Sunday, 9 September 2018

बीपीएससी सामान्य अध्ययन: ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति पार्ट 2 (भारतीय राजव्यवस्था)


भारतीय राजव्यवस्था: ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति (BPSC)
बीपीएससी के द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के विभिन्न खण्डों से पूछे जाने वाले प्रश्नों में यदि किसी खंड ने सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया है, तो वह है भारतीय राजव्यवस्था खंड। इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों और उनके रूझानों पर अगर गौर करें, तो वे सामान्यतः भारतीय संविधान एवं भारतीय राजव्यवस्था की व्यापक समझ के साथ-साथ एप्लीकेशन पर आधारित होते हैं। कई बार उत्कृष्टता की दृष्टि से इस खंड के प्रश्न संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों को भी चुनौती देते प्रतीत होते हैं। साथ ही, चूँकि इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति आरम्भ से ही गतिशील और एप्लीकेशन-आधारित रही है, इसीलिए इन्हें रेस्पोंड करना किसी चुनौती से कम नहीं रहा है। इसके लिए निरंतर अपडेशन की ज़रूरत होती है। इस खंड की तैयारी करते वक़्त इन पहलुओं के साथ-साथ इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कई बार ऐसे प्रश्न बिहार के विशेष सन्दर्भ से जोड़कर पूछे जाते हैं। इसीलिए मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की तैयारी की रणनीति भी इसी के परिप्रेक्ष्य में निर्धारित होनी चाहिए।
(60-62)वीं मुख्य परीक्षा के प्रश्नों का ट्रेंड-विश्लेषण:
इस आलोक में अगर (60-62)वीं मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों पर विचार किया जाय, तो महिला सशक्तीकरण, शराबबंदी और दहेजबंदी के आलोक में राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों की बढ़ती अहमियत की पृष्ठभूमि में इस भाग से प्रश्नों का पूछा जाना स्वाभाविक है:
1.  राज्य की नीति के निर्देशक तत्व पवित्र घोषणा-मात्र नहीं हैं, बल्कि राज्य की नीति के मार्ग-दर्शन के लिए सुस्पष्ट निर्देश निर्देश हैं। व्याख्या कीजिये और बताइए कि वे व्यवहार में कहाँ तक लागू किये गए हैं?
वैसे भी, BPSC का रुझान हमेशा से मूलाधिकार खंड और नीति-निर्देशक तत्व खंड से प्रश्न पूछे जाने की ओर रहा है। लेकिन, इस साल पूछे गए जिन प्रश्नों ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है, वे हैं:   
2.  हिंदुत्व की अवधारणा का परीक्षण कीजिये। क्या यह धर्मनिरपेक्षवाद का विरोधी है?
3.  भारतीय राजनीति के प्रमुख दबाव-समूहों की पहचान कीजिये और भारत की राजनीति में उनकी भूमिका का परीक्षण कीजिये
ये दोनों प्रश्न भले ही पारंपरिक प्रकृति के लगते हों, पर ये समसामयिक परिदृश्य से कहीं अधिक प्रभावित हैं। इनमें भी हिंदुत्व की अवधारणा और धर्मनिरपेक्षता के अंतर्संबंध पर आधारित प्रश्न तो व्यापक समझ की अपेक्षा रखते हैं। जहाँ हिंदुत्व की संकल्पना विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक संकल्पना है जो धर्मनिरपेक्षता की उस संकल्पना को चुनौती दे रही है जो संविधान की मूल भावनाओं के साथ नाभिनाल-बद्ध है। इस हिंदुत्व को सन् 1995 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा परिभाषित हिंदुत्व से असम्बद्ध कर देखे जाने की ज़रुरत है। इसी प्रकार दबाव-समूहों की भूमिका से सम्बंधित प्रश्न भले ही पारंपरिक लगते हों, पर जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों के दौरान दक्षिणपंथी हिंदुत्व की ओर रुझान रखने वाले संगठनों ने ऐसे मुद्दों को उठाने की कोशिश की है जो साम्प्रदायिक रुझान रखते हैं और सामाजिक तनाव को बढ़ाते हुए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण में सहायक हैं, उसकी पृष्ठभूमि में ये प्रश्न पारंपरिक नहीं रह जाते हैं। इतना ही नहीं, पिछले डेढ़ दशकों के दौरान जैसे-जैसे  सरकारों और शासन पर कॉर्पोरेट शिकंजा मजबूत हुआ है, वैसे-वैसे एक्टिविज्म बढ़ता चला गया है और इसकी पृष्ठभूमि में दलित, आदिवासी और किसान मुखर होते चले गए जिसने सरकारों पर दबाव बनाते हुए उन्हें अपनी नीतियों पर पुनर्विचार के लिए विवश किया है। हाल में ट्रिपल तलाक, बहु-विवाह और समान नागरिक संहिता के साथ-साथ अनु. 