चतुर्भुज
सुरक्षा संवाद’ (Quad)
प्रमुख आयाम
1. इंडो-पेसिफिक से आशय
2. क्वॉड: अविर्भाव, विस्तार एवं विकास
a. आविर्भाव की पृष्ठभूमि
b. क्वॉड का आविर्भाव
c. क्षेत्रीय सुरक्षा
और क्षेत्रीय समेकन
d. मालाबार-अभ्यास का विस्तृत होता दायरा
e. क्वॉड सक्रियता की ओर
f. रायसीना डॉयलॉग,2018
g. कोरोना-संकट और इंडो-पेसिफ़िक
h. औपचारिक रूप देने पर सहमति
i.
मालाबार-अभ्यास
और ऑस्ट्रेलिया
j.
5जी
तकनीक को लेकर साझा नजरिया हेतु बैठक
k. प्रस्तावित टोकियो बैठक, अक्टूबर 2020
3. क्वॉड का विस्तार संभावित
4. आकार ग्रहण करता क्वॉड
a. अमरीका का लक्ष्य
b. भारत-अमेरिका सामरिक एवं रक्षा-सहयोग
c. अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि
d. भारत-जापान द्विपक्षीय
सम्बन्ध
5. भारत-ऑस्ट्रेलिया:
चीनी चुनौती
a. भारत-ऑस्ट्रेलिया सम्बन्ध:
रणनीतिक साझेदारी की ओर
b. भारत-ऑस्ट्रेलिया पारस्परिक लॉजिस्टिक्स समर्थन
समझौता
c. ऑस्ट्रेलिया-चीन
संबंध में बढ़ता तनाव
d. भारत-ऑस्ट्रेलिया
सम्बन्ध: बढ़ती नजदीकियाँ
e. ऑस्ट्रेलिया को
घेरने की कोशिश में लगा चीन
6. क्वॉड: मौजूद चुनौतियाँ और समाधान
7. भारत और क्वॉड:
a.
भारत की चिन्ता
b.
भारत की दुविधा
c. भारत:
क्वॉड बनाम् इंडो-पेसिफ़िक
d.
इंडो-पेसिफिक रणनीति: क्वॉड तक सीमित नहीं
e.
भारतीय रणनीति: आसियान देशों का महत्व
f.
क्वॉड में भारत से नेतृत्वकारी भूमिका अपेक्षित
8. क्वॉड और चीन:
a. एशियाई नाटो के रूप
में क्वॉड
b. सामरिक बढ़त हासिल
करने की कोशिश में भारत
c. क्वॉड को काउन्टर
करने की चीनी रणनीति
9. इंडो-पेसिफ़िक
और फ्रांस:
a. फ्रांस
का इंडो-पेसिफ़िक विज़न
b. दक्षिण
चीन सागर: चीन के एकतरफा दावे को चुनौती
c. गहराती
भारत-फ्रांस सामरिक भागीदारी
d. पेरिस-दिल्ली-कैनबरा
एक्सिस,2018
e. पश्चिमी
हिंद महासागरीय क्षेत्र और फ्रांस
इंडो-पेसिफिक से आशय:
इंडो-पेसिफिक
अर्थात् हिंद-प्रशांत एक जैव-भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें हिंद महासागर
और दक्षिण चीन सागर सहित पश्चिमी और मध्य प्रशांत महासागर शामिल हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती
सक्रियता के मद्देनज़र हिंद महासागर और
प्रशांत महासागर से लगे हुए लोकतान्त्रिक देश: अमेरिका, जापान, भारत
और ऑस्ट्रेलिया जिस भू-राजनैतिक इलाक़े का निर्माण करते हैं, उसे इंडो-पैसिफ़िक कहते हैं। इनका क्वॉड के प्लेटफ़ॉर्म पर इकठ्ठा
होना यह बतलाता है कि ये देश ‘इंडो-पैसेफ़िक में निर्बाध एवं
सुरक्षित नौवहन की आज़ादी’ के साझे लक्ष्यों से परिचालित हैं
और इसके लिए वे मिल-जुलकर काम करना चाहते हैं।
क्वॉड का आविर्भाव
आविर्भाव की पृष्ठभूमि:
दरअसल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वाणिज्य की दृष्टि हिन्द महासागर,
दक्षिणी चीन सागर और प्रशान्त महासागर महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया की अधिकांश
व्यापारिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियाँ इसी सामुद्रिक क्षेत्र से गुजरने वाले
व्यापारिक मार्गों के रास्ते सम्पन्न होती हैं। लेकिन, पिछले तीन दशकों के दौरान चीन के आर्थिक
उभार ने उसकी नौसैनिक महत्वाकांक्षा को जन्म दिया है और उसने एक ओर हिन्द महासागर तक
पहुँचने की कोशिश तेज कर दी, दूसरी ओर उसने पूरे साउथ चाइना सी पर अपनी ओर से दावा
करना शुरू कर दिया। इस क्रम में उसने समुद्रों पर विधि से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र
कन्वेंशन(UNCLOS) और इसके द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक व्यवस्था को
मानने से भी इनकार कर दिया जिसके कारण इंडो-पेसिफिक में अव्यवस्था की संभावना
प्रबल हो गयी। कारण यह कि दक्षिण चीन सागर में चीन के अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के
कई देशों के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र(EEZ) भी हैं और कहीं-न-कहीं चीनी दावों के कारण
उनके बीच तनाव एवं टकराव की सम्भावना बढ़ गयी है। उधर, हिन्द महासागर को अमेरिकी
झील कहा जाता है और वहाँ तक पहुँचने की चीनी कोशिश ने भारत एवं अमेरिका के साथ
उसके टकराव की सम्भावना को बल प्रदान किया है।
यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें चीनी विस्तारवाद से उपजी हुई आशंकाओं और व्यापारिक
मार्गों एवं समुद्रों की सुरक्षा एवं निगरानी को लेकर चीन के साथ टकराव की बढ़ती
हुई सम्भावनाओं ने ऑस्ट्रेलिया को अमरीका और उसके सहयोगियों के क़रीब धकेल दिया
है। हाल के वर्षों में चीन की बढ़ती हुई आक्रामकता ने ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देशों
को चीन पर दबाव बनाये रखने के लिए एक बहुपक्षीय मंच की तलाश करने पर मजबूर किया है।
स्पष्ट है कि क्वॉड एक समान विचारधारा वाले
राष्ट्रों का एक संघ है जो इंडो-पेसेफिक में सदस्य-सहयोगी राष्ट्रों के
समक्ष मौजूद चीनी चुनौतियों से निबटने के लिए अवसर उपलब्ध करवाता है। इसके गठन का उद्देश्य
यह सुनिश्चित करना है कि:
1.
