64वीं बीपीएससी साक्षात्कार
सेवाएँ: वरीयता-क्रम का निर्धारण
प्रमुख आयाम
1. वरीयता-निर्धारण का
महत्व
2. वरीयता-निर्धारण का
आधार
3. बिहार प्रशासनिक सेवा और पुलिस-सेवा: तुलनात्मक
परिप्रेक्ष्य
4. वरीयता-क्रम:
निर्धारक तत्व:
a. काम की प्रकृति
b. रूचि और जीवन-शैली
c. पर्सनल लाइफ़ के लिए
स्पेस
d. पे-स्केल और
ग्रेड-पे
e. फ़ील्ड-पोस्टिंग और
प्रमोशन
f.
प्राथमिकता क्षेत्र और क्वालिटी ऑफ़ लाइफ
5. पहले से जॉब में
होने की स्थिति में
वरीयता-निर्धारण का महत्व:
सबसे पहले, सार्थक संवाद परिवार की
ओर से 64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिए ढेर सारी
बधाइयाँ, और साक्षात्कार हेतु ढेर सारी शुभकामनाएँ! अब जब आप साक्षात्कार की
तैयारी में लगे हैं, आपको कई प्रकार की चुनौतियों से रूबरू होना पड़ रहा होगा, और
इन चुनौतियों में सबसे महत्वपूर्ण है बायो-डाटा विश्लेषण और उसके अनुरूप उसे तैयार
करने की। अगर आपके बायो-डाटा में शामिल तथ्यों का वर्गीकरण किया
जाए, तो इनकी दो श्रेणियों सामने आती हैं:
1.
इसके वे हिस्से, जहाँ आप बदलाव कर
पाने में समर्थ नहीं हैं, और
2.
दूसरे हिस्से, जिनमें बदलाव करने
में आप सक्षम हैं।
नाम, जन्म-स्थान, जन्म-तिथि,
जन्म-स्थान, आपका स्थाई पता, आपका एकेडमिक्स और आपका जॉब-प्रोफाइल पहली श्रेणी में
आते हैं, जबकि आपकी हॉबीज एवं आपका सेवा-निर्धारण दूसरी श्रेणी में; यद्यपि यह भी
सच है कि कुछ लोग अपने एकेडमिक्स और जॉब-प्रोफाइल में भी मेनुपुलेशन का सहारा लेते
हैं, पर इसकी अपनी कीमत होती है। हॉबीज एवं सेवाओं के वरीयता-निर्धारण:
ये दोनों ऐसे पहलू हैं जिनमें किसी भी प्रकार की लापरवाही आपको भारी पड़ सकती है
क्योंकि बोर्ड इसे गंभीरता से लेता है और आपके व्यक्तित्व-विश्लेषण के क्रम में
इसे कहीं अधिक अहमियत देता है। इसलिए सेवाओं की वरीयता के निर्धारण की चुनौती का
समाना करना छात्रों के लिए आसान नहीं होता है।
यह चुनौती तब और भी महत्वपूर्ण हो
जाती है जब आप यह पाते हैं कि साक्षात्कार के दौरान सर्विस-प्रीफरेंस,
सर्विस-प्रीफरेंस के आधार, तत्संबंधित सेवा में आपके दायित्व और सिचुएशन-रिएक्शन
से सम्बंधित प्रश्न लगातार पूछे जाते हैं; जबकि वास्तविकता यह है कि
अधिकांश छात्रों को न तो इसकी जानकारी होती है और न ही वे इस जानकारी के प्रति
गंभीरता प्रदर्शित करते हुए उसे हासिल करने की कोशिश करते हैं। ऐसी स्थिति में
आपके लिए सर्विस-प्रीफरेंस से जुड़े हुए प्रश्नों को रेस्पोंड कर पाना मुश्किल हो
जाता है और यह साक्षात्कार-कर्ता के मन में अभ्यर्थियों को लेकर नकारात्मक धारणा
सृजित कर सकता है। इससे इतर हटकर देखें, तो समुचित एवं पर्याप्त जानकारी के बिना
सेवाओं की वरीयता के निर्धारण की कीमत
आपको ज़िंदगी भर चुकानी पड़ सकती है, और उस स्थिति में जीवन भर हाथ मलने के अलावा आप
कुछ नहीं कर सकते।
वरीयता-निर्धारण का आधार:
विशेष अभिरुचि/हॉबी और सेवाओं की
वरीयता-निर्धारण के क्रम में इस बात को ध्यान में रखे जाने की ज़रुरत है कि यह पूरी
