ट्रेंड एनालिसिस: भारत का भूगोल, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
जहाँ तक भूगोल और पर्यावरण खंड
का प्रश्न है, तो यह खंड एक ओर अर्थव्यवस्था के दबाव से और दूसरी ओर विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी के दबाव से पृष्ठभूमि में चला गया है। जहाँ भूगोल से सम्बंधित प्रश्नों को
अर्थव्यवस्था के साथ सामान्य अध्ययन के दूसरे पत्र में खंड ख के अंतर्गत रखा गया
है, वहीं पर्यावरण से सम्बंधित प्रश्नों को तो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सतह
समाहित ही कर दिया गया है। इस खंड से कुल-मिलाकर औसतन चार प्रश्न तो पूछे ही जाते
हैं। इसीलिए इस खंड को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
प्रश्नों की
प्रकृति:
इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति
पर अगर गौर किया जाय, तो हम पाते हैं कि सामान्यतः ये प्रश्न सामान्यतः मानसून,
जलवायु-परिवर्तन, पर्यावरण-संरक्षण, सतत विकास, प्राकृतिक विविधता और भारतीय
विकास, क्षेत्रीय नियोजन, जल-संसाधन
प्रबंधन, ऊर्जा-सुरक्षा, आपदा-प्रबंधन, जनांकिकी, शहरीकरण-प्रबंधन, कचरा-प्रबंधन,
कृषि आदि टॉपिकों से रहे हैं। इन टॉपिकों को करते वक़्त आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें बिहार के विशेष
सन्दर्भ में तैयार किये जाने की ज़रुरत है। साथ ही, इसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका को भी विशेष तौर पर किया
जाना चाहिए।
विकास एवं शहरीकरण-प्रबंधन से लेकर संसाधन-प्रबंधन
और पर्यावरण-संरक्षण तक:
पिछले
कुछ दशकों के दौरान आर्थिक विकास के मद्देनज़र संसाधनों के अंधाधुंध दोहन, शहरीकरण
की तेज होती प्रक्रिया और शहरीकरण-प्रबंधन के प्रति उदासीनता ने प्रदूषण की समस्या
को गंभीर बनाया है और हालत यहाँ तक पहुँच चुके हैं कि दिल्ली सहित भारत के तमाम
बड़े शहरों की हवाओं में ज़हर घुल चुके हैं और वे साँस लेने के लायक भी नहीं रह गए
हैं क्योंकि अक्सर हम अपनी साँसों के जरिये ऑक्सीजन के साथ ज़हर ले रहे हैं। सन् 2015 की सर्दियों में
देश की राजधानी दिल्ली में वायु-प्रदूषण अत्यंत खतरनाक स्तर पर पहुँच गया और
मजबूरन दिल्ली सरकार को ऑड-इवन का फ़ॉर्मूला पेश करना पड़ा और इसके जरिये प्रदूषण के
स्तर को नियंत्रित करनी पड़ी। यही वह पृष्ठभूमि है जिसमे हमारी पर्यावरणीय चिंताएँ बढ़ती चली गईं और तदनुरूप
बिहार के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग एवं अन्य राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षाओं का
इसकी ओर ध्यान भी। इसलिए अगर पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिहार लोक सेवा आयोग के
द्वारा भूगोल एवं पर्यावरण खंड से पूछे जाने वाले के रुझानों पर गौर किया जाय, तो
शहरीकरण-प्रबंधन और पर्यावरणीय प्रदूषण पर लगातार ऐसे प्रश्न पूछे गए हैं जो इसके
बारे में सम्पूर्ण समझ की माँग करते हैं। प्रदूषण पर आधारित
ऐसा ही प्रश्न 48-52वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान पूछा गया:
1. पर्यावरण-प्रदूषण के क्या कारण हैं? पर्यावरण-प्रदूषण के लिए अंतर्राष्ट्रीय
प्रयास लिखिए।
इस चुनौती का दायरा
मानव-जीवन के लिए प्रतिकूल होती परिस्थितियों तक सीमित नहीं है, वरन् यह वर्तमान