निर्बाध नौवहन की आज़ादी: इंडो-पेसिफ़िक क्षेत्र में
निर्बाध नौवहन की आज़ादी हो, और यह तबतक संभव नहीं है जबतक इस क्षेत्र के सबसे बड़ा
देश चीन अंतर्राष्ट्रीय सामुद्रिक व्यवस्था के नियमों के अनुसार न चले।
2. चीन की सैन्य-बढ़त को प्रति-संतुलित करना: ‘क्वॉड’
के सदस्य-राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय सैन्य-संबंध कभी बेहतर नहीं
रहे हैं, इसलिए वास्तविक समय की खुफिया सूचनाओं को साझा करने के लिए
इंटेलिजेंस-मैकेनिज्म को विकसित करने की कोशिश की जा रही है, ताकि चीन की सामरिक
बढ़त को प्रति-संतुलित किया जा सके।
क्वॉड का आविर्भाव:
चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् ‘क्वॉड’ सामुद्रिक सुरक्षा—रणनीति
का एक महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिंदु है जिसे अपनी उपयोगिता साबित करनी है। सन् 2007
पहली बार ‘मालाबार
अभ्यास’ का आयोजन हिंद महासागर के बाहर जापान के ओकिनावा
द्वीप के पास किया गया था और फिर सिंगापुर को छोड़कर इस संयुक्त नौसैनिक अभ्यास में
शामिल अन्य सभी देशों: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने जापान के तत्कालीन
प्रधानमन्त्री शिन्जो आबे की पहल पर आयोजित बैठक में भाग लिया। इस बैठक को 'चतुर्भुज पहल' (Quadrilateral Initiative) का नाम
दिया गया, और इसी समय से ‘क्वॉड’ प्रचलन में आया। चूँकि इस बैठक का आयोजन जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिन्जो आबे की पहल पर
किया गया था, इसीलिए अनौपचारिक रूप से ‘क्वॉड’ को लॉन्च करने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है।
क्षेत्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय समेकन:
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने भारतीय संसद को सम्बोधित करते हुए
क्वॉड को ‘दो समुद्रों का संगम’ अर्थात्
हिन्द महासागर और प्रशांत महासागरों के संगम की संज्ञा देते हुए 'व्यापक एशिया' कहा था। क्वाड
के जरिए प्रशांत महासागर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में फैले
एक विशाल नेटवर्क को जापान और भारत के साथ जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है और अगर
ऐसा होता है, तो यह इन दोनों देशों में आर्थिक रूपांतरण का आधार तैयार किया जाएगा।
इस खुले और पारदर्शी नेटवर्क के जरिए लोगों, वस्तुओं,
पूँजी और ज्ञान को स्वतंत्र रूप से प्रवाहित किया जाएगा, ताकि एक
देश की चीजों से इस समूह के दूसरे सभी देशों को भी फायदा हो।
मालाबार-अभ्यास का विस्तृत होता
दायरा:
ध्यातव्य है कि सन् 1992 में पहली बार हिन्द महासागर
में भारत और अमेरिका के संयुक्त नौसैनिक अभ्यास की शुरुआत ‘मालाबार अभ्यास’ के रूप
में हुई। सन् 2007 में पहली बार इसका आयोजन हिन्द महासागरीय क्षेत्र से बाहर ओकिनावा
द्वीप के पास करते हुए इसके सामरिक दायरे
के विस्तार की दिशा में प्रयास किया गया। उस समय इस संयुक्त नौसैनिक अभ्यास में इन
दोनों देशों के अलावा सिंगापुर, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भी हिस्सा लिया। लेकिन,
इस सैन्य-अभ्यास को द्विपक्षीय बनाने की इस कोशिश को सन् 2008 में तब झटका लगा जब आमंत्रित
होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया इससे बाहर रहा। फिर, चीनी नाराज़गी से आशंकित भारत ने आगे
उसे अभ्यास में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने से परहेज़ किया। परिणामतः क्वॉड आकार
ग्रहण करने के पूर्व ही पृष्ठभूमि में जाता दिखा, लेकिन शिन्जो आबे ने हार नहीं
मानी।
क्वॉड सक्रियता की ओर:
आगे चलकर, सन् 2012 में दक्षिण चीन सागर को ‘बीजिंग झील’ बनने देने से रोकने के उद्देश्य से तत्कालीन
जापानी प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड की प्रस्ताव रखा था, लेकिन चीनी नाराजगी से आशंकाओं और इसके कारण
अपने ही दल लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के विरोध के कारण यह प्रस्ताव व्यावहारिक रूप
नहीं ले पाया। सन् 2013 में शिन्जो आबे ने प्रधानमंत्री की शक्तियों में इजाफ़े को
सुनिश्चित किया और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) के
गठन के माध्यम से सुरक्षा-मामले में अपनी प्रभावी भूमिका सुनिश्चित की। उन्होंने
‘आत्मरक्षा’ की पुनर्व्याख्या करते हुए मित्र एवंस सहयोगी देश के बचाव में जापानी सेना
की प्रो-एक्टिव भूमिका का रास्ता तैयार किया। आगे चलकर, सन् 2014 में जापान ने भारत के साथ ‘गोपनीय सैन्य सूचनाओं के आदान-प्रदान’
से संबंधित समझौता किया। इसकी पृष्ठभूमि में सन् 2015 तक
आते-आते दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण के ज़रिए विशिष्ट आर्थिक
क्षेत्र(EEZ) सम्बंधी दावों के विस्तार और चीनी रवैये की बढ़ती आक्रामकता ने
जापान को ही नहीं, वरन् भारत और ऑस्ट्रेलिया को भी मृतप्राय क्वॉड को पुनर्जीवित
करने के लिए विवश किया। सन् 2015 में जापान नियमित तौर पर इस संयुक्त सैन्य-अभ्यास का हिस्सा
बना जिसका मूल उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सैन्य-सहयोग बढ़ाना था। जून,2020 में शिंजो आबे ने ‘जापान के डेटरेंस
यानि निवारक ताकत के मसले पर सार्वजनिक रूप से चर्चा की जो जापान के लिए नयी बात
थी।
इसी पृष्ठभूमि
में नवंबर,2017 में इन चारों देशों ने चीन के बढ़ते प्रभाव को
रोकने और इंडो-पेसिफिक क्षेत्र के समुद्री मार्गों को अवरोध-मुक्त बनाए रखने के
लिए लंबे समय से लंबित क्वाड गठबंधन को सक्रियता प्रदान करने की कोशिश की, और इसका
परिणाम यह हुआ कि सन् 2017 से
अबतक इसकी पाँच बैठकें हुईं। मार्च 2020 में हुई अंतिम बैठक में कोविड-19 को काबू करने के
लिए संयुक्त रणनीति तैयार की गई।
लेकिन, इस गठबंधन की असली परीक्षा तब होगी जब चीन के साथ
सदस्य-देशों के विवाद की स्थिति में यह गठबंधन कितनी प्रभावी भूमिका निभाता है और
इन विवादों में कितना प्रभावी हस्तक्षेप करता है।
रायसीना
डॉयलॉग,2018:
क्वॉड की बढ़ती सक्रियता की पृष्ठभूमि में रायसीना डायलॉग एक महवपूर्ण
प्रस्थान-बिंदु है। जनवरी,2018 में रायसीना डॉयलॉग में क्वॉड के चारों देशों के शीर्ष
सैन्य-नेतृत्व ने इस समूह के बारे में खुलकर बात-चीत करते हुए चीन को स्पष्ट संदेश
दिया कि दरअसल ‘समान विचारधारा वाले राष्ट्रों के इस अनौपचारिक गठबंधन’ ने पिछले दो सालों में
लम्बी दूरी तय की है और अब धीरे-धीरे यह औपचारिक स्वरुप ग्रहण करने की ओर अग्रसर
है। यह
बैठक क्वॉड गठबंधन में शामिल देशों के बीच सैन्य-सहयोग और इसके जरिये सामुद्रिक
सुरक्षा की सम्भावनाओं को बल प्रदान करती है।
कोरोना-संकट और इंडो-पेसिफ़िक:
चीन कोविड-संकट
से सबसे पहले प्रभावित हुआ और सबसे पहले इस संकट से बाहर भी निकला।
फिर, उसने कोरोना को एक अवसर के रूप में लेना शुरू किया। दुनिया के विभिन्न देश
कोरोना की चुनौती से निबटने में लगे थे और इधर, चीन उनकी इस व्यस्तता का फायदा
उठाकर अपनी विस्तारवादी आकांक्षाओं को ज़मीनी धरातल पर उतरने की कोशिश में लगा था।
उसने भारत, नेपाल, भूटान, टर्की और रूस के सन्दर्भ में अपनी सीमा को पुनर्परिभाषित
ही नहीं किया, वरन् ईस्ट चाइना सी और साउथ चाइना सी में भी अपनी सक्रियता बढ़ाते
हुए नए दावों को सामने रखा। फलतः भारत के साथ ही नहीं, वरन् जापान और ऑस्ट्रेलिया
के साथ भी उसका टकराव बढ़ा।
औपचारिक रूप देने पर सहमति:
सितम्बर,2020 में अमरीका ने अनौपचारिक
‘क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग’ अर्थात् ‘क्वॉड’
को औपचारिक रूप देने का विचार रखा है। दरअसल चारों लोकतांत्रिक देश:
भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला
करने के लिए अधिक-से-अधिक सैन्य और व्यापारिक सहयोग के ज़रिए
