Saturday 23 April 2016

चौदहवां वित्त आयोग (2015-20)

                      चौदहवां वित्त आयोग (2015-20)
==============
A.वित्तीय संघवाद:
===============
वाय. वी. रेड्डी की अध्यक्षता वाले चौदहवें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केन्द्रीय राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को बत्तीस प्रतिशत से बढाकर बयालीस प्रतिशत करने का सुझाव दिया जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया. इससे केंद्र से राज्यों की ओर फंडों का बिना शर्त अंतरण बढेगा और सभी प्रकार का  अंतरण कुल मिलकर 45 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच जाने की सम्भावना है. इससे राज्यों के लिए न केवल फिस्कल स्पेस क्रिएट होगा और राज्यों की वित्तीय स्थिति बेहतर होगी, वरन बिना शर्त संसाधनों की उपलब्धता बढ़ने से राज्यों की वित्तीय स्वायत्ता भी बढ़ेगी. इससे राज्यों को अपनी ज़रुरत के हिसाब से फंडों के इस्तेमाल की छूट मिलेगी. इससे संसाधनों के अधिकतम दोहन को सुनिश्चित करना संभव हो सकेगा. साथ ही, आनेवाले समय में उत्तरदायित्व और संसाधनों के बीच का असंतुलन सम्बन्धी राज्यों की शिकायतें दूर होंगी और इन दोनों के बीच बेहतर संतुलन स्थापित हो सकेगा.

A.    इन सिफारिशों को स्वीकार किये जाने के कारण केंद्र द्वारा राज्यों को अंतरित राजस्व 3.48 करोड़ से बढ़कर 5.26 लाख करोड़ हो जायेगा. 2015-16 में ही 50 प्रतिशत से अधिक राजस्व अंतरित हुआ.
B.     निश्चय ही केन्द्रीय राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ केंद्र के लिए संसाधनों की उपलब्धता प्रभावित होंगी. इसके मद्देनज़र आयोग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र द्वारा चलायी जा रही आठ योजनाओं को बंद करने का सुझाव दिया और कई केंद्र-प्रायोजित योजनाओं में केंद्र के अंशदान में भारी कटौती की सिफारिश की. बीस केंद्र-प्रायोजित स्कीमों से केन्द्रीय समर्थन की वापसी का सुझाव दिया गया.पुलिस बालों के आधुनिकीकरण से सम्बंधित स्कीम, राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण स्कीम राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन,राष्ट्रीय कृषि विकास योजना,नेशनल स्वस्थ्य मिशन,नेशनल ग्रामीण\शहरी आजीविका मिशन,राष्ट्रीय माध्यमिक/उच्च शिक्षा मिशन, स्वच्छ भारत मिशन आदि बंद करने का सुझाव दिया गया जिससे सामाजिक-आर्थिक समावेशन की प्रक्रिया के अवरुद्ध होने की सम्भावना है. साथ ही, यह दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में संतुलित विकास की संभावनाओं को बाधित करेगा.
C.     राज्य आपदा-राहत कोष में दी गई अनुदान-राशि का दस प्रतिशत तक उन घटनाओं में इस्तेमाल में लाया जा सकता है जिसे आपदा माना जा सकता है.
D.    रिपोर्ट में सामान्य राज्यों और विशेष दर्ज़ा प्राप्त राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करने की सिफारिश की गई. साथ ही देश के ढाई सौ सर्वाधिक पिछड़े जिलों में विकास की प्रक्रिया को त्वरित करने के लिए चलाये जा रहे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (Backward Region Grant Fund: BRGF) को भी समाप्त करने की सिफारिश की गई.
E.     रिपोर्ट में ग्यारह राज्यों को अंतरण-पश्चात राजस्व घाटे की भरपाई के लिए 1.94 लाख करोड़ की राशि प्रदान की गई.
F.     आयोग ने सहयोगी संघवाद की भावनाओं को मजबूती प्रदान करने के लिए अंतर्राज्यीय परिषद् के विस्तार पर बल दिया गया और इससे यह अपेक्षा की गई कि यह राज्यों के लिए क्षेत्रक विशिष्ट अनुदानों की पहचान करेगा.
============
B. राज्य वित्त  :
============
A.    राज्य के द्वारा मनोरंजन कर और व्यवसाय कर की समीक्षा की जाएगी. साथ ही, राज्य सरकारें से अपेक्षा की गई कि वे प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को छोड़कर अन्य विज्ञापनों पर कर लगाने की जिम्मेवारी स्थानीय संस्थाओं को सौंपें.
B.     आयोग ने राज्य सरकारों को खनन से प्राप्त होने वाली रॉयल्टी भी उन स्थानीय संस्थाओं के साथ शेयर करने का सुझाव दिया जहाँ ये अवस्थित हैं.
C.     राज्यों और लोकल बॉडीज को म्युनिसिपल बांड्स जारी करने की संभावनाओं की पड़ताल करने का सुझाव दिया.
D.    आयोग ने कर के अनुकूल अंतरण के कारण सृजित फिस्कल स्पेस का इस्तेमाल न्यायिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए करने का सुझाव दिया. 