35A, अनु. 370 बहाने सांप्रदायिक एजेंडे को थोपने की कोशिशों को इसके परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इसीलिए इस व्यापक परिप्रेक्ष्य में इस प्रश्न को रखकर देखे बगैर इसके साथ न्याय नहीं किया जा सकता है। इस आलोक में देखें, तो गोरक्षा के नाम पर मॉब-लिंचिंग, दलितों एवं मुसलमानों का इसका शिकार होना और इस पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्देश प्रश्न की दृष्टि से इस टॉपिक को महत्वपूर्ण बना देता है। इसी तरह का एक प्रश्न 53-55वीं मुख्य परीक्षा के दौरान पूछा गया था:
4.  भारतीय संघीय व्यवस्था और केंद्र-राज्य के प्रशासनिक सम्बन्ध का राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी परिषद (NCTC) के विशेष सन्दर्भ में वर्णन कीजिये
इसी प्रकार 56-59वीं मुख्य परीक्षा के दौरान बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव में जाति की भूमिका और वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन भी समसामयिक परिदृश्य से उठाये गए थे
अगर इन प्रश्नों के आलोक में देखें, तो हाल में 15वें वित्त आयोग के गठन ने संघीय पहलुओं को लेकर जिस विवाद को जन्म दिया है, उसने इस टॉपिक को महत्वपूर्ण बना दिया है। इसी प्रकार दिल्ली सरकार बनाम् संघीय सरकार के विवादों के आलोक में दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय भी महत्वपूर्ण है और हाल में सरकारों के गठन या बर्खास्तगी की पृष्ठभूमि में केंद्र-राज्य सम्बन्ध में उत्पन्न तनावों ने भी संघ-राज्य सम्बन्ध को महत्वपूर्ण बना दिया है। इसीलिए इन टॉपिकों पर विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की ज़रुरत है।
इस तरह से देखें, तो भारतीय राजव्यवस्था खंड से पूछे गए चार में से तीन प्रश्न समसामयिक परिदृश्य से उठाये गए हैं। मतलब यह कि ऐसे खंड जो पारंपरिक प्रकृति वाले प्रतीत होते हैं, उनके साथ भी तबतक न्याय नहीं किया जा सकता है जबतक आपने हाल में घटी घटनाओं के आलोक में उसे देखने की कोशिश नहीं की हो। इसके अतिरिक्त इस खंड से जो चौथा प्रश्न पूछा गया, वह पारंपरिक प्रकृति का था:
5.  बिहार की राजनीति में राज्यपाल की शक्तियों और वास्तविक स्थिति का वर्णन कीजिये।
इतना ही नहीं, इस बार करेंट सेक्शन में मानवाधिकार और इसे सुनिश्चित करने के लिए बिहार सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर भी प्रश्न पूछे गए:
6.  मानवाधिकारों से आप क्या समझते हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा,1948 पर प्रकाश डालिए। बिहार सरकार द्वारा पिछले एक दशक में इन्हें बढ़ावा देने हेतु क्या प्रमुख प्रयास किये गए?
इस प्रश्न का सम्बन्ध भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान खंड से जुड़ता है। यह इस खंड के बढ़ते दायरे और बीपीएससी के द्वारा नए आयामों की तलाश की ओर भी इशारा करता है। हो सकता है कि यह आपवादिक रुझान हो, पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।  

भारतीय राजव्यवस्था खंड से अबतक पूछे गए प्रश्न
(56-59)th          
  BPSC
  (53-55)th          
   BPSC
  (48-52)th          
    BPSC
  47th BPSC       
    46th    
   BPSC       
1.भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मौलिक अधिकारों का वर्णन कीजिये. किस प्रकार अनु. 21 की न्यायिक व्याख्याओं ने जीवन के अधिकार के विषय क्षेत्र का विस्तार किया है?