अपने गठबंधन को मज़बूत करना चाहते हैं। इस सन्दर्भ में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के दूतों के बीच ‘एक संयुक्त
पहल की शुरुआत’ पर सहमति बन चुकी है, ताकि चीनी उत्पादों और
वस्तुओं के प्रभुत्व का मुक़ाबला करने के लिए इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में एक
साझेदारी के तहत् ट्रेड सप्लाई चेन को मज़बूत किया जाए। दरअसल ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के बीच वैकल्पिक
आपूर्ति-श्रृंखला की सम्भावनाओं की तलाश के ज़रिए चीन पर अपनी व्यापारिक
निर्भरता को कम करना चाहते हैं।
मालाबार-अभ्यास और ऑस्ट्रेलिया
भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स के
मुताबिक, अगले साल की शुरुआत में हिन्द महासागर में होने वाले
आगामी नौसैनिक अभ्यास के लिए भारत अब ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करने की योजना बना
रहा है। गहराते सीमा-विवाद की पृष्ठभूमि में चीन के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय समर्थन
हासिल करने के उद्देश्य से भारत नए सिरे से ‘क्वॉड’ में रूचि ले रहा है और इसके ज़रिये यह अपनी क्षेत्रीय सीमाओं, चाहे वे
भूखण्डीय सीमा हों या सामुद्रिक सीमा, की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। जुलाई,2020
में अपनी दुविधा एवं हिचक से उबरते हुए इस दिशा में पहल करते हुए भारत ने ऑस्ट्रेलिया
को भी ‘मालाबार संयुक्त नौसैनिक अभ्यास’ के लिए आमंत्रित किया है जिसके कारण इस
बार पहली बार इस अभ्यास में अमेरिका, जापान और भारत के साथ
ऑस्ट्रेलिया भी शामिल होगा। इस तरह से भारत और ऑस्ट्रेलिया पहली बार क्वॉड के
सैन्य-मंच पर साथ आ रहे हैं।
5जी
तकनीक को लेकर साझा नजरिया हेतु बैठक:
सितम्बर,2020
में वर्चुअल मीटिंग के ज़रिए ‘क्वाड’ देशों
ने डिजिटल संपर्क और सुरक्षित नेटवर्क के मद्देनज़र 5जी तकनीक
को लेकर साझा नजरिया विकसित करने के लिए विचार-विमर्श शुरू किया और इस सन्दर्भ में
रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में पहल की। इस दौरान चीन
की दिग्गज दूरसंचार कंपनी हुआवेई टेक्नोलॉजीज को अपने क्षेत्रों में
काम करने करने की इजाजत देने को लेकर यूरोप और अन्य जगहों पर बढ़ती अनिच्छा पर भी
विचार किया गया। अमेरिका हुआवेई के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के साथ सम्बंधों की जाँच कर रहा है।
ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान,
और ताइवान ने तय किया है कि वे अपने मोबाइल नेटवर्क से हुवाई के
प्रॉडक्ट्स को चरणबद्ध तरीके से हटाएँगे। ध्यातव्य है कि भारत नवम्बर,2019 से ही 5G तकनीक के
विकास के लिए जापान के संपर्क में है और सुरक्षा-कारणों का हवाला देते हुए हुआवेई
पर प्रतिबंध लगाने के बाद अमेरिका दूसरे देशों पर भी ऐसा करने के लिए दबाव बना रहा
है। हालिया द्विपक्षीय सीमा-विवाद की पृष्ठभूमि में भारत ने पहले ही इस दिशा में
संकेत दिए हैं। क्वॉड के सदस्य-देश के रूप में ये देश न केवल आपस में इलेक्ट्रॉनिक
इंटेलिजेंस शेयर करेंगे, वरन् पारस्परिक सुरक्षा-सहयोग के ज़रिए संयुक्त रूप से सामुद्रिक
सीमा की सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।
प्रस्तावित
टोकियो बैठक, अक्टूबर 2020
यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें पृष्ठभूमि में
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती चीनी सक्रियता एवं
आक्रामकता के बीच अक्टूबर,2020 में टोक्यो में चार देशों के रणनीतिक गठबंधन ‘क्वॉड’
के बैनर तले भारत, जापान,
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विदेश-मन्त्रियों की बैठक होने जा रही है।
मार्च से कोरोना संक्रमण की पाबंदियों के चलते किसी विदेशी राजनयिक का यह पहला
जापान दौरा होगा। इस दौरे के दौरान विदेशी राजनयिक नवनियुक्त प्रधानमंत्री
योशिहिदे सुगा से भी मुलाकात करेंगे। ध्यातव्य है कि 'चतुर्भुज
सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) सुरक्षा
वार्ता लोकतांत्रिक देशों के बीच होने वाला एक
अनौपचारिक टाई-अप है जो मिलिट्री लॉजिस्टिक सपोर्ट, अभ्यास
और सूचना के माध्यम से अंतर-संचालन को साझा करता है और इंडो-पेसिफ़िक क्षेत्र में
निर्बाध भारत-प्रशांत समुद्री लेन को किसी भी कृत्रिम निर्माण और बाधाओं से बचा कर संचार को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
क्वॉड का विस्तार संभावित:
अगर क्वॉड को एक प्रभावी संगठन के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी
है, तो इसे विस्तार देते हुए कहीं अधिक सक्रियता प्रदान करनी होगी। इस आलोक में आने वाले समय में दक्षिण-पूर्व
एशिया के उन देशों को क्वॉड का हिस्सा बनाने की दिशा में सोचा जा रहा है जो समान
विचारधारा रखते हैं और जिनका दक्षिणी-चीन सागर में चीन के साथ समुद्री-सीमा को
लेकर विवाद है। मतलब यह कि क्वॉड अमेरिका
की इंडो-पेसिफ़िक रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है और इसके मद्देनजर इसका
विस्तार करते हुए दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को भी इस गठबंधन का हिस्सा बनाया जा
सकता है, ताकि इस समूह को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके और चीन पर प्रभावी तरीके
से दबाव निर्मित करते हुए इसे बैकफुट पर धकेला जा सके।
इसीलिए कोविड-संकट की पृष्ठभूमि में पड़ोसी देशों से लेकर साउथ चाइना
सी तक में जोर पकड़ते चीनी विस्तारवाद के मद्देनज़र भारतीय नीति-निर्माता क्वॉड के
विस्तार के ज़रिए काउन्टरिंग स्ट्रेटेजी पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। इसके
मद्देनज़र दक्षिण-पूर्व एशिया के उन देशों को क्वॉड से जोड़ने की रणनीति तैयार की जा
रही है जो चीन की विस्तारवादी नीति एवं आक्रामक रवैये से त्रस्त हैं और जो क्वॉड
से जुड़ने के लिए तैयार हैं। ध्यातव्य है कि चीन लगभग
पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करता है और इस क्रम में उसके सामरिक हित ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई,
मलेशिया और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के अमेरिकी
हितों के साथ टकराते हैं। ऐसा
माना जा रहा है कि क्वॉड में जितने अधिक देश शामिल होंगे तथा यह संगठन जितना अधिक
सक्षम बनेगा, भारत के लिए चीन पर प्रभावी
तरीके से अंकुश लगा पाने में उतनी ही सुविधा होगी।
आकार ग्रहण
करता क्वॉड
अमरीका का लक्ष्य:
अमरीका
इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और चीनी विस्तारवाद पर अंकुश लगाने
के लिए एशिया में भी क्वॉड के रूप में नाटो जैसा गठबंधन बनाते हुए उसका ‘रणनीतिक
नेतृत्व’ करना चाहता है। वह क्वॉड को चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, आर्थिक परियोजनाओं के ज़रिये चीन के बढ़ते प्रभाव और
दक्षिण चीन सागर में सैन्यीकरण के जवाब के रूप में देखता है। इसलिए
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अगर क्वॉड की औपचारिकता पूरी हो जाती है,
तो डोनाल्ड ट्रंप के दौर में यह अमरीकी प्रशासन के लिए एक बड़ी
उपलब्धि होगी और अमरीका इसके ज़रिए एक बड़ा वैश्विक नेतृत्व हासिल कर सकेगा। अमेरिका
का कहना है कि अमेरिका इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में क्वॉड देशों जैसे समान विचार वाले
साझेदारों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए एक नई व्यवस्था विकसित कर रहा है
जिसमें भारत की अहम् भूमिका होने जा रही है। यही
वह पृष्ठभूमि है जिसमें हाल के दिनों
में अमेरिका ने पूर्वी चीन सागर और ताइवान की