==============
C.स्थानीय संस्थायें:
==============
A.    स्थानीय संस्थाओं को केंद्र द्वारा फंड आवंटन में दोगुनी से ज्यादा वृद्धि हुई. तेरहवें वित्त आयोग ने स्थानीय शासन के मद में 87000 की राशि आवंटित की थी, लेकिन चौदहवें वित्त आयोग ने इसे बढाकर 2,87,000 करोड़ कर दिया. इनमें 2,00,000 करोड़ की धनराशि पंचायतों के लिए और 87,000 करोड़ की धनराशि शहरी स्वायत्त संस्थाओं के लिए आवंटित की गई.
B.     स्थानीय संस्थाओं के लिए अनुदानों के राज्यों के बीच वितरण हेतु फार्मूले में 90 प्रतिशत भारांश 2011 की जनसख्या को और दस प्रतिशत भारांश क्षेत्रफल को दिया जाएगा.
C.     स्थानीय संस्थाओं को फंड-आवंटन दो हिस्सों में किया जायेगा: पंचायतों के लिए 80 प्रतिशत फण्ड-आवंटन बेसिक पार्ट के रूप में किया जाएगा, जबकि 20 प्रतिशत फण्ड-आवंटन निष्पादन पर आधारित होगा.
D.    निष्पादन के मूल्याङ्कन के क्रम में देखा जाएगा कि पिछले साल के खातों का सही तरीके से रखरखाव हुआ है अथवा नहीं और आवंटित राशि की समुचित ऑडिटिंग हुयी है अथवा नहीं? साथ ही, पिछले वर्ष की तुलना में राजस्व-संग्रहण में कितनी वृद्धि हुई है?
E.     इसने राज्य सरकारों से यह भी अपेक्षा की कि वे लेखांकन और लेखा-परीक्षण के सन्दर्भ में स्थानीय संस्थाओं के लिए सुविधा-प्रदायक की भूमिका में सामने आयें.
F.     चूँकि राज्य सरकारें अपनी शक्तियां स्थानीय संस्थाओं को हस्तांतरित करने के प्रति अनिच्छुक होती हैं, इसीलिए अक्सर समस्या आती है. राज्य सरकारों का स्थानीय संस्थाओं के सन्दर्भ में यह नजरिया स्थानीय संस्थाओं के सशक्तिकरण के रास्ते में महत्त्वपूर्ण अवरोध है. इस सन्दर्भ में आयोग ने यह सुझाव दिया कि केंद्र अब स्थानीय संस्थाओं को राज्य के माध्यम की बजाय सीधे फण्ड उपलब्ध कराएगा.
इसके जरिये पंचायती राज संस्थाओं की जवाबदेहिता को सुनिश्चित सुनिश्चित करने का प्रयास भी किया जा रहा है और उन्हें संसाधनों को जुटाने में सक्षम बनाने की कोशिश भी की जा रही है. इससे स्थानीय संस्थाओं में सहभागिता भी बढ़ेगी और ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र भी मज़बूत होगा.
===============
D.राजकोषीय समेकन :
===============
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राजकोषीय घटे को तीन प्रतिशत के स्तर पर सीमित रखने का सुझाव दिया. साथ ही, प्रभावी राजस्व घाटा को समाप्त करते हुए राजस्व घाटे को शून्य के स्तर पर लाने की बात की गई.
आयोग ने विद्यमान राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम को ऋण सीलिंग एवं राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम के जरिये प्रत्स्थापित करने की बात की गई.
आयोग ने नए पूंजीगत कामों के अनुमोदन को वार्षिक बजटीय प्रावधानों के समुचित अनुपात में निर्धारित किये जाने की भी बात की.


