Sunday 16 April 2023

68वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति (इतिहास, कला एवं संस्कृति)

 

68वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा

ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति पार्ट 2

 इतिहास, कला एवं संस्कृति

 

 

प्रश्न-पत्र का बदलता प्रारूप:

‘भारत और बिहार के इतिहास, कला एवं संस्कृति खंड’ सामान्य अध्ययन प्रथम प्रश्न-पत्र का हिस्सा है जहाँ से अबतक 75 अंक के प्रश्न पूछे जाते थे। यह कुल अंकों का 37.5 प्रतिशत है। नए पैटर्न में भी इस आनुपातिक संतुलन को बनाये रखा गया और इस खंड से 114 अंकों के प्रश्न पूछे जा रहे हैं। पिछले कई वर्षों से सामान्य अध्ययन प्रथम पत्र के इतिहास-खंड में चार की जगह छह प्रश्न पूछे जा रहे हैं जिनमें से अभ्यर्थियों को तीन प्रश्न हल करने होते थे हैं। इन छह प्रश्नों में एक प्रश्न टिप्पणियों वाले भी शामिल है जिसके अंतर्गत तीन टिप्पणियाँ पूछी जाती थीं जिनमें से दो टिप्पणियाँ लिखनी होती थी। लेकिन, 68वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में प्रश्न पत्र की प्रकृति को बदला गया है। नए प्रारूप और पुराने प्रारूप से इसकी भिन्नता को निम्न सन्दर्भों में देखा जा सकता है:

1.  टिप्पणी वाले प्रश्न अनिवार्य: अब टिप्पणी वाले प्रश्न ऐच्छिक न होकर अनिवार्य होंगे। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि प्रश्न-पत्र में तीन टिप्पणियाँ ही रहेंगी जिनमें दो टिप्पणियाँ करनी होगी, या तीन में तीन, या फिर चार में तीन/चार टिप्पणियों का प्रावधान होगा।

2.  प्रश्नों की संख्या के साथ-साथ विकल्पों में कमी: अब तक अभ्यर्थियों को छह में तीन प्रश्न करने होते थे, लेकिन अब इतिहास खंड में छह की जगह केवल पाँच प्रश्न होंगे। प्रश्न संख्या 1 अनिवार्य होगा और प्रश्न संख्या 2 एवं प्रश्न संख्या 3 में दो-दो विकल्प मौजूद होंगे जिनमें से एक-एक प्रश्न करना अपेक्षित होगा। मतलब यह कि नए पैटर्न में प्रश्नों की संख्या भी कम होगी और प्रश्नों के विकल्प भी सीमित होंगे। 

इसके अलावा, 67वीं बीपीएससी में टॉपिक को रिपीट करने की प्रवृति भी सहज ही देखी जा सकती है। ऐसी स्थिति में सेलेक्टिव स्टडी ज़ोखिम से भरा निर्णय साबित हो सकता है जिससे बचने की ज़रुरत है।

लेकिन, अभ्यर्थियों के सामने एक समस्या यह भी है कि 67वीं बीपीएससी और 68वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिए समय नहीं मिल पा रहा है। वे विज़न के साथ तैयारी करते नहीं हैं, और पीटी एवं मुख्य परीक्षा के बीच महज 90 दिनों का अन्तर है। उसमें भी वे 45 दिन पीटी होगा या नहीं की दुविधा में रिजल्ट की प्रतीक्षा करते गुज़ार देते हैं, और फिर रिजल्ट सकारात्मक रहने की स्थिति में उनके पास करने के लिए कुछ शेष रह नहीं जाता है। ऎसी स्थिति में आवश्यकता है विज़न के साथ तैयारी करने की, और इसके लिए तैयारी की समेकित रणनीति की, जिसमें पीटी, मेन्स और इंटरव्यू: तीनों की तैयारी के लिए रणनीति शामिल हो। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे, तो आने वाला समय उनके लिए मुश्किलों से भरा होगा।       