खाड़ी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए अपने तीन विमानवाही पोतों के साथ’ दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास किया जिसने इस क्षेत्र में तनाव को बढ़ाने का काम
किया।
भारत-अमेरिका
सामरिक एवं रक्षा-सहयोग:
भारत चीन के साथ
अपने सैन्य-असंतुलन को समझता है, इसीलिए वो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आसपास सैन्य-टकराव का खतरा नहीं उठाना चाहेगा और इसीलिए अमेरिका और चीन-विरोधी शक्तियों के साथ करीबी कूटनीतिक
संबंध बनाना उसकी मजबूरी है। इसी आलोक में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वॉड्रिलेटरल
सिक्योरिटी डायलॉग (Quad) को
मजबूत करते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा के ढाँचे को मज़बूत एवं प्रभावी बनाने की बात आती
है।
पिछले
दो दशकों के दौरान भारत-अमेरिका सामरिक सहयोग में गहराई आयी है। भारत ने अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक
एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) किया जिसके तहत् दोनों देश एक-दूसरे के सशस्त्र बलों के लिए
लॉजिस्टिक सहयोग दे सकेंगे। इसी
प्रकार कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA) के तहत् भारत को अत्याधुनिक अमेरिकी तकनीक उपलब्ध हो सकेगी। औद्योगिक सुरक्षा
एनेक्सी(ISA) और जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री
इन्फॉर्मेशन एग्रीमेंट(GSOMIA) के तहत् रक्षा-विनिर्माण के क्षेत्र में भारतीय निजी क्षेत्र को
अमेरिकी रक्षा-कम्पनियों के साथ भागीदारी की अनुमति प्रदान की गयी। भू-स्थानिक सहयोग के
लिए बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA For Geo-spatial
Cooperation) के अंतर्गत टार्गेटिंग और
नैविगेटिंग के लिए जियो-स्पेशियल इन्फॉर्मेशन देने पर भी बातचीत जारी है। इतना ही नहीं, जून-2016 में
अमेरिका ने भारत को ‘प्रमुख
रक्षा-साझेदार’ का दर्ज़ा प्रदान
किया और इस प्रकार भारत एक मात्र गैर-नाटो देश है जिसके साथ अमेरिका ने इस प्रकार का
समझौता किया है।
अमेरिका-जापान
सुरक्षा संधि:
अमेरिका-जापान
सुरक्षा संधि के प्रावधानों के तहत् जापान पर हमले की स्थिति में अमेरिकी सैन्य-मदद
को सुनिश्चित किया गया है, लेकिन चीन के साथ सेनकाकू/दायवू द्वीपसमूह को लेकर
उत्पन्न विवाद में अमेरिका ने सैन्य-संघर्ष में उलझने की आशंका में इस मसले पर औपचारिक
स्टैंड तक लेने से परहेज़ किया। यही वह बिंदु है जहाँ क्वॉड का औचित्य और इसकी
प्रासंगिकता सामने आती है।
भारत-जापान
द्विपक्षीय सम्बन्ध:
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की तरह ही भारत ने जापान
के साथ भी अभिग्रहण एवं क्रॉस-सर्विसिंग समझौता (ACSA)
किया है। यह एक
प्रकार का सैन्य-समझौता है जो मुख्यतया
लॉजिस्टिक्स-सपोर्ट से सम्बंधित है जिसके जरिए दोनों पक्षों ने अपने चुनिंदा सैनिक-अड्डों
और बंदरगाहों तक एक-दूसरे को पहुँच की अनुमति दी है, लेकिन इस बात को
ध्यान में रखा जाना चाहिए कि न तो यह समझौता परस्पर सैन्य-सहयोग से सम्बंधित है और
न ही इसको लेकर कोई प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। मतलब यह कि ऐसे समझौते दूसरे देश में बिना मँहगे निवेश के लॉजिस्टिक्स सपोर्ट
उपलब्ध करवाते हैं। लेकिन, इन समझौतों
को क्वॉड तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि भारत ने ऐसे ही समझौते रूस
के साथ कर रखे हैं और जापान ने कनाडा, ब्रिटेन और अन्य देशों के साथ।
भारत-ऑस्ट्रेलिया: चीनी चुनौती
भारत-ऑस्ट्रेलिया
सम्बन्ध: रणनीतिक साझेदारी की ओर:
जून,2020 में प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बीच वर्चुअल शिखर-सम्मलेन
सम्पन्न हुआ। इस दौरान सम्पन्न समझौते के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को
व्यापक रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक ले जाने की कोशिश की गयी है और इसके लिए दोनों
देशों ने आर्थिक एवं सुरक्षा सहित कुल नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किये। इस शिखर सम्मलेन के बाद जारी किये गए साझा वक्तव्य
ने कोविड-19 की चुनौतियों तथा इसके आर्थिक नतीजों को सम्बोधित
करने के वैश्विक सहयोग की प्रासंगिकता का स्पष्ट संकेत दिया। इसके मद्देनज़र कोविड-19 की
चुनौतियों को सम्बोधित करने के मुद्दे पर, प्रधानमंत्री,
स्वास्थ्य-सेवा अनुसन्धान के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के
लिए स्वास्थ्य-अनुसन्धान एवं विकास के अनुभवों को साझा करने के प्रश्न पर भी विचार
किया गया। इसके अलावा, इस समझौते में भारत और
ऑस्ट्रेलिया, दोनों ने हिंद महासगर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए एक दूसरे के जंगी जहाजों और फाइटर जेटों को
अपने-अपने सैनिक अड्डों के इस्तेमाल की अनुमति दी। इससे
पूर्व, भारत अमेरिका के साथ इस तरह का
समझौता पहले ही कर चुका है। इस तरह
ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ द्विपक्षीय वर्चुअल बैठक करने वाला पहला देश बना है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया
पारस्परिक लॉजिस्टिक्स समर्थन समझौता: (Mutual
Logistics Support Agreement):
भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों
में ये नजदीकियाँ व्यापार एवं वाणिज्य से कहीं अधिक
हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacefic Region) में रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में दोनों के हित और इसको लेकर दोनों का
नजरिया समान है। दोनों देश संप्रभुता एवं अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करते
हुए नियमों पर आधारित समुद्री-व्यवस्था का समर्थन करते हैं और महासागरों को
कूटनीतिक दायरे से बाहर रखना चाहते हैं। इसी आलोक में द्विपक्षीय तथा
बहुपक्षीय स्तरों पर सुरक्षा-संबंधों को बढ़ावा देते हुए भारत और ऑस्ट्रेलिया हिन्द-प्रशांत
में सहयोग को बढ़ाने के प्रति स्पष्ट रूप से ध्यान दे रहे हैं। इसी आलोक में मेरीटाइम सिक्यूरिटी के क्षेत्र में
पारस्परिक सुरक्षा सहयोग के मद्देनज़र इस शिखर-सम्मलेन में दोनों देशों ने सैन्य अंतर-संचालनीयता को बढ़ाने पर केंद्रित पारस्परिक लॉजिस्टिक्स
समर्थन समझौता (Mutual Logistics Support Agreement) को अंतिम रूप दिया। इस समझौते को रणनीतिक
दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह समझौता:
1. भारत
को इंडोनेशिया (कोकोज द्वीप समूह) के पास बने ऑस्ट्रेलियाई नौ सैनिक अड्डों के
इस्तेमाल का अधिकार प्रदान करता है, और
2. ऑस्ट्रेलिया
को अंडमान निकोबार द्वीप समूह स्थित नौ सैनिक-अड्डों के उपयोग का अधिकार, जिससे
हिंद महासागर में स्थित मलक्का स्ट्रेट और आसपास के इलाके पर कड़ी नजर रखी जा
सकेगी।
ऑस्ट्रेलिया-चीन
संबंध में बढ़ता तनाव:
ध्यातव्य
है कि भारत-चीन की तरह ही ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंध भी तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहे हैं।
सन् 2018 में ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों का
हवाला देते हुए चीनी कंपनी हुवेई को 5जी नेटवर्क टावर लगाने
से रोक दिया था। पिछले साल भी ऑस्ट्रेलिया ने चीन के एक बड़े कारोबारी का वीजा रद्द
कर दिया था। इसकी प्रतिक्रिया में चीन ने ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात को प्रतिबंधित
किया और ऑस्ट्रेलियाई जौ पर 80 फीसदी से अधिक के आयात-शुल्क आरोपित
किये। हाल में कोरोना-संक्रमण के मामले में भी ऑस्ट्रेलिया ने चीनी भूमिका की जाँच
से सम्बंधित यूरोपीय संघ के प्रस्ताव का समर्थन किया है और दक्षिणी चीन सागर विवाद
के मामले में भी उसका रुख आलोचनात्मक है। हांगकांग के मसले पर उसने अमेरिका,
