(60-62)वीं बिहार लोक सेवा
आयोग (मुख्य) परीक्षा: बदलता पैटर्न
बीपीएससी का बदलता
ट्रेंड
इस
आलेख का पूरा विश्लेषण इस निष्कर्ष पर पहुँचाता है कि अगर हम प्रश्नों के बदलते
हुए पैटर्न के आलोक में छात्रों को तीन चीजों पर ध्यान देने की ज़रुरत है:
1. एप्लीकेशन
2. अपडेशन
3. इन्टर-डिसिप्लिनरी एप्रोच
इन
तीन शब्दों के परिप्रेक्ष्य में बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा के लिए सामान्य अध्ययन-संबंधी
ज़रूरतों को आसानी से पूरा किया जा सकता है। इसीलिए अगर आज आप पारंपरिक पद्धति से
मुख्या परीक्षा की तैयारी करते हैं और सेलेक्टिव एप्रोच के साथ आगे बढ़ते हैं, तो
विश्वास करें मुख्य परीक्षा में मुश्किलें आने जा रही हैं। इसलिए अगर आप अपनी
तैयारी को लेकर गंभीर हैं और सफल होना चाहते हैं, तो बदलते हुए पैटर्न के अनुरूप
बदलने की कोशिश करें; सफलता आपके चरण चूमेगी।
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बिहार लोक सेवा आयोग ने
(60-62)वीं लोक सेवा (मुख्य) परीक्षा,2018 के पैटर्न में बदलाव की दिशा में
पहल की थी। नये पैटर्न के अंतर्गत सामान्य अध्ययन के भारांश को दोगुना किया गया और
वैकल्पिक विषय के भारांश को कमकर आधा कर दिया गया। इससे इस बात की उम्मीद की जा
रही थी कि नये पैटर्न के अंतर्गत अंतिम रूप से चयन में वैकल्पिक विषय(300
अंक) की तुलना में सामान्य अध्ययन(600 अंक) की
भूमिका पहले की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जायेगी। इससे इस बात के भी
संकेत मिल रहे थे कि छात्रों से आयोग की अपेक्षा सामान्य अध्ययन खंड पर विशेष
ध्यान देने की होगी। इस आलोक में मैंने दो अपेक्षाएँ व्यक्त की थी:
1.
प्रश्नों की संख्या
बढ़ने की, और
2.
प्रश्नों की प्रकृति
में बदलाव की।
लेकिन, अप्रैल,2018 में
आयोजित मुख्य परीक्षा में प्रश्नों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं हुआ और इसीलिए
यह धारणा बनती हुई दिखाई पड़ी कि पुराना पैटर्न ही बना रहा, जबकि वास्तविकता ऐसी
नहीं है। वास्तविकता यह है कि प्रश्नों की संख्या के अपरिवर्तित रहने के बावजूद
प्रश्नों की प्रकृति में परिवर्तन के संकेत मिलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि
परिवर्तन के ये संकेत 60-62वीं मुख्य परीक्षा के प्रश्न-पत्रों में ही मिलते हैं।
दरअसल परिवर्तन के संकेत 53-55वीं मुख्य परीक्षा से ही मिलने लगते
हैं जो समय बीतने के साथ तेज होते चले गए। 60-62वीं मुख्य परीक्षा के लिए बीपीएससी
के द्वारा सिलेबस को अपरिवर्तित रखते हुए भी एग्जाम-पैटर्न में परिवर्तन किये गए
और आब, जबकि नए एग्जाम-पैटर्न के अंतर्गत मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्न हमारे
सामने हैं, आवश्यकता इस बात की है कि मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन खंड के
प्रश्न-पत्र हमारे सामने हैं, इसके आलोक में पूछे गए प्रश्नों की प्रकृति और इसके
रुझानों पर एक बार फिर से विचार किया जाए।
भाग 1: भारत एवं बिहार का इतिहास, कला एवं संस्कृति
प्रश्नों के रुझानों
में आनेवाले बदलाव और उनका विश्लेषण:
60-62वीं मुख्य परीक्षा
हेतु प्रश्नों के रुझानों में संभावित बदलावों की इशारा करते हुए हमने (56-59)वीं संयुक्त प्रवेश (मुख्य) परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों का विश्लेषण
करते हुए इस ओर इशारा किया गया कि “आनेवाले समय में प्रश्नों की प्रकृति में तेज़ी
से बदलाव की संभावना है।” इस क्रम में इतिहास, कला एवं संस्कृति से सम्बद्ध
विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’
के प्रश्न पर तेज़ होते बहस की पृष्ठभूमि में इस बात की सम्भावना
व्यक्त की थी कि गाँधी, नेहरु और टैगोर से व्यक्तित्व एवं विचारधारा-आधारित
प्रश्नों की संख्या बढ़ सकती है। जहाँ (56-59)वीं मुख्य
परीक्षा में यहाँ से दो प्रश्न पूछे गए थे:
1. राष्ट्रवाद
को परिभाषित कीजिये. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे किस प्रकार परिभाषित किया?
2. आधुनिक
भारत के निर्माण में नेहरु की भूमिका की समीक्षा कीजिये।
वहीं 60-62वीं मुख्य
परीक्षा में यहाँ से तीन प्रश्न पूछे गए:
3. “गाँधी
की रहस्यात्मकता में मौलिक विचारों का, दाँव-पेचों की सहज प्रवृति और लोक-चेतना
में अनोखी पैठ के साथ अनोखा मेल शामिल है।” व्याख्या कीजिये।
4. बंगला
साहित्य और संगीत में रविन्द्रनाथ टैगोर के योगदान का मूल्यांकन कीजिये।
5. जवाहर
लाल नेहरू की विदेश-नीति के प्रमुख अभिलक्षणों का परीक्षण कीजिये।
जहाँ (56-59)वीं मुख्य
परीक्षा के दौरान पूछे गए प्रश्न सामान्य प्रकृति के हैं, वहीं (60-62)वीं मुख्य
परीक्षा के दौरान पूछे गए प्रश्न विशिष्ट प्रकृति के एवं कहीं अधिक गहराई में जाकर। इससे
इस बात का संकेत मिलता है कि आगे भी इस टॉपिक के महत्वपूर्ण बने रहने की सम्भावना
है और इसलिए इसके गहन अध्ययन की जरूरत है, अन्यथा प्रश्न की माँग को पूरा कर पाना
और उसके साथ न्याय कर पाना मुश्किल होगा।
इसके अलावा (60-62)वीं लोक सेवा (मुख्य) परीक्षा,2018 में जो
तीन प्रश्न इस खंड से पूछे गए, वे पारंपरिक प्रकृति के ऐसे प्रश्न हैं जिनके बारे
में कोई भी अनुमान लगा सकता था:
1. 1942 ई. के भारत
छोड़ो आन्दोलन के दौरान बिहार में जनभागीदारी का वर्णन करें।
2. बिहार
में 1813 से 1947 तक के दौरान पाश्चात्य शिक्षा के विकास की विवेचना करें।
3. मौर्य-कला
पर प्रकाश डालिए और बिहार में इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।
पर, अगर प्रश्नों की
प्रकृति में इन बदलावों के बावजूद परीक्षार्थियों को विशेष कठिनाई नहीं हुई, तो
इसलिए कि इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या चार से बढाकर छह कर दी गयी
जिसके कारण उनके पास पर्याप्त विकल्प थे। अगर ये विकल्प नहीं होते, या फिर इन
विकल्पों को हटा दिया जाय, परीक्षार्थियों की
परेशानियाँ बढ़ जातीं, या फिर बढ़ जायेंगी। इसीलिए न तो इन बदलावों को हल्के
में लिया जा सकता है और ना ही इन्हें हल्के में लिया जाना चाहिए।
भाग 2: भारतीय राजव्यवस्था
बीपीएससी के द्वारा आयोजित मुख्य
परीक्षा में सामान्य अध्ययन के विभिन्न खण्डों से पूछे जाने वाले प्रश्नों में यदि
किसी खंड ने सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया है, तो वह है भारतीय राजव्यवस्था खंड।
इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों और उनके