तरह से आपकी रूचि, आपके रुझानों और आपकी प्राथमिकता पर निर्भर करता है। इसमें मेरी
या किसी भी दूसरे आदमी की भूमिका महज़ सुविधाप्रदायक की हो सकती है जिसका काम
सूचनाओं को उपलब्ध भर करवाना है जिससे आपको वस्तुस्थिति की जानकारी हो सके और आपके
लिए सही निर्णय ले पाना आसान हो सके। और, इस क्रम में इस बात को ध्यान में रखे
जाने की ज़रुरत है कि आपके निर्णय का सही होना या गलत होना इस बात पर निर्भर करेगा
कि आपने खुद को कितने बेहतर तरीके से समझा है।
प्रशासनिक सेवा और पुलिस-सेवा:
तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य:
बिहार प्रशासनिक
सेवा (BAS) और बिहार पुलिस सेवा (BPS): ये दो ऐसी सेवाएँ हैं जिनके माध्यम से
आईएएस-आईपीएस बनने के आपके अधूरे सपने पूरे हो सकते हैं। बिहार प्रशासनिक
सेवा में कार्यों की प्रकृति में विविधता
कहीं अधिक है। इसका दायरा कानून एवं व्यवस्था (L&O), भूमि से सम्बंधित मामले में दंडात्मक शक्ति (Magisterial Power), समुचित निगरानी एवं पर्यवेक्षण के जरिये विकासात्मक योजनाओं एवं कार्यक्रमों
के प्रभावी कार्यान्वयन और जन-वितरण प्रणाली(PDS) एवं पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा से सम्बंधित मामलों
तक विस्तृत है।
जहाँ तक बिहार पुलिस सेवा का प्रश्न है, तो बिहार प्रशासनिक सेवा की तुलना में इसकी प्रकृति एकल है। जहाँ सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट(SDM) क़ानून-व्यवस्था से
सम्बंधित मामलों को देखता है, वहीं पुलिस उपाधीक्षक(DSP) अपराध से सम्बंधित मामलों
को। जैसे ही अपराध एवं अपराधिक गतिविधियाँ कानून एवं
व्यवस्था के लिए चुनौती बनने लगती है, वैसे ही वह मसला अनुमंडलाधिकारी की अधिकारिता में आ
जाता है। इसी प्रकार जहाँ सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट(SDM)
के पास दण्डात्मक शक्तियाँ होती हैं, वहीं पुलिस उपाधीक्षक(DSP) के पास
दण्डात्मक शक्तियाँ नहीं होती हैं।
अगर इन दोनों सेवाओं
को सापेक्षिक सन्दर्भों में देखें, तो बिहार
प्रशासनिक सेवा का आकर्षण और इसकी अहमियत तबतक
है जबतक आपकी पोस्टिंग अनुमंडल मुख्यालय में सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट(SDM) और
भूमि-सुधार उप-समाहर्ता(DCLR) के रूप में हो अथवा पदोन्नति के बाद जिला में
जिलाधिकारी के रूप में हो, अन्यथा यह पनिशमेंट पोस्टिंग का रूप धारण करने लगती है।
हाँ, जब उप-सचिव एवं
आप्त-सचिव जैसे पदों पर आपकी पोस्टिंग नेटवर्किंग की दृष्टि से महत्वपूर्ण है,
लेकिन इस बात को ध्यान में रखने की ज़रुरत है कि राजधानी में पोस्टिंग होने के कारण
इन पदों की अहमियत कम हो जाती है। साथ ही, आईएएस संवर्ग में संघ लोक सेवा आयोग के
जरिये आनेवाले कोर आईएएस एवं पदोन्नत आईएएस के बीच गंभीर विभेद भी इसकी अहमियत एवं
इसके आकर्षण को कम कर देते हैं। उधर, बिहार प्रशासनिक सेवा की तुलना में
बिहार पुलिस सेवा में फ़ील्ड पोस्टिंग की सम्भावना
अपेक्षाकृत ज़्यादा है। इसलिए इन दोनों में वरीयता आपकी रूचि एवं