तैयारी की रणनीति:

इस खंड की तैयारी अपेक्षाकृत कम समय में की जा सकती है, लेकिन इस खंड में बेहतर अंक प्राप्त करने के लिए तैयारी के साथ-साथ उत्तर-लेखन की रणनीति बदलनी होगी। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बाज़ार में उपलब्ध तमाम अध्ययन-सामग्रियों में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है, जो छात्रों के लिए चिन्ता का विषय है। सबसे पहले पिछली मुख्य परीक्षाओं के दौरान इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों के रुझानों पर गौर करें, तो इस खंड को निम्न टॉपिकों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

1.  कला एवं संस्कृति

2.  बिहार पर औपनिवेशिक शासन का प्रभाव

3.  जनजातीय विद्रोह और 1857 का विद्रोह:

4.  आधुनिक भारत और बिहार में राष्ट्रीय आन्दोलन

5.  व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न

कला एवं संस्कृति:

इस खंड से मुख्यतः बिहार से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। उसमें भी मुख्य जोर पटना-कलम और मौर्य-कला एवं स्थापत्य पर रहता है। सामान्यतः वहीं से अदल-बदलकर प्रश्न पूछे जाते हैं। बीच-बीच में पाल-कला एवं स्थापत्य से भी प्रश्न पूछे जाते हैं। (56-59)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पटना-कलम शैली से और 60-62वीं मुख्य परीक्षा के दौरान मौर्य-कला से प्रश्न पूछे गए हैं। 63वीं मुख्य परीक्षा के दौरान एक बार फिर से पटना कलम चित्रकला शैली, 64वीं मुख्य परीक्षा के दौरान मौर्य-कला पर और 65वीं मुख्य परीक्षा के दौरान पाल-कला और भवन-निर्माण कला पर प्रश्न पूछे गए। लेकिन, (64-65)वीं मुख्य परीक्षा में कला-खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति में बदलाव परिलक्षित होता है। पहले जहाँ कला से सम्बंधित प्रश्न सीधे-सीधे पूछे जाते थे और उन्हें रटकर लिखा जा सकता था, लेकिन अब उन्हें घुमाकर पूछा जा रहा है और उसके उपयुक्त उत्तर-लेखन के लिए एप्लीकेशन की ज़रुरत है। जहाँ 64वीं मुख्य परीक्षा में मौर्य-कला को बौद्ध प्रभाव के सापेक्ष रखकर प्रश्न पूछे गए, वहीं 65वीं मुख्य परीक्षा में पाल-कला को बौद्ध प्रभाव के सापेक्ष रखकर देखने की कोशिश की गयी। इस आलोक में देखें, तो 66वीं बीपीएससी में पटना कलम शैली से प्रश्न पूछे गए। इसके अलावा, कभी भी मधुबनी पेंटिंग्स पर भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं, इसीलिए इसे अवश्य तैयार कर लें। ट्रेंड में बदलाव की स्थिति में प्रश्नों को रिपीट भी किया जा सकता है, इस बात को ध्यान में रखने की ज़रुरत है। 

बिहार पर औपनिवेशिक शासन का प्रभाव:

इस टॉपिक के अंतर्गत बिहार पर औपनिवेशिक शासन के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव, औपनिवेशक शासन के दौरान पश्चिमी शिक्षा और विशेष रूप से तकनीकी एवं वैज्ञानिक शिक्षा के विकास तथा प्रेस के विकास से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। 64वीं मुख्य परीक्षा में इस खंड से सर्वथा नए प्रकार के प्रश्न पूछे गए: 20वीं सदी के ब्रिटिश भारत में समुद्रपारीय आप्रवासन के क्या कारण थे? बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिए अब इस प्रश्न को सही तरीके से तबतक रेस्पोंड नहीं किया जा सकता है जबतक कि औपनिवेशक शासन की आर्थिक प्रकृति की ठीक-ठीक समझ न हो (60-62)वीं बीपीएससी परीक्षा के बाद 65वीं बीपीएससी में इस खंड से एक बार फिर से सन् (1858-1914) के दौरान बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार पर प्रश्न पूछे गए। 66वीं बीपीएससी में यहाँ से कोई प्रश्न नहीं पूछे गए हैं।