===============================
E. सार्वजनिक सुविधाएँ और सार्वजानिक उपक्रम
===============================
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सार्वजानिक सुविधाओं की कीमतों को युक्तिसंगत बनाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया और विद्युत् अधिनियम,2003 में संसोधन का सुझाव दिया ताकि राज्यों द्वारा सब्सिडी-भुगतान में विलम्ब की स्थिति में दण्ड आरोपित किये जा सकें.
आयोग ने सार्वजानिक उपक्रमों के उच्च प्राथमिकता,प्राथमिकता और निम्न प्राथमिकता के साथ-साथ गैर प्राथमिकता श्रेणियों में वर्गीकरण करते हुए वर्तमान नीति और भावी कार्ययोजना तैयार करने का सुझाव किया गया.
इसने नेशनल इन्वेस्टमेंट फण्ड को समाप्त करने की बात की. इनके शेरोन की बिक्री से प्राप्त धनराशि संचित निधि में जमा करने और इसकी बिक्री से प्राप्त राशि के एक हिस्से को उन राज्यों के साथ शेयर करने की अनुशंसा की गई जहां ये अवस्थित हैं.
==============
F वास्तु एवं सेवा कर
==============
राज्यों को आश्वस्त करने के लिए आयोग ने विधायी कार्यवाही के जरिये स्वायत्त गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स मुआवजा फण्ड की स्थापना का सुझाव दिया. इसने पहले तीन वर्षों के दौरान शत-प्रतिशत ,चौथे वर्ष के दौरान 75 प्रतिशत और पांचवें साल पचास प्रतिशत मुआवज़े  दिए जाने का सुझाव दिया.