रूझानों पर अगर गौर करें, तो वे सामान्यतः भारतीय संविधान एवं भारतीय राजव्यवस्था
की व्यापक समझ के साथ-साथ एप्लीकेशन पर आधारित होते हैं। कई बार उत्कृष्टता
की दृष्टि से इस खंड के प्रश्न संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा पूछे जाने वाले
प्रश्नों को भी चुनौती देते प्रतीत होते हैं। साथ
ही, चूँकि इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति आरम्भ से ही
गतिशील और एप्लीकेशन-आधारित रही है, इसीलिए इन्हें रेस्पोंड करना किसी चुनौती से
कम नहीं रहा है। इसके लिए निरंतर अपडेशन की ज़रूरत होती है। इस खंड की तैयारी करते वक़्त इन
पहलुओं के साथ-साथ इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कई बार ऐसे प्रश्न
बिहार के विशेष सन्दर्भ से जोड़कर पूछे जाते हैं। इसीलिए मुख्य परीक्षा में शामिल
होने वाले छात्रों की तैयारी की रणनीति भी इसी के परिप्रेक्ष्य में निर्धारित होनी
चाहिए।
(60-62)वीं मुख्य
परीक्षा के प्रश्नों का ट्रेंड-विश्लेषण:
इस आलोक में अगर (60-62)वीं
मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों पर विचार किया जाय, तो महिला सशक्तीकरण,
शराबबंदी और दहेजबंदी के आलोक में राज्य के नीति-निर्देशक
तत्वों की बढ़ती अहमियत की पृष्ठभूमि में इस भाग से प्रश्नों का पूछा जाना
स्वाभाविक है:
1.
राज्य की नीति के
निर्देशक तत्व पवित्र घोषणा-मात्र नहीं हैं, बल्कि राज्य की नीति के मार्ग-दर्शन
के लिए सुस्पष्ट निर्देश निर्देश हैं। व्याख्या कीजिये और बताइए कि वे
व्यवहार में कहाँ तक लागू किये गए हैं?
वैसे भी, BPSC का रुझान हमेशा से
मूलाधिकार खंड और नीति-निर्देशक तत्व खंड से प्रश्न पूछे जाने की ओर रहा है।
लेकिन, इस साल पूछे गए जिन प्रश्नों ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है, वे
हैं:
2.
हिंदुत्व की अवधारणा का
परीक्षण कीजिये। क्या यह धर्मनिरपेक्षवाद का विरोधी है?
3.
भारतीय राजनीति के
प्रमुख दबाव-समूहों की पहचान कीजिये और भारत की राजनीति में उनकी भूमिका का
परीक्षण कीजिये।
ये दोनों प्रश्न भले ही
पारंपरिक प्रकृति के लगते हों, पर ये समसामयिक परिदृश्य से कहीं अधिक प्रभावित हैं।
इनमें भी हिंदुत्व की अवधारणा और धर्मनिरपेक्षता के अंतर्संबंध पर आधारित प्रश्न
तो व्यापक समझ की अपेक्षा रखते हैं। जहाँ हिंदुत्व की संकल्पना विशुद्ध रूप से एक
राजनीतिक संकल्पना है जो धर्मनिरपेक्षता की उस संकल्पना को चुनौती दे रही है जो
संविधान की मूल भावनाओं के साथ नाभिनाल-बद्ध है। इस हिंदुत्व को सन् 1995 में
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा परिभाषित हिंदुत्व से असम्बद्ध कर देखे जाने की ज़रुरत है।
इसी प्रकार दबाव-समूहों की भूमिका से सम्बंधित प्रश्न भले ही पारंपरिक लगते हों,
पर जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों के दौरान दक्षिणपंथी हिंदुत्व की ओर रुझान रखने
वाले संगठनों ने ऐसे मुद्दों को उठाने की कोशिश की है जो साम्प्रदायिक रुझान रखते
हैं और सामाजिक तनाव को बढ़ाते हुए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में सहायक हैं, उसकी
पृष्ठभूमि में ये प्रश्न पारंपरिक नहीं रह जाते हैं। इतना ही नहीं, पिछले डेढ़
दशकों के दौरान जैसे-जैसे सरकारों और शासन
पर कॉर्पोरेट शिकंजा मजबूत हुआ है, वैसे-वैसे एक्टिविज्म बढ़ता चला गया है और इसकी
पृष्ठभूमि में दलित, आदिवासी और किसान मुखर होते चले गए जिसने सरकारों पर दबाव
बनाते हुए उन्हें अपनी नीतियों पर पुनर्विचार के लिए विवश किया है। हाल में ट्रिपल
तलाक, बहु-विवाह और समान नागरिक संहिता के साथ-साथ अनु. 35A, अनु. 370 बहाने
सांप्रदायिक एजेंडे को थोपने की कोशिशों को इसके परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
इसीलिए इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में इस प्रश्न को रखकर देखे बगैर इसके साथ न्याय नहीं
किया जा सकता है। इस आलोक में देखें, तो गोरक्षा के नाम पर मॉब-लिंचिंग, दलितों
एवं मुसलमानों का इसका शिकार होना और इस पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का
निर्देश प्रश्न की दृष्टि से इस टॉपिक को महत्वपूर्ण बना देता है। इसी तरह का एक
प्रश्न 53-55वीं मुख्य परीक्षा के दौरान पूछा गया था:
4. भारतीय
संघीय व्यवस्था और केंद्र-राज्य के प्रशासनिक सम्बन्ध का राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी
परिषद (NCTC) के विशेष सन्दर्भ में वर्णन कीजिये।
इसी प्रकार 56-59वीं मुख्य परीक्षा के दौरान बिहार
के 2015 के विधानसभा चुनाव में जाति की भूमिका और वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा
बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन भी समसामयिक परिदृश्य से उठाये गए थे।
अगर इन प्रश्नों के आलोक में देखें, तो हाल में
15वें वित्त आयोग के गठन ने संघीय पहलुओं को लेकर जिस विवाद को जन्म दिया है, उसने
इस टॉपिक को महत्वपूर्ण बना दिया है। इसी
प्रकार दिल्ली सरकार बनाम् संघीय सरकार के विवादों के आलोक में दिल्ली उच्च
न्यायालय का निर्णय भी महत्वपूर्ण है और हाल में सरकारों के गठन या बर्खास्तगी की
पृष्ठभूमि में केंद्र-राज्य सम्बन्ध में उत्पन्न तनावों ने भी संघ-राज्य सम्बन्ध
को महत्वपूर्ण बना दिया है। इसीलिए इन टॉपिकों पर विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की
ज़रुरत है।
इस तरह से देखें, तो भारतीय राजव्यवस्था खंड से
पूछे गए चार में से तीन प्रश्न समसामयिक परिदृश्य से उठाये गए हैं। मतलब यह कि ऐसे खंड जो पारंपरिक प्रकृति वाले
प्रतीत होते हैं, उनके साथ भी तबतक न्याय नहीं किया जा सकता है जबतक आपने हाल में
घटी घटनाओं के आलोक में उसे देखने की कोशिश नहीं की हो। इसके अतिरिक्त इस खंड से
जो चौथा प्रश्न पूछा गया, वह पारंपरिक प्रकृति का था:
5. बिहार
की राजनीति में राज्यपाल की शक्तियों और वास्तविक स्थिति का वर्णन कीजिये।
इतना ही नहीं, इस बार करेंट सेक्शन
में मानवाधिकार और इसे सुनिश्चित करने के लिए बिहार सरकार के द्वारा किये जा रहे
प्रयासों पर भी प्रश्न पूछे गए:
6. मानवाधिकारों
से आप क्या समझते हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक
घोषणा,1948 पर प्रकाश डालिए। बिहार सरकार द्वारा पिछले एक दशक में
इन्हें बढ़ावा देने हेतु क्या प्रमुख प्रयास किये गए?