ब्रिटेन और कनाडा के साथ मिलकर नए चीनी सुरक्षा कानून की निंदा की
है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया
सम्बन्ध: बढ़ती नजदीकियाँ:
सन् 2009
में दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देश: भारत और ऑस्ट्रेलिया
रणनीतिक साझेदार के रूप में सामने आये और फिर दोनों के संबंधों में नजदीकियाँ इस
कदर आयीं कि सन् 2018-19 में भारत और ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय
व्यापार 5.17 अरब डॉलर के भारतीय निर्यात और 15.75 अरब डॉलर भारतीय आयात के साथ 20.92 अरब डॉलर के स्तर
पर पहुँच गया। वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया भारत का आठवाँ सबसे बड़ा
व्यापारिक साझेदार है।
ऑस्ट्रेलिया
को घेरने की कोशिश में लगा चीन:
ध्यातव्य
है कि चीन अफ्रीकी और एशियाई व्यापार के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण व्यापारिक
जल-मार्ग मालक्का स्ट्रेट से सम्बंधित ‘मलक्का डाइलेमा’ बाहर निकलने के लिए साउथ
चाईना सी की तरह ही इस पूरे इलाके पर अपना दबदबा काय करना चाहता है और इसी के
मद्देनज़र उसने अमेरिकी रक्षा-विभाग के शब्दों में ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ की रणनीति
तैयार की। इसी आलोक में चीन हिंद महासागर में अमेरिका, भारत एवं ऑस्ट्रेलिया की
रणनीतिक नौसैनिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया के पास एक सैन्य बेस के
निर्माण की कोशिश में लगा है और सोलोमन आईलैंड और पापुआ न्यू गिनी जैसे
ऑस्ट्रेलियाई पड़ोसी देशों को विश्वास की कोशिश में लगा है। अपनी रणनीति में चीन
के कामयाब होने का मतलब होगा, अपने ही घर में ऑस्ट्रेलिया की रणनीतिक स्थिति का
कमजोर पड़ना। यह समझौता उसी कोशिश का ऑस्ट्रेलियाई जवाब है।
ध्यातव्य है कि दोनों देश पूर्वी
एशिया शिखर-सम्मलेन, आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक प्लस (ADMM+),
हिन्द महासागर रिम संगठन (IORA.) और चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (QuaD/QSD: Quadrilateral
Security Dialogue) जैसे बहुपक्षीय संगठनों से पहले से ही जुड़े हुए
हैं। हिन्द महासागर
रिम संगठन (IORA) के भीतर इंडोनेशिया के साथ ऑस्ट्रेलिया-भारत-जापान और चतुर्भुज
सुरक्षा संवाद (QuaD) के जरिये भारत ऑस्ट्रेलिया, जापान एवं अमेरिका के साथ हिन्द
महासागर पर त्रिपक्षीय संवाद ने हिन्द-प्रशांत में सहयोग की संभावनाओं को बल
प्रदान किया है।
क्वॉड:
मौजूद चुनौतियाँ और समाधान
क्वॉड के रास्ते में मौजूद अवरोध:
अनौपचारिक रूप से क्वॉड से सम्बद्ध देशों के बीच रणनीतिक सहयोग की
संभावनाओं के आलोक में विचार किया जाए, तो इनके बीच आर्थिक-व्यापारिक रिश्ते करीबी
एवं बेहतर हैं और सामुद्रिक सुरक्षा एवं संयुक्त सैन्य-अभ्यासों को लेकर भी
सहयोग विकसित हो रहा है, लेकिन एक इकाई के तौर पर इंडो-पैसेफ़िक को लेकर ये अबतक
कोई ठोस सामरिक रणनीति विकसित कर पाने में असमर्थ रहे हैं। ऐसी स्थिति
में क्वॉड को अमलीजामा पहनते हुए ज़मीनी धरातल
पर उतारने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में देखें, तो क्वॉड के भविष्य की सम्भावनाओं को लेकर
निम्न कारणों से आशंकाएँ विद्यमान हैं:
1. सामरिक हितों और सुरक्षा-चिंताओं
की भिन्नता: दरअसल, चीन से खतरा तो इस अनौपचारिक
सामरिक गठबंधन में शामिल सभी देशों को है, पर समस्या यह है कि अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के
सुरक्षा-हित एक जैसे नहीं हैं। भारत और
जापान को चीन से तात्कालिक ख़तरा है और यह खतरा कहीं अधिक गंभीर है, लेकिन अन्य
देशों के साथ इतनी समस्या नहीं है। साथ ही, खतरे की तीव्रता और खतरे का स्वरुप अलग-अलग है।
इन चारों देशों में एशियाई देशों: भारत और जापान को अमेरिका एवं
ऑस्ट्रेलिया की तुलना में खतरा कहीं अधिक है। इनमें भी भारत को चीन की विस्तारवादी
नीतियों से सबसे ज्यादा खतरा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण लद्दाख में चीनी फौज के जमावड़े से मिल रहा है।
इसके अलावे, चीन पाकिस्तान और नेपाल के ज़रिये भी भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करने
की कोशिश में लगा है। उधर, जापान ने पहली बार
चीन के समुद्री विस्तारवाद का अनुभव किया। चीन
और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में स्थित द्वीपों को लेकर तनाव चरम पर है।
हाल में ही जापान ने एक चीनी पनडुब्बी को अपने जल-क्षेत्र से खदेड़ा था। चीन कई
बार ताइवान पर भी खुलेआम सेना के प्रयोग की धमकी
दे चुका है। इन दिनों चीनी फाइटर जेट्स ने भी कई बार ताइवान के हवाई-क्षेत्र का
उल्लंघन किया है जो साउथ चाइना सी में चीन की बढ़ती सक्रियता एवं आक्रामकता का
संकेत दिया है। इस तरह की प्रत्यक्ष टकराहट ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ नहीं है।
स्पष्ट है कि इंडो-पेसिफिक
को लेकर इन चारों देशों की अलग-अलग सोच साझे नज़रिए के विकास के रास्ते में सबसे
बड़ा अवरोध है और शायद इसी के कारण इनके बीच तालमेल का अभाव है जो इस
गठबंधन के औचित्य एवं प्रासंगिकता पर ही प्रश्न खड़ा कर रहा है। बस एक ही चीज है जो इन्हें जोड़ रही है और वह है
चीनी विस्तारवाद एवं चीनी आक्रामकता के इनके लिए सामरिक निहितार्थ, लेकिन इनके
व्यापारिक-आर्थिक हित उन्हें वहाँ भी मुखर नहीं होने दे रहे हैं।
2. राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन: हालाँकि, जापान और अमरीका की घरेलू राजनीति में संभावित बदलावों के बाद इनकी आपसी
साझेदारी के भविष्य को ख़तरा भी है। यद्यपि विशेषज्ञों
का मानना है कि “नवंबर,2020 के बाद अमरीकी नेतृत्व में बदलाव के बावजूद आता भी है, तो भी चीन को लेकर अमरीका की नीतियों में किसी बदलाव
की संभावना नहीं है।” जापान
में भी ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि शिंज़ो आबे के प्रधानमंत्री पद से हटने के
बाद जापान की व्यापक रणनीति वैसी ही रहेगी और वह ‘क्वॉड’ को लेकर उसी प्रतिबद्धता को क़ायम रख पाएगा,
जिस प्रकार की प्रतिबद्धता शिंजो आबे ने प्रदर्शित की। ऐसा माना जा रहा है कि अगर चीन के ख़िलाफ़
बहुपक्षीय संयुक्त मोर्चे के रूप में क्वॉड प्रभावी हो जाता है, तो इससे आबे की कूटनीतिक विरासत और भी महत्वपूर्ण हो
जाएगी। शिंज़ो आबे की जगह लेने वाले योशिहिदे
सुगा के नेतृत्व में जापान का क्वॉड से बाहर निकलना तो मुश्किल है, पर शिंजो आबे
वाली प्रतिबद्धता एवं सक्रियता बनी रहेगी, इसको लेकर सन्देह है।
3. भारत-चीन सीमा-विवाद पर जारी
वार्ता: पूर्वी-लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा
पर जारी तनाव को लेकर चीन और भारत की बातचीत में हो रही प्रगति भी ‘क्वॉड’ की प्रभावशीलता को
निर्धारित करने में एक भूमिका निभा सकती है। कहीं-न-कहीं क्वॉड को लेकर भारत की गंभीरता
सन्देह के घेरे में है कि ‘क्या भारत वाक़ई ठोस चीन-विरोधी
रुख अपनाने को लेकर गंभीर है क्योंकि अगर भारत ने ऐसा किया तो उससे चीन के साथ
उसकी शांति-वार्ता प्रभावित हो सकती है।
4. द्विपक्षीय व्यापारिक सम्बंधों की
गहराई: क्वॉड सैन्य-सामरिक के साथ व्यापारिक
पहलुओं को भी समाहित करने का लक्ष्य लेकर चलता है, लेकिन इसके सदस्य-देशों के साथ
चीन का गहरा व्यापारिक-आर्थिक जुड़ाव
कहीं-न-कहीं क्वॉड के लिए आनेवाले समय में एक बड़ी चुनौती साबित होने जा रही है। यद्यपि इस द्विपक्षीय
व्यापारिक सम्बंध को लेकर चीन के सहयोगी
देशों की उससे शिकायतें भी हैं जिसे समय-समय पर ये प्रदर्शित करते रहते हैं, लेकिन
वे चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापारिक-आर्थिक सम्बंधों की कीमत पर क्वॉड को तरजीह देंगे, यह अपेक्षा उनके साथ ज्यादती
होगी।
5.