जनजातीय विद्रोह और 1857 का विद्रोह:

सामान्यतः इस टॉपिक से पूछे जाने वाले प्रश्न बिहार एवं झारखण्ड से सम्बद्ध होते हैं। ये प्रश्न या तो संथाल विद्रोह और उसे नेतृत्व प्रदान करने वाले सिद्धो-कान्हो से सम्बंधित होंगे, या फिर मुण्डा-विद्रोह और उसे नेतृत्व प्रदान करने वाले बिरसा मुण्डा से। इस खंड से कई बार प्रश्न पूछे भी जाते हैं और कई बार नहीं भी। सामान्यतः इस टॉपिक से सीधे-सीधे प्रश्न पूछे जाते हैं और ये प्रश्न विद्रोह के कारणों, इसकी प्रकृति और इसके नेतृत्व की भूमिका पर आधारित होते हैं। 65वीं बीपीएससी में पूछा गया प्रश्न: “सन् 1857 के विद्रोह के क्या कारण थे? बिहार में उसका क्या प्रभाव था?” इसका प्रमाण है, लेकिन 64वीं बीपीएससी में पूछे गए प्रश्न रुझानों में परिवर्तन की ओर इशारा भी करते हैं। इस परीक्षा में संथाल एवं मुण्डा विद्रोह, या फिर उसके नेतृत्व सिद्धो-कान्हों एवं बिरसा मुण्डा पर सीधे-सीधे प्रश्न न पूछकर जनजातीय विद्रोहों के व्यापक सन्दर्भों में प्रश्न पूछे गए हैं: उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइएऐसे प्रश्नों को हल करना तबतक संभव नहीं है जबतक कि टॉपिक की मुकम्मल समझ न हो, और यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब प्रश्नों के रुझानों में परिवर्तन के कारण विकल्प सीमित होते जा रहे हों। चूँकि 65वीं मुख्य परीक्षा में जनजातीय विद्रोहों से प्रश्न नहीं पूछे गए हैं, इसलिए इस बार इस खंड से प्रश्न पूछे जाने की पूरी संभावना है। इस क्रम में इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आनेवाले समय में संथाल-विद्रोह, मुण्डा-विद्रोह और इसके नेतृत्व पर आधारित ऐसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं जिसमें ऐसे ही अंडरस्टैंडिंग एवं एप्लीकेशन की ज़रुरत पर सकती है।

जहाँ तक सन् 1857 के विद्रोह का प्रश्न है, तो इससे भी प्रश्न पूछे जाने की बारंबारता अपेक्षाकृत अधिक है। ये प्रश्न या तो कारण, परिणाम और स्वरुप पर आधारित होते हैं; या फिर इस विद्रोह में कुँवर सिंह की भूमिका पर। इसीलिए इस विद्रोह को बिहार के विशेष सन्दर्भ में तैयार किये जाने की जरूरत है। यहाँ पर इस बात को ध्यान में रखे जाने की जरूरत है कि अक्सर परीक्षार्थी इस टॉपिक पर एक ही प्रश्न तैयार करके जाते हैं और कुछ भी पूछा जाय, एक ही उत्तर लिखकर आते हैं, जबकि प्रश्न के हिसाब से उत्तर की प्रस्तुति बदल जायेगी। इसीलिए इस बात को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए कि उत्तर में जो पूछा जा रहा है, उसे लिखना अपेक्षित है; न कि आप जो जानते हैं, वो लिखा जाना। इसीलिए प्रश्न की माँग के अनुरूप उत्तर लिखने की आदत डालें। यद्यपि 65वीं मुख्य परीक्षा में इस टॉपिक से प्रश्न पूछे जा चुके हैं, फिर भी सम्भव है कि ‘सन् 1857 के विद्रोह’ से प्रश्न को रिपीट करते हुए इससे सम्बंधित भिन्न प्रकृति वाले प्रश्न भी पूछे जाएँ। जहाँ तक 66वीं बीपीएससी का प्रश्न है, तो यहाँ से संथाल विद्रोह और बिरसा (मुण्डा विद्रोह): दोनों टॉपिकों से प्रश्न पूछे गए।