इस प्रश्न का सम्बन्ध भारतीय
राजव्यवस्था एवं संविधान खंड से जुड़ता है। यह इस खंड के बढ़ते दायरे और बीपीएससी के
द्वारा नए आयामों की तलाश की ओर भी इशारा करता है। हो सकता है कि यह आपवादिक रुझान
हो, पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।
भाग
3: भारतीय अर्थव्यवस्था
बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा
में भारतीय अर्थव्यवस्था खंड से प्रश्न सामान्य अध्ययन द्वितीय पत्र में भूगोल के
साथ पूछे जाते हैं। इस
दृष्टि से देखा जाय, तो भूगोल एवं अर्थव्यवस्था खंड से कुल मिलाकर चार प्रश्न पूछे
जाते हैं। लेकिन, वास्तव में अर्थव्यवस्था
खंड का महत्व उससे कहीं अधिक है, जितना यह दिखता है। कारण यह कि कई बार सामान्य अध्ययन प्रथम पत्र में करेंट सेक्शन के
अंतर्गत भी अर्थव्यवस्था से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। उदाहरण के रूप
में 60-62वीं मुख्य परीक्षा को लिया जा सकता है जिसमें करेंट सेक्शन के अंतर्गत दो प्रश्न अर्थव्यवस्था खंड से सम्बंधित थे। 53-55वीं मुख्य परीक्षा में भी 13वें वित्त आयोग और
विश्व व्यापर संगठन के कृषि करार पर दो प्रश्न करेंट सेक्शन के अंतर्गत पूछे गए थे।
प्रश्नों की प्रकृति:
जहाँ तक अर्थव्यवस्था खंड से पूछे जाने वाले
प्रश्नों की प्रकृति का प्रश्न है, तो कुछ समय पहले तक पारंपरिक प्रकृति वाले
प्रश्नों की ओर रुझान कहीं अधिक था, यद्यपि समसामयिक परिदृश्य से भी प्रश्न पूछे
जाते रहे हैं। ऐसे प्रश्न सामान्यतः कृषि, गरीबी,
बेरोजगारी और जनांकिकी से सम्बंधित होते थे। पर, हाल में समसामयिक परिदृश्य से
सम्बद्ध प्रश्नों को पूछने की प्रवृति तेज़ हुई है। यहाँ तक कि पारंपरिक प्रतीत होने वाले टॉपिकों से पूछे जाने वाले
प्रश्नों की प्रकृति में भी बदलाव देखे जा सकते हैं। उदाहरण के रूप में
60-62वीं मुख्य परीक्षा के दौरान पूछे गए बेरोजगारी से सम्बंधित इस प्रश्न को
देखें:
1. भारत में दीर्घकालिक रोजगार-नीति का मुख्य
मुद्दा रोजगार प्रदान करना नहीं, वरन् श्रम-शक्ति की रोजगार-क्षमता को बढ़ाना है। इस कथन का विवेचन गुणवत्तापूर्ण शिक्षण एवं प्रशिक्षण
के मार्फ़त ज्ञान एवं दक्षता के विकास के विशेष सन्दर्भ में कीजिये। देश में सन्
2000 के बाद क्षेत्रवार रोजगार-सृजन की प्रवृत्तियों एवं फलितार्थों को भी समझाइए।
इस प्रश्न का वैशिष्ट्य इस बात में भी है कि इसमें
बेरोजगारी एवं रोजगार-सृजन के प्रश्न को कौशल-विकास के प्रश्न से परोक्षतः सम्बद्ध
करके देखा गया है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि बिना
अपडेशन एवं बिना विस्तृत समझ के ऐसे प्रश्नों को टैकल कर पाना मुश्किल है।
इसी प्रकार 56-59वीं मुख्य परीक्षा के दौरान जनांकिकी से सम्बंधित इस प्रश्न को
देखें:
2. जनांकिकी लाभांश’ क्या है? आर्थिक
संवृद्धि पर इसके प्रभाव को स्पष्ट करें।
इसीलिए रुझानों में आने वाले इन बदलावों की अनदेखी
करते हुए तैयारी के लिए पारंपरिक पैटर्न और पारंपरिक रणनीति को अपनाना खतरे से
खाली नहीं है। हाँ, कृषि, वैश्वीकरण एवं WTO से सम्बंधित प्रश्न पारंपरिक प्रकृति
के ज़रूर रहे हैं, लेकिन यहाँ पर भी 60-62वीं मुख्या परीक्षा में पूछे गए इस प्रश्न
के जरिये बदलावों को सहज ही लक्षित किया जा सकता है:
3. भारतीय कृषि में संवृद्धि
एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिये। देश में उत्पादकता में सुधार
लाने और कृषि आय को बढ़ाने के उपाय भी सुझाइए।
इस प्रश्न के दूसरे हिस्से का सम्बन्ध कहीं-न-कहीं किसानों की आय
दोगुनी किये जाने के लिए चल रहे विमर्श से जाकर जुड़ता है। अगर परीक्षार्थी इस विमर्श से वाकिफ हैं, तो वे इस प्रश्न के साथ न्याय
कर पाने की स्थिति में होंगे, अन्यथा नहीं। लेकिन, अबतक क्षेत्रीय नियोजन, आयोजन
और वित्त आयोग से सम्बंधित जितने भी प्रश्न पूछे गए हैं, वे पारंपरिक प्रकृति के
भी हैं और डायनामिक प्रकृति के भी। इसलिए इन दोनों टॉपिकों को पारम्परिक रूप से भी
तैयार करने की ज़रुरत है और इनके अपडेशन की भी ज़रूरत है। साथ ही, इस खंड की तैयारी
करते वक़्त इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कई बार ऐसे प्रश्न बिहार के
विशेष सन्दर्भ से जोड़कर पूछे जाते हैं। इसीलिए मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले
छात्रों की तैयारी की रणनीति भी इसी के परिप्रेक्ष्य में निर्धारित होनी चाहिए।
60-62वीं मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के ट्रेंड-विश्लेषण:
जहाँ तक 60-62वीं मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के रुझानों का
प्रश्न है, यह अर्थव्यवस्था खंड के बढ़ते हुए दायरे
के साथ-साथ अपडेशन के बढ़ते हुए दबाव का भी संकेत लेकर आता है। अर्थव्यवस्था से सम्बंधित जो दो प्रश्न करेंट सेक्शन
में पूछे गए हैं, वे इसी तथ्य की ओर इशारा करते हुए आते हैं:
4. विमुद्रीकरण
योजना को स्पष्ट कीजिये। आपके विचारों में यह योजना किस हद तक सफल या असफल रही?