पोस्ट-कोविड ज़रूरतें: अमेरिका
और ऑस्ट्रेलिया के साथ चीन का सम्बंध बॉटमलाइन को छू रहा है, पर चीन तमाम विवादों
के बीच भारत को इंगेज करने की कोशिश में लगा हुआ है और उसे भरोसा है कि आर्थिक
विकास के लिए पोस्ट-कोविड जापान की
ज़रूरतें उसे चीन के विरुद्ध नरम रुख अपनाने के लिए विवश कर देंगी।”
हाल के दिनों में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने रक्षा एवं व्यापार पर एक दूसरे के साथ द्विपक्षीय
सहयोग-समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। लेकिन, चीन
से मुक़ाबला करने की ‘क्वॉड’ की क्षमता इस बात पर निर्भर करेगी कि गठबंधन में शामिल देश कहाँ तक एक
दूसरे के साथ खड़े रह पाते हैं और इसको लेकर उनके बीच कहाँ तक सहमति बन पाती है।
भारत और क्वॉड
भारत की चिन्ता:
यद्यपि चारों
देशों के बीच सामुद्रिक सुरक्षा और संयुक्त सैन्य-अभ्यासों के क्षेत्र में
मज़बूत सहयोग है और भारत ने निर्बाध एवं मुक्त आवा-जाही और समुद्रों के कानून पर
संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन(UNCLOS) को लेकर चारों देशों की चिंताओं एवं साझा नज़रिए के
साथ आरंभिक तालमेल बैठाकर अपने लिए अलग जगह बनाई है, तथापि एक इकाई के तौर पर
इंडो-पैसेफ़िक क्षेत्र में सामुद्रिक सुरक्षा को लेकर अबतक सामरिक एवं रणनीतिक
रूप से कुछ ठोस सामने नहीं आ पाया है। इसका कारण है चारों देशों की
अपनी-अपनी हिचक, और इनमें भी भारत की हिचक कहीं ज्यादा हतप्रभ करती है, क्योंकि
क्वॉड के सदस्य-देशों में अकेला भारत ही है जिसकी भू-सीमा चीन से मिलती है और
जिसका भू-सीमा विवाद चीन के साथ चल रहा है।
भारत की
दुविधा:
यद्यपि भारत का अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया से सामरिक सहयोग
लगातार बढ़ रहा है और इसमें रणनीतिक गहराई भी आ रही है, तथापि अबतक भारत अपनी
दुविधा से नहीं उबर पाया है। सन् 2018 में शांग्रिला
डायलॉग में भारतीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर भारत के रुख़ को स्पष्ट करते हुए कहा, “भारत इंडो-पेसिफिक को भौगोलिक अवधारणा के रूप में
देखता है, न कि कुछ देशों की रणनीति के रूप में।” उनका कहना है, “भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक रणनीति या सीमित
सदस्यों के क्लब के रूप में नहीं देखता और न ही ऐसे गुट के तौर पर जो वर्चस्व चाहता
है और ये तो किसी भी हाल में नहीं मानते हैं कि ये किसी देश के खिलाफ़ है।” ऐसा लगता है कि इस स्पष्टीकरण के ज़रिये भारतीय प्रधानमन्त्री
चीनी आशंकाओं का निवारण करते हुए उसकी सुरक्षा-चिन्ताओं का समाधान करना चाहते हैं
और उसे यह आश्वस्त करना चाह रहे है कि इसके ज़रिए उसकी रणनीति चीन को किनारे करने
की नहीं है।
भारतीय प्रधानमन्त्री की इसी लाइन के
अनुरूप भारत के विदेश-मंत्री एस. जयशंकर कहते हैं कि भारत किसी सन्धि-व्यवस्था का हिस्सा नहीं होगा, लेकिन भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स
स्टाफ जनरल विपिन रावत कहते हैं, “भारत
का यह मानना है कि क्वॉड इंडो-पेसिफिक सहित हिन्द महासागर और उसके आस-पास के
क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने का अच्छा मैकेनिज्म हो सकता
है।”
दरअसल, भारत की दुविधा यह है कि वह एक ओर चीनी खतरों को समझता है और
उसका सामना करने के लिए खुद को बेहतर तरीके से तैयार करना चाहता है, दूसरी ओर चीन
को नाराज़ भी नहीं करना चाहता है और इसके मद्देनज़र न तो वह किसी औपचारिक सुरक्षा ढाँचे का पक्षधर है और न ही वह अपनी पहचान को
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी ख़ास गुट के साथ सम्बद्ध करना चाहता है। वह इस
बात को लेकर आशंकित है कि कहीं इसका प्रतिकूल असर उसकी क्षेत्रीय सुरक्षा पर न पड़े। इतना ही नहीं, भारत इस बात
को लेकर आश्वस्त नहीं है कि इंडो-पेसिफिक समुद्री क्षेत्र में क्वॉड का सैन्यीकरण
उन भू-क्षेत्रीय खतरों को कम करने में सहायक हो भी पाएगा या नहीं, जो भारत चीन की
ओर से महसूस कर रहा है। यही कारण है कि इंडो-पेसिफिक
और इसको लेकर अपनायी जानेवाली रणनीति में क्वॉड के स्थान एवं इसकी भूमिका को लेकर उसका
नजरिया अबतक साफ़ नहीं हो पाया है।
भारत: क्वॉड बनाम् इंडो-पेसिफ़िक
भारत क्वॉड और इंडो-पेसिफ़िक को एक दूसरे से अलगा कर देखता है। क्वॉड और इंडो-पेसिफ़िक के बीच वैचारिक और संरचनात्मक धरातल पर
फर्क करते हुए भारत यह मानता है कि इंडो-पेसिफ़िक में सक्रिय अन्य संगठनों की तरह क्वॉड भी एक
संगठन है और यह संयोग की बात है कि इंडो-पेसिफ़िक में निर्बाध नौवहन की आज़ादी और
समुद्री क़ानूनों के सम्मान पर ज़ोर की भारतीय रणनीति का क्वॉड की मूल चिन्ताओं से
मेल बैठता है। मतलब यह कि क्वॉड इंडो-पेसिफ़िक को लेकर भारतीय रणनीति का हिस्सा है,
लेकिन भारत की यह रणनीति क्वॉड तक सीमित नहीं है। इस
सन्दर्भ में भारत अपने लिए स्ट्रेटेजिक स्पेस
बनाये रखना चाहता है, ताकि इस रणनीति में फ्रांस और रूस जैसे
महत्वपूर्ण देशों को भी समायोजित किया जा सके। भारत नहीं चाहता है कि इसका
प्रतिकूल असर भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों पर पड़े और इसकी कीमत भारत को चुकानी पड़े।
लेकिन, ऐसा लगता है कि कोविड-संकट की
पृष्ठभूमि में चीनी विस्तारवाद और सीमावर्ती इलाकों में चीन की बढ़ती हुई आक्रामकता
के कारण उत्पन्न टकराव की परिस्थितियों ने भारत को
ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया को भी इस दुविधा से बाहर निकलने का अवसर उपलब्ध
करवाया है और भारत एवं ऑस्ट्रेलिया, दोनों ही अब अपनी रक्षात्मक रणनीति से बाहर
निकलते हुए पहले से कहीं अधिक मुखर होते दिख रहे हैं। हाल में मालाबार संयुक्त
नौसैनिक अभ्यास में शामिल होने के लिए ऑस्ट्रेलिया को आमंत्रित करने का निर्णय और
क्वॉड की बैठक की मेज़बानी के लिए भारत की पहल इसी दिशा में संकेत करती है। स्पष्ट है कि भारत इंडो-पेसिफ़िक को एक सिलसिलेवार
रणनीति के तौर पर देखे जाने का हिमायती है और इसके माध्यम से यह खाड़ी से लेकर
मलक्का स्ट्रेट तक अपने रणनीतिक हितों और सुरक्षा-चिंताओं को साधना चाहता है।
इंडो-पेसिफिक रणनीति: क्वॉड तक सीमित नहीं:
इंडो-पेसिफिक की
भारतीय रणनीति के सापेक्ष यदि क्वॉड की मूलभूत संकल्पना पर विचार किया जाए, तो
इसकी संकल्पना ही इंडो-पेसिफ़िक क्षेत्र में निर्बाध नौवहन की आज़ादी, जिसे चीनी
नौसैनिक महत्वाकांक्षा, चीनी विस्तारवाद और इसकी पृष्ठभूमि में हिन्द महासागर में
चीन की बढ़ती सक्रियता और दक्षिणी चीन सागर में चीनी दावों-प्रतिदावों से है, को
सुनिश्चित करने के लिए हुआ है, न कि क्षेत्रीय समावेशन के उद्देश्यों से
परिचालित होकर। अब यह बात अलग है कि भारत
