64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा
ट्रेंड विश्लेषण: प्रथम पत्र
ट्रेंड-विश्लेषण:
13 जुलाई को बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त प्रतियोगिता
(मुख्य) परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रथम पत्र की परीक्षा संपन्न हुई। संन्य अध्ययन प्रथम पत्र में पूछे गए
प्रश्नों का बदलता ट्रेंड इस बात की ओर इशारा करता है कि इस परीक्षा की तैयारी कर
रहे छात्रों को तैयारी के प्रति अपने नज़रिए में परिवर्तन लाना चाहिए और तदनुरूप
अपने स्रोतों में भी, अन्यथा वे बीपीएससी एग्जाम की ज़रूरतों से दूर पड़ते चले
जायेंगे और फिर उनके लिए सफलता हासिल करना मुश्किल होता चला जाएगा। साथ ही, यह आने
वाले समय में बीपीएससी के सिलेबस में आने वाले बदलावों की ओर भी इशारा करता है।
इतिहास-खंड
इतिहास-खंड में नए
रुझान:
यद्यपि पिछले कुछ वर्षों से इतिहास-खंड में
पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति में भी बदलाव परिलक्षित हो रहे हैं, पर तमाम
बदलावों के बावजूद अबतक सहूलियत यह थी कि लिखने के लिए तीन प्रश्नों का सहज ही
अनुमान लगाया जा सकता था। लेकिन, इस बार इन प्रहसनों की प्रकृति में दो तरह के
परिवर्तन लक्षित हो रहे हैं:
1.
पारंपरिक प्रकृति वाले प्रश्नों में एप्लीकेशन की बढ़ती
ज़रुरत: ऐसा
नहीं कि पारंपरिक प्रकृति वाले प्रश्न नहीं पूछे गए, पर उन्हें एप्लीकेशन पर
आधारित बनाया गया जिसके कारण उन छात्रों को परेशानी आयी जो रट कर लिखने में
विश्वास करते हैं। उदाहरण के रूप में इन प्रश्नों को देखा जा सकता है:
a. चंपारण-सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़
था। स्पष्ट कीजिये। (यह प्रश्न 47वीं
बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा जा चुका है। इस दृष्टि से इसे निरंतरता में देखा जाना चाहिए।)
b. उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की
विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए। (अब तक संथाल-विद्रोह एवं मुण्डा-विद्रोह: कारण, परिणाम
एवं महत्व से उठाकर प्रश्न पूछे जाते थे; पर इस बार इस दायरे को लाँघते हुए ओवरऑल
जनजातीय आन्दोलन पर प्रश्न पूछे गए हैं जिसके लिए समझ एवं एप्लीकेशन, दोनों की
ज़रुरत है, अन्यथा परफॉर्मेंस औसत से नीचे रह जाएगा।)
c. मौर्य-कला तथा भवन-निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट
कीजिये, तथा बौद्ध धर्म के साथ उसके सम्बन्ध पर भी प्रकाश डालिए। (इस प्रश्न के पहले पार्ट को देखें, तो
इसमें नया कुछ भी नहीं है, पर नयापन इस प्रश्न के दूसरे पार्ट में है जहाँ पर
मौर्य-कला को बौद्ध-धर्म से लिंक करने की कोशिश की गयी है और छात्रों से यह
अपेक्षा की गयी है कि वे बौद्ध-धर्म के प्रभाव के आलोक में मौर्य-कला का विवेचन
करें। यह तबतक संभव नहीं है जबतक कि इस बात की समझ न हो कि
सम्राट अशोक की राजनीतिक ज़रूरतों ने किस प्रकार उसे धम्म और इससे सम्बंधित संदेशों
को प्रजा तक पहुँचाने के लिए स्तंभों एवं अभिलेखों के इस्तेमाल के लिए उत्प्रेरित
किया।)
2.
प्रश्नों का बढ़ता दायरा:
पिछले कुछ वर्षों से बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों
के दायरे को लगातार बढ़ने की कोशिश की जा रही है, और अगर यह कोशिश सबसे अधिक कहीं
पर परिलक्षित होती है, तो भारतीय इतिहास एवं समसामयिकी खंड में। इतिहास-खंड में आरम्भ में गाँधी, नेहरु एवं टैगोर पर
व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न पूछे जाने की प्रवृत्ति उभर कर सामने आयी, और अब इससे
इतर हटकर इतिहास के अनछुए पहलुओं को छूने की कोशिश की जा रही है। उद्धरण के लिए
64वीं बीपीएससी में पूछे गए इन प्रश्नों को देखा जा सकता है:
a. 19वीं
सदी के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये। (इस क्षेत्र से इस तरह
के प्रश्न बीपीएससी में पहली बार पूछे
गए हैं, फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के प्रश्न पूछे नहीं जा सकते
हैं, या फिर लिखे नहीं जा सकते हैं; लेकिन इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि
राष्ट्रीय आन्दोलन की मुकम्मल समझ विकसित हो। मुझे नहीं
लगता है कि ऐसे प्रश्नों को तैयार करने या न करने से कोई विशेष फर्क पड़ने वाला है।)
b. 20वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्रपारीय
आप्रवासन (Overseas Immigration) के क्या कारण थे?
बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित/करार श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिये। (यह ऐसा प्रश्न है
जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। साथ ही, ऐसे प्रश्नों
के लिए विशेष रूप से तैयारी भी मुश्किल है, लेकिन अगर आपके पास भारतीय इतिहास की
बेहतर समझ है, और ऐसे प्रश्नों को मैनेज किया जा सकता है। और, समझ के लिए आवश्यकता
है व्यापक रीडिंग की, जिससे सामन्यतः बच्चों को एलर्जी है।)
3.
टिप्पणियाँ पूछे जाने की नयी परिपाटी: इस बार के पेपर की खासियत इस बात में भी है कि
इतिहास-खंड से टिप्पणियों वाले प्रश्न भी पूछे गए हैं। टिप्पणियों वाले प्रश्नों की खासियत इस बात में है कि
ये परीक्षा में जिन टॉपिकों से प्रश्न पूछा जाता है, उनकी संख्या बढ़ा देते हैं।
जैसे इस बार ही देखें, तो:
a. मजदूर वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन (इससे पहले इस तरह के टॉपिक से प्रश्न नहीं पूछे
जाते थे, यद्यपि जिन टॉपिकों को आप कवर करते हैं, उनके आधार पर इन प्रश्नों को
आसानी से लिखा जा सकता है। बस,
आवश्यकता इस बात की है कि औद्योगीकरण, नवोदित पूँजीपति वर्ग एवं मजदूर वर्ग का
आविर्भाव, मजदूरों में बढ़ता असंतोष और राष्ट्रीय आन्दोलन के नेतृत्व के द्वारा इस
असंतोष को राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्ष में भुनाने की कोशिश, गाँधी एवं अहमदाबाद का
मजदूर आन्दोलन, वामपंथ का बढ़ता प्रभाव, असहयोग से लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं
भारत छोड़ो आन्दोलन तथा स्वतंत्र रूप से मजदूर आंदोलनों को राष्ट्रीय नेतृत्व के
समर्थन का आपके पास आइडिया हो।)
b. जाति और धर्म से जुड़ी पहचान पर
जनगणना,1881 का प्रभाव (इस
प्रश्न की भी किसी को उम्मीद नहीं रही होगी, पर अंग्रेजों की ‘फूट डालो, शासन करो’
की नीति और इसके भारतीय समाज एवं राजनीति पर प्रभाव के आलोक में इस प्रश्न को
मैनेज किया जा सकता है; पर यह तब संभव होगा जब आपके पास राष्ट्रीय आन्दोलन और
औपनिवेशिक शासन की प्रकृति की समझ हो।)
c. नेहरु और धर्मनिरपेक्षता: (यह प्रश्न पूर्ववर्ती ट्रेंड के अनुरूप है।)
A. ट्रेंड-विश्लेषण:
इतिहास-खंड
क्रम
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64वीं बीपीएससी:
पूछे गए प्रश्न
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टेस्ट सीरीज
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सार्थक भारतीय इतिहास
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विशेष टिप्पणी
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1.
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19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में
भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये।
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चैप्टर 8
पेज संख्या 35-52
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इस
क्षेत्र से इस तरह के प्रश्न बीपीएससी
में पहली बार पूछे गए हैं, फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के प्रश्न
पूछे नहीं जा सकते हैं, या फिर लिखे नहीं जा सकते हैं; लेकिन इसके लिए आवश्यकता
इस बात की है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की मुकम्मल समझ विकसित हो।
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2.
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चंपारण-सत्याग्रह स्वाधीनता संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ था।
स्पष्ट कीजिये।
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Test 7/10:Q.5
क्या आप इस बात से सहमत हैं कि चंपारण-
सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में एक परिवर्तनीय बिंदु था?
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चैप्टर 10
पेज संख्या 59-60
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यह प्रश्न 47वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा जा चुका है। इस दृष्टि से इसे निरंतरता में देखा जाना चाहिए।
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3.
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20वीं सदी के ब्रिटिशकालीन भारत में समुद्रपारीय
आप्रवासन (Oversea Immigration) के क्या कारण थे? बिहार के विशेष सन्दर्भ में अनुबंधित/करार श्रम-पद्धति (Indenture System) के आलोक में विवेचना कीजिये।
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यह ऐसा
प्रश्न है जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी। साथ ही,
ऐसे प्रश्नों के लिए विशेष रूप से तैयारी भी मुश्किल है, लेकिन अगर आपके पास
भारतीय इतिहास की बेहतर समझ है, और ऐसे प्रश्नों को मैनेज किया जा सकता है। और,
समझ के लिए आवश्यकता है व्यापक रीडिंग की, जिससे सामन्यतः बच्चों को एलर्जी है।
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4.
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उपयुक्त उदाहरण सहित 19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध की
विशेषताओं की समीक्षा कीजिये। उनकी असफलता के कारण बताइए।
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Test 1: Q. 2 मुण्डा-विद्रोह की प्रकृति स्थिर न रहकर
विकसनशील रही है। इस कथन पर विचार
करते हुए मुण्डा-विद्रोह की जटिल प्रकृति का उद्घाटन करें और जनजातीय विद्रोहों की
परम्परा में उसके महत्व का मूल्यांकन
करें।
Test 7 Q.2
मुण्डा-विद्रोह की प्रकृति स्थिर न रहकर
विकसनशील रही है। इस कथन पर विचार करते हुए भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की परम्परा
में इसके योगदान एवं महत्व का मूल्यांकन करें।
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चैप्टर 7
पेज संख्या 30-35
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अब तक संथाल-विद्रोह एवं मुण्डा-विद्रोह: कारण, परिणाम एवं महत्व
से उठाकर प्रश्न पूछे जाते थे; पर इस बार इस दायरे को लाँघते हुए ओवरऑल जनजातीय
आन्दोलन पर प्रश्न पूछे गए हैं जिसके लिए समझ एवं एप्लीकेशन, दोनों की ज़रुरत है,
अन्यथा परफॉर्मेंस औसत से नीचे रह जाएगा।
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5.
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मौर्य-कला तथा भवन-निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये,
तथा बौद्ध-धर्म के साथ उसके सम्बन्ध पर भी प्रकाश डालिए।
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Test 2: Q.4
मौर्य-कला एवं स्थापत्य की विशेषताओं को
रेखांकित करते हुए बतलाइए कि विदेशी प्रभाव ने किस प्रकार इसे समृद्ध किया है? यह किस प्रकार भारतीय कला एवं
स्थापत्य का एक महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिन्दु है?
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चैप्टर 8
पेज संख्या 192-194
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इस प्रश्न के पहले पार्ट को देखें, तो इसमें
नया कुछ भी नहीं है, पर नयापन इस प्रश्न के दूसरे पार्ट में है जहाँ पर
मौर्य-कला को बौद्ध-धर्म से लिंक करने की कोशिश की गयी है और छात्रों से यह
अपेक्षा की गयी है कि वे बौद्ध-धर्म के प्रभाव के आलोक में मौर्य-कला का विवेचन
करें।
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6(a)
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मजदूर वर्ग और राष्ट्रीय आन्दोलन
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इससे पहले इस तरह के टॉपिक से प्रश्न नहीं पूछे जाते थे, यद्यपि जिन
टॉपिकों को आप कवर करते हैं, उनके आधार पर इन प्रश्नों को आसानी से लिखा जा सकता
है।
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6(b)
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जाति और धर्म से जुड़ी पहचान पर जनगणना, 1881 का
प्रभाव
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इस प्रश्न की भी किसी को उम्मीद नहीं रही होगी, पर अंग्रेजों की
‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति और इसके भारतीय समाज एवं राजनीति पर प्रभाव के
आलोक में इस प्रश्न को मैनेज किया जा सकता है; पर यह तब संभव होगा जब आपके पास
राष्ट्रीय आन्दोलन और औपनिवेशिक शासन की प्रकृति की समझ हो।
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6(b)
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नेहरु और धर्मनिरपेक्षता
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Test 3: Q.3 लोकतंत्र,साम्प्रदायिकता और
धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में पंडित जवाहर लाल नेहरू के दृष्टिकोण को स्पष्ट
करते हुए बतलाइए कि इसने आधुनिक भारत के स्वरूप-निर्धारण में किस प्रकार
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
Test 9: Q.2
नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की धारणा गाँधी की
धारणा से भिन्न है। इस भिन्नता को रेखांकित करते हुए बतलाइए कि
इसने आधुनिक धर्मनिरपेक्ष भारत के निर्माण में क्या भूमिका निभायी?
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चैप्टर 22
पेज संख्या 182-183
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यह प्रश्न पूर्ववर्ती ट्रेंड के अनुरूप है।
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समसामयिकी-खंड
बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में पूछे जाने वाले
प्रश्नों के ट्रेंड में यदि कहीं पर सबसे अधिक बदलाव दिखाई पड़ता है, तो
समसामयिकी-खंड में, जहाँ से पहले राष्ट्रीय (राजव्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था पर
आधारित समसामयिकी) के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी से प्रश्न पूछे जाते थे।
लेकिन, पिछले दो वर्षों से यहाँ से केवल अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी
(प्रत्यक्षतः/परोक्षतः) पर आधारित प्रश्न ही पूछे जा रहे हैं। इस क्रम में अगर गौर किया जाए, तो अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी के कवरेज का दायरा भी
लगातार बढ़ाया जा रहा है। यह खंड ऐसा है जहाँ इस बार टेस्ट सीरीज में
हमें निराशा हाथ लगी क्योंकि यहाँ से डायरेक्ट प्रश्न मुख्य परीक्षा में नहीं पूछे
गए। वहाँ
पर हमने भारत-केन्द्रित नज़रिया अपनाया और हमारी कोशिश रही कि इतने टॉपिक को कवर
किया जाए जो प्रत्यक्षतः/परोक्षतः परीक्षा-भवन में बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने
में समर्थ हो। लेकिन, इस क्षेत्र में जो मैटेरियल
उपलब्ध करवाए गए, वहाँ से तीन
प्रश्न पूछे गए। इन
तमाम बातों के बावजूद मैं यह स्वीकार करता हूँ कि 63वीं और 64वीं बीपीएससी (मुख्य)
परीक्षा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी खंड में मैं खुद को सफल नहीं मानता हूँ। दरअसल 63वीं मुख्य परीक्षा के पहले तक अंतर्राष्ट्रीय
समसामयिकी से महज एक आय अधिक-से-अधिक दो प्रश्न पूछे जाते थे, और वो भी विज़िबल थे;
लेकिन 63वीं मुख्य परीक्षा से इस खंड से केवल अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी से ही प्रश्न
पूछे जा रहे हैं, और वह भी एप्लीकेशन पर आधारित और डीप-रूतेड। इसीलिए यहाँ से
कवरेज बढ़ाये जाने की ज़रुरत है। इसीलिए मुझे लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी पर
एक अतिरिक्त टेस्ट की ज़रुरत है, ताकि यहाँ से पूछने जाने वाले प्रश्नों के दायरे
को और भी फैलाया जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय समसामयिकी
प्रश्न
संख्या
|
64वीं बीपीएससी:
पूछे गए प्रश्न
|
टेस्ट सीरीज में पूछे
गए प्रश्न
|
सार्थक समसामयिकी
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विशेष टिप्पणी
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7.
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संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम
द्वारा जारी मानव-विकास रिपोर्ट, 2019 का प्रमुख विषय क्या है? विश्लेषण किस प्रकार आय, औसत और वर्तमान स्थिति
के आगे चला जाता है? आलोचनात्मक परीक्षण करें।
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अब तक ऐसे प्रश्नों को पूछे जाने की परिपाटी
नहीं रही है, पर आगे से ऐसे टॉपिकों को ध्यान में रखे जाने की ज़रुरत है।
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8.
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चाबहार बंदरगाह से होने-वाले
भारत के नये आयात-निर्यात मार्ग की लाँचिंग
से अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बीच
व्यापार-प्रोत्साहन की संभावनाओं की विवेचना कीजिए।
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Test 2 Q 10.
अफ़ग़ानिस्तान
से अमेरिका की वापसी ने भारतीय विदेश नीति के साथ-साथ भारत के सामरिक हितों के
समक्ष जो चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं, उन पर प्रकाश
डालें। क्या आपको नहीं लगता कि बदले हुए परिदृश्य में भारत को अपनी
अफगानिस्तान-नीति की समीक्षा करनी चाहिए?
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चैप्टर 8
पेज 119-120
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इस प्रश्न पर चर्चा के क्रम में चाबहार पर
इसके प्रभाव और इसकी अहमियत की विस्तार से चर्चा की गयी थी।
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9.
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संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास
समाधान नेटवर्क के अनुसार कल्याण (Well Being) के संकेतक प्रमुख सूचकों की
समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
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10.
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जहाँ तक दो राष्ट्रों के बीच
लोगों के मुक्त आवागमन का सवाल है, भारत ने नेपाल और भूटान के साथ मुक्त द्वार की
नीति क्यों अपनायी है? समझाइए।
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Test 2 Q 9.
नेपाल भारतीय
विदेश-नीति की त्रासदी का क्लासिकल उदाहरण है। हाल के वर्षों में भारत-नेपाल
द्विपक्षीय संबंधों में होने वाली प्रगति के आलोक में इस कथन की समीक्षा कीजिए।
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चैप्टर 3
पेज
36-47
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यह प्रश्न द्विपक्षीय संबंधों की समझ पर
आधारित है और इसके परिप्रेक्ष्य में लिखा जा सकता है।
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11.
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भू-राजनीतिक आयामों (Geo-Political Dynamics)
में गतिशीलता के संकेतक के रूप में इस्लामिक सहयोग परिषद् (OIC)
के विदेश-मंत्रियों के सम्मेलन में भारत को अतिथि-विशेष (Guest of Honour) के रूप भाग लेने के लिए संयुक्त अरब
अमीरात (UAE) के निमंत्रण का विवेचन कीजिए।
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Test 2 Q. 12.
पाकिस्तान के प्रति वर्तमान सरकार की नीति को
स्पष्ट करते हुए बतलाइए कि इसने द्विपक्षीय सम्बंधों को किन रूपों में प्रभावित
किया है? यह कश्मीर-समस्या
को किन रूपों में प्रभावित करेगा? साथ ही, द्विपक्षीय सम्बंध में विद्यमान गतिरोध को दूर करने के लिए उपयुक्त सुझाव
दें।
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चैप्टर 3
पेज 36-47
|
इस प्रश्न पर क्लास में चर्चा के क्रम में पकिस्तान को
अलग-थलग करने की भारत की रणनीति और इसके मूल्यांकन के क्रम में OIC पर विस्तार
से चर्चा की गयी थी।
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