाद एवं समन्वय को भी सुनिश्चित करता है।

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नीति आयोग की चीनी नेशनल डेवलपमेंट रिफार्म कमीशन से भिन्नता:
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नीति आयोग ने योजना आयोग को प्रतिस्थापित किया और इस क्रम में यह योजना आयोग एवं राष्ट्रीय विकास परिषद के समन्वित रूप प्रतीत होती है। यह वही नहीं है जो चीनी नेशनल डेवलपमेंट रिफार्म कमीशन(NDRC) है। इन दोनों की भिन्नताओं को निम्न परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है:

1.  नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और उनके द्वारा मनोनीत उपाध्यक्ष नीति आयोग की पूरी कार्यवाही देखते हैं। इसके विपरीत न तो चीनी प्रधानमंत्री NDRC को नेतृत्व प्रधान करते हैं और न ही NDRC उन्हें रिपोर्ट ही करती है। NDRC चीनी राज्य परिषद ( Chinese State Council) को रिपोर्ट करता है जो चीनी सरकार की सर्वाधिक शक्तिशाली एजेंसी है। चीनी प्रधानमंत्री इसके मुखिया तो हैं, पर इसकी संरचना इतना व्यापक एवं वैविध्यपूर्ण है कि इसमें चीनी प्रधानमंत्री की राय अंतिम नहीं होती है।

2.  नीति आयोग में निर्णायक अधिकारिता प्रधानमंत्री के पास होती है। इसके विपरीत NDRC में सामूहिक अधिकारिता होती है। 

3.  नीति आयोग की तुलना में NDRC का स्वरूप कहीं अधिक व्यापक और समावेशी है जिसके अंतर्गत सभी उच्च पदस्थ अधिकारियों को शामिल किया गया है। इसमें छब्बीस से अधिक विभाग हैं और एक हज़ार से अधिक नौकरशाह इससे जुड़े हैं।लेकिन, नीति आयोग में चार कैबिनेट मंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं। रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री को इसके अंतर्गत शामिल न किया जाना कई प्रश्न खड़े करता है।

4.  नीति आयोग का पूरा मॉडल प्रतिस्पर्धी- सहयोगी संघवाद पर होता है और इसी की अपेक्षाओं के अनुरूप यह बॉटम-अप एप्रोच को लेकर चलता है. इसके विपरीत NDRC टॉप-डाउन एप्रोच को अपनाता है. चीन के एकीकृत ढांचे के कारण उससे ऐसी अपेक्षाएं नहीं होती हैं. इसीलिए उसमें राज्यों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है.

5.  NDRC अभी भी पंचवर्षीय योजनाओं से सम्बद्ध है,लेकिन नीति आयोग के सन्दर्भ में इस बात को लेकर अभी भी अस्पष्टता की स्थिति है कि यह पिछले बासठ वर्षों से चले आ रहे आयोजन के मॉडल को बनाये रखेगा या फिर उसे छोड़ देगा.