आधुनिक भारत और बिहार में राष्ट्रीय आन्दोलन:

इस खंड में पूछे जाने वाले प्रश्न राष्ट्रीय आन्दोलन से सम्बंधित होंगे। यद्यपि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों में बिहार से सम्बंधित आन्दोलनों, यथा: बंगाल-विभाजन, चम्पारण-सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन एवं आज़ाद दस्ता से बिहार के विशेष सन्दर्भ में प्रश्न पूछे जाते हैं, तथापि इस बात की पूरी संभावना है कि राष्ट्रीय आन्दोलन से पूछे जानेवाले प्रश्नों में कहीं अधिक विविधता हो। इस आलोक में असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और व्यक्तिगत सत्याग्रह के साथ-साथ (1940-47) के दौरान राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास से सम्बंधित प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इस टॉपिकों को, जहाँ तक संभव हो सके, बिहार के विशेष सन्दर्भ में तैयार करने की ज़रुरत है।

व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न:

‘आइडिया ऑफ़ इण्डिया’ के प्रश्न पर तेज होती बहस की पृष्ठभूमि में (56-59)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा से ‘गाँधी, नेहरु और टैगोर’ टॉपिक से लगातार प्रश्न पूछे गए हैं, और ऐसे प्रश्नों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। 65वीं और 66वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पूछे गए व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न इस दिशा में संकेत करते हैं कि अब केवल कुँवर सिंह, सिद्धो-कान्हो और बिरसा मुण्डा से लेकर ‘गाँधी, नेहरु और टैगोर’ तक पर आधारित प्रश्न ही नहीं पूछे जाते हैं, वरन् इसके दायरे में स्वामी सहजानन्द सरस्वती, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सुभाष चन्द्र बोस, राम मनोहर लोहिया एवं जय प्रकाश नारायण को भी लाया गया और इससे सम्बंधित प्रश्न पूछे गए। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में इस बात की भी सम्भावना हो सकती है कि निकट भविष्य में पटेल, भगत सिंह, अम्बेडकर और कर्पूरी ठाकुर सहित अन्य राजनीतिक नेतृत्व को भी प्रश्न के दायरे में लाया जा सकता है। साथ ही, यह भी संभव है कि निकट भविष्य में जय प्रकाश नारायण और सम्पूर्ण क्रान्ति की उनकी संकल्पना से भी प्रश्न पूछे जाएँ।

नवीन प्रकृति वाले प्रश्न:

हाल के वर्षों में सामान्य अध्ययन प्रथम पत्र के इतिहास खण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति में बदलाव देखने को मिलता है। जहाँ (56-59)वीं बीपीएससी में पूछे गए प्रश्न सामान्य प्रकृति के हैं, वहीं (60-62)वीं बीपीएससी में पूछे गए प्रश्न अपारंपरिक प्रकृति के कहीं अधिक हैं और ऐसे प्रश्नों की संख्या बढ़ रही है। ये प्रश्न कहीं विशिष्ट प्रकृति के हैं और ये कहीं अधिक गहराई में जाकर पूछे गए हैं। इस क्रम में इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस खण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या चार से बढ़ाकर छह कर दिया गया है। इनमें छह प्रश्नों में दो-तीन प्रश्न पारंपरिक किस्म के होते हैं, और तीन-चार प्रश्न पारंपरिक एवं नवीन किस्म के। (60-62)वीं मुख्य परीक्षा में पूछे जाने वाले नवीन प्रकृति वाले प्रश्न को देखा जाए, तो ये प्रश्न निम्न हैं:

1.  “गाँधी की रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का, दाँव-पेंचों की सहज प्रवृत्ति और लोक-चेतना में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल है।” व्याख्या कीजिये।

2.  बंगला-साहित्य तथा संगीत में रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का मूल्यांकन कीजिये।

3.  जवाहरलाल नेहरू की विदेश-नीति के प्रमुख लक्षणों का परीक्षण कीजिये।

63वीं बीपीएससी परीक्षा में गाँधी पर आधारित प्रश्न भी अलग प्रकृति वाला है:

4.  गाँधी जी के सामाजिक-सांस्कृतिक विचारों की महत्ता का वर्णन करें।

64वीं बीपीएससी परीक्षा में नवीन प्रकृति वाले प्रश्नों की संख्या बढ़ी:

5.  19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये।

6.  20वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्रपारीय आप्रवासन
(Overseas Immigration) के क्या कारण थे? बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिए

7.  उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए।

8.  निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए:

a.  मजदूर वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन

b.  जाति और धर्म से जुड़ी पहचान पर जनगणना,1881 का प्रभाव

65वीं बीपीएससी परीक्षा,2019 में एक बार फिर से ऐसे प्रश्नों की संख्या बढ़ी:

1.  स्वामी सहजानन्द और किसान-सभा आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।

2.  राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण के सामाजिक और आर्थिक चिन्तन की व्याख्या कीजिए।

3.  निम्न में से किन्हीं दो पर टिप्पणियाँ लिखें:

a.  डॉ. राजेंद्र प्रसाद और राष्ट्रीय आन्दोलन 

b.  बिहार के दलित-आन्दोलन

इस साल व्यक्तित्व-आधारित प्रश्नों की दिशा बदली और लोहिया, जयप्रकाश और राजेन्द्र प्रसाद जैसे व्यक्तित्वों तक व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न के दायरे का विस्तार किया गया जो छात्रों के लिए चौंकाने वाला था स्वामी सहजानन्द सरस्वती पर तो पहले भी प्रश्न पूछे जा चुके हैं, इसीलिए इसमें कुछ नया नहीं है

66वीं बीपीएससी परीक्षा में एक बार फिर से एक फुल क्वेश्चन और तीन टिप्पणियाँ, कुल मिलाकर चार प्रश्न व्यक्तित्व-आधारित पूछे गए, जिनमें पारम्परिक: गाँधी एवं नेहरु, और अपारम्परिक: सुभाष एवं जेपी शामिल थे:

1.  साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता पर नेहरू के विचार की विवेचना कीजिए।

2.  निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए: 19×2-38 अंक

a.  सत्याग्रह पर गाँधीजी के विचार

b.  जयप्रकाश नारायण और भारत छोड़ो आन्दोलन

c.   सुभाषचन्द्र बोस और आइ. एन..

यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि जिस प्रकार पिछले तीन दशकों के दौरान आर्थिक उदारीकरण ने सामाजिक-आर्थिक बहिष्करण की प्रक्रिया को तेज किया है और धार्मिक एवं जातीय पहचान पर आधारित राजनीति की मज़बूती जिस सामाजिक-सांस्कृतिक संकट को जन्म दे रही है, उसने गाँधी, नेहरु एवं टैगोर से लेकर राम मनोहर लोहिया एवं लोकनायक जयप्रकाश नारायण तक की सोच एवं विचारधारा की प्रासंगिकता बढ़ी है। इससे इस बात का संकेत मिलता है कि आगे भी इस टॉपिक के महत्वपूर्ण बने रहने की सम्भावना है और इसलिए इसके गहन अध्ययन की जरूरत है अन्यथा प्रश्न की माँग को पूरा कर पाना और उसके साथ न्याय कर पाना मुश्किल होता।  

यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अगर प्रश्नों की प्रकृति में इन बदलावों के बावजूद परीक्षार्थियों को विशेष कठिनाई नहीं हुई, तो इसलिए कि इस खंड पूछे जाने वाले  प्रश्नों की संख्या चार से बढाकर छह कर दी गयी जिसके कारण उनके पास पर्याप्त विकल्प थे। अगर ये विकल्प नहीं होते, या फिर अगर इन विकल्पों को हटा दिया जाये, तो परीक्षार्थियों की परेशानियाँ इसीलिए न तो इन बदलावों को हल्के में लिया जा सकता है और ना ही इन्हें हल्के में लिया जाना चाहिए।

इतिहास कला एवं संस्कृति खंड से पूछे गए प्रश्न

67वीं बीपीएससी:

67वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में भारतीय इतिहास एवं संस्कृति खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति पर गौर करें, तो हम पाते हैं कि इस बार जिन टॉपिकोण से प्रश्न पूछे गए, वे भी पारम्परिक ही थे और पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति भी पारम्परिक ही थी। मौर्य-कला, पश्चिमी एवं तकनीकी शिक्षा का विकास, भारत छोडो आन्दोलन, गाँधी का उदय: ये सारे प्रश्न प्रथम दृष्ट्या अपेक्षित ही प्रतीत होते हैं। इसका अलावा, टॉपिक को रिपीट करने की प्रवृति भी सहज ही देखी जा सकती है। संथाल विद्रोह और चम्पारण सत्याग्रह पर 66वीं बीपीएससी में भी प्रश्न पूछे गए और 67वीं बीपीएससी में भी। हाँ, कुछ प्रश्न नयेपन की ओर इशारा ज़रूर करते हैं। राष्ट्रीय नायक के रूप में गाँधी का उदय हो, या स्वतःस्फूर्त आन्दोलन के रूप में भारत छोड़ो आन्दोलन, या फिर स्वतंत्रता-संग्राम में टैगोर का योगदान: ये टॉपिक तो पारंपरिक हैं, पर प्रश्न नए हैं और बिना व्यापक समझ एवं एप्लीकेशन के इन प्रश्नों को सही तरीके से रेस्पोंड करना संभव नहीं है। इसी प्रकार राष्ट्रीय आन्दोलन के गाँधी-युग से पहले जाकर प्रश्न पूछे जाने की प्रवृत्ति को भी सहज ही लक्षित किया जा सकता है। 67वीं बीपीएससी में कांग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक और प्रारंभिक राष्ट्रवादियों के प्रति ब्रिटिश नीति को इस सन्दर्भ में देखा जा सकता है। 64वीं बीपीएससी में भी 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा से सम्बंधित प्रश्न पूछा गया था।        

1.  अगर भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिये। प्रारंभिक राष्ट्रवादियों के प्रति ब्रिटिश नीतियों की चर्चा कीजिये।

2.  सन् (1857-1947) के मध्य बिहार में पाश्चात्य एवं तकनीकी शिक्षा के विस्तार के क्रम को अनुरेखित कीजिये।

3.  एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नायक के रूप में गाँधी जी के उदय के लिए उत्तरदायी कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

4.  सन् 1942 के भारत छोडो आन्दोलन पर एक निबंध लिखिए। क्या यह एक अनायास ही होने वाला आन्दोलन था?

5.  मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये। 

6.  निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए: 19×2-38 अंक

a.  संथाल विद्रोह

b.  चम्पारण सत्याग्रह

c.   रवीन्द्रनाथ टैगोर का स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान

66वीं बीपीएससी:

अगर 66वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों की प्रकृति पर गौर करें, तो ये प्रश्न अपेक्षाकृत सामान्य प्रकृति के प्रतीत होते हैं ये प्रश्न अपेक्षा के अनुरूप थे। संथाल विद्रोह, बिरसा आन्दोलन, चम्पारण सत्याग्रह और पटना कलम चित्रकला: ये चारों प्रश्न उम्मीद के मुताबिक ही हैं। हाँ, संथाल विद्रोह पर पूछे गए प्रश्न का एक आयाम थोड़ा अलग अवश्य है जिसमें संथाल विद्रोह की गति (Course) के बारे में पूछा गया है। इस प्रश्न को रेस्पोंड करते हुए संथाल विद्रोह की गतिशील प्रकृति को रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है। हाँ, व्यक्तित्व-आधारित प्रश्नों का दायरा लगातार व्यापक हो रहा है। हाल के वर्षों में बीपीएससी में गाँधी, नेहरु और टैगोर के अलावा राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े अन्य व्यक्तित्वों से सम्बंधित प्रश्न भी पूछे जा रहे हैं। जयप्रकाश नारायण और सुभाष चन्द्र बोस से सम्बंधित प्रश्नों को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। जयप्रकाश की भूमिका तो फिर भी भारत छोड़ो आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में पूछा गया है जहाँ से पहले भी प्रश्न पूछे जाते रहे हैं, लेकिन सुभाष से सम्बंधित प्रश्न आज़ाद हिन्द फौज (INA) के विशेष सन्दर्भ में पूछा गया है जिस टॉपिक से बीपीएससी में सामान्यतः प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं।         

1.  संथाल विद्रोह के कारण क्या थे? उसकी गति और उसके परिणाम क्या थे?

2.  बिरसा आन्दोलन की विशेषताओं की समीक्षा कीजिए। 

3.  “चम्पारण सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था।" स्पष्ट कीजिए।

4.  साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता पर नेहरू के विचार की विवेचना कीजिए।

5.  पटना कलम चित्रकला की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए

6.  निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए: 19×2-38 अंक

a.  सत्याग्रह पर गाँधीजी के विचार

b.  जयप्रकाश नारायण और भारत छोड़ो आन्दोलन

c.   सुभाषचन्द्र बोस और आइ. एन..

65वीं बीपीएससी:

1.  सन् 1857 के विद्रोह के क्या कारण थे? बिहार में उसका क्या प्रभाव था?

2.  सन् (1858-1914) के दौरान बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के सम्प्रसार का वर्णन कीजिए

3.  स्वामी सहजानन्द और किसान-सभा आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिए

4.  राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण के सामाजिक और आर्थिक चिन्तन की व्याख्या कीजिए

5.  पाल-कला और भवन-निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए, और बौद्ध-धर्म के साथ उसके संबंधों पर प्रकाश डालें

6.  निम्न में से किन्हीं दो पर टिप्पणियाँ लिखें:

c.  डॉ. राजेंद्र प्रसाद और राष्ट्रीय आन्दोलन 

d.  जाति एवं धर्म पर गाँधी जी के विचार

e.  बिहार के दलित-आन्दोलन

64वीं बीपीएससी परीक्षा:

1.  19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये।

2.  चंपारण-सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था। स्पष्ट कीजिये।

3.  20वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्रपारीय आप्रवासन
(Overseas Immigration) के क्या कारण थे? बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिए

4.  उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए।

5.  मौर्य भवन-निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए और बौद्ध धर्म के साथ उसके संबंधों पर भी प्रकाश डालिए।

6.  निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए:

a.  मजदूर वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन

b.  जाति और धर्म से जुड़ी पहचान पर जनगणना,1881 का प्रभाव

c.   नेहरु और धर्मनिरपेक्षता

63वीं बीपीएससी परीक्षा:

1.  गाँधी जी के सामाजिक-सांस्कृतिक विचारों की महत्ता का वर्णन करें।

2.  बिहार में सन् 1857 से सन् 1947 तक पाश्चात्य शिक्षा के विकास की विवेचना कीजिए।

3.  सन् 1857 के विद्रोह में बिहार के योगदान की विवेचना करें।

4.  बिहार में संथाल-विद्रोह के कारणों एवं परिणामों का मूल्यांकन करें। 

5.  बिहार में चम्पारण-सत्याग्रह(1917) के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिए।   