बिहार सरकार की शराब-प्रतिबन्ध नीति पर इसके क्या प्रभाव पड़े?
5. जी.एस.टी.
क्या है? भारत में इसके परिचय के पीछे क्या कारण थे? भारत की अर्थव्यवस्था एवं
मौद्रिक नीति पर इसके क्रियान्वयन से क्या लाभ एवं नुकसान हुए?
यहाँ पर विमुद्रीकरण से सम्बंधित
प्रश्न को जिस तरह बिहार सरकार की शराब-प्रतिबन्ध की नीति से सम्बद्ध किया गया है,
उसे तबतक नहीं समझा जा सकता है जबतक विमुद्रीकरण एवं शराब-प्रतिबन्ध की नीति की
समझ न हो और ज़मीनी धरातल पर इसके क्रियान्वयन से परीक्षार्थी वाकिफ न हों। इसी
प्रकार 60-62वीं मुख्य परीक्षा के दौरान अर्थव्यस्था खंड में सब्सिडी पर आधारित जो
प्रश्न पूछे गए हैं और यह अपेक्षा की गयी है कि परीक्षार्थी उसे हालिया
प्रवृत्तियों के परिप्रेक्ष्य में लिखें, उसका इशारा भी इसी ओर है:
6. भारत में सार्वजानिक
वस्तु-अनुदान, मेरिट वस्तु-अनुदान और नन-मेरिट वस्तु अनुदानों से आपका क्या
तात्पर्य है? देश में उर्वरक, खाद्य एवं पेट्रोलियम अनुदानों की समस्या तथा हाल ही
की प्रवृत्तियों को समझाइए।
इसी तरह 60-62वीं मुख्य परीक्षा के
दौरान विकेन्द्रीकृत नियोजन पर पूछे गए इस प्रश्न को देखें:
7. हाल की अवधि में पंचायत
व्यवस्था के सशक्तीकरण के माध्यम से विकेन्द्रित नियोजन भारत की आयोजन का
केंद्र-बिंदु रहा है। इस कथन को समझाते हुए समन्वित प्रादेशिक विकास-नियोजन की एक
रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये। संविधान के 73-74वें संशोधन के बाद भारत में विकेन्द्रित
नियोजन के परिदृश्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
इस प्रश्न का सम्बन्ध सीधे-सीधे नीति
आयोग के गठन और इसकी पृष्ठभूमि में विकेन्द्रीकृत आयोजन के एजेंडे से जाकर जुड़ता
है जिसके लिए उपयुक्त संस्थागत मैकेनिज्म का विकास न हो पाना पिछले ढ़ाई दशकों के
दौरान स्थानीय स्वशासन की दिशा में की गयी पहलों की विफलता का स्मारक भी है और
वर्तमान सरकार की विफलता का स्मारक भी। यहाँ पर विकेन्द्रीकृत
आयोजन को जिस प्रकार समन्वित प्रादेशिक विकास-नियोजन
से सम्बद्ध किया गया है, वह इन्टर डिसिप्लिनरी
एप्रोच के विकास की आवश्यकता की ओर इशारा करता है जिसके बिना प्रश्न की
ज़रूरतों को पूरा कर पाना मुश्किल होगा।
भाग
4: भारत का भूगोल, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
जहाँ तक भूगोल और पर्यावरण खंड का प्रश्न है, तो यह
खंड एक ओर अर्थव्यवस्था के दबाव से और दूसरी ओर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के दबाव
से पृष्ठभूमि में चला गया है। जहाँ भूगोल से सम्बंधित
प्रश्नों को अर्थव्यवस्था के साथ सामान्य अध्ययन के दूसरे पत्र में खंड ख के
अंतर्गत रखा गया है, वहीं पर्यावरण से सम्बंधित प्रश्नों को तो विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी के सतह समाहित ही कर दिया गया है। इस खंड से कुल-मिलाकर औसतन चार प्रश्न तो पूछे ही जाते हैं। इसीलिए
इस खंड को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
प्रश्नों की प्रकृति:
इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति पर अगर गौर किया जाय,
तो हम पाते हैं कि सामान्यतः ये प्रश्न सामान्यतः मानसून, जलवायु-परिवर्तन,
पर्यावरण-संरक्षण, सतत विकास, प्राकृतिक विविधता और भारतीय विकास, क्षेत्रीय
नियोजन, जल-संसाधन प्रबंधन,
ऊर्जा-सुरक्षा, आपदा-प्रबंधन, जनांकिकी, शहरीकरण-प्रबंधन, कचरा-प्रबंधन, कृषि आदि
टॉपिकों से रहे हैं। इन टॉपिकों को करते वक़्त आवश्यकता इस बात की है
कि इन्हें बिहार के विशेष सन्दर्भ में तैयार किये जाने की ज़रुरत है। साथ ही,
इसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका को भी विशेष तौर पर किया जाना चाहिए।
विकास
एवं शहरीकरण-प्रबंधन से लेकर संसाधन-प्रबंधन और पर्यावरण-संरक्षण तक:
पिछले कुछ दशकों के दौरान
आर्थिक विकास के मद्देनज़र संसाधनों के अंधाधुंध दोहन, शहरीकरण की तेज होती
प्रक्रिया और शहरीकरण-प्रबंधन के प्रति उदासीनता ने प्रदूषण की समस्या को गंभीर
बनाया है और हालत यहाँ तक पहुँच चुके हैं कि दिल्ली सहित भारत के तमाम बड़े शहरों
की हवाओं में ज़हर घुल चुके हैं और वे साँस लेने के लायक भी नहीं रह गए हैं क्योंकि
अक्सर हम अपनी साँसों के जरिये ऑक्सीजन के साथ ज़हर ले रहे हैं। सन् 2015 की सर्दियों में देश की राजधानी
दिल्ली में वायु-प्रदूषण अत्यंत खतरनाक स्तर पर पहुँच गया और मजबूरन दिल्ली सरकार
को ऑड-इवन का फ़ॉर्मूला पेश करना पड़ा और इसके जरिये प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित
करनी पड़ी। यही वह पृष्ठभूमि है जिसमे हमारी पर्यावरणीय
चिंताएँ बढ़ती चली गईं और तदनुरूप बिहार के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग
एवं अन्य राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षाओं का इसकी ओर ध्यान भी। इसलिए अगर पिछले कुछ
वर्षों के दौरान बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा भूगोल एवं पर्यावरण खंड से पूछे
जाने वाले के रुझानों पर गौर किया जाय, तो शहरीकरण-प्रबंधन और पर्यावरणीय प्रदूषण
पर लगातार ऐसे प्रश्न पूछे गए हैं जो इसके बारे में सम्पूर्ण समझ की माँग करते हैं।
प्रदूषण पर आधारित ऐसा ही प्रश्न 48-52वीं बीपीएससी
मुख्य परीक्षा के दौरान पूछा गया:
1.