6.  जहाँ NDRC चीनी जीवन के आर्थिक,सामाजिक और सामरिक नीतियों से सम्बद्ध सभी पहलुओं को समाहित करता है और इस तरह उसके मैंडेट का दायरा कहीं अधिक व्यापक है, वहीं नीति आयोग की परिकल्पना थिंक-टैंक के रूप में की गई है.  इसका मैंडेट विशुद्ध रूप से इकनोमिक और अधिक-से-अधिक कहें तो,  इससे सम्बद्ध सामाजिक-आर्थिक पहलुओं से है.
7.  चीनी NDRC नीति आयोग की तुलना में योजना आयोग के कहीं अधिक करीब दिखती है. योजना आयोग की तरह ही NDRC परियोजनाओं के निर्माण से लेकर उसके प्रचालन और क्रियान्वयन तक की प्रक्रिया में शामिल होती है. NDRC की तरह नीति आयोग के पास क्रियान्वयन-सम्बन्धी जिम्मेवारी नहीं है.
8.     नीति आयोग की अगर किसी से तुलना हो सकती है, तो चीनी डेवलपमेंट रिसर्च सेण्टर (DRC) से. योजना आयोग के ज़माने में योजना आयोग और  
डेवलपमेंट रिसर्च सेण्टर (DRC) के बीच सामरिक,पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में एक-दुसरे के साथ सहयोग को लेकर समझौता हुआ था. हाल में नीति आयोग का भी डेवलपमेंट रिसर्च सेण्टर (DRC) के साथ इकनोमिक और मैक्रो-इकनोमिक क्षेत्र में सहयोग हेतु समझौता हुआ है.
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नीति आयोग और संघवाद:
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नीति आयोग में राज्यों के प्रतिनिधित्व के ज़रिए नीति-निर्माण प्रक्रिया में राज्यों को भागीदारी दी गई है और उनकी चिंताओं का समाधान देने का प्रयास किया गया है। साथ ही, नीति आयोग ने नीतियों एवं योजनाओं के निर्माण के लिए टॉप-डाउन एप्रोच की जगह बॉटम-अप एप्रोच को अपनाकर भी स्थानीय एवं क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समाहित करने और तदनुरूप नीतियों एवं योजनाओं के निर्माण के मार्ग को प्रशस्त किया है। इसके लिए गवर्निंग काउंसिल की परिकल्पना की गई है जो वास्तव में नीति आयोग के संघीय पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय परिषद की परिकल्पना के ज़रिए क्षेत्रीय स्तर पर राज्यों के बीच पारस्परिक सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए भी संस्थागत ढाँचा सृजित किया गया है। नीति आयोग के पास राज्यों के बीच विवेकाधीन अनुदान के वितरण का भी अधिकार नहीं है।
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नीति आयोग:एक मूल्याङ्कन :
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नीति आयोग का अबतक का अनुभव यह बतलाता है कि यह योजना आयोग से बहुत अलग नहीं है, बस फ़र्क़ यह है कि नीति आयोग में योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद को मिला दिया गया है। योजना आयोग के भूतपूर्व सदस्य कीर्ति पारिख ने कहा कि विकेंद्रीकरण की सच्ची भावना का मतलब है स्थानीय संस्थाओं को विकासात्मक योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन की शक्ति प्रदान करना, जिसमें केन्द्र और राज्य की भूमिका समर्थकारी की हो।
पारिख का कहना है कि न तो गवर्निंग कौंसिल और न ही क्षेत्रीय कौंसिल में नया जैसा कुछ नहीं है. दरअसल राष्ट्रीय विकास परिषद को ही गवर्निंग कौंसिल के रूप में रिड्यूस कर दिया गया है. राष्ट्रीय विकास परिषद् की संरचना संघीय गवर्निंग काउंसिल से कहीं अधिक व्यापक थी क्योंकि उसमें मुख्यमंत्रियों और संघ-शासित प्रदेशों के प्रशासकों/ लेफ़्टिनेंट गवर्नरों के अलावा सभी केंद्रीय मंत्री और योजना आयोग के सभी सदस्य शामिल होते थे। इसी प्रकार योजना आयोग के ज़माने में भी जब कभी राज्यों के बीच मसले उभरकर सामने आते थे, इसके निपटारे के लिए संवाहकीय पैनल (Conductive Panel) का गठन किया जाता था, ।                           