6.  पटना कलम चित्रकला शैली की मुख्य विशेषताओं का परीक्षण कीजिए।

(60-62)वीं बीपीएससी परीक्षा:

1.  1942 के भारत-छोड़ो आन्दोलन के दौरान बिहार में जन-भागीदारी का वर्णन कीजिये

2.  बिहार में 1813 ई. 1947 ई. तक पाश्चात्य शिक्षा के विकास की विवेचना कीजिये।

3.  मौर्य-कला पर प्रकाश डालिए तथा बिहार में इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।

4.  “गाँधी की रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का, दाँव-पेंचों की सहज प्रवृत्ति और लोक-चेतना में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल है।” व्याख्या कीजिये।

5.  बंगला-साहित्य तथा संगीत में रवीन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का मूल्यांकन कीजिये।

6.  जवाहरलाल नेहरू की विदेश-नीति के प्रमुख लक्षणों का परीक्षण कीजिये।

(56-59)th         

  BPSC

  (53-55)th         

   BPSC

  (48-52)th          

    BPSC

  47th BPSC       

    46th   

   BPSC       

1.पटना कलम चित्रकारी की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये.

2.संथाल विद्रोह के मुख्य कारणों का विवरण दीजिये. उनके क्या प्रभाव हुए?

3.बिहार के सन्दर्भ में 1857 की क्रांति के महत्व की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये.

4.किसान विद्रोहों के लिए चम्पारण सत्याग्रह के महत्व को स्पष्ट कीजिये.

5.राष्ट्रवाद को परिभाषित कीजिये. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे किस प्रकार परिभाषित किया?

6.आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरु की भूमिका की समीक्षा कीजिये.

 

1.मौर्य कला की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिये.

2.“बिरसा आन्दोलन का आधारभूत उद्देश्य था आतंरिक शुद्धिकरण तथा विदेशी शासन की समाप्ति की इच्छा”. स्पष्ट कीजिये.

3.1857 की क्रांति में कुंवर सिंह के योगदान का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये.

4.1940-41 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में बिहार के योगदान का वर्णन कीजिये.

1.रबीन्द्रनाथ टैगोर के सामाजिक और सांस्कृतिक विचारों की महत्ता का वर्णन कीजिये.

2. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में बिहार के योगदान का वर्णन करें.

3. बिहार में संथाल विद्रोह (1855-56) के कारण एवं परिणामों का विवेचन करें.

4. पटना कलम चित्रकारी की प्रमुख विशेषताओं का विवेचना कीजिये.

1.मौर्य कला एवं स्थापत्य की प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये.

2.बिहार में 1857 के विद्रोह के उद्दभव के कारणों की विवेचना करें तथा उसकी असफलता का उल्लेख करें.

3.क्या आप इस बात से सहमत हैं कि चंपारण सत्याग्रह भारत के स्वंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक परिवर्तनीय बिंदु था?

4.अपने अध्ययन काल में बिहार में तकनीकी शिक्षा के विकास का वर्णन करें.

1. पाल कालीन स्थापत्य एवं मूर्ति कला की मुख्य विशेषताएं बताएं.

2.बिहार के जनांदोलनों में गाँधीजी की भूमिका का विश्लेषण करें.

3.आधुनिक बिहार में शिक्षा एवं प्रेस के विकास की व्याख्या कीजिये एवं स्वतंत्रा आन्दोलन में शिक्षा एवं प्रेस की भूमिका बताये.

4.बंगाल से बिहार के अलग होने एवं आधुनिक बिहार के उदय पर प्रकाश डालिए.

स्रोत-सामग्री:

1.  सार्थक बीपीएससी सीरीज भाग 1: भारत एवं बिहार का इतिहास, कला एवं संस्कृति: कुमार सर्वेश, सुकांत शैलजा बल्लभ एवं डॉ. संजय सिंह