पर्यावरण-प्रदूषण के क्या कारण हैं?
पर्यावरण-प्रदूषण के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास लिखिए।
इस चुनौती का दायरा मानव-जीवन के लिए प्रतिकूल
होती परिस्थितियों तक सीमित नहीं है, वरन् यह वर्तमान आर्थिक विकास के साथ-साथ
भविष्य की विकास संभावनाओं को भी प्रतिकूलतः प्रभावित करने में सक्षम है। 47वीं
बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान पूछा गया यह प्रश्न यदि विकास के सन्दर्भ में
उसके निहितार्थों की ओर इशारा करता है और भविष्य में उसके दुष्परिणामों से परिचित
होने की अपेक्षा करता है:
2.
पर्यावरण-प्रदूषण और देश के आर्थिक
विकास के बीच में क्या सम्बन्ध है? ये दर्शाइए कि पर्यावरण संरक्षण नियमों का
‘तथाकथित’ विकास के लिए त्याग अत्यंत कष्टदायी होगा।
तो 56-59वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पर्यावरण-संरक्षण और सतत विकास के अंतर्संबंधों पर आधारित
प्रश्न पूछा गया जो भविष्य के सन्दर्भ में इसके निहितार्थों की ओर इशारा करता है:
3.
‘पर्यावरण संरक्षण’ तथा ‘धारणीय
विकास’ (Sustainable Development) में क्या सम्बन्ध है? भारत में आर्थिक संवृद्धि
तथा पर्यावरण अध:पतन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
इस पृष्ठभूमि में 60-62वीं बीपीएससी मुख्य
परीक्षा में पूछा गया यह प्रश्न इस ओर इशारा करता है कि आज इस चुनौती से निबटने के
लिए सरकार के साथ-साथ नागरिकों के स्तर पर गंभीर पहल की अपेक्षा है:
4.
भारत के लिए प्रदूषण गंभीर समस्या बन गया है। इसके कारणों की पहचान
कीजिये एवं इंगित कीजिये कि शासन के द्वारा कौन-से अनिवार्य कदम उठाये जाने चाहिए
और जनता के द्वारा कौन-से स्वैच्छिक कदम उठाये जाने चाहिए।
प्रदूषण की समस्या का सम्बन्ध शहरीकरण-प्रबंधन से भी जाकर जुड़ता है, यद्यपि इसका दायरा यहीं तक
सीमित नहीं है। इसी आलोक में 53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा
में शहरीकरण-प्रबंधन पर सीधे-सीधे प्रश्न पूछा गया और परीक्षार्थियों से यह
अपेक्षा की गयी कि वे इसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका को रेखांकित करें:
5. भारत के अधिकांश शहर तथा कस्बे, धूल भरी टूटी सड़कों, बड़े-बड़े कूड़े के
ढेरों और अस्त-व्यस्त यातायात से भर चुके हैं। वैज्ञानिक
प्रबंधन तथा तकनीकी का इन समस्याओं के निदान में क्या योगदान हो सकता है?
इस प्रश्न से यह स्पष्ट है कि शहरीकरण-प्रबंधन की
चुनौतियाँ पर्यावरणीय सन्दर्भों तक सीमित नहीं है। इसका सम्बन्ध कचरा-प्रबंधन (Solid Waste Management) से जाकर भी
जुड़ता है और हाल के वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक कचरा-प्रबंधन (e-Waste Management)
गंभीर चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया है। इसी आलोक में 48-52वीं बीपीएससी
मुख्य परीक्षा के दौरान कचरा-प्रबंधन पर यह
प्रश्न पूछा गया:
6. भारत
में कचरे का प्रबंधन पर्यावरण प्रदूषण के क्या कारण हैं? पर्यावरण संरक्षण के लिए
अंतर्राष्ट्रीय प्रयास लिखिए।
लेकिन, कचरा-प्रबंधन
चुनौती ही नहीं, अवसर भी है। कचरे के जरिये ऊर्जा-उत्पादन की संभावनाओं ने इस
ओर इशारा किया है कि अगर सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की रणनीति अमल में लायी जाय, तो कचरा-प्रबंधन की चुनौती को अवसर में तब्दील किया
जा सकता है और ऐसी स्थिति में यह हमारी बढ़ाती हुई ऊर्जा आवश्यकताओं को भी पूरा
करने में समर्थ है। 48-52वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा गया यह
प्रश्न इसी ओर इशारा करता है:
7. भारत
में कचड़े के प्रबंधन एवं उनसे उत्पन्न उर्जा की सम्भावनाओं पर एक लेख लिखे।
यहाँ पर इस बात को भी नोटिस में लिया जाना चाहिए
कि पर्यावरण-प्रदूषण और कचरा-प्रबंधन, इन दोनों ही विषयों पर पूछे गए प्रश्नों को भारत के विशेष सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये
जाने वाले प्रयासों एवं इस सन्दर्भ में होने वाली प्रगति से सम्बद्ध
किया गया है।
लेकिन, प्रदूषण का
दायरा न तो शहरी क्षेत्रों तक सीमित है और न ही वायु-प्रदूषण तक। इसके लिए विकास की वे रणनीतियाँ भी जिम्मेवार
हैं जिन्हें भारत ने पिछले साथ-सत्तर वर्षों के दौरान अपनाया है। इसीलिए आज देश जिन पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनके
लिए भारतीय ग्रामीण क्षेत्र और कृषि भी कहीं कम जिम्मेवार नहीं है। यहाँ पर इशारा हरित क्रांति की
ओर है जिसने संसाधन-प्रबंधन की चुनौतियों
को कहीं अधिक गंभीर एवं जटिल बनाया है। इसीलिए आज जब दूसरी एवं तीसरी हरित क्रांति
की चर्चा चल रही है, तो यह अपेक्षा की जा रही है कि पहली हरित क्रांति के अनुभवों
से सीख ली जाय और यह सुनिश्चित किया जाय कि भविष्य में कृषि-विकास की ऐसी रणनीति
अमल में लाई जाय, जो सतत एवं पर्यावरण-अनुकूल खेती में सहायक हो। इन्हीं बातों को
ध्यान में रखते हुए 48-52वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान यह प्रश्न पूछा गया:
8.