प्राथमिकता पर निर्भर करती है। हाँ, अगर आपने बिहार
पुलिस सेवा को वरीयता-क्रम में पहले स्थान पर रखा है, तो पुलिस-प्रशासन,
पुलिस-सुधारों एवं पुलिसिंग की समस्याओं की विशेष समझ अपेक्षित है। इनकी बेहतर समझ
और इनके सन्दर्भ में बेहतर अंतर्दृष्टि के जरिये अपने निर्णय को जस्टिफाई करने की
अपेक्षा छात्रों से की जाती है।
वरीयता-क्रम: निर्धारक तत्व:
जहाँ तक वरीयता-क्रम का प्रश्न है,
तो इसके निर्धारण के क्रम में निम्न तथ्यों को ध्यान में रखे जाने की ज़रूरत है:
1. विभिन्न
सेवाओं में किए जाने वाले काम की प्रकृति: आपमें
से कई लोग होंगे, जो कार्यों की
विविधता को पसंद करते हैं और चुनौतियों से भागने की बजाय उसे एन्जॉय करते हैं।
कार्यों की प्रकृति
एवं इसकी विविधता के कारण बिहार प्रशासनिक सेवा (SDM) और ग्रामीण विकास अधिकारी (BDO)
जैसे पद उनकी प्राथमिकता सूची में शीर्ष पर होते हैं। यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखे जाने की
ज़रुरत है कि आप इन पदों पर विराजमान रहते हुए अपनी रूचि के क्षेत्र में भी बेहतर
प्रदर्शन कर सकते हैं और बेहतर निगरानी एवं पर्यवेक्षण के ज़रिये सरकार की योजनाओं
एवं कार्यक्रमों के ज़मीनी धरातल पर प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित कर सकते हैं।
2.
रूचि और जीवन-शैली: अगर आपमें से किसी
का रुझान समाज की ओर ज्यादा है और आप चाहते हैं कि ज़मीनी धरातल पर बदलाव को महसूस
किया जाए, इस बदलाव में आपकी भूमिका हो और आपकी मेहनत का लाभ सीधे-सीधे आमलोगों तक
पहुँचे, तो ऐसी स्थिति में बिहार प्रशासनिक सेवा (SDM), पुलिस-उपाधीक्षक
(DSP), सहायक निदेशक: सामाजिक सुरक्षा, सहायक निदेशक: सामाजिक कल्याण(दिव्यांग),
बिहार प्रोबेशन सेवा (कारा-सुधार), जिला नियोजन पदाधिकारी (श्रम-संसाधन), जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी (DMWO), नगर
कार्यपालक पदाधिकारी(MEO), ग्रामीण विकास अधिकारी (BDO), आपूर्ति-निरीक्षक(खाद्य),
श्रम-प्रवर्तन पदाधिकारी (LEO), प्रखंड
कल्याण पदाधिकारी (SC-ST), प्रखंड पंचायत राज पदाधिकारी, प्रखंड अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी (BMWO) आदि
पद को प्राथमिकता दे सकते हैं। यहाँ पर आपके द्वारा की गयी
मेहनत का लाभ ज़मीनी धरातल पर दिख सकता है और इससे सीधे ज़रूरतमंद आम लोग लाभान्वित
होंगे, जिसके कारण बेहतर जॉब-सटिसफैक्शन की संभावना होगी। इन सेवाओं (वर्दी वाली
सेवाओं को अपवादस्वरूप छोड़ दें, तो) की एक और भी खासियत है और वह यह कि ये सेवाएँ उन
लोगों के कहीं अधिक अनुकूल हैं जो अपेक्षाकृत शान्त-मिजाज़ के हैं और जो अपेक्षाकृत
सहज जीवन जीने, बहुत अनुशासन में बँधकर नहीं, को प्राथमिकता देते हैं।
इसी प्रकार आपमें से
कई लोग होंगे, जो अनुशासित ज़िन्दगी जीते हैं, अनुशासित ज़िन्दगी जीना पसंद करते
हैं, और वर्दी के प्रति आकर्षण के कारण
वर्दी वाले जॉब को प्रीफर करते हैं। यह उन लोगों के लिए कहीं अधिक उपयुक्त है जो ज़ोखिम उठाने में रुचि
रखते हैं। ऐसे लोगों