=====================
तेरहवें वित्त आयोग से तुलना:
=====================
तेरहवें और चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों की अगर तुलना की जाय,तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि चौदहवाँ वित्त आयोग संघवाद की भावनाओं के कहीं ज्यादा करीब है और यह शासन के तीनों ही स्तरों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील है. इनके अंतरों को निम्न परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है:
A.    तेरहवें वित्त आयोग ने केन्द्रीय राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 30.5 प्रतिशत से बढाकर 32 प्रतिशत करने का सुझाव दिया था, जबकि चौदहवें वित्त आयोग ने 32 प्रतिशत से बढाकर 42 प्रतिशत करने का. इस प्रकार तेरहवें वित्त आयोग के  डेढ़ प्रतिशत वृद्धि के सापेक्ष चौदहवें वित्त आयोग ने दस प्रतिशत वृद्धि का सुझाव दिया जो वित्त आयोग के इतिहास में सर्वाधिक है.
B.     चौदहवें वित्त आयोग ने राजस्व-वितरण के फ़ॉर्मूले में भी संसोधन का सुझाव दिया.जहाँ तेरहवें वित्त आयोग ने जनसँख्या को 25 प्रतिशत भारंश दिया, वहीं चौदहवें आयोग ने 27.5 प्रतिशत. तेरहवें वित्त आयोग ने 1971 की जनसख्या को इसके लिए आधार बनाया, जबकि चौदहवें वित्त आयोग ने 17.5 प्रतिशत भारांश 1971 की जनसँख्या को और 10 प्रतिशत भारांश 2011 की जनसंख्या को दिया. इसका फायदा उत्तर प्रदेश और बिहार सहित उन राज्यों को मिलेगा जहाँ की जनसँख्या अधिक है और जहाँ 1971-2011 के बीच जनसँख्या वृद्धि की दर अन्य राज्यों के मुकाबले तेज रही है.
C.     तेरहवें वित्त आयोग ने क्षेत्रफल को 10 प्रतिशत भारांश दिया, जबकि चौदहवें वित्त आयोग ने पंद्रह प्रतिशत भारांश. इसका सीधा फायदा उन राज्यों को मिलेगा जो बड़े आकर वाले हैं.
D.    तेरहवें वित्त आयोग ने राजकोषीय क्षमता दूरी ( Fiscal Capacity Distance) को 47.5 प्रतिशत भारांश दिया था, जिसे चौदहवें वित्त आयोग ने बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया.
E.     तेरहवें वित्त आयोग ने राजकोषीय अनुशासन को 17.5 पतिशत भारांश दिया था, लेकिन चौदहवें वित्त आयोग राजकोषीय अनुशासन की जगह वन-क्षेत्रों के विस्तार को 7.5 प्रतिशत भारांश दिया जो इस बात का संकेत देता है कि चौदहवां वित्त आयोग कहीं-न-कहीं सतत विकास के प्रति आग्रहशील प्रतीत होता है. वन-क्षेत्र वाले मानकों को फार्मूले में शामिल करने का लाभ आँध्रप्रदेश,छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश,कर्णाटक और जम्मू-कश्मीर को विशेष रूप से लाभ मिलेगा.
F.     तेरहवां वित्त आयोग गाडगिल फार्मूला,1969 के आधार पर सामान्य श्रेणी के राज्यों  और विशेष दर्ज़ा प्राप्त राज्यों के बीच भेद करता है जिसका फायदा अबतक उत्तर-पूर्व के सात राज्यों के साथ सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर: इन ग्यारह राज्यों को मिलता रहा है, लेकिन चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकारे जाने की स्थिति इन ग्यारह राज्यों को इस अतिरिक्त लाभ से वंचित हो जाना पड़ेगा. इससे बिहार जैसे राज्यों के मंसूबे को भी झटका लगेगा जो विशेष राज्य का दर्ज़ा पाने की उम्मीद लगाये बैठे थे.
G.    तेरहवें वित्त आयोग ने क्षेत्रक-विशिष्ट दृष्टिकोण को जारी रखा था, लेकिन चौदहवें वित्त आयोग ने तबतक के लिए क्षेत्रक-विशिष्ट दृष्टिकोण को त्यागने का सुझाव दिया जबतक अंतर्राज्यीय परिषद् का विस्तार नहीं हो जाता है.