हरित-क्रांति ने भारत में अनाज
उत्पादन को तो बढाया है, किन्तु इसने अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। इसकी व्याख्या उदाहरण सहित करें।
इस हरित-क्रांति ने जिन फसलों की खेती को
प्रोत्साहित किया, वे फसलें जल-सघन थीं, अर्थात् वे चावल और गेहूँ जैसी ऐसी फसलें
थीं, जिनके लिए अपेक्षाकृत बहुत अधिक पानी की ज़रुरत होती है। इसके साथ-साथ सस्ती बिजली, सब्सिडाइज्ड डीजल और मुफ्त भूमिगत जल ने जल-संसाधनों के
अति-दोहन को संभव बनाया और इसके परिणामस्वरूप जल में लवणता की समस्या भी उत्पन्न
हुई और इसने जलाभाव की स्थिति को भी जन्म दिया। बचा-खुचा काम सस्ते रासायनिक उर्वरकों
और इस पर बढ़ते जोर ने कर दिया। इसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल के स्तर में भी गिरावट
आयी और यह प्रदूषित होता चला गया। फलतः यह पीने लायक नहीं रहा गया। निश्चय ही इसने
जल-संसाधन प्रबंधन के प्रश्न को महत्वपूर्ण बना दिया और यही वह पृष्ठभूमि है
जिसमें 56-59वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में यह प्रश्न
पूछा गया:
9. अन्य देशों की तुलना में, भारत अलवण जल-संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक
परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है?
वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इस समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है?
व्याख्या करें।
संक्षेप में कहें, तो संसाधन-प्रबंधन और
पर्यावरण-संरक्षण की चुनौती समय के साथ गंभीर होती जा रही है और इसी के साथ
प्रश्नों का रुझान भी इसकी ओर बढ़ता चला जा रहा है।
क्षेत्रीय
नियोजन और बिहार की विकास-संभावनाएँ:
भारत एवं बिहार,
दोनों के ही सन्दर्भ में देखा जाय, तो प्राकृतिक संसाधनों, विकास संभावनाओं और
इनके दोहन के क्रम में इनके समक्ष मौजूद चुनौतियों की दृष्टि से यहाँ पर पर्याप्त
विविधता है। अब अगर प्रवृति के रूप में देखा जाय, तो
दोनों के विकास की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध
संसाधनों और उनके दोहन के रास्ते में मौजूद चुनौतियों के आलोक में उपयुक्त रणनीति
के निर्धारण की ज़रुरत है। बिहार के सन्दर्भ में तो यह प्रश्न और भी अमहत्वपूर्ण हो
जाता है क्योंकि यह न केवल स्थलबद्ध राज्य है, वरन् यह निरंतर जनसंख्या के उच्चतर
दबाव और मानसून की अनिश्चितता के साथ-साथ बाढ़ एवं सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं को
भी झेलने के लिए अभिशप्त है। यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें इसके प्राकृतिक वैविध्य एवं
इसके समक्ष मौजूद चुनौतियों के आलोक में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग
विकास-रणनीति को निर्धारित किये जाने और उसको अपनाये जाने की जरूरत है। इस ज़रुरत
के कारण क्षेत्रीय नियोजन का प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है और इसमें सहायक है
विकेंद्रीकृत नियोजन। 48-52वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान यहीं से प्रश्न
उठाते हुए पूछा गया:
1. प्राकृतिक
विविधताओं ने भारत में असमान विकास को
जन्म दिया है। इसकी व्याख्या उचित उदाहरण सहित दे।
इसी की पृष्ठभूमि में 53-55वीं बीपीएससी मुख्य
परीक्षा में रीजनल प्लानिंग से दो प्रश्न पूछे गये:
2. माइक्रो-लेवल
प्लानिंग ने भारत में आर्थिक विकास प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है। उचित उदाहरण सहित इसका आलोचनात्मक
परीक्षण कीजिये।
3. भारत
में 2011 की जनगणना के अस्थायी
(Provisional) नतीजों ने भारत की घटती हुई जनसंख्या दर और लिंगानुपात को प्रदर्शित
किया है। यह किस प्रकार से भारत में प्रादेशिक नियोजन को प्रभावित करेगा?
ध्यातव्य है कि जनगणना,2011 की रिपोर्ट किसी खास
पैटर्न की ओर इशारा नहीं करती है। इससे मिले रुझानों में अंतर्राज्यीय ही नहीं,
अन्तर-राज्यीय विषमता भी देखने को मिलती है, सन्दर्भ चाहे जनसंख्या वृद्धि-दर में
कमी का हो, या फिर लिंगानुपात का। इसीलिए ये रुझान प्रादेशिक नियोजन की अहमियत
बाधा देते हैं। इसी प्रकार 56-59वीं
बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान एक बार फिर से क्षेत्रीय नियोजन पर यह प्रश्न
पूछा गया और इस बार यह प्रश्न बिहार एक विशेष सन्दर्भ में पूछा गया है:
4. क्षेत्रीय
विकास से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहाँ तक
सफल रहा?
59-62वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में समसामयिकी
खंड में भी इससे सम्बंधित एक प्रश्न पूछे गए:
5. हाल की अवधि में पंचायत
व्यवस्था के सशक्तीकरण के माध्यम से विकेन्द्रित नियोजन भारत की आयोजन का
केंद्र-बिंदु रहा है। इस कथन को समझाते हुए समन्वित प्रादेशिक विकास-नियोजन की एक
रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये। संविधान के 73-74वें संशोधन के बाद भारत में विकेन्द्रित
नियोजन के परिदृश्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
मतलब यह कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्षेत्रीय नियोजन एक ऐसे टॉपिक
के रूप में उभरकर सामने आया है जहाँ से लगातार प्रश्न पूछे जा रहे हैं और इसीलिये
इस टॉपिक को गहराई में जाकर विशेष रूप से तैयार करना चाहिए। हो सकता है कि 63वीं मुख्य परीक्षा में यहाँ से एक बार फिर से प्रश्न
पूछे जाएँ और वह भी नीति आयोग के विशेष सन्दर्भ में।
प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त एवं
त्रस्त बिहार:
आपदायें दो तरह की
होती हैं: प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इन दोनों में
कोई अंतर्संबंध नहीं है क्योंकि एक बिंदु पर आकर मानवजनित कारण प्राकृतिक आपदाओं
के लिए उत्प्रेरक भी होते हैं और इसके प्रभाव को विध्वंसक भी बनाते है। इस सन्दर्भ
में हाल में केरल में आयी बाढ़ को देखा जा सकता है जिसका सम्बन्ध शहरीकरण-प्रबंधन
से भी आजकर जुड़ता है। बिहार के सन्दर्भ में देखा जाय, तो बिहार दोनों ही स्तर पर
चुनौतियों का समाना कर रहा है।
पारंपरिक दृष्टि से बिहार
प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से तो एक संपन्न राज्य रहा है; लेकिन इन प्राकृतिक
संसाधनों ने विकास की जिन संभावनाओं का सृजन किया है, उनका समुचित एवं पर्याप्त
रूप से दोहन अबतक संभव नहीं हो पाया है। अगर ऐसा है, तो इसका महत्वपूर्ण कारण है
बिहार की अर्थव्यवस्था का मूल रूप से कृषि-अर्थव्यवस्था होना और मानसून पर
निर्भरता के कारण इसका अनिश्चित होना। साथ ही, इसका भौगोलिक परिवेश भी इन विकास
संभावनाओं के दोहन के रास्ते में एक बड़ा अवरोध है। अपनी विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति
के कारण ही बिहार की गिनती प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों
में होती है। इसको कभी बाढ़ की चुनौती से जूझना पड़ता है, तो कभी सूखे की चुनौती से।
यहाँ तक कि एक ही समय में बिहार का एक हिस्सा अगर बाढ़ से जूझ रहा होता है, तो
दूसरा हिस्सा सूखे से। ऐसे में स्वाभाविक है कि प्राकृतिक
आपदाओं के रूप में बाढ़ एवं सूखा के साथ-साथ जल-संसाधन प्रबंधन और आपदा—प्रबंधन
बीपीएससी के द्वारा आयोजित लोक सेवा परीक्षा में प्रश्न की दृष्टि से महत्वपूर्ण
हो जायें। 53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछे गए इस
प्रश्न को इसी आलोक में देखा जाना चाहिए:
1. बाढ़ और सूखे की प्राकृतिक आपदाओं से बिहार लगातार गुजरता रहता है। इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा प्रबंधन
में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक
उदाहरणों के द्वारा समझाइए।
इसी आलोक में देखा जाय, तो हाल में
मानसून-पूर्वानुमान की पद्धति में जिन बुनियादी बदलावों की दिशा में पहल की गयी
है, वे पहलें बिहार के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इस आलोक में संभव है कि मानसून, मानसून-पूर्वानुमान और बिहार के सन्दर्भ में इसके
निहितार्थों पर 63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में प्रश्न पूछे जाएँ।
बिहार बाढ़ एवं सूखे
के साथ-साथ भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी अत्यंत संवेदनशील है। इसीलिए
उसकी यह संवेदनशीलता बिहार के सन्दर्भ में इन तीनों प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन
के प्रश्न को महत्वपूर्ण बना देती हैं। इसीलिए आवश्यकता इस बात की है कि आपदा प्रबंधन को एक समग्र टॉपिक के रूप में भी
तैयार किया जाय और बाढ़ एवं सूखे के विशेष सन्दर्भ में भी। अबतक पूछे गए प्रश्नों
के रुझानों को देखते हुए इन टॉपिकों को भूगोल के साथ-साथ अर्थव्यवस्था, विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी और अंतर्राष्ट्रीय सन्दर्भों में भी अंतर्विषयक नज़रिए के साथ
तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
इतना ही नहीं, चूँकि
जलवायु-परिवर्तन की गंभीर होती समस्या
ने एक अनिश्चितता को जन्म देते हुए बाढ़ एवं सूखे की बारंबारता को बढ़ाने का काम
किया है, इसलिए इस टॉपिक पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इसमें भी
कृषि क्षेत्र एवं बिहार के सन्दर्भ में इसके विशेष निहितार्थों को भी ध्यान में
रखा जाना चाहिए। 53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान मानसून और बिहार की
कृषि के विशेष सन्दर्भ में पूछे गए इस प्रश्न को देखिये:
2. किस प्रकार से भारतीय मानसून का परिवर्तनशील स्वभाव भारत की कृषि को
प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है? बिहार के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या करें।
इसी प्रकार 56-59वीं
बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान इस मसले पर पूछे गए प्रश्न को इसी परिप्रेक्ष्य
में रखकर देखे जाने की ज़रुरत है:
3. जलवायु-परिवर्तन से आप क्या समझते है? जलवायु परिवर्तन के क्या कारण हैं? भारत सरकार
द्वारा जलवायु परिवर्तन पर निर्मित राष्ट्रिय कार्य योजना के अंतर्गत कौन-कौन से
लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं? बिहार सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में क्या-क्या कदम
उठाये गये हैं? वर्णन करें।
अब इस आलोक में देखें, तो इस मसले पर क्योटो से
अबतक जो भी विकास हुए हैं उन्हें भी देखे जाने की जरूरत है और वर्तमान में वैश्विक
स्तर पर जो चुनौतियाँ महसूस की जा रही है, उसे भी ध्यान में रखने की ज़रुरत है।
इसके अतिरिक्त इस मसले का सम्बन्ध परोक्षतः ओजोन
स्तर के क्षरण से भी जाकर जुड़ता है और इसीलिए इसके आलोक में मॉन्ट्रियल
प्रोटोकॉल से अबतक होने वाली प्रगति को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी
कि ये वैश्विक समस्याएँ ही नहीं हैं, वरन् इसके राष्ट्रीय एवं स्थानीय निहितार्थ
भी हैं। साथ ही, इसका दायरा कहीं अधिक विस्तृत है जिसे किसी एक विषय के दायरे में
सिमटाकर नहीं रखा जा सकता है। इसीलिए इन मसलों पर समग्र एवं गंभीर समझ की आवश्यकता
है और वह भी अंतर्विषयक नज़रिए के साथ, क्योंकि सरकारें भले ही अपनी भौगोलिक
सीमायें जानती हों, पर प्राकृतिक आपदायें और जलवायु-परिवर्तन नहीं।
भाग 5: बीपीएससी ट्रेंड
एनालिसिस: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
प्रश्नों की
प्रकृति:
बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी खंड सामान्य अध्ययन द्वितीय पत्र का हिस्सा है जहाँ से अब 72 अंक
के प्रश्न पूछे जाते हैं। कुछ समय पहले तक
यहाँ से पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में अनुमान लगा पाना बहुत ही मुश्किल था,
पर अब धीरे-धीरे एक ट्रेंड बनता हुआ दिखाई पड़ता है। अगर इन रुझानों को शब्दों में
बाँधने की कोशिश की जाये, तो:
1. इस खंड में पूछे जाने वाले प्रश्न अपारंपरिक
प्रकृति के कहीं अधिक हैं। इनमें
से अधिकांश प्रश्न समसामयिक प्रकृति के
कहीं अधिक हैं।
2. ऐसे अधिकांश प्रश्न उन
चुनौतियों से सम्बद्ध हैं जिनका वर्तमान में भारत के द्वारा सामना किया
जा रहा है। इन प्रश्नों में छात्रों से यह अपेक्षा की जा रही है कि उनके पास
चुनौतियों की न केवल समझ हो, वरन् वे उन चुनौतियों से निबटने में विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी की भूमिका से भी परिचित हों। उदाहरण के रूप में 53-55वीं BPSC
(मुख्य) परीक्षा के दौरान पूछे गए इस प्रश्न को देखा जा सकता है:
a. बाढ़ और सूखे की प्राकृतिक आपदाओं से बिहार
लगातार गुजरता रहता है। इन आपदाओं के
पूर्वानुमान तथा प्रबंधन में विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक
उदाहरणों के द्वारा समझाइए।
3. ऐसी चुनौतियों की श्रेणी में शहरीकरण-प्रबंधन, ठोस कचरा-प्रबंधन, स्मार्ट
सिटी की अवधारणा, अम्रुत, पर्यावरण-प्रदूषण, जलवायु-परिवर्तन, जल-संसाधन प्रबंधन
(बाढ़, सूखा, भूमिगत जल-प्रबंधन, सतह पर जल-प्रबंधन, वर्षा-जल संचयन, जल की लवणता
आदि), आपदा-प्रबंधन, चुनौतियों, और उर्जा-आवश्यकता (नाभिकीय ऊर्जा, सोलर एनर्जी)
से सम्बंधित चुनौतियों को रखा जा सकता है। इन चुनौतियों से निबटने में सरकार के
द्वारा जो संस्थागत प्रयास किये जा रहे हैं, उन पर भी नज़र होनी चाहिए और जिन
स्वैच्छिक प्रयासों की अपेक्षा है, उन्हें भी अहमियत मिलनी चाहिए।
4. कई बार ऐसे प्रश्नों
को बिहार के विशेष संदर्भ से भी जोड़ने की कोशिश की जाती है, विशेषकर
उर्जा-आवश्यकता के सन्दर्भ में।
b.