आर्थिक विकास के साथ-साथ भविष्य की विकास संभावनाओं को भी प्रतिकूलतः प्रभावित
करने में सक्षम है। 47वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान पूछा गया यह प्रश्न यदि
विकास के सन्दर्भ में उसके निहितार्थों की ओर इशारा करता है और भविष्य में उसके
दुष्परिणामों से परिचित होने की अपेक्षा करता है:
2. पर्यावरण-प्रदूषण और देश के आर्थिक विकास के बीच में क्या
सम्बन्ध है? ये दर्शाइए कि पर्यावरण संरक्षण नियमों का ‘तथाकथित’ विकास के लिए
त्याग अत्यंत कष्टदायी होगा।
तो 56-59वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पर्यावरण-संरक्षण
और सतत विकास के अंतर्संबंधों पर आधारित प्रश्न पूछा गया जो भविष्य के
सन्दर्भ में इसके निहितार्थों की ओर इशारा करता है:
3. ‘पर्यावरण संरक्षण’ तथा ‘धारणीय विकास’ (Sustainable
Development) में क्या सम्बन्ध है? भारत में आर्थिक संवृद्धि तथा पर्यावरण अध:पतन
पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
इस पृष्ठभूमि में 60-62वीं
बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा गया यह प्रश्न इस ओर इशारा करता है कि आज इस
चुनौती से निबटने के लिए सरकार के साथ-साथ नागरिकों के स्तर पर गंभीर पहल की
अपेक्षा है:
4. भारत के लिए प्रदूषण गंभीर
समस्या बन गया है। इसके कारणों की पहचान कीजिये एवं इंगित कीजिये कि शासन
के द्वारा कौन-से अनिवार्य कदम उठाये जाने चाहिए और जनता के द्वारा कौन-से
स्वैच्छिक कदम उठाये जाने चाहिए।
प्रदूषण की समस्या का
सम्बन्ध शहरीकरण-प्रबंधन से भी जाकर जुड़ता है,
यद्यपि इसका दायरा यहीं तक सीमित नहीं है। इसी आलोक में 53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में शहरीकरण-प्रबंधन पर
सीधे-सीधे प्रश्न पूछा गया और परीक्षार्थियों से यह अपेक्षा की गयी कि वे इसमें
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका को रेखांकित करें:
5. भारत के अधिकांश शहर तथा कस्बे, धूल भरी टूटी
सड़कों, बड़े-बड़े कूड़े के ढेरों और अस्त-व्यस्त यातायात से भर चुके हैं। वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इन समस्याओं के
निदान में क्या योगदान हो सकता है?
इस प्रश्न से यह स्पष्ट है
कि शहरीकरण-प्रबंधन की चुनौतियाँ पर्यावरणीय सन्दर्भों तक सीमित नहीं है। इसका सम्बन्ध
कचरा-प्रबंधन (Solid Waste Management) से जाकर भी जुड़ता है और हाल के वर्षों में
इलेक्ट्रॉनिक कचरा-प्रबंधन (e-Waste Management) गंभीर चुनौती के रूप में उभरकर
सामने आया है। इसी आलोक में 48-52वीं बीपीएससी
मुख्य परीक्षा के दौरान कचरा-प्रबंधन पर यह प्रश्न पूछा गया:
6.
भारत में कचरे
का प्रबंधन पर्यावरण प्रदूषण के क्या कारण हैं? पर्यावरण संरक्षण के लिए
अंतर्राष्ट्रीय प्रयास लिखिए।
लेकिन, कचरा-प्रबंधन चुनौती ही नहीं, अवसर भी है। कचरे के जरिये
ऊर्जा-उत्पादन की संभावनाओं ने इस ओर इशारा किया है कि अगर सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने
की रणनीति अमल में लायी जाय, तो कचरा-प्रबंधन की
चुनौती को अवसर में तब्दील किया जा सकता है और ऐसी स्थिति में यह हमारी
बढ़ाती हुई ऊर्जा आवश्यकताओं को भी पूरा करने में समर्थ है। 48-52वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछा गया यह प्रश्न इसी ओर इशारा करता
है:
7.
भारत में कचड़े
के प्रबंधन एवं उनसे उत्पन्न उर्जा की सम्भावनाओं पर एक लेख लिखे।
यहाँ पर इस बात को भी नोटिस
में लिया जाना चाहिए कि पर्यावरण-प्रदूषण और कचरा-प्रबंधन, इन दोनों ही विषयों पर
पूछे गए प्रश्नों को भारत के विशेष सन्दर्भ में
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये जाने वाले प्रयासों एवं इस सन्दर्भ में होने वाली
प्रगति से सम्बद्ध किया गया है।
लेकिन, प्रदूषण का दायरा न तो शहरी क्षेत्रों तक सीमित है और न ही वायु-प्रदूषण
तक। इसके लिए विकास की
वे रणनीतियाँ भी जिम्मेवार हैं जिन्हें भारत ने पिछले साथ-सत्तर वर्षों के दौरान
अपनाया है। इसीलिए आज देश जिन पर्यावरणीय
चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनके लिए भारतीय ग्रामीण क्षेत्र और कृषि भी कहीं कम जिम्मेवार
नहीं है। यहाँ पर इशारा हरित क्रांति की ओर है जिसने संसाधन-प्रबंधन की चुनौतियों को कहीं अधिक गंभीर
एवं जटिल बनाया है। इसीलिए आज जब दूसरी एवं तीसरी हरित क्रांति की चर्चा चल रही
है, तो यह अपेक्षा की जा रही है कि पहली हरित क्रांति के अनुभवों से सीख ली जाय और
यह सुनिश्चित किया जाय कि भविष्य में कृषि-विकास की ऐसी रणनीति अमल में लाई जाय,
जो सतत एवं पर्यावरण-अनुकूल खेती में सहायक हो। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते
हुए 48-52वीं बीपीएससी मुख्य
परीक्षा के दौरान यह प्रश्न पूछा
गया:
8. हरित-क्रांति ने भारत में अनाज उत्पादन को तो बढाया है,
किन्तु इसने अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। इसकी व्याख्या
उदाहरण सहित करें।
इस हरित-क्रांति ने जिन
फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया, वे फसलें जल-सघन थीं, अर्थात् वे चावल और
गेहूँ जैसी ऐसी फसलें थीं, जिनके लिए अपेक्षाकृत बहुत अधिक पानी की ज़रुरत होती है। इसके साथ-साथ
सस्ती बिजली, सब्सिडाइज्ड डीजल और मुफ्त भूमिगत जल ने जल-संसाधनों के अति-दोहन को संभव बनाया और इसके
परिणामस्वरूप जल में लवणता की समस्या भी उत्पन्न हुई और इसने जलाभाव की स्थिति को
भी जन्म दिया। बचा-खुचा काम सस्ते रासायनिक उर्वरकों और इस पर बढ़ते जोर
ने कर दिया। इसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल के स्तर में भी गिरावट आयी और यह
प्रदूषित होता चला गया। फलतः यह पीने लायक नहीं रहा गया। निश्चय ही इसने जल-संसाधन
प्रबंधन के प्रश्न को महत्वपूर्ण बना दिया और यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें 56-59वीं बीपीएससी मुख्य
परीक्षा में यह प्रश्न पूछा गया:
9. अन्य देशों की तुलना में, भारत अलवण जल-संसाधनों
से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक
परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है?
वैज्ञानिक प्रबंधन तथा तकनीकी का इस समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है?
व्याख्या करें।
संक्षेप में कहें, तो
संसाधन-प्रबंधन और पर्यावरण-संरक्षण की चुनौती समय के साथ गंभीर होती जा रही है और
इसी के साथ प्रश्नों का रुझान भी इसकी ओर बढ़ता चला जा रहा है।
क्षेत्रीय नियोजन और बिहार की विकास-संभावनाएँ:
भारत एवं बिहार, दोनों के ही सन्दर्भ में देखा जाय, तो प्राकृतिक संसाधनों, विकास
संभावनाओं और इनके दोहन के क्रम में इनके समक्ष मौजूद चुनौतियों की दृष्टि से यहाँ
पर पर्याप्त विविधता है। अब अगर प्रवृति के रूप में देखा जाय, तो दोनों के विकास की प्रक्रिया को उत्प्रेरित
करने के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों और उनके दोहन के रास्ते में मौजूद
चुनौतियों के आलोक में उपयुक्त रणनीति के निर्धारण की ज़रुरत है। बिहार के सन्दर्भ
में तो यह प्रश्न और भी अमहत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह न केवल स्थलबद्ध राज्य
है, वरन् यह निरंतर जनसंख्या के उच्चतर दबाव और मानसून की अनिश्चितता के साथ-साथ
बाढ़ एवं सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं को भी झेलने के लिए अभिशप्त है। यही वह
पृष्ठभूमि है जिसमें इसके प्राकृतिक वैविध्य एवं इसके समक्ष मौजूद चुनौतियों के
आलोक में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग विकास-रणनीति को निर्धारित किये जाने
और उसको अपनाये जाने की जरूरत है। इस ज़रुरत के कारण क्षेत्रीय नियोजन का प्रश्न
महत्वपूर्ण हो जाता है और इसमें सहायक है विकेंद्रीकृत नियोजन। 48-52वीं बीपीएससी
मुख्य परीक्षा के दौरान यहीं से प्रश्न उठाते हुए पूछा गया:
1. प्राकृतिक विविधताओं ने भारत में असमान विकास को जन्म दिया है। इसकी व्याख्या
उचित उदाहरण सहित दे।
इसी की पृष्ठभूमि में
53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में रीजनल प्लानिंग
से दो प्रश्न पूछे गये:
2. माइक्रो-लेवल प्लानिंग ने भारत में आर्थिक विकास प्रक्रिया
को बढ़ावा दिया है। उचित उदाहरण सहित इसका आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
3. भारत में 2011 की जनगणना
के अस्थायी (Provisional) नतीजों ने भारत की घटती हुई जनसंख्या दर और लिंगानुपात
को प्रदर्शित किया है। यह किस प्रकार से भारत में प्रादेशिक नियोजन को प्रभावित करेगा?
ध्यातव्य है कि जनगणना,2011
की रिपोर्ट किसी खास पैटर्न की ओर इशारा नहीं करती है। इससे मिले रुझानों में
अंतर्राज्यीय ही नहीं, अन्तर-राज्यीय विषमता भी देखने को मिलती है, सन्दर्भ चाहे
जनसंख्या वृद्धि-दर में कमी का हो, या फिर लिंगानुपात का। इसीलिए ये रुझान
प्रादेशिक नियोजन की अहमियत बाधा देते हैं। इसी
प्रकार 56-59वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान एक बार फिर से क्षेत्रीय नियोजन
पर यह प्रश्न पूछा गया और इस बार यह प्रश्न बिहार एक विशेष सन्दर्भ में पूछा गया
है:
4. क्षेत्रीय विकास से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक
विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहाँ तक सफल रहा?
59-62वीं बीपीएससी मुख्य
परीक्षा में समसामयिकी खंड में भी इससे सम्बंधित एक प्रश्न पूछे गए:
5. हाल की अवधि में पंचायत
व्यवस्था के सशक्तीकरण के माध्यम से विकेन्द्रित नियोजन भारत की आयोजन का
केंद्र-बिंदु रहा है। इस कथन को समझाते हुए समन्वित प्रादेशिक विकास-नियोजन की एक
रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये। संविधान के 73-74वें संशोधन के बाद भारत में विकेन्द्रित
नियोजन के परिदृश्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
मतलब यह कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्षेत्रीय
नियोजन एक ऐसे टॉपिक के रूप में उभरकर सामने आया है जहाँ से लगातार प्रश्न पूछे जा
रहे हैं और इसीलिये इस टॉपिक को गहराई में जाकर विशेष रूप से तैयार करना चाहिए।
हो सकता है कि 63वीं मुख्य परीक्षा में यहाँ से एक बार फिर से प्रश्न पूछे जाएँ और
वह भी नीति आयोग के विशेष सन्दर्भ में।
प्राकृतिक
आपदाओं से ग्रस्त एवं त्रस्त बिहार:
आपदायें दो तरह की होती हैं: प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित, लेकिन इसका यह मतलब
नहीं कि इन दोनों में कोई अंतर्संबंध नहीं है क्योंकि एक बिंदु पर आकर मानवजनित
कारण प्राकृतिक आपदाओं के लिए उत्प्रेरक भी होते हैं और इसके प्रभाव को विध्वंसक
भी बनाते है। इस सन्दर्भ में हाल में केरल में आयी बाढ़ को देखा जा सकता है जिसका
सम्बन्ध शहरीकरण-प्रबंधन से भी आजकर जुड़ता है। बिहार के सन्दर्भ में देखा जाय, तो
बिहार दोनों ही स्तर पर चुनौतियों का समाना कर रहा है।
पारंपरिक दृष्टि से बिहार प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से तो एक संपन्न राज्य
रहा है; लेकिन इन प्राकृतिक संसाधनों ने विकास की जिन संभावनाओं का सृजन किया है,
उनका समुचित एवं पर्याप्त रूप से दोहन अबतक संभव नहीं हो पाया है। अगर ऐसा है, तो
इसका महत्वपूर्ण कारण है बिहार की अर्थव्यवस्था का मूल रूप से कृषि-अर्थव्यवस्था
होना और मानसून पर निर्भरता के कारण इसका अनिश्चित होना। साथ ही, इसका भौगोलिक
परिवेश भी इन विकास संभावनाओं के दोहन के रास्ते में एक बड़ा अवरोध है। अपनी
विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति के कारण ही बिहार की गिनती प्राकृतिक आपदाओं के प्रति
सर्वाधिक संवेदनशील राज्यों में होती है। इसको कभी बाढ़ की चुनौती से जूझना पड़ता
है, तो कभी सूखे की चुनौती से। यहाँ तक कि एक ही समय में बिहार का एक हिस्सा अगर
बाढ़ से जूझ रहा होता है, तो दूसरा हिस्सा सूखे से। ऐसे में स्वाभाविक है कि प्राकृतिक आपदाओं के रूप में बाढ़ एवं सूखा के साथ-साथ
जल-संसाधन प्रबंधन और आपदा—प्रबंधन बीपीएससी के द्वारा आयोजित लोक सेवा
परीक्षा में प्रश्न की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जायें। 53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछे गए इस प्रश्न को
इसी आलोक में देखा जाना चाहिए:
1. बाढ़ और सूखे की प्राकृतिक आपदाओं से बिहार
लगातार गुजरता रहता है। इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा प्रबंधन में विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक उदाहरणों के
द्वारा समझाइए।
इसी आलोक में देखा जाय, तो
हाल में मानसून-पूर्वानुमान की पद्धति में जिन बुनियादी बदलावों की दिशा में पहल
की गयी है, वे पहलें बिहार के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इस आलोक में संभव है कि मानसून, मानसून-पूर्वानुमान और बिहार के सन्दर्भ
में इसके निहितार्थों पर 63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में प्रश्न पूछे
जाएँ।
बिहार बाढ़ एवं सूखे के साथ-साथ भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी
अत्यंत संवेदनशील है। इसीलिए उसकी यह संवेदनशीलता बिहार के सन्दर्भ में इन तीनों
प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के प्रश्न को महत्वपूर्ण बना देती हैं। इसीलिए
आवश्यकता इस बात की है कि आपदा प्रबंधन
को एक समग्र टॉपिक के रूप में भी तैयार किया जाय और बाढ़ एवं सूखे के विशेष सन्दर्भ
में भी। अबतक पूछे गए प्रश्नों के रुझानों को देखते हुए इन टॉपिकों को भूगोल के
साथ-साथ अर्थव्यवस्था, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और अंतर्राष्ट्रीय सन्दर्भों में
भी अंतर्विषयक नज़रिए के साथ तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
इतना ही नहीं, चूँकि जलवायु-परिवर्तन की गंभीर
होती समस्या ने एक अनिश्चितता को जन्म देते हुए बाढ़ एवं सूखे की
बारंबारता को बढ़ाने का काम किया है, इसलिए इस टॉपिक पर भी विशेष ध्यान दिए जाने की
आवश्यकता है। इसमें भी कृषि क्षेत्र एवं बिहार के सन्दर्भ में इसके विशेष
निहितार्थों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। 53-55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के
दौरान मानसून और बिहार की कृषि के विशेष सन्दर्भ में पूछे गए इस प्रश्न को देखिये:
2.
किस प्रकार से भारतीय मानसून का परिवर्तनशील स्वभाव भारत की कृषि को प्रतिकूल
रूप से प्रभावित करता है? बिहार के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या करें।
इसी प्रकार 56-59वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान इस मसले पर पूछे गए
प्रश्न को इसी परिप्रेक्ष्य में रखकर देखे जाने की ज़रुरत है:
3. जलवायु-परिवर्तन से आप क्या समझते है? जलवायु परिवर्तन के क्या
कारण हैं? भारत सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन पर निर्मित राष्ट्रिय कार्य योजना के
अंतर्गत कौन-कौन से लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं? बिहार सरकार द्वारा इस सम्बन्ध
में क्या-क्या कदम उठाये गये हैं? वर्णन करें।
अब इस आलोक में देखें, तो इस
मसले पर क्योटो से अबतक जो भी विकास हुए हैं उन्हें भी देखे जाने की जरूरत है और
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जो चुनौतियाँ महसूस की जा रही है, उसे भी ध्यान में
रखने की ज़रुरत है। इसके अतिरिक्त इस मसले का सम्बन्ध परोक्षतः ओजोन स्तर के क्षरण से भी जाकर जुड़ता है और
इसीलिए इसके आलोक में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल से अबतक होने वाली प्रगति को भी ध्यान
में रखा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी कि ये वैश्विक समस्याएँ ही नहीं हैं, वरन् इसके
राष्ट्रीय एवं स्थानीय निहितार्थ भी हैं। साथ ही, इसका दायरा कहीं अधिक विस्तृत है
जिसे किसी एक विषय के दायरे में सिमटाकर नहीं रखा जा सकता है। इसीलिए इन मसलों पर
समग्र एवं गंभीर समझ की आवश्यकता है और वह भी अंतर्विषयक नज़रिए के साथ, क्योंकि
सरकारें भले ही अपनी भौगोलिक सीमायें जानती हों, पर प्राकृतिक आपदायें और
जलवायु-परिवर्तन नहीं।
अबतक पूछे गए प्रश्न
60th-62nd
BPSC
|
(56-59)th
BPSC
|
(53-55)th
BPSC
|
(48-52)th
BPSC
|
1.भारत
के लिए प्रदूषण गंभीर समस्या बन गया है। इसके कारणों
की पहचान कीजिये एवं इंगित कीजिये कि शासन के द्वारा कौन-से अनिवार्य कदम उठाये
जाने चाहिए और जनता के द्वारा कौन-से स्वैच्छिक कदम उठाये जाने चाहिए।
|
1. .‘पर्यावरण संरक्षण’ तथा ‘धारणीय विकास’ (Sustainable Development) में क्या सम्बन्ध है? भारत
में आर्थिक संवृद्धि तथा पर्यावरण अध:पतन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
2.क्षेत्रीय विकास
से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहाँ तक सफल
रहा?
3.जलवायु-परिवर्तन
से आप क्या समझते है? जलवायु परिवर्तन के क्या कारण हैं? भारत सरकार द्वारा
जलवायु परिवर्तन पर निर्मित राष्ट्रिय कार्य योजना के अंतर्गत कौन-कौन से लक्ष्य
निर्धारित किये गये हैं? बिहार सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में क्या-क्या कदम उठाये
गये हैं? वर्णन करें।
4.अन्य देशों की तुलना में भारत अलवण जल-संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत
इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। वैज्ञानिक
प्रबंधन तथा तकनीकी का इस समस्या के निदान में क्या योगदान हो सकता है? व्याख्या
करें।
5.बिहार राज्य में बढती ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने
के लिए उन वैज्ञानिक प्रयासों का सुझाव दीजिये, जिन्हें आप लागू करना चाहेंगे।
|
1 किस प्रकार से भारतीय
मानसून का परिवर्तनशील स्वभाव भारत की कृषि को प्रतिकूल रूप से
प्रभावित करता है? बिहार के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या करें।
2.माइक्रो-लेवल प्लानिंग
ने भारत में आर्थिक विकास प्रक्रिया को बढ़ावा दिया है। उचित उदाहरण सहित इसका आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। 3.कृषि-विविधता
और जैविक कृषि भारत में खाद्य-सुरक्षा के अच्छे विकल्प हैं. बिहार के विशेष सन्दर्भ में इसकी आलोचनात्मक
विवेचना कीजिये।
4. भारत में 2011 की जनगणना
के अस्थायी (Provisional) नतीजों ने भारत की घटती हुई जनसंख्या दर और लिंगानुपात
को प्रदर्शित किया है। यह किस प्रकार से भारत में प्रादेशिक नियोजन को प्रभावित करेगा?
5.बाढ़ तथा सूखे की प्राकृतिक
आपदाओं से बिहार लगातार गुजरता रहता है। इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा प्रबंधन में
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका हो सकती है? अपने उत्तर को प्रायोगिक
उदाहरणों के द्वारा समझाएँ।
6.भारत के अधिकांश शहर
तथा कस्बे, धूल भरी टूटी सड़कों, बड़े-बड़े कूड़े के ढेरों और
अस्त-व्यस्त यातायात से भर चुके हैं। वैज्ञानिक
प्रबंधन तथा तकनीकी का इन समस्याओं के निदान में क्या योगदान हो सकता है?
|
1.प्राकृतिक विविधताओं ने भारत में असमान विकास को जन्म दिया है। इसकी व्याख्या उचित उदाहरण सहित दे।
2.हरित-क्रांति
ने भारत में अनाज उत्पादन को तो बढाया है, किन्तु इसने अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ
उत्पन्न कर दी हैं। इसकी व्याख्या उदाहरण सहित करें।
3. आप कहाँ तक सहमत हैं कि जनसंख्या
का अधिक घनत्व भारत में गरीबी का मुख्य कारण है? एवं उनसे उत्पन्न ऊर्जा
संभावनाओं पर एक लेख लिखिए।
4. भारत में कचरे का
प्रबंधन पर्यावरण प्रदूषण के क्या कारण हैं? पर्यावरण संरक्षण के लिए
अंतर्राष्ट्रीय प्रयास लिखिए।
|
स्रोत-सामग्री:
सार्थक
बीपीएससी मुख्य परीक्षा सीरीज पार्ट थ्री:
सार्थक भारतीय अर्थव्यवस्था एवं भूगोल: कुमार सर्वेश एवं संजय कुमार सिंह
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