                      यदि पिछले ढाई दशकों के दौरान योजना आयोग की बदलती हुई भूमिका के आलोक में नीति आयोग को देखें, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि योजना आयोग ने बदलते हुए समय और बदलती हुई परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में जटिल होती जा रही चुनौतियों का सामना करते हुए जिन बदलावों की दिशा में अनौपचारिक रूप से पहल की, नीति आयोग के ज़रिए उन्हीं बदलावों को को औपचारिक एवं संस्थागत रूप देने का प्रयास किया गया। ग्यारहवाँ पंचवर्षीय योजना के ड्राफ़्ट में यह कहा गया कि किसी भी पंचवर्षीय योजना को अंतिम रूप देने से पूर्व उसे सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के साथ-साथ सभी राज्य सरकारों के पास भेजा जाना चाहिए और राज्य सरकारों से अपेक्षा की गई कि वे इसे ज़िला योजना समिति के पास भेजें और ज़िला योजना समिति द्वारा दिए गए फ़ीडबैक के आलोक में वे केन्द्र सरकार के पास उस योजना ड्राफ़्ट को अपने फ़ीडबैक के साथ वापस भेजें। इन्हीं फ़ीडबैक के आलोक में योजना-प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाएगा और फिर अनुमोदन के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद के पास भेजा जाएगा। इसी प्रकार बारहवीं पंचवर्षीय योजना के निर्माण के दौरान योजना आयोग ने सोशल मीडिया के ज़रिए आमलोगों तक से फ़ीडबैक माँगे और उस फ़ीडबैक के आलोक में योजना को अंतिम रूप दिया। इस तरह से बारहवीं योजना तक आते-आते योजना-निर्माण प्रक्रिया को भागीदारीपूर्ण और समावेशी स्वरूप वाला बनाने का प्रयास किया गया जिसने भारतीय आयोजन को लोकतांत्रिक आयोजन की ओर उन्मुख किया।
इतना ही नहीं, वित्त-वर्ष 2015-16 के बजट में अनुदानों के वितरण की ज़िम्मेवारी नीति आयोग को भी सौंपी गई। स्पष्ट है कि अनुदानों के वितरण की ज़िम्मेवारी वित्त आयोग के पास हो या योजना आयोग के पास या फिर नीति आयोग के पास, स्पष्टता और पारदर्शिता का अभाव केन्द्रीय हस्तक्षेप और राजनीतिकरण की संभावनाओं को जन्म देगा। यदि वित्त आयोग राजकोषीय अनुशासन के नाम पर हस्तक्षेप की गुंजाईश को बनाए रखता है, तो नीति आयोग फ़ीडबैक के आलोक में योजनाओं को अंतिम रूप देने के नाम पर। इस सन्दर्भ में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. इसके लिए नीति आयोग के प्रकार्यन पर नज़र एअखनी होगी. वैसे, अभी तो यही स्पष्ट नहीं है कि नीति आयोग किसे नेतृत्व प्रदान करेगा: आयोजन-युक्त भारत को या फिर आयोजन-मुक्त भारत को। 
जहाँ तक योजना-निर्माण प्रक्रिया में बॉटम-अप एप्रोच को अपनाए जाने का प्रश्न है, तो यह न तो नई संस्था का निर्माण कर देने मात्र से संभव है और न ही दस्तावेज़ों में उल्लेख मात्र से। इसके लिए आवश्यकता है नज़रिए में परिवर्तन की और तदनुरूप नए संस्थागत मैकेनिज़्म के विकास की, जो कम-से-कम अभी दिखाई नहीं पर रहा। अगर पंचायतों, जिलों और राज्यों से फ़ीडबैक प्राप्त करना और इस आलोक में नीति आयोग द्वारा योजनाओं का निर्माण ही बॉटम-अप एप्रोच है, तो फिर इस दिशा में क़वायद तो योजना आयोग ने भी की थी। फिर, क्या फ़र्क़ रह गया योजना आयोग और नीति आयोग में? अत: आवश्यकता इस बात की है कि बॉटम-अप एप्रोच को मूर्ति रूप देने के लिए मृतप्राय ज़िला योजना समिति और राज्य योजना बोर्ड को सक्षम और प्रभावी बनाया जाय। महत्वपूर्ण योजना आयोग की जगह नीति-आयोग का गठन नहीं है, महत्वपूर्ण है उन चिंताओं का समाधान, जिन्होंने प्लानिंग मैकेनिज़्म में सुधार की आवश्यकता को जन्म दिया। ऐसा योजना आयोग को बनाए रखते हुए भी संभव है और उसकी जगह पर नई संस्था के गठन के बावजूद संभव नहीं है।