उदय अर्थात् उज्ज्वला डिस्कॉम अश्योरेंश योजना क्या है? कौन-से
राज्य इस योजना में भागीदार हैं? बिहार किस तरह से उदय से लाभान्वित होगा?
c.
बिहार राज्य में बढती ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए
उन वैज्ञानिक प्रयासों का सुझाव दीजिये, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
5. कई बार अंतर्विषयक दृष्टि (Inter Disciplinary Approach) पर
आधारित प्रश्न भी पूछे जाते हैं
जिनके साथ तबतक न्याय नहीं किया जा सकता है जबतक छात्र अंतर्विषयक नजरिये से चीजों
को देखने की कोशिश नहीं करते हैं। उदाहरण के रूप में 56-59वीं बीपीएससी (मुख्य)
परीक्षा के दौरान पूछे गए इस प्रश्न को देखा जा सकता है:
d. भारत
में भूमंडलीकरण (Globalization) के सकारात्मक तथा
नकारात्मक प्रभावों की गंभीरतापूर्वक विवेचना कीजिये। विज्ञान
तथा तकनीकी नकारात्मक प्रभाव को कैसे कम कर सकते हैं? व्याख्या कीजिये।
इस प्रश्न में
वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों को प्रतिसंतुलित करने के बहाने अर्थव्यवस्था और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से
सम्बद्ध कर देखने की कोशिश की गयी है। इसी मुख्य परीक्षा के दौरान यह प्रश्न भी
पूछा गया:
e. अन्य देशों की तुलना में, भारत अलवण
जल-संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि
क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव
से ग्रसित है? वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इस
समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है? व्याख्या करें।
इस
प्रश्न में भी भूगोल एवं विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से सम्बद्ध कर देखा
गया है।
प्रश्नों की भावी दिशा:
उपरोक्त रुझानों के आलोक में यदि प्रश्नों की भावी दिशा के प्रश्न पर
विचार किया जाय, तो: निम्न अनुमान अलगाया जा सकता है:
1. हाल में प्रतिरक्षा-क्षेत्र
के लगातार चर्चा में बने रहने के कारण संभव है कि इस बार प्रतिरक्षा चुनौतियों से
सम्बद्ध कर या फिर प्रतिरक्षा-चुनौतियों से निबटने में DRDO की भूमिका को लेकर
प्रश्न पूछे जाएँ। इसी तरह जिस तरह से बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या के आलोक
में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजनशिप चर्चा में है, उसको ध्यान में रखते हुए सीमा-पार
से अवैध आव्रजन की चुनौती से निबटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका को
रेखांकित करने के लिए भी कहा जा सकता है।
2. उर्जा-क्षेत्र में सोलर एनर्जी, इसकी व्यवहार्यता, इन्टरनेशनल सोलर
अलायन्स(ISA) और इस गठबंधन में भारत की भूमिका पर प्रश्न पूछे जाने की प्रबल
सम्भावना है। इतना ही नहीं, बिहार में इस क्षेत्र में निहित सम्भावनाओं के दोहन की
दिशा में किये जा रहे प्रयास, इसके रास्ते में विद्यमान अवरोध और इन अवरोधों को
दूर करने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका पर भी प्रश्न बनाये जा सकते हैं।
3. जिस तरह से भारतीय
कृषि-क्षेत्र के समक्ष जलवायु-परिवर्तन की चुनौती लगातार गंभीर होती जा
रही है, संभव है कि इन चुनौतियों से निबटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की
भूमिका पर आधारित प्रश्न भी पूछे जाएँ। बाढ़ और सूखे की चुनौती के मद्देनज़र ऐसे
फसलों की किस्मों के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका और इस दिशा में
अबतक होने वाले प्रयासों के बारे में भी प्रश्न पूछा जा सकता है। कृषि-क्षेत्र में
ही जीएम फसलों पर भी लगातार चर्चा चल रही है। ऐसी स्थिति में इसके नफा-नुकसान के
आकलन पर आधारित प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं।
4. हाल में केरल की भीषणतम बाढ़ की
पृष्ठभूमि में ऐसे प्रश्नों के पूछे जाने की संभावना 63वीं मुख्य परीक्षा के दौरान
भी प्रबल है। संभव है कि ऐसे प्रश्न भूगोल में बाढ़, बाढ़-प्रबंधन, शहरीकरण-प्रबंधन, आपदा-प्रबंधन और
इसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका से सम्बंधित हो। प्रश्न बाढ़ की समस्या
की प्रकृति को लेकर भी पूछे जा सकते हैं: मानव-जनित आपदा या फिर प्राकृतिक आपदा?
5.
जिस तरह
से अम्रुत(AMRUT) और स्मार्ट सिटी की संकल्पना को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही
है, वह शहरीकरण-प्रबंधन में भी विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर संकेत करता है। इसीलिए यह संभव है कि यहाँ से भी प्रश्न पूछे जाएँ।
विशेष रूप से दिल्ली जैसे शहरों में धुँध की जो समस्या उभरकर सामने आयी है और जिस
तरह से यहाँ की आबो-हवा निरंतर जहरीली होती जा रही है, उसके आलोक में विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी इन चुनौतियों से निबटने में कहाँ तक मददगार हो सकती है।
6.
इसी
प्रकार अबतक डिजिटल इंडिया और इसकी चुनौतियों पर प्रश्न नहीं पूछे गए हैं। संभव है
कि आनेवाले समय में इसके रस्ते में मौजूद अवरोध, साइबर
सिक्यूरिटी मैकेनिज्म और इसकी विसंगतियों से प्रश्न उठाकर पूछ दिए जाएँ।
इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया का हमारे जीवन में बढ़ता
हस्तक्षेप, इसके द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ, कानून एवं व्यवस्था के
साथ-साथ आतंरिक सुरक्षा के लिए इसमें निहित खतरे और इनसे निबटने के उपाय पर भी
प्रश्नकर्ता की नज़र जा सकती है और ऐसी स्थिति में यहाँ से भी प्रश्न उठाये जा सकते
हैं।
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