===============
रिपोर्ट का विश्लेषण:
===============
निश्चय ही चौदहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट राज्यों के साथ-साथ पंचायतों की वित्तीय स्थिति को मजबूती प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. यह संसाधनों के उपयोग के सम्बन्ध में राज्यों की अधिकारिता में केंद्र के हस्तक्षेप को सीमित करेगा क्योंकि इससे कुल राजस्व-अंतरण का 70 प्रतिशत बिना शर्त होगा. रिपोर्ट के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि इससे विशेष रूप से अपेक्षाकृत कम विकसित और निम्न प्रति व्यक्ति जीडीपी वाले राज्यों के हिस्से अधिक संसाधनों की उपलब्धता संभव हो सकेगी. लेकिन, केंद्र से राज्यों को मिलने वाले फण्ड में जितनी वृद्धि की बात की जा रही है, वास्तविक वृद्धि उतनी नहीं है. वास्तविक वृद्धि के 3-4 प्रतिशत के स्तर पर रहने की सम्भावना है.इस परिप्रेक्ष्य में देखें, तो यह संसाधनों की उपलब्धता के सन्दर्भ में मात्रात्मक से कहीं अधिक गुणात्मक प्रभाव उत्पन्न करेगा. इसलिए भी कि राजस्व मद में अंतरण तो बढेगा,पर गैर-राजस्व मद में अंतरण में तेजी से गिरावट आएगी. इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि 2015-16 के दौरान योजनाओं के माध्यम से केंद्र की ओर से राज्यों को मिलने वाली एक-मुश्त अनुदान और राज्य की योजनाओं में दी जानेवाली सहायता में 2.67 लाख करोड़ रूपये की कमी आई,जबकि कर-राजस्व में हिस्सेदारी 1.78 लाख करोड़ की वृद्धि हुई. इस रिपोर्ट के कारण केंद्र का फिस्कल स्पेस सीमित होता दिखाई पड़ रहा है जिसके कारण केंद्र के द्वारा सामाजिक क्षेत्र पर किये जाने वाले सार्वजानिक व्यय में कटौती की जा रही है. दूसरी बात यह कि केंद्र अब सामाजिक क्षेत्रक पर खर्च की जिम्मेवारी राज्यों को सौंप रहा है, जबकि इस सन्दर्भ में राज्यों को न तो अनुभव है और न ही विशेषज्ञता. अबतक सामाजिक-आर्थिक आयोजन प्लानिंग और डिजाईनिंग की जिम्मेवारी केंद्र की थी, जबकि राज्यों की भूमिका इसके क्रियान्वयन में थी. यह एक ऐसा पहलू है जिसकी न तो अनदेखी की जा सकती है और न की जानी चाहिये.
इसी प्रकार संसाधनों के इस्तेमाल में राज्यों को मिलने वाली स्वायत्ता अगर इसका सकारात्मक पक्ष है,तो सामान्य श्रेणी एवं विशेष दर्ज़ा प्राप्त राज्यों के वर्गीकरण की समाप्ति और पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि की समाप्ति संतुलित एवं समावेशी विकास की संभावनाओं को हतोत्साहित करेगी. विशेष राज्य का दर्ज़ा प्राप्त ग्यारह राज्यों, जिन्हें 90 प्रतिशत योजना-राशि अनुदान और 30  प्रतिशत योजना-राशि सहायता के रूप में प्राप्त होती है, को 30 प्रतिशत अनुदान और 70 प्रतिशत सहांयता से ही संतोष करना पड़ेगा. इस प्रकार उन्हें  अतिरिक्त अनुदानों से वंचित होना पडेगा जो ब्याज सहित वापसी की देयता सृजित करेगी. ध्यातव्य है कि विशेष दर्ज़ा प्राप्त राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं और केन्द्रीय सहायता प्राप्त योजनाओं में विशेष रियायत दी जाती है. वहां निवेश करने वाले निवेशकों को उन कर-रियायतों से भी वंचित रह जाना पड़ेगा जो विशेष दर्ज़ा प्राप्त राज्यों में निवेश के कारण उन्हें प्राप्त होता है. अब वे लैप्स फण्ड का आगामी वित्त वर्ष के दौरान इस्तेमाल भी नहीं कर सकेंगे.इन सब कारणों से क्षेत्रीय समावेशन की प्रक्रिया अवरुद्ध भी हो सकती है. बैकवर्ड रीजन ग्रांट फण्ड की समाप्ति अंतरा-राज्यीय विषमता की समाप्ति और समावेशन की प्रक्रिया को भी बाधित करेगी.

स्थानीय संस्थाओं के सन्दर्भ में देखा जाए, तो उनके पास संसाधनों की उपलब्धता तो बढ़ेगी, पर राजीव गाँधी पंचायत सशक्तिकरण स्कीम की समाप्ति के कारण स्थानीय संस्थाओं के स्तर पर क्षमता-निर्माण की प्रक्रिया अवरूद्ध होगी. बिना क्षमता-निर्माण के स्थानीय संस्थाओं को उपलब्ध कराये गए इन फुन्दों का समुचित इस्तेमाल और इष्टतम दोहन हो पायेगा,इसमें संदेह है.

2 comments: