सीवीसी-नियुक्ति विवाद-प्रकरणण
प्रमुख आयाम
1. सीवीसी-नियुक्ति विवाद-प्रकरण
2. हाल के सन्दर्भ
3. पी. जे. थॉमस मामला,2010-11
4. नियुक्ति-प्रक्रिया
5. नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
6. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
7. विशिष्ट रूप से सीवीसी के सन्दर्भ में दिशानिर्देश
8. नियुक्ति-प्रक्रिया को और प्रभावी बनाने हेतु सुझाव
9. विश्लेषण
सीवीसी-नियुक्ति विवाद-प्रकरण
सुप्रीम कोर्ट के इन दिशा-निर्देशों
के बावजूद नियुक्ति को लेकर उत्पन्न विवाद ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
जून,2015 में प्रशांत भूषण के गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज ने मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर के. वी. चौधरी और सतर्कता
आयुक्त के पद पर टी. एम. भसीन की नियुक्ति की वैधानिकता को चुनौती देते हुए
राजनीतिक पक्षपात का आरोप लगाया और उनके दागी व्यक्तित्व एवं नियुक्ति-प्रक्रिया
की अपारदर्शिता का हवाला देते हुए इसे अवैधानिक घोषित करने की माँग की। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पक्षपात
वाले पहलू पर गौर करने से इन्कार करते हुए कहा कि वह इस प्रश्न पर गौर करेगा कि
मुख्य सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्त के पद पर नियुक्त व्यक्ति बेदाग छवि वाले
मानदंड को पूरा करता है, या नहीं। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार की इस आपत्ति को खारिज
किया कि ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश बहुत सीमित है। उसका
कहना था कि मसला मुख्य सतर्कता आयुक्त एवं
सतर्कता आयुक्त से सम्बद्ध है और इनके विरुद्ध कुछ ऐसी सामग्रियाँ उपलब्ध हैं
जिन्हें गंभीरतापूर्वक देखे जाने की ज़रुरत है।
जुलाई,2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों नियुक्तियों को अपनी ओर से क्लीयरेंस
देते हुए याचिका खारिज कर दी। इससे पूर्व पी. जे. थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने
मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर उनकी नियुक्ति की वैधानिकता को खारिज करते हुए
नियुक्ति-प्रक्रिया के सन्दर्भ में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये थे जिसके बाद
यह उम्मीद की जा रही थी कि इस विवाद का पटाक्षेप हो जाएगा।
पी. जे. थॉमस मामला,2010-11:
सितम्बर,2010 में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त(CVC) के पद पर पी. जे. थॉमस की नियुक्ति की गयी, लेकिन इस
नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी। इससे पूर्व जिस कमिटी ने पी. जे.
थॉमस की इस पद पर नियुक्ति की अनुशंसा की थी, उस पैनल में विपक्ष की नेता के तौर पर लोकसभा में विपक्षी
दल की नेता सुषमा स्वराज भी शामिल थीं और उन्होंने उनके दागी चरित्र की ओर पैनल का
ध्यान आकृष्ट करते हुए इस पद के लिए उनके नाम की अनुशंसा का खुलकर विरोध किया था।
लेकिन, पैनल ने उनकी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए उनके नाम की अनुशंसा की।
नियुक्ति-प्रक्रिया:
केन्द्रीय सतर्कता आयोग(CVC) अधिनियम के प्रावधानों के तहत् केन्द्रीय
सतर्कता आयुक्त(CVC) के पद पर नियुक्ति हेतु विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गयी
है। सुप्रीम कोर्ट
के द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के मुताबिक लोकपाल की तर्ज़ पर केन्द्रीय सतर्कता
आयुक्त एवं सतर्कता आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए सार्वजानिक विज्ञापन जारी
किये जाएँ। इसी सार्वजानिक विज्ञापन के साथ नियुक्ति-प्रक्रिया शुरू होती है और
प्रधानमंत्री, गृह-मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता को समाहित करने वाली तीन
सदस्यीय समिति, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, इस पद पर नियुक्ति हेतु
नामों की अनुशंसा करते हैं और इसी आलोक में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर
नियुक्ति की जाती है।
आरम्भ में इस पद पर केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा
से सम्बद्ध अधिकारियों की नियुक्ति होती थी, पर मार्च,2011 में पी. जे. थॉमस
प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों ने न केवल इस पद को अन्य लोकसेवकों
सहित सबों के लिए खोल दिया गया, वरन् सर्च पैनल के गठन और सर्च पैनल के साथ-साथ
कॉलेजियम के प्रकार्यण-संबंधी दिशा-निर्देशों के जरिये नियुक्ति-प्रक्रिया को
स्पष्ट एवं पारदर्शी भी बनाया गया और इसकी वैधानिकता के परीक्षण के विकल्प को भी
खुला रखा गया।
नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट
में चुनौती:
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर
करते हुए प्रशांत भूषण ने इस नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी कि:
1. थॉमस का नाम केरल के पामोलीन तेल आयात घोटाले(2002)
की चार्जशीट में आ चुका है और इस मामले में तो बाकायदा उन पर मुक़दमा चल रहा था, इसलिए
उनकी सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी संदेह के घेरे में है।
2. थॉमस कुछ समय पहले तक दूरसंचार मंत्रालय में टेलिकॉम
सचिव रहे थे और 2 जी
स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल होने के आरोप भी उन पर लगे हैं। ऐसी स्थिति में इस
बात को लेकर संदेह है कि वे इस मामले में होनेवाले सीवीसी के रूप में इस मामले में
चलने वाले जाँच की प्रक्रिया की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित कर पायेंगे
और उसकी निगरानी के दायित्व का निर्वाह कर पायेंगे। इसीलिए उनकी नियुक्ति हितों के
टकराव के प्रश्न को भी जन्म देती है।
3. विपक्ष
की नेता सुषमा स्वराज ने थॉमस के नाम पर आपत्ति जताते हुए इस नियुक्ति के लिए अपनी
सहमति देने से इन्कार किया, फिर भी उनकी आपत्ति एवं विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री
ने थॉमस
को सीवीसी
नियुक्त किया।
इसी आलोक में सर्वोच्च अदालत ने यह सामान्य
दिशा-निर्देश दिया कि:
1. प्रक्रिया की विधि सम्यकता अपेक्षित: नियुक्ति-प्रक्रिया
के दौरान विधि द्वारा स्थापित
प्रक्रिया का अनुपालन ही पर्याप्त नहीं है, वरन् उसका विधि सम्यक् होना भी
अपेक्षित है।
2. संस्थागत सत्यनिष्ठा (Institutional Integrity) कहीं अधिक
महत्वपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नियुक्ति-प्रक्रिया के दौरान जिस
व्यक्ति के नाम की अनुशंसा की जा रही है, उसकी व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा (Individual
Integrity) तो महत्वपूर्ण है ही, पर
इसके साथ संस्थागत सत्यनिष्ठा (Institutional Integrity) को भी आम लोगों के हित
में अपेक्षित महत्व मिलना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि इसके निर्धारण
के लिए साक्ष्य मौजूद ही हों।
विशिष्ट रूप से
केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त के सन्दर्भ में दिशानिर्देश:
पी. जे. थॉमस के मामले में जहाँ
सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य दिशा-निर्देश जारी किये जो सीवीसी की नियुक्ति के साथ उन
सभी कार्यकारी पदों पर नियुक्ति के सन्दर्भ लागू होते हैं जिनके लिए कॉलेजियम
व्यवस्था को अपनाया है, वहीं सीवीसी के पद पर नियुक्ति के सन्दर्भ में कुछ विशिष्ट
दिशा-निर्देश भी जारी किये गए हैं। इन विशिष्ट दिशा-निर्देशों को निम्न
सन्दर्भों में देखा जा सकता है:
1. नियुक्ति हेतु सर्च पैनल का गठन: कॉलेजियम के
द्वारा जिन नामों पर विचार किया जाना है, उसकी शॉर्ट लिस्टिंग के लिए सर्च पैनल का
गठन किया जाए।
2. शॉर्ट लिस्टेड नामों के औचित्य को साबित करना:
सर्च पैनल के द्वारा जिन नामों की शॉर्ट
लिस्टिंग की गयी है, उसके औचित्य को साबित करना होगा और इससे सम्बद्ध प्रासंगिक
एवं अप्रासंगिक सभी प्रकार के दस्तावेज़ कॉलेजियम को उपलब्ध करवाने होंगे।
3. नियुक्ति हेतु विशिष्ट अर्हता का निर्धारण: वर्तमान
में मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर नियुक्ति हेतु किसी भी प्रकार की विशिष्ट
अर्हता का निर्धारण नहीं किया गया है, पर यदि इसके लिए किसी भी प्रकार की विशिष्ट
अर्हता का निर्धारण किया जाता है, इसके लिए युक्तियुक्त कारण बतलाये जाएँ।
4. नियुक्ति-प्रक्रिया को नौकरशाहों तक सीमित न रखना: यदि
इसके लिए किसी भी प्रकार की विशिष्ट अर्हता की ज़रुरत नहीं है और इसके लिए स्पष्ट
कारण नहीं हैं, तो भविष्य में मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर नियुक्ति के दायरे को
केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा(IAS) के अधिकारियों तक सीमित न रखा जाय।
इसके दायरे का विस्तार करते हुए इसे अन्य सेवाओं से सम्बद्ध ईमानदार एवं निष्ठावान
व्यक्तियों के लिए भी खोला जाना चाहिए। इसी आधार पर यह कहा जा रहा है कि इस पद के लिए
किसी के द्वारा भी आवेदन किया जा सकता है, इसके लिए आवेदनकरता का लोकसेवक होना
जरूरी नहीं है।
5.
कॉलेजियम के सदस्यों को
वीटो का अधिकार नहीं: अपने इस निर्णय में सर्वोच्च अदालत ने
यह स्पष्ट किया कि विपक्ष के नेता सहित कॉलेजियम के किसी भी सदस्य को 'वीटो'
का अधिकार तो नहीं दिया जा सकता है।
6.
असहमति का कारण और
असहमत सदस्य की आपत्तियों का
निराकरण अपेक्षित: यदि वे किसी सदस्य के नाम पर असहमत हैं या किसी नाम
पर उन्हें आपत्ति है, तो उसे उसके पर्याप्त कारण बतलाने चाहिए। यदि कॉलेजियम का
बहुमत उस असहमति से सहमत नहीं है, तो उसे उन आपत्तियों का निराकरण करते हुए
अपने निर्णय का औचित्य साबित करना होगा। स्पष्ट है कि कॉलेजियम के बहुमत को
असहमत सदस्य की आपत्तियों को दरकिनार करने की बजाय ध्यान में रखना होगा और यदि
आपत्तियों के बावजूद नियुक्ति होती है, तो बहुमत को इसका निराकरण करना होगा।
7.
नियुक्ति-प्रक्रिया को
स्पष्ट एवं पारदर्शी बनाना: स्पष्ट है कि सुप्रीम
कोर्ट के दिशा-निर्देश के जरिये नियुक्त-प्रक्रिया को स्पष्ट एवं पारदर्शी बनाने
की कोशिश की गयी है और यह सुनिश्चित किया गया है कि चयन-समिति उचित एवं पारदर्शी
तरीके से शॉर्ट लिस्टेड नामों पर विचार करे।
8. चयन की वैधानिकता का परीक्षण संभव: अपने निर्णय में
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायालय
के द्वारा चयन की वैधानिकता का परीक्षण किया जा सकता है। अगर इन
निर्देशों का अनुपालन नहीं होता है, तो नियुक्ति को रद्द करने की संभावनायें खुली
रहेंगी।
नियुक्ति-प्रक्रिया को
और प्रभावी बनाने हेतु सुझाव:
जिन पदों पर नियुक्तियों के लिए
कॉलेजियम व्यवस्था को स्वीकार किया गया है, उनके अबतक के अनुभवों के आलोक में
कॉलेजियम एवं नियुक्ति-प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाये जाने के सन्दर्भ में
निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं:
1. कॉलेजियम
का आधार व्यापक हो,
2. यह
सुनिश्चित किया जाय कि इसमें सरकार का बहुमत न हो,
3. अनुभव
को अपेक्षित महत्व दिया जाए एवं इसे इस पद पर नियुक्ति हेतु अत्यावश्यक शर्त के
रूप में देखा जाए, और
4. सिर्फ
उन्हीं नामों पर विचार किया जाए जिनके लिए सीवीसी एवं वीसी के रूप में न्यूनतम तीन
साल का कार्यकाल मिले।
विश्लेषण:
दरअसल भ्रष्टाचार
के विरुद्ध लड़ाई में केन्द्रीय सतर्कता आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण एवं निर्णायक
है क्योंकि यह न केवल भ्रष्टाचार से सम्बंधित तमाम शिकायतों को स्वतः संज्ञान लेने
में समर्थ है, वरन् भ्रष्टाचार प्रतिषेध अधिनियम(PCA),1985 के तहत् दर्ज मामलों
में सीबीआई की निगरानी की जिम्मेवारी भी इसके ऊपर है। इसीलिए सीबीआई की
क्रियाप्रणाली की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि केन्द्रीय
सतर्कता आयोग(CVC) की कमान किसके हाथों में रहती है। यही कारण है कि हर सरकार
इस पद पर अपने मनपसंद व्यक्ति को बैठना चाहती है, भले ही इससे आयोग की विश्वसनीयता
से ही क्यों न समझौता करना पड़े। इसी आलोक में देखें, तो अक्टूबर,2018 में सीबीआई
के आतंरिक विवाद में जिस तरह मुख्य सतर्कता आयुक्त का पूर्वाग्रहपूर्ण व्यवहार रहा
है, जिस तरह उन्होंने सीबीआई निदेशक की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए विशेष
निदेशक के रूप में राकेश अस्थाना की नियुक्ति से सम्बंधित फाइल को क्लीयरेंस दिया,
इस विवाद को समय रहते सुलझाने की दिशा में पहल करने की बजाय तूल लेने दिया और जिस
तरह सीबीआई निदेशक के खिलाफ आरोप लगाते हुए उन्हें छुट्टी प भेजे जाने के फाइल को
मंजूरी दी, उसने एक बार फिर से सरकार के लिए मुख्य सतर्कता
आयुक्त
की राजनीतिक उपयोगिता सिद्ध करते हुए उनकी नियुक्ति को लेकर उठने वाले प्रश्न को
प्रासंगिक बना दिया है।
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