2.भारतीय चुनावी राजनीति में जाति की भूमिका का आकलन कीजिये. बिहार के 2015 के चुनाव को जाति की भूमिका ने किस सीमा तक प्रभावित किया?
3.भारतीय संघात्मक व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के मध्य तनाव के क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिये. वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन कीजिये.
4.न्यायिक पुनरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है? भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित ‘मूल ढांचे’ के सिद्धांत का आलोचनात्मक वर्णन कीजिये.
5.एक सुनिश्चित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन प्रणाली के अभाव में पंचायतें एवं समीतियाँ, मुख्यत: राजनीतिक संस्थाएं बनी रहती हैं और शासन प्रणाली की उपकरण नहीं बन पाती हैं. आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये.
1.भारतीय संघीय व्यवस्था और केंद्र-राज्य के प्रशासनिक सम्बन्ध का राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी परिषद (NCTC) के विशेष सन्दर्भ में वर्णन कीजिये.
2.राज्यपाल की शक्ति और कार्यों तथा इनकी बिहार में भूमिका का वर्णन कीजिये.
3.भारत में निर्वाचन आयोग की शक्ति और कार्यप्रणाली एवं स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में इनकी भूमिका का परिक्षण कीजिये.
4.विभिन्न नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन कीजिये. १९५० के बाद बिहार में इन्हें किस तरह से क्रियान्वित किया गया है?
5.1991 से बिहार के राजकीय शासन के राजकीय परिवर्तन की चर्चा करें.

1.जाति एवं वर्ग भारतीय राजनीति में महतवपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस उक्ति की व्याख्या बिहार के सन्दर्भ में करें.
2.बिहार के सन्दर्भ में ग्राम्य स्थानीय सरकार की कार्यों की 1994 से आज तक की व्याख्या करें.
3.मिली जुली राजनीति भारतीय सन्दर्भ का प्रमुख लक्ष्ण हो गया है. परंतु यह व्यवस्था अभी तक स्थायी सरकार देने में असफल रही है. अपनी राय दें.
4.भारतीय संघीय व्यवस्था में सामयिक दिगों (Recent Trends) की व्याख्या करें. क्या राज्यों को अधिक क्षमता (Autonomy) की आवश्यकता है?
5.किन्हीं दो पर टिप्पणी लिखे-
a.   मनरेगा
b.   सार्वभौम मानव अधिकार घोषणा
c.   भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या
1.“चुनाव लोकतंत्र की ह्रदय गति के समान है. यदि वे भुत जल्दी-जल्दी या बहुत अनियमित रूप से होते है तो लोकतंत्र का पतन हो सकता है.” भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में मध्यावधि चुनावों पर अपने विचार अभिव्यक्त करें.
2.आरक्षण का मुद्दा राजनैतिक दलों के वोट-बैंक के दृढ़ीकरण के अतिरिक्त कुछ नही है. शोषित वर्ग को सामाजिक न्याय प्रदान करवाने के लिए आरक्षण के अतिरिक्त आप क्या उपाय सुझायेंगे?
3.टिप्पणी लिखे-
a.   पारदर्शी एवं जवाबदेह शासन के  साधन RTI अधिनियम-
b.   भारतीय जीवन व संस्कृति पर मीडिया (प्रसार माध्यम) का प्रभाव
c.   भारतीय राजनीति में जातीवाद- बिहार के विशेष सन्दर्भ में.
4.ग्राम्य स्तर पर राजनैतिक चेतना एवं नारी-सशक्तिकरण पर 73वें संविधान-संशोधन के प्रभावों का बिहार के विशेष सन्दर्भ में परिक्षण कीजिये.
1.भारतीय चुनाव आयोग के निर्देशन के अंतर्गत अबाध और निष्पक्ष चुनाव के संचालन में नौकरशाही की भूमिका की चर्चा करें.
2.73वें संवैधान-संशोधन अधिनियम के आधारभूत प्रावधानों का वर्णन करें.