इंडो-पेसिफ़िक की अपनी रणनीति को क्वॉड तक सीमित नहीं मानता है। वह क्वॉड को साझा सिद्धांतों के प्रति अपनी
प्रतिबद्धता से सम्बद्ध भर करके देखता है।
यहाँ पर इस बात
को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अबतक भारत ने
खुद को मलक्का स्ट्रेट तक सीमित रखा है और उससे आगे बढ़कर होर्मुज़ स्ट्रेट तक जाने
में उसे हिचकिचाहट है। लेकिन, जबतक भारत अपनी इस हिचकिचाहट
को छोड़ते हुए मलक्का स्ट्रेट से आगे बढ़ते हुए होर्मुज़ स्ट्रेट की ओर रुख करना
चाहिए क्योंकि इसके बिना क्वॉड इंडो-पेसिफ़िक
इलाके में प्रभावी सुरक्षा-व्यवस्था को सुनिश्चित कर पाने में असमर्थ है।
भारतीय रणनीति: आसियान देशों का महत्व
यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखे
जाने की ज़रुरत है कि इंडो-पेसिफ़िक क्षेत्र में आसियान देशों की भौगोलिक अवस्थिति
उन्हें भू-सामरिक दृष्टि से
महत्वपूर्ण बना देती है और भारत इस बात की अनदेखी करने का रणनीतिक जोखिम नहीं उठा
सकता है। इसीलिए उसकी
नज़रों में, इंडो-पेसिफ़िक ‘एक स्वतंत्र, खुला एवं
समावेशी क्षेत्र’ मानता है जिसमें वे सभी देश
शामिल हैं जो इस क्षेत्र में अवस्थित हैं और वे देश भी, इस क्षेत्र में तो अवस्थित
नहीं हैं, पर जिनके हित इस क्षेत्र से सम्बद्ध हैं।
क्वॉड में भारत से नेतृत्वकारी
भूमिका अपेक्षित:
यदि
भारत बढ़ते चीनी प्रभाव पर अंकुश लगाने को लेकर गम्भीर है, तो उसे क्वॉड में नेतृत्वकारी भूमिका के लिए तैयार होना
होगा, और यह तभी सम्भव है जब वह नौसेना में बड़े पैमाने पर निवेश करे। इसके लिए आवश्यकता
इस बात की भी है कि भारतीय विदेश-नीति में नौसैनिक रणनीति और सामुद्रिक सुरक्षा पर आधारित दृष्टिकोण को
अहमियत देनी होगी। साथ ही, इसके लिए:
1. सेना से ज्यादा नौसेना का प्लेटफार्मों के साथ विस्तार किया
जाना चाहिए, ताकि भारतीय नौसेना हिंद महासागरीय
क्षेत्र के साथ-साथ उससे बाहर भी अपनी मज़बूत एवं प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवा
सके।
2. द्वीपीय श्रंखलाओं, खासकर अंडमान और निकोबार के बुनियादी
ढ़ाँचे को मजबूत बनाने की जरूरत है जो इस क्षेत्र में भारत कोकी मौजूदगी को
रणनीतिक गहराई प्रदान करेगा।
लेकिन, सबसे बड़ी समस्या संसाधनों की है ताकि इस
दिशा में जो काम चल रहे हैं, उसमें तेजी लाई जा सके।
क्वॉड
और चीन
एशियाई नाटो के रूप में क्वॉड:
चीन ‘क्वॉड’ को उभरते हुए 'एशियाई नाटो' के रूप में देख रहा है, जो चीन के आसपास के समुद्र में अपना वर्चस्व
बढ़ाना चाहता है। इसलिए देर-सबेर चीन से इसकी टकराहट स्वाभाविक है। चीन को लगता है
कि यह उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विरुद्ध अमेरिकी साजिश है, जिसके
जरिए चीन के आर्थिक उभार और उसके बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय कद पर अंकुश लगाने का प्रयास
किया जा रहा है। उसे यह लगता है भारत अमेरिकी उकसावे में काम कर रहा है और अमेरिका
चीन पर अंकुश लगाने के लिए भारत का इस्तेमाल कर रहा है।
सामरिक बढ़त हासिल करने की कोशिश में भारत:
चीन इसे हिन्द महासागर से लेकर प्रशांत महासागर तक
इंडो-पेसिफिक में अपना प्रभाव कायम करने की भारतीय
रणनीति का हिस्सा मान रहा है और इसके मद्देनज़र वह ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से मलक्का जलडमरूमध्य में पहले की तुलना
में मज़बूत एवं प्रभावी निगरानी को सुनिश्चित करना चाहता है। अगर ऐसा होता है, तो चीनी
पनडुब्बियों और युद्धपोतों की प्रभावी निगरानी के ज़रिए भारत दक्षिणी प्रशांत-क्षेत्र
में अपना प्रभाव बढ़ा पाने में सक्षम होगा। ध्यातव्य है कि हाल ही में ऑस्ट्रेलिया
ने भी प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपनी सैन्य-ताकत में वृद्धि के लिए एक लंबा-चौड़ी
रणनीति तैयार की है। यही कारण है कि चीन क्वॉड के कारण इंडो-पेसिफ़िक
क्षेत्र में भारत को मिलने वाले फायदों से चिन्तित है। हाल में भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया को
मालाबार अभ्यास में शामिल करने की दिशा में की गयी पहल ने चीन को भड़काने का काम
किया है और उसने भारत पर यह आरोप लगाया है कि ऑस्ट्रेलिया को शामिल कर भारत हिन्द
महासागर और प्रशांत महासागर में अपनी शक्ति बढ़ाने की कोशिश में लगा है,
ताकि चीन पर दबाव बढ़ाया जा सके।
चीनी सरकार का मुख-पत्र माना जाने वाला ‘द ग्लोबल टाइम्स’ ‘क्वॉड’ के बनने की संभावना को ख़ारिज करता हुआ लिखता है, “चीन-भारत और चीन-जापान संबंधों
में उस तेज़ी से गिरावट नहीं आई है, जिस तेज़ी से चीन और
अमरीका के संबंधों में आई है।” उसका कहना है, “भारत के साथ बातचीत अभी भी सामान्य
प्रवृत्ति से जारी है और जापान को महामारी के बाद अपने आर्थिक विकास के लिए चीन की
ज़रूरत होगी।” मतलब यह कि चीन को यह
भरोसा है कि वह क्वॉड गठबंधन में शामिल देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों का
इस्तेमाल कर इसके विकास को प्रभावित कर सकेगा और इसके ज़रिए अपनी सामरिक हितों की
रक्षा कर पाने में समर्थ होगा। लेकिन, यह भी सच है कि वह चांस नहीं लेना चाहता
है यही कारण है कि भारत, जापान
और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों का उपयोग करके चीन यह सुनिश्चित
करना चाहता है कि क्वॉड कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे, क्षमता-निर्माण,
एचएडीआर, समुद्री-सुरक्षा, साइबर-सुरक्षा और सुरक्षा पर केंद्रित वैश्विक सहयोग प्रणाली से आगे नहीं
बढ़े।
क्वॉड
को काउन्टर करने की चीनी रणनीति:
अब वह आसियान देशों
के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देते हुए उनके माध्यम से क्वॉड को काउन्टर करने
की रणनीति पर काम कर रहा है। इसी के मद्देनज़र चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के
दायरे में सारे आसियान देशों को लाना चाहता है और उनके साथ आर्थिक-व्यापारिक,
सामरिक, सुरक्षा और 5जी सहित डिजिटल सहयोग स्थापित करना चाहता है। अक्टूबर 2018
में चीन और आसियान के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास हुआ है और परिवहन
मार्गों को आगे बढ़ाने के लिए आसियान देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर
भी। इनमें मौजूदा आर्थिक गलियारे, चीन-थाईलैंड रेलवे,
चीन-लाओस रेलवे और जकार्ता-बांडुंग हाई-स्पीड रेलवे शामिल हैं।
इंडो-पेसिफ़िक और फ्रांस:
इंडो-पेसिफ़िक
और फ्रांस:
इंडो-पेसिफ़िक में फ्रांस एक ऐसी शक्ति है, जिसके भारत और प्रशांत महासागर के दोनों तरफ क्षेत्र मौजूद है और
फ्रांसीसी विदेश-मंत्रालय के अनुसार, “इंडो-पैसिफिक क्षेत्र
में फ्रांस का 93 फीसदी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र,
1.5 मिलियन आबादी और 8,000 सैनिक तैनात है।
हाल ही में फ्रांस ने इंडो-पैसिफिक
के सन्दर्भ में ‘क्षेत्रीय
सुरक्षा-कूटनीतिक ढाँचे के निर्माण की दिशा में पहल की है और भारत, ऑस्ट्रेलिया,
जापान, मलेशिया, सिंगापुर,
न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों को के साथ रणनीतिक साझेदारी को लक्षित किया है और उनके साथ नेटवर्क
विकसित करने की कोशिश में लगा है। फ्रांस ने अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति
में पारम्परिक और गैर-पारम्परिक खतरों से संरक्षण प्रदान करते हुए
निर्बाध नौवहन की आज़ादी हेतु बहुपक्षीयतावाद पर जोर किया है और इसे मज़बूती प्रदान
करते हुए पर्यावरण, जलवायु-परिवर्तन, जैव-विविधता,
डिजिटल प्रौद्योगिकी आदि से सम्बद्ध मसलों को भी बहुपक्षीय सहयोग के
दायरे में लाने के संकेत दिए हैं।
फ्रांस
का इंडो-पेसिफ़िक विज़न:
भले ही इंडो-पैसिफिक से संबंधित
विचार-विमर्श ज्य़ादातर ‘क्वॉड’ पर केन्द्रित हो, लेकिन ‘क्वॉड’
की मूल संकल्पना फ्रांस जैसी यूरोपीय शक्तियों की अनदेखी करता है,
जिनके सामरिक-आर्थिक हित इंडो-पेसिफ़िक
से सम्बद्ध हैं। भारत
की तरह ही इंडो-पैसिफिक की फ्रांसीसी अवधारणा भी अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी
तटों तक फैली हुई है, इसलिए इंडो-पेसिफिक की फ्रांसीसी रणनीति में भारत स्वाभाविक भागीदार है: सन्दर्भ चाहे बहुपक्षीयता का हो, या निर्बाध
नौवहन की स्वतंत्रता (Free Sea Lines of Comminication) के प्रति साझी प्रतिबद्धता का, या फिर साझा सामरिक हितों का। हिंद महासागरीय
क्षेत्र को लेकर दोनों देशों का सामरिक नज़रिया शांति, सुरक्षा
एवं स्थिरता के साथ-साथ इस क्षेत्र के संवृद्धि एवं
विकास में पारस्परिक साझेदारी के ज़रिये बहुआयामी भूमिका के निर्वाह की बात करता है। इस सन्दर्भ में देखें, तो फ्रांस का इंडो-पेसिफिक विज़न भारत के क्वॉड के
बजाय भारत के इंडो-पेसिफिक विज़न के कहीं अधिक करीब है जो सैन्य एवं सामरिक
निहितार्थों के साथ-साथ समावेशन एवं विकास के लक्ष्यों को लेकर भी चलते हैं।
दक्षिण
चीन सागर: चीन के एकतरफा दावे को चुनौती
दक्षिण चीन सागर में फ्रांस की भी
चिंता वही है, जो भारत की है। यहाँ फ्रांस
चीन के एकतरफा दावे को चुनौती देता रहा है और निर्बाध नौवहन की स्वतंत्रता का
हिमायती रहा है। यही कारण है कि पैसिफिक द्वीपों में चीन द्वारा सैन्य ठिकानों के
निर्माण, ताइवान से राजनयिक संबंध तोड़ते हुए सोलोमन द्वीप के द्वारा टुलगी के
विकास के लिए चीनी कम्पनी को विशेषाधिकार दिया जाना, और किरिबाती-एक एवं प्रशांत
द्वीप द्वारा इसकी पुनरावृत्ति की ख़बरों ने फ़्रांस को विचलित किया। इन सबके बीच मई,2020
में फ्रेंच जंगी जहाजों ने दक्षिण चीन सागर के विवादित स्प्राटली द्वीप में गश्ती
की। मतलब यह कि फ्रांस अपने स्तर पर इंडो-पैसिफ़िक में वैकल्पिक कूटनीतिक ढाँचे की
तलाश में है, ताकि इस
क्षेत्र को एकाधिकारवादी आकांक्षाओं से मुक्त रखा जा सके।
गहराती
भारत-फ्रांस सामरिक भागीदारी:
सन् 1998 से दोनों देशों के
बीच शुरू हुआ सामरिक सहयोग सन् 2018 तक आते-आते भारत-फ्रांस
लॉजिस्टिक्स विनिमय समझौता,2018 पर हस्ताक्षर किया और इस प्रकार अमेरिका के बाद फ्रांस दूसरा
ऐसा देश बना, जिसके साथ भारत ने इस तरह का समझौता किया है। पिछले दो दशकों के दौरान भारत एवं फ्रांस के बीच सामरिक
संबंधों को अंतरिक्ष, सैन्य एवं रक्षा-क्षेत्र से लेकर व्यापार एवं निवेश तक
गहराते हुए देखा जा सकता है। सन् 2019
में द्विपक्षीय व्यापार 12.86 बिलियन अमेरीकी
डॉलर के
स्तर पर पहुँच गया है और फ्रांस भारत में शीर्ष के दस निवेशकों मे से एक है। कुछ समय पहले तक भारत इंडो-पेसिफिक क्षेत्र की बात
छोड़ दें, हिन्द महासागरीय क्षेत्र में भी किसी भी सामरिक सहयोगी देश के साथ
संयुक्त सैन्य पेट्रोलिंग के लिए तैयार नहीं था, पर हाल ही में भारतीय नौसेना ने
हिन्द महासागर में फ्रांस के साथ जॉइंट पेट्रोलिंग की है जो अपने तरह का पहला
अभ्यास है। यह इस बात का संकेत देता है कि अब भारतीय नेतृत्व चुप्पी धारण करने और
सार्वजनिक बयानों से परहेज़ की रणनीति को पीछे छोड़ते हुए कहीं अधिक सक्रिय हो रहा
है।
पेरिस-दिल्ली-कैनबरा
एक्सिस,2018:
सन् 2018 में अपनी
ऑस्ट्रेलिया-यात्रा के दौरान फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रोन ने इंडो-पैसिफिक में मौजूद
चुनौतियों और चीन की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनजर पेरिस-दिल्ली-कैनबरा एक्सिस का
प्रस्ताव रखते हुए कहा, “यदि हम चीन के बराबर भागीदार
के रूप में दिखना चाहते हैं और वैसे ही सम्मान की अपेक्षा रखते हैं, तो फ़्रांस, भारत
और ऑस्ट्रेलिया को खुद को व्यवस्थित करना चाहिए।” ध्यातव्य है कि जिस तरह
लोकतान्त्रिक मूल्य और मिलते-जुलते सामरिक हित
क्वॉड के सदस्य-देशों को एक दूसरे से जोड़ते हैं, उसी तरह फ्रांस, भारत और ऑस्ट्रेलिया को भी। चीन के प्रति सख्त़ी और सक्रिय इंडो-पेसिफिक रणनीति यूरोपीय संघ में फ्रांस को अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित
करने की मैक्रॉन की रणनीति का हिस्सा है।
पश्चिमी
हिंद महासागरीय क्षेत्र और फ्रांस:
पश्चिमी हिंद महासागरीय क्षेत्र में
भी फ्रांस अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगा हुआ है और
इस क्रम में ‘महत्वाकांक्षा
अफ्रीका‘ के
ज़रिये अफ्रीका में अपने प्रभाव के विस्तार में लगा हुआ है। इसके अतिरिक्त, फ़्रांस और भारत ने पश्चिमी हिंद महासागरीय क्षेत्र में कोमोरोस, मेडागास्कर,
और सेशेल्स सहित वनीला द्वीप में साझा विकास से सम्बंधी परियोजनाओं में
निवेश करने का
निर्णय लिया है। इस
साझेदारी का उद्देश्य वनीला द्वीपों मे मोज़ाबिंक चैनल के आसपास संसाधन-संपन्न
क्षेत्रों के सतत विकास के लिए बंदरगाह-निर्माण, संपर्क और ऊर्जा-अन्वेषण
जैसे क्षेत्रों में पारदर्शी तरीके से काम करना है। स्पष्ट है कि इंडो-पैसिफिक
बहुपक्षीय सुरक्षा, कूटनीतिक एवं राजनीतिक साझेदारियों से
परिभाषित होगा।
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स्रोत-सामग्री:
1. इंडो–पैसिफिक
और क्वॉड समूह: भारत की हिंद–प्रशांत नीति कितनी समावेशी,
कितनी सफल: विवेक मिश्रा-उदयन दास; मई 4,2019
2. फ्रांस, भारत और
इंडो-पैसिफिक: वैकल्पिक रणनीतिक ढाँचे की प्रयास: पारस रतन; नवम्बर 26,
2019
3. चीन संकट: भारत
के पास अमेरिकी मदद के अलावा क्या हैं विकल्प: भारत भूषण.
जून 28, 2020
4. क्वाड को लेकर चीन के लिए क्या सबसे महत्वपूर्ण है, यह कम से कम सुरक्षा संबंध तो नहीं : तारा कार्था, सितम्बर 3, 2020
5. New dimension: On India-U.S.-Australia-Japan Quadrilateral: Editorial, Sept. 5th,
2020
विविध आयामों के द्वारा समझ विकसित करने के लिए धन्यवाद।
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