Monday, 15 July 2019

64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा ट्रेंड विश्लेषण: सामान्य अध्ययन (समग्र)


64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा
ट्रेंड विश्लेषण: प्रथम पत्र
ट्रेंड-विश्लेषण:
13 जुलाई को बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त प्रतियोगिता (मुख्य) परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रथम पत्र की परीक्षा संपन्न हुई। संन्य अध्ययन प्रथम पत्र में पूछे गए प्रश्नों का बदलता ट्रेंड इस बात की ओर इशारा करता है कि इस परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को तैयारी के प्रति अपने नज़रिए में परिवर्तन लाना चाहिए और तदनुरूप अपने स्रोतों में भी, अन्यथा वे बीपीएससी एग्जाम की ज़रूरतों से दूर पड़ते चले जायेंगे और फिर उनके लिए सफलता हासिल करना मुश्किल होता चला जाएगा। साथ ही, यह आने वाले समय में बीपीएससी के सिलेबस में आने वाले बदलावों की ओर भी इशारा करता है।
इतिहास-खंड
इतिहास-खंड में नए रुझान:
यद्यपि पिछले कुछ वर्षों से इतिहास-खंड में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति में भी बदलाव परिलक्षित हो रहे हैं, पर तमाम बदलावों के बावजूद अबतक सहूलियत यह थी कि लिखने के लिए तीन प्रश्नों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था। लेकिन, इस बार इन प्रहसनों की प्रकृति में दो तरह के परिवर्तन लक्षित हो रहे हैं:
1.  पारंपरिक प्रकृति वाले प्रश्नों में एप्लीकेशन की बढ़ती ज़रुरत: ऐसा नहीं कि पारंपरिक प्रकृति वाले प्रश्न नहीं पूछे गए, पर उन्हें एप्लीकेशन पर आधारित बनाया गया जिसके कारण उन छात्रों को परेशानी आयी जो रट कर लिखने में विश्वास करते हैं। उदाहरण के रूप में इन प्रश्नों को देखा जा सकता है:
a.  चंपारण-सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था। स्पष्ट कीजिये। (यह प्रश्न 47वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा जा चुका है। इस दृष्टि से इसे निरंतरता में देखा जाना चाहिए।)
b.  उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए। (अब तक संथाल-विद्रोह एवं मुण्डा-विद्रोह: कारण, परिणाम एवं महत्व से उठाकर प्रश्न पूछे जाते थे; पर इस बार इस दायरे को लाँघते हुए ओवरऑल जनजातीय आन्दोलन पर प्रश्न पूछे गए हैं जिसके लिए समझ एवं एप्लीकेशन, दोनों की ज़रुरत है, अन्यथा परफॉर्मेंस औसत से नीचे रह जाएगा।)   
c.  मौर्य-कला तथा भवन-निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये, तथा बौद्ध धर्म के साथ उसके सम्बन्ध पर भी प्रकाश डालिए। (इस प्रश्न के पहले पार्ट को देखें, तो इसमें नया कुछ भी नहीं है, पर नयापन इस प्रश्न के दूसरे पार्ट में है जहाँ पर मौर्य-कला को बौद्ध-धर्म से लिंक करने की कोशिश की गयी है और छात्रों से यह अपेक्षा की गयी है कि वे बौद्ध-धर्म के प्रभाव के आलोक में मौर्य-कला का विवेचन करें। यह तबतक संभव नहीं है जबतक कि इस बात की समझ न हो कि सम्राट अशोक की राजनीतिक ज़रूरतों ने किस प्रकार उसे धम्म और इससे सम्बंधित संदेशों को प्रजा तक पहुँचाने के लिए स्तंभों एवं अभिलेखों के इस्तेमाल के लिए उत्प्रेरित किया।)    
2.  प्रश्नों का बढ़ता दायरा:  पिछले कुछ वर्षों से बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के दायरे को लगातार बढ़ने की कोशिश की जा रही है, और अगर यह कोशिश सबसे अधिक कहीं पर परिलक्षित होती है, तो भारतीय इतिहास एवं समसामयिकी खंड में। इतिहास-खंड में आरम्भ में गाँधी, नेहरु एवं टैगोर पर व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न पूछे जाने की प्रवृत्ति उभर कर सामने आयी, और अब इससे इतर हटकर इतिहास के अनछुए पहलुओं को छूने की कोशिश की जा रही है। उद्धरण के लिए 64वीं बीपीएससी में पूछे गए इन प्रश्नों को देखा जा सकता है:
a. 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये(इस क्षेत्र से इस तरह के प्रश्न बीपीएससी में पहली बार पूछे गए हैं, फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के प्रश्न पूछे नहीं जा सकते हैं, या फिर लिखे नहीं जा सकते हैं; लेकिन इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की मुकम्मल समझ विकसित हो। मुझे नहीं लगता है कि ऐसे प्रश्नों को तैयार करने या न करने से कोई विशेष फर्क पड़ने वाला है।)
b. 20वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्रपारीय आप्रवासन (Overseas Immigration) के क्या कारण थे? बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित/करार श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिये। (यह ऐसा प्रश्न है जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। साथ ही, ऐसे प्रश्नों के लिए विशेष रूप से तैयारी भी मुश्किल है, लेकिन अगर आपके पास भारतीय इतिहास की बेहतर समझ है, और ऐसे प्रश्नों को मैनेज किया जा सकता है। और, समझ के लिए आवश्यकता है व्यापक रीडिंग की, जिससे सामन्यतः बच्चों को एलर्जी है।)    
3.  टिप्पणियाँ पूछे जाने की नयी परिपाटी: इस बार के पेपर की खासियत इस बात में भी है कि इतिहास-खंड से टिप्पणियों वाले प्रश्न भी पूछे गए हैं। टिप्पणियों वाले प्रश्नों की खासियत इस बात में है कि ये परीक्षा में जिन टॉपिकों से प्रश्न पूछा जाता है, उनकी संख्या बढ़ा देते हैं। जैसे इस बार ही देखें, तो:  
a.  मजदूर वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन (इससे पहले इस तरह के टॉपिक से प्रश्न नहीं पूछे जाते थे, यद्यपि जिन टॉपिकों को आप कवर करते हैं, उनके आधार पर इन प्रश्नों को आसानी से लिखा जा सकता है। बस, आवश्यकता इस बात की है कि औद्योगीकरण, नवोदित पूँजीपति वर्ग एवं मजदूर वर्ग का आविर्भाव, मजदूरों में बढ़ता असंतोष और राष्ट्रीय आन्दोलन के नेतृत्व के द्वारा इस असंतोष को राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्ष में भुनाने की कोशिश, गाँधी एवं अहमदाबाद का मजदूर आन्दोलन, वामपंथ का बढ़ता प्रभाव, असहयोग से लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आन्दोलन तथा स्वतंत्र रूप से मजदूर आंदोलनों को राष्ट्रीय नेतृत्व के समर्थन का आपके पास आइडिया हो।)     
b.  जाति और धर्म से जुड़ी पहचान पर जनगणना,1881 का प्रभाव (इस प्रश्न की भी किसी को उम्मीद नहीं रही होगी, पर अंग्रेजों की ‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति और इसके भारतीय समाज एवं राजनीति पर प्रभाव के आलोक में इस प्रश्न को मैनेज किया जा सकता है; पर यह तब संभव होगा जब आपके पास राष्ट्रीय आन्दोलन और औपनिवेशिक शासन की प्रकृति की समझ हो।)   
c.  नेहरु और धर्मनिरपेक्षता: (यह प्रश्न पूर्ववर्ती ट्रेंड के अनुरूप है।)   
टेबल A: ट्रेंड-विश्लेषण: इतिहास-खंड
क्रम
64वीं बीपीएससी:
पूछे गए प्रश्न
टेस्ट सीरीज
सार्थक भारतीय इतिहास
विशेष टिप्पणी
1.   









19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये

------------
चैप्टर 8
पेज संख्या 35-52
इस क्षेत्र से इस तरह के प्रश्न बीपीएससी में पहली बार पूछे गए हैं, फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के प्रश्न पूछे नहीं जा सकते हैं, या फिर लिखे नहीं जा सकते हैं; लेकिन इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की मुकम्मल समझ विकसित हो
2.   






चंपारण-सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था। स्पष्ट कीजिये।
Test 7/10:Q.5
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि चंपारण- सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक परिवर्तनीय बिंदु था?
चैप्टर 10
पेज संख्या 59-60
यह प्रश्न 47वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा जा चुका है। इस दृष्टि से इसे निरंतरता में देखा जाना चाहिए।
3.   










20वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्रपारीय आप्रवासन (Oversea Immigration) के क्या कारण थे? बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित/करार श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिये।

------------
------------
यह ऐसा प्रश्न है जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। साथ ही, ऐसे प्रश्नों के लिए विशेष रूप से तैयारी भी मुश्किल है, लेकिन अगर आपके पास भारतीय इतिहास की बेहतर समझ है, और ऐसे प्रश्नों को मैनेज किया जा सकता है। और, समझ के लिए आवश्यकता है व्यापक रीडिंग की, जिससे सामन्यतः बच्चों को एलर्जी है।
4.   



















उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए।
Test 1: Q. 2 मुण्डा-विद्रोह की प्रकृति स्थिर न रहकर विकसनशील रही है। इस कथन पर विचार करते हुए मुण्डा-विद्रोह की जटिल प्रकृति का उद्घाटन करें और जनजातीय विद्रोहों की परम्परा में उसके महत्व का मूल्यांकन करें।
Test 7 Q.2
मुण्डा-विद्रोह की प्रकृति स्थिर न रहकर विकसनशील रही है। इस कथन पर विचार करते हुए भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की परम्परा में इसके योगदान एवं महत्व का मूल्यांकन करें।
चैप्टर 7
पेज संख्या 30-35
अब तक संथाल-विद्रोह एवं मुण्डा-विद्रोह: कारण, परिणाम एवं महत्व से उठाकर प्रश्न पूछे जाते थे; पर इस बार इस दायरे को लाँघते हुए ओवरऑल जनजातीय आन्दोलन पर प्रश्न पूछे गए हैं जिसके लिए समझ एवं एप्लीकेशन, दोनों की ज़रुरत है, अन्यथा परफॉर्मेंस औसत से नीचे रह जाएगा।
5.   










मौर्य-कला तथा भवन-निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये, तथा बौद्ध-धर्म के साथ उसके सम्बन्ध पर भी प्रकाश डालिए। 

Test 2: Q.4
मौर्य-कला एवं स्थापत्य की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए बतलाइए कि विदेशी प्रभाव ने किस प्रकार इसे समृद्ध किया है? यह किस प्रकार भारतीय कला एवं स्थापत्य का एक महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिन्दु है?
चैप्टर 8
पेज संख्या 192-194
इस प्रश्न के पहले पार्ट को देखें, तो इसमें नया कुछ भी नहीं है, पर नयापन इस प्रश्न के दूसरे पार्ट में है जहाँ पर मौर्य-कला को बौद्ध-धर्म से लिंक करने की कोशिश की गयी है और छात्रों से यह अपेक्षा की गयी है कि वे बौद्ध-धर्म के प्रभाव के आलोक में मौर्य-कला का विवेचन करें
6(a)





मजदूर वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन
------------
------------
इससे पहले इस तरह के टॉपिक से प्रश्न नहीं पूछे जाते थे, यद्यपि जिन टॉपिकों को आप कवर करते हैं, उनके आधार पर इन प्रश्नों को आसानी से लिखा जा सकता है
6(b)











जाति और धर्म से जुड़ी पहचान पर जनगणना, 1881 का प्रभाव
------------
------------
इस प्रश्न की भी किसी को उम्मीद नहीं रही होगी, पर अंग्रेजों की ‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति और इसके भारतीय समाज एवं राजनीति पर प्रभाव के आलोक में इस प्रश्न को मैनेज किया जा सकता है; पर यह तब संभव होगा जब आपके पास राष्ट्रीय आन्दोलन और औपनिवेशिक शासन की प्रकृति की समझ हो
6(b)

नेहरु और धर्मनिरपेक्षता
Test 3: Q.3 लोकतंत्र,साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में पंडित जवाहर लाल नेहरू के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए बतलाइए कि इसने आधुनिक भारत के स्वरूप-निर्धारण में किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
Test 9: Q.2
नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की धारणा गाँधी की धारणा से भिन्न है। इस भिन्नता को रेखांकित करते हुए बतलाइए कि इसने आधुनिक धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण में क्या भूमिका निभायी?
चैप्टर 22
पेज संख्या 182-183
यह प्रश्न पूर्ववर्ती ट्रेंड के अनुरूप है

समसामयिकी-खंड
बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के ट्रेंड में यदि कहीं पर सबसे अधिक बदलाव दिखाई पड़ता है, तो समसामयिकी-खंड में, जहाँ से पहले राष्ट्रीय (राजव्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था पर आधारित समसामयिकी) के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी से प्रश्न पूछे जाते थे। लेकिन, पिछले दो वर्षों से यहाँ से केवल अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी (प्रत्यक्षतः/परोक्षतः) पर आधारित प्रश्न ही पूछे जा रहे हैं। इस क्रम में अगर गौर किया जाए, तो अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी के कवरेज का दायरा भी लगातार बढ़ाया जा रहा है। यह खंड ऐसा है जहाँ इस बार टेस्ट सीरीज में हमें निराशा हाथ लगी क्योंकि यहाँ से डायरेक्ट प्रश्न मुख्य परीक्षा में नहीं पूछे गए। वहाँ पर हमने भारत-केन्द्रित नज़रिया अपनाया और हमारी कोशिश रही कि इतने टॉपिक को कवर किया जाए जो प्रत्यक्षतः/परोक्षतः परीक्षा-भवन में बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने में समर्थ हो। लेकिन, इस क्षेत्र में जो मैटेरियल उपलब्ध करवाए गए, वहाँ से तीन प्रश्न पूछे गए। इन तमाम बातों के बावजूद मैं यह स्वीकार करता हूँ कि 63वीं और 64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी खंड में मैं खुद को सफल नहीं मानता हूँ। दरअसल 63वीं मुख्य परीक्षा के पहले तक अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी से महज एक आय अधिक-से-अधिक दो प्रश्न पूछे जाते थे, और वो भी विज़िबल थे; लेकिन 63वीं मुख्य परीक्षा से इस खंड से केवल अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी से ही प्रश्न पूछे जा रहे हैं, और वह भी एप्लीकेशन पर आधारित और डीप-रूतेड। इसीलिए यहाँ से कवरेज बढ़ाये जाने की ज़रुरत है। इसीलिए मुझे लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी पर एक अतिरिक्त टेस्ट की ज़रुरत है, ताकि यहाँ से पूछने जाने वाले प्रश्नों के दायरे को और भी फैलाया जा सके।    
टेबल B: ट्रेंड-विश्लेषण: अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी
प्रश्न
संख्या
64वीं बीपीएससी:
पूछे गए प्रश्न
टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न
सार्थक समसामयिकी
विशेष टिप्पणी
7.






संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा जारी मानव-विकास रिपोर्ट, 2019 का प्रमुख विषय क्या है? विश्लेषण किस प्रकार आय, औसत और वर्तमान स्थिति के आगे चला जाता है? आलोचनात्मक परीक्षण करें।
------------
------------
अब तक ऐसे प्रश्नों को पूछे जाने की परिपाटी नहीं रही है, पर आगे से ऐसे टॉपिकों को ध्यान में रखे जाने की ज़रुरत है। 
8.
चाबहार बंदरगाह से होने-वाले भारत के नये आयात-निर्यात मार्ग की लाँचिंग से अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच व्यापार-प्रोत्साहन की संभावनाओं की विवेचना कीजिए।

Test 2 Q 10.
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका की वापसी ने भारतीय विदेश नीति के साथ-साथ भारत के सामरिक हितों के समक्ष जो चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं, उन पर प्रकाश डालें। क्या आपको नहीं लगता कि बदले हुए परिदृश्य में भारत को अपनी अफगानिस्तान-नीति की  समीक्षा करनी चाहिए?

चैप्टर 8
पेज 119-120
इस प्रश्न पर चर्चा के क्रम में चाबहार पर इसके प्रभाव और इसकी अहमियत की विस्तार से चर्चा की गयी थी।
9.
संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क के अनुसार कल्याण (Well Being) के संकेतक प्रमुख सूचकों की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।

------------
------------

10.
जहाँ तक दो राष्ट्रों के बीच लोगों के मुक्त आवागमन का सवाल है, भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार की नीति क्यों अपनायी है? समझाइए।
Test 2 Q 9.
नेपाल भारतीय विदेश-नीति की त्रासदी का क्लासिकल उदाहरण है। हाल के वर्षों में भारत-नेपाल द्विपक्षीय संबंधों में होने वाली प्रगति के आलोक में इस कथन की समीक्षा कीजिए।

चैप्टर 3
पेज 36-47
यह प्रश्न द्विपक्षीय संबंधों की समझ पर आधारित है और इसके परिप्रेक्ष्य में लिखा जा सकता है। 
11.
भू-राजनीतिक आयामों (Geo-Political Dynamics) में गतिशीलता के संकेतक के रूप में इस्लामिक सहयोग परिषद् (OIC) के विदेश-मंत्रियों के सम्मेलन में भारत को अतिथि-विशेष (Guest of Honour) के रूप भाग लेने के लिए संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के निमंत्रण का विवेचन कीजिए।
Test 2 Q. 12.
पाकिस्तान के प्रति वर्तमान सरकार की नीति को स्पष्ट करते हुए बतलाइए कि इसने द्विपक्षीय सम्बंधों को किन रूपों में प्रभावित किया है? यह कश्मीर-समस्या को किन रूपों में प्रभावित करेगा? साथ ही, द्विपक्षीय सम्बंध में विद्यमान गतिरोध को दूर करने के लिए उपयुक्त सुझाव दें।
चैप्टर 3
पेज 36-47
इस प्रश्न पर  क्लास में चर्चा के क्रम में पकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की रणनीति और इसके मूल्यांकन के क्रम में OIC पर विस्तार से चर्चा की गयी थी। 

====================
सामान्य अध्ययन द्वितीय पत्र
अगर सामान्य अध्ययन द्वितीय पत्र में पूछे गए प्रश्नों का विश्लेषण करें, तो यह अब तक के ट्रेंड के अनुरूप ही है। इस पत्र में तीन रुझान दिखाई पड़ते हैं:
1.  अपडेशन,
2.  एप्लीकेशन और
3.  इन्टर-डिसिप्लिनरी एप्रोच।
ये रुझान इस बार भी दिखाई पड़ते हैं। द्वितीय पत्र में देखा जाए, तो बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था को भारत एवं विशेष रूप से बिहार के परिप्रेक्ष्य में बाधक मानने की बात हो, या राज्यों की राजनीति में राज्यपाल की भूमिका का प्रश्न हो, या फिर आर्थिक विकास के अवरोधक के रूप में बढ़ती हुई जनसंख्या का; इन तमाम प्रश्नों को भविष्य में चलने वाले राष्ट्रीय विमर्श के एजेंडा सेटिंग से भी जोड़कर देखा जा सकता है, और इस रूप में प्रश्नों पर राजनीति की छाप देखी जा सकती है। शायद यही कारण है, कि ‘राज्यपाल के कठपुतली’ होने को लेकर पूछे गए प्रश्न ने अकारण राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, जबकि संघ लोक सेवा आयोग भी ‘राष्ट्रपति रबड़ स्टाम्प के रूप में’ प्रश्न पूछ चुकी है। इस प्रकरण में चर्चा इस बात पर हो रही है कि राज्यपाल को कठपुतली क्यों कहा गया, जबकि चर्चा इस बात पर होनी चाहिए थी कि वर्तमान में बिहार के विशेष सन्दर्भ में इस प्रश्न क्या मायने हैं? अगर चर्चा ही होनी है, तो इस प्रश्न पर भी चर्चा होनी चाहिए कि वन नेशन, वन इलेक्शनके एजेंडे के कारण राजनीतिक दलों की बहुलता को नकारात्मक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जा रहा है, पर बहुलतावादी लोकतंत्र भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की मूल पहचान है और विविधता से भरे समाज की ज़रुरत भी, लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं है।    
भारतीय राजव्यवस्था
भारतीय राजव्यवस्था खंड से पूछे गए प्रश्न अपेक्षा के अनुरूप ही हैं, सिवा एक प्रश्न के; और वह है: ‘बहुत अधिक राजनीतिक दल भारत के लिए अभिशाप है। इस तथ्य को बिहार के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिये।’ यह बीपीएससी में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति के अनुरूप ही है क्योंकि इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्न समझ एवं एप्लीकेशन पर आधारित होते हैं और अद्यतन रुझानों पर आधारित भी। इसके अलावा चाहे न्यायिक सक्रियता पर पूछे जाने वाले प्रश्न हों, या प्रस्तावना एवं उनसे सम्बंधित संवैधानिक उपबंधों पर आधारित, या फिर राज्यपाल की भूमिका; ये सारे प्रश्न अपेक्षित थे।   
टेबल C: ट्रेंड-विश्लेषण: भारतीय राजव्यवस्था
प्रश्न
संख्या
64वीं बीपीएससी
पूछे गए प्रश्न
टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न
सार्थक भारतीय राजव्यवस्था
विशेष टिप्पणी
1.



भारतीय संविधान अपनी प्रस्तावना में भारत को एक समाजवादी,धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित करता है इस घोषणा को क्रियान्वित करने के लिए कौन-से संवैधानिक उपबंध दिए गए हैं?
टेस्ट 4 Q. 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की वैधानिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए उन परिस्थितियों की चर्चा करें जिनमें इसके अंतर्गत पंथनिरपेक्षताशब्द को स्थान दिया गया। साथ ही, अबतक के अनुभवों के आलोक में भारतीय राज्य की पंथनिरपेक्ष प्रकृति का मूल्यांकन करते हुए बतलाइए कि क्यों नहीं प्रस्तावना से इस शब्द को हटा दिया जाए।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना से अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं। उसमें भी धर्मनिरपेक्षता बीपीएससी का प्रिय टॉपिक है। उदारीकरण ने समाजवाद शब्द की मौजूदगी पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया, और बचा-खुचा काम हाल एक विवादों ने कर दिया। इसलिए इन्हें अपेक्षित प्रश्नों की श्रेणी में रखा जाए।
2.
भारत में राज्य की राजनीति में राज्यपाल की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये, विशेष रूप में बिहार के सन्दर्भ में। क्या यह केवल एक कठपुतली है?

टेस्ट 5 Q.1
राज्यपाल के स्वविवेक के अधिकार के हाल में चर्चा में बने रहने के कारणों को स्पष्ट करते हुए बतलाइए कि इसके सन्दर्भ में क्या विवाद रहा है। साथ ही, इस सन्दर्भ में अदालत के रूख को भी स्पष्ट करें।

हाल में स्वविवेक के अधिकारों के दुरुपयोग के सन्दर्भ में राज्यपाल का पद चर्चा में आया और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय भी दिया, इसलिए ऐसे प्रश्न अपेक्षित थे। पर, इस प्रश्न में बेवजह बिहार को घसीटा गया है। अधिक-से-अधिक इससे महागठबंधन सरकार की जगह राजग सरकार के गठन और बी. एड कॉलेज विवाद की पृष्ठभूमि में राज्यपाल के स्थानांतरण के सन्दर्भ जुड़ते हैं। इस प्रश्न को रिस्पांड करते वक़्त पूंछी कमीशन की रिपोर्ट और स्वविवेक के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी ध्यान में रखे जाने चाहिए।     
3.
भारतीय शासन में न्यायिक सक्रियता एक नवीन धारणा है विवेचना कीजिये तथा न्यायिक सक्रियता के पक्ष और विपक्ष में दिए गए मुख्य तर्कों को स्पष्ट कीजिये
टेस्ट 1 Q.12
पिछले चार दशकों के दौरान न्यायाधीशों की नियुक्ति-प्रक्रिया में आने वाले बदलावों ने संवैधानिक सन्तुलन को पलट दिया है। इस कथन पर विचार करते हुए इससे सम्बंधित हाल के विवादों पर प्रकाश डालें।

न्यायपालिका लगातार चर्चा में बनी हुई हैं और उसके रह-रह कर केंद्र के साथ टकराव की चर्चा आती रहती है। ऐसे में इस तरह के प्रश्न लाजिमी है। इस प्रश्न को रिस्पांड करते वक़्त न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रम के बीच विभेद करते हुए न्यायिक सक्रियता के पक्ष में खड़ा होना अपेक्षित है।    
4.
बहुत अधिक राजनीतिक दल भारत के लिए अभिशाप है। इस तथ्य को बिहार के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिये।
टेस्ट 9 Q. 6
लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के साथ-साथ करवाये जाने का तर्क लुभावना चाहे जितना हो, पर यह व्यावहारिक नहीं है। हाल में इस प्रश्न पर उत्पन्न विवादों के आलोक में इस कथन पर विचार करें।

यह प्रश्न काफी चैलेंजिंग है और पूर्वाग्रहपूर्ण भी। इस प्रश्न का सम्बन्ध एक ओर बिहार में हाशिये पर खड़े छोटे जातीय समूह के द्वारा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राजनीतिक दलों के गठन और इसके कारण राजनीतिक परिदृश्य की जटिलता से  जुड़ता है, दूसरी और एक देश, एक चुनाव के एजेंडे के कारण राजनीतिक बहुलतावाद को नकारात्मक रूप में देखे जाने की प्रवृत्ति से। इस प्रश्न का उत्तर इन दोनों सन्दर्भों को ध्यान में  रखते हुए दिया जाना अपेक्षित है।

भारतीय अर्थव्यवस्था और भारत का भूगोल
भारतीय अर्थव्यवस्था खंड से पूछे गए प्रश्न पारंपरिक प्रकृति के कहीं अधिक हैं: प्रश्न चाहे खाद्य-सुरक्षा का हो, या डब्ल्यूटीओ की भूमिका का, या फिर आर्थिक आयोजन की उपलब्धियों का मूल्यांकन और जनसंख्या-वृद्धि बनाम् आर्थिक विकास लेकिन, इन अति-सामान्य से दिखने वाले प्रश्नों के उत्तर की मार्किंग एकसमान नहीं होगी, क्योंकि अधिकांश लोगों ने सामान्यीकृत उत्तर लिखा होगा, जबकि कुछ लोगों ने अपडेशन एवं समग्रता के जरिये प्रश्न के उत्तर को विशिष्ट बनाने की कोशिश की होगी। निश्चय ही इस दूसरी श्रेणी में आनेवाले छात्रों को बेहतर अंक मिलने की सम्भावना होगी, जबकि पहली श्रेणी में आनेवाले अधिकांश लोगों को औसत से भी कम अंक मिलने की संभावना है। मार्किंग में यह उतना मैटर नहीं करता है कि आप क्या लिखते हैं, यह कहीं अधिक मैटर करता है कि आप कैसे लिखते हैं; जो पूछा जा रहा है, आप वही लिखते हैं या कुछ और; तथा आप अपने उत्तर को औरों के उत्तर से कैसे भिन्न एवं विशिष्ट बनाने की कोशिश करते हैं।
टेबल D: ट्रेंड-विश्लेषण: भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रश्न
संख्या
64वीं बीपीएससी
पूछे गए प्रश्न
टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न
सार्थक भारतीय अर्थव्यवस्था
विशेष टिप्पणी
1.



भारत में खाद्य-सुरक्षा की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

टेस्ट 5 Q. 13
कृषि-क्षेत्र में निहित संभावनाओं के दोहन के साथ-साथ खाद्य एवं पोषण-सुरक्षा को सुनिश्चित करने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका को रेखांकित करें।
चैप्टर 6
पेज 71
यह प्रश्न पारम्परिक प्रकृति का ही है इसमें कुछ भी नयापन नहीं है
2.
भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका की व्याख्या कीजिये।

टेस्ट 9 Q.10
भारत के लिए मुक्त व्यापार समझौता बेहतर है, या बहुपक्षीय व्यापार समझौता? क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता(RCEP) के संदर्भ में भारत के समक्ष किस प्रकार की परेशानियाँ आ रही हैं
टेस्ट 10 Q.7
विश्व व्यापार संगठन में कृषि-सब्सिडी और विशेषकर चीनी सब्सिडी के मोर्चे पर भारत की मुश्किलें बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही हैं। हाल के विवादों के आलोक में इस प्रश्न पर विचार करते हुए बतलाइए कि आने वाले समय में विश्व व्यापार संगठन की मंत्री-स्तरीय वार्ता को यह विवाद किन रूपों में प्रभावित करेगा?
चैप्टर 16
पेज 270-276
यद्यपि यह प्रश्न भी पारम्परिक प्रकृति का ही है, फिर भी इसका उत्तर लिखते वक़्त वर्तमान परिप्रेक्ष्य और मौजूद चुनौतियों से जोड़ते हुए उत्तर को नयी दिशा डी जा सकती है। आर्थिक संरक्षणवाद, विश्व व्यापार संगठन का लोकतान्त्रिक स्वरुप, ट्रेड-वॉर, मुक्त-व्यापार समझौता बनाम् बहुपक्षीय व्यापार समझौता, खाद्य-सुरक्षा सब्सिडी विवाद,  आदि से जोड़कर उत्तर की मार्क्स-संभावनाओं को विस्तार दिया जा है। साथ ही, अबतक कृषि, उद्योग एवं सेवा-क्षेत्रों के सन्दर्भ में भारतीय हितों को संरक्षित करने में इसकी भूमिका को भी रेखांकित किया जाना चाहिए।
3.
भारतीय आर्थिक नियोजन की मुख्य उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिये

टेस्ट 1 Q.12

चैप्टर 7
पेज 137-152
इस प्रश्न की उम्मीद नहीं थी, पर नीति आयोग के औचित्य और उसकी उपलब्धियों का मूल्यांकन योजना आयोग और आयोजन की उपलब्धियों के सापेक्ष अपेक्षित है  अब इस प्रश्न पर लगातार चर्चा हो रही है, और शायद इसी आलोक में यह प्रश्न डाला गया है
4.
जबतक भारत में जनसंख्या-वृद्धि अवरुद्ध नहीं की जाती, तब तक आर्थिक विकास को उसके सही रूप में नहीं देखा जा सकता। इस कथन का परीक्षण कीजिये।
टेस्ट 4 Q. 9
बिहार के विशेष सन्दर्भ में जनांकिकीय लाभांश के प्रश्न पर विचार करते हुए बतलाइए कि इसके द्वारा सृजित संभावनाओं के दोहन के लिए बिहार सरकार के द्वारा क्या क़दम उठाए गए हैं और वे क़दम कितने प्रभावी हैं
चैप्टर 3
पेज 172-175
जिस तरह से डेमोग्राफिक डिविडेंड डेमोग्राफिक डिजास्टर में तब्दील होता दिख रहा है, उसकी पृष्ठभूमि में इस तरह के प्रश्न किसी-न-किसी रूप में अपेक्षित थे लेकिन, इस प्रश्न को लिखते वक़्त इस सन्दर्भ में नयी जनसंख्या नीति की धारणा, संसाधनों की किल्लत, और जनसँख्या को मानव-संसाधन में तब्दील कर पाने में सरकार की विफलता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसका एक एंगल जनसंख्या-नियंत्रण की सरकार की मंशा और उसके राजनीतिक निहितार्थों से भी जुड़ता है
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्न अक्सर अपडेशन और अंतर्विषयक नज़रिए पर आधारित होते हैं इस रुझान को इस बार भी देखा जा सकता है, सन्दर्भ चाहे जल-संसाधन प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका का हो, या बढ़ते हुए विद्युत् खपत को नियंत्रित करने में इसकी भूमिका का, या फिर शहरीकरण-प्रबंधन और कचरा-प्रबंधन में इसकी भूमिका का ये तमाम ऐसे प्रश्न थे जिसकी अपेक्षा की जा रही थी सबसे अच्छी बात यह है कि विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी से पूछे जाने वाले प्रश्न अब एक पैटर्न में बँधने लगे हैं और उनका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है, जबकि कुछ साल पहले तक इसका अंदाज़ा लगा पाना मुमकिन नहीं था
टेबल E: ट्रेंड-विश्लेषण: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 
प्रश्न
संख्या
64वीं बीपीएससी
पूछे गए प्रश्न
टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न
सार्थक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
विशेष टिप्पणी
1.



भारत में नदियों का सुदृढ़ जाल होने के बाद भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जो जलापूर्ति और विशेष रूप से पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। इस समस्या के समाधान हेतु जल-प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की सोदाहरण विवेचना कीजिये।
टेस्ट 4 Q. 14
भारत में भूजल-संकट के कारणों पर विचार करते हुए बतलाइए कि हाल में भारत ने इस चुनौती से निबटने की दिशा में क्या पहल की है? साथ ही, यह बतलाइए कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी इस क्षेत्र में मौजूद चुनौती से निबटने में किस प्रकार सहायक है?
टेस्ट 6 Q. 12
बेहतर जल-संसाधन प्रबंधन की चुनौतियों से निबटे बिना बिहार में कृषि-क्षेत्र में निहित संभावनाओं का दोहन संभव नहीं है। इस कथन पर विचार करते हुए बेहतर जल-संसाधन प्रबंधन की रणनीति पर विचार करें।
चैप्टर 9
पेज 195-201
जिस तरीके से जल-संकट गहराता जा रहा है और हम इसके प्रति अब भी बेपरवाह हैं, उसमें ऐसे प्रश्न पूछे जाने की संभावना प्रबल थी विशेष रूप से स्वच्छ पेयजल-संकट इसका एक महत्वपूर्ण कारण है और इसके मूल में मौजूद है भूजल का गिरता हुआ स्तर और उसका प्रदूषित होते चला जाना, जिसे हरित-क्रांति एवं जल-संग्रहण के परम्परागत स्रोतों के विलुप्त होते चले जाने से लेकर अबतक के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है  
2.
विद्युत्-खपत की बढ़ती माँग एवं लगातार घटते जा पारंपरिक ऊर्जा-स्रोतों के कारण देश में वर्तमान में विद्युत्-ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। इस विकट ऊर्जा-खपत माँग को नियंत्रित करने के लिए वर्तमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदत्त माध्यमों का विस्तार से वर्णन कीजिये।

टेस्ट 4 Q.12
भारत ऊर्जा-क्षेत्र में जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उससे निबटने में नाभिकीय ऊर्जा कहाँ तक कारगर है? इस प्रश्न पर विचार करते हुए भारत के नाभिकीय ऊर्जा-कार्यक्रम के उद्देश्यों को स्पष्ट करें और बतलाइए कि इस संदर्भ में अबतक क्या प्रगति हुई है और इसके रास्ते में क्या  अवरोध विद्यमान हैं
टेस्ट 13 Q. 12
भारत के आर्थिक विकास में सौर-ऊर्जा की अहमियत का उद्घाटन करते हुए बतलाइए कि यह किस प्रकार भारत के समक्ष मौजूद चिन्ताओं का समाधान प्रस्तुत कर पाने में समर्थ है? इसमें निहित संभावनाओं के दोहन के लिए क्या किया जा रहा है?
चैप्टर 1
पेज 15-22
यद्यपि पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिजली की आपूर्ति एवं उपलब्धता में सुधार आया है, पर ऊर्जा-दक्षता के मामले में स्थिति अब भी खराब है, और इसीलिए दबाव अब भी बना हुआ है। यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक एप्लायंसेज की ऊर्जा-दक्षता में सुधार की बात की जाती है जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका अहम् हो सकती है     
3.
वर्तमान सरकार विभिन्न राज्यों में स्मार्ट शहर विकसित करने के लिए प्रयासरत है। स्मार्ट शहरों के बारे में आपकी क्या परिकल्पनाएँ हैं? आदर्श स्मार्ट शहर के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका की व्याख्या कीजिये।


चैप्टर 11
पेज 211-214
भारत में जिस तरह से गाँवों से शहरों की और पलायन बढ़ रहा है और इसकी पृष्ठभूमि में बेतरतीब तरीके से शहरीकरण की प्रक्रिया चल रही है, उसे समस्याजनक माना जा रहा है। इसी आलोक में शहरीकरण-प्रबंधन की अहमियत सामने आती है और इसी के लिए स्मार्ट सिटी की संकल्पना के ज़रिये शहरीकरण-प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका पर जोर दिया गया।
4.
जनसंख्या में बहुमुखी वृद्धि एवं अ-योजना के फलस्वरूप असंगत कचरा उत्पन्न हुआ है। विभिन्न प्रकार के कचरे की विवेचना कीजिये। इस समस्या को देश किस प्रकार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सहायता से दूर कर सकता है? विस्तार से इसका वर्णन कीजिये।
टेस्ट 6 Q. 10
ई-कचरा किस प्रकार पर्यावरण के लिए नए सिरे से चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहा है? इसका प्रभावी तरीक़े से प्रबंधन किस प्रकार संभव है? इसके लिए उपयुक्त सुझाव दें।
टेस्ट 6 Q. 15
स्पष्ट करें कि प्रभावी कचरा-प्रबंधन न केवल शहरीकरण-प्रबंधन की चुनौतियों से जूझने में मददगार है, वरन् यह नवीन संभावनाओं को लेकर भी उपस्थित होता है।
चैप्टर 6
पेज 110-113
चैप्टर 8
पेज 209-210
कचरा-प्रबंधन का सम्बन्ध भी शहरीकरण-प्रबंधन से जुड़ता है। साथ ही, तकनीक के विस्तार ने ई-कचरे की समस्या को जन्म देते हुए इसे कहीं अधिक गंभीर एवं जटिल बनाया है। इस चुनौती को अवसर में तब्दील करने में  विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका अहम् हो सकती है इसी के मद्देनज़र इस प्रश्न को देखा जाना चाहिए

सतर्कता अपेक्षित:
स्पष्ट है कि बाजारवाद के इस दौर में सबमें दावों एवं प्रतिदावों की होड़ लगी है और हर कोई यह दावा करने में लगा हुआ है कि हम ही सर्वश्रेष्ठ हैं, ऐसे में छात्रों का भ्रमित होना लाजिमी है। इसलिए इन दावों-प्रतिदावों से इतर हटकर दो पहलुओं पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए:
1.  क्या वाकई उस प्रश्न को कवर किया गया है जो बीपीएससी में पूछा गया है, या फिर महज कुछ शब्दों के सादृश्य के आधार पर ये तमाम दावे किये जा रहे हैं?  
2.  अगर वाकई वही प्रश्न या उससे मिलते-जुलते प्रश्न पूछे गए हैं, तो क्वालिटी ऑफ़ कवरेज क्या है? क्या वह संतोषजनक है?     
और हाँ, इस विश्लेषण के अंत में एक बात और कहना चाहूँगा:
वक़्त का तकाज़ा है, तूफाँ से जूझो;
कब तक चलोगे किनारे-किनारे?
पीटी या मैन्स पास करना, या फिर मैन्स एवं इंटरव्यू में शामिल होना न तो ज़िंदगी की उपलब्धि है और न ही होनी चाहिए। उपलब्धि है लक्ष्य तक पहुँचना एवं लक्ष्य को हासिल करना, और यह तब संभव है जब आप सर्वश्रेष्ठ हों और अपना सर्वश्रेष्ठ दें। अगर यह विश्लेषण इसमें कहीं मददगार साबित हो सका, तो सार्थक है; अन्यथा निरर्थक प्रलाप, जिसका कोई औचित्य नहीं और जिसकी कोई उपयोगिता नहीं। पर, यदि किसी एक को भी इसका फायदा हुआ, तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझूँगा। अंत में, ‘मित्रों के सवाल’ के श्रीकान्त वर्मा के शब्दों में कहना चाहूँगा, और यह मेरा नहीं, आपकी नियति का प्रश्न है आपसे:   
मित्रो !
यह कहने का कोई मतलब नहीं
कि मैं समय के साथ चल रहा हूँ;
सवाल यह है कि समय तुम्हें बदल रहा है,
या तुम समय को बदल रहे हो?
**************
मित्रो!
सवाल यह है
इसके बाद कहाँ जाओगे?
======================



2 comments:

  1. Acha analysis tha...!! ����maine pura pdha...!! Pdhkr khushi hui k aap apne students ko sahi tarike se guide kr rhe h..!! Answrs likhte tym maine b in sb dimensions pe hi sochkr answer likha th .!! Nd hr answer ko alag bnane ki koshish ki..!! Ummeed h ache marks milenge..!!

    ReplyDelete
  2. Aap 65th mains ke liye bhi kuch guideline de dijiye aapka analysis pdh kr acha lga ak shi direction milegi thanks

    ReplyDelete