3.चुनाव-प्रचार से आप क्या समझते है? बिहार के चुनाव प्रचार की महत्वपूर्ण पद्धतियों पर प्रकाश डालें.
4.भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका का विवेचन करें. बिहार में भाषाई संख्या लघुओं (Linguistic Minorities) के लिए प्रावधानों का वर्णन करें.
5.सामजिक-राजनितिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में बिहार में कारागृह प्रशासन पर अपना मत दीजिये
मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक:
सबसे पहले भारतीय संविधान की प्रस्तावना को लिया जाय। यहाँ से सामान्य प्रकृति के यह प्रश्न पूछे जा सकते हैं कि:
1.  "भारतीय संविधान में प्रस्तावना के महत्व को रेखांकित करते हुए इसकी वैधानिक स्थिति को स्पष्ट करें।" 
लेकिन, हाल में प्रस्तावना जिस तरह से चर्चा में रही है, उसके मद्देनज़र इस प्रश्न के पूछे जाने की संभावना प्रबल है कि:
2.  " 'पंथनिरपेक्षता' और 'धर्मनिरपेक्षता' के फ़र्क़ को स्पष्ट करें। साथ ही, बयालीसवें संविधान-संशोधन के द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता और 'समाजवाद' शब्द को शामिल करने के औचित्य के प्रश्न पर विचार करते हुए बतलाइए कि क्यों नहीं इन्हें प्रस्तावना से हटा दिया जाए?"
यहाँ से भारतीय राज्य की समाजवादी एवं धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को आधार बनाकर भी प्रश्न पूछे जाने की संभावना बनती है। प्रस्तावना से ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय महत्वपूर्ण टॉपिक है जो पूरे बिहार विधानसभा-चुनाव के दौरान चर्चा में रहा था।
प्रस्तावना के बाद नागरिकता, मौलिक अधिकार, नीति निदेशक-तत्व तथा मौलिक कर्तव्य दूसरा महत्वपूर्ण टॉपिक है जहाँ से प्रश्न की संभावना बनती है। यहाँ से सामाजिक न्याय से जुड़े हुए पहलू से प्रश्न पूछे जाने की पूरी सम्भावना है। नागरिकता के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर(NRC), प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक, आरक्षण और इससे सम्बद्ध पहलुओं, विशेषकर आरक्षण की समीक्षा, पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय एवं इसमें संशोधन, बिहार में महिला-सशक्तीकरण में आरक्षण की भूमिका, अल्पसंख्यकों की स्थिति, बढ़ती हुई असहिष्णुता, सोशल मीडिया की भूमिका, मान-हानि, अभिव्यक्ति की आजादी, आधार-मसला एवं निजता के अधिकार के आलोक में आधार-कानून पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और इसका बिहार में क्रियान्वयन, सूचना का अधिकार अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन, गोमांस-निषेध एवं गोरक्षा के नाम पर भीड़ के द्वारा हिंसा, धर्मांतरण एवं घर-वापसी, समान नागरिक संहिता(UCC), ट्रिपल तलाक और सुप्रीम कोर्ट, शराबबंदी, बिहार में नीति निदेशक-तत्वों के क्रियान्वयन की दिशा में पहल आदि टॉपिक हाल-फिलहाल चर्चा में रहे हैं जिन्हें विशेष रूप से तैयार करने की जरूरत है।
सरकार के विभिन्न अंगों में विधायिका से अध्यादेश, धन-विधेयक, संयुक्त विधेयक, विपक्षी दल की भूमिका, राज्यसभा का औचित्य और प्रासंगिकता, संसदीय गतिरोध, संसदीय सुधार, विशेष रूप से राज्यसभा-सुधर जैसे टॉपिक महत्वपूर्ण हैं। कार्यपालिका के अंतर्गत हालिया सम्पन्न राष्ट्रपति-चुनाव, प्रधानमंत्रीय शासन की संकल्पना एवं कैबिनेट-व्यवस्था तथा लाभ के पद से सम्बंधित विवाद से जोड़कर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जहाँ तक न्यायपालिका का प्रश्न है, न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित विवाद, कालेजियम व्यवस्था, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग और इसको लेकर न्यायपालिका-विधायिका टकराव, मेमोरेंडा ऑफ़ प्रोसीड्योर(MOP), न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता, न्यायिक-सुधार, न्यायिक सक्रियता-न्यायिक अतिक्रम आदि से सम्बंधित टॉपिक महत्वपूर्ण हैं।
जहाँ तक संघ-राज्य सम्बन्ध  और संघवाद का प्रश्न है, तो यह खंड मुख्य परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार के द्वारा अनु. 356 के दुरूपयोग, दल-बदल क़ानून की विधानसभा स्पीकर के द्वारा मनमानी व्याख्या, विधानसभा स्पीकर एवं राज्यपाल के द्वारा संविधान-प्रदत्त शक्तियों का दुरूपयोग और इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने संघ-राज्य सम्बन्ध और संघवाद के प्रश्न को एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। इन पहलुओं पर विचार के क्रम में इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आखिर वे कौन-सी चीजें हैं जो राज्यपाल एवं स्पीकर के पद को विवादास्पद बनाती हैं और इन्हें राजनीति एवं विवाद से परे रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए? निश्चय ही, इसका सम्बन्ध राज्यपाल की नियुक्ति, स्थानांतरण एवं बर्खास्तगी की प्रक्रिया के साथ-साथ राज्यपाल के विवेकाधिकार से जाकर जुड़ता है। इसी प्रकार सहकारी एवं प्रतिस्पर्धी संघवाद के प्रश्न पर भारत के समक्ष मौजूद राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय चुनौतियों और हाल में लागू वस्तु एवं सेवा कर(GST) के आलोक में पुनर्विचार अपेक्षित है। साथ ही, इसे आयोजनोत्तर परिदृश्य (Post-Planning Period) में नीति-आयोग एवं चौदहवें-पन्द्रहवें वित्त-आयोग के आलोक में भी देखा जाना चाहिए।
इसके अलावा स्थानीय संस्थाएँ एवं राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक समावेशन में इसकी भूमिका के साथ-साथ न्यूनतम शैक्षिक एवं स्वच्छता मानदंड के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के हालिया निर्देशों के आलोक में राजभाषा हिन्दी के सन्दर्भ में उत्पन्न विवाद और आठवीं अनुसूची में भोजपुरी को शामिल करने को लेकर विवाद वाले पहलुओं को भी करना जरूरी है।  
जहाँ तक चुनावी-राजनीति, मतदान-आचरण और चुनाव-सुधार का प्रश्न है, तो पिछले ढ़ाई दशकों के दौरान बिहार में आनेवाले सामाजिक बदलावों में चुनावी राजनीती और इनमें आनेवाले परिवर्तनों की भूमिका, चुनावी आचार-संहिता, हालिया सम्पन्न बिहार विधानसभा-चुनाव के परिणामों का विश्लेषण; राजनीति का अपराधीकरण; भारतीय राजनीति के साथ-साथ बिहार की राजनीति में जाति एवं धर्म के साथ-साथ लिंग एवं भाषा, धनबल, सोशल मीडिया और तकनीक की भूमिका; पहचान-आधारित चुनावी-राजनीति एवं इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव को सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग एवं ब्यूरोक्रेसी की भूमिका, राजनीतिक दलों में आतंरिक लोकतंत्र का प्रश्न, वंशवादी राजनीति (Dynestic Politics), चुनावी-चंदे में पारदर्शिता, लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव साथ-साथ, मुद्दों पर आधारित राजनीति बनाम् व्यक्ति-केन्द्रित राजनीति, हालिया लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनावों में मतदान-आचरण के निर्धारक तत्व एवं इसके निहितार्थ, चुनाव-सुधार के सन्दर्भ में चुनाव आयोग के सुझाव(अद्यतन) आदि से संबंधित प्रश्न पूछे जाने की संभावना है। हाल में महागठबंधन के बिखराव ने गठबंधन राजनीति और जनादेश के उल्लंघन के प्रश्न को एक बार फिर से प्रासंगिक बना दिया है जिसे मुख्य परीक्षा के मद्देनज़र ध्यान में रखा जाना चाहिए।

स्रोत-सामग्री:


सार्थक बीपीएससी मुख्य परीक्षा सीरीज पार्ट टू: सार्थक भारतीय राजव्यवस्था: कुमार सर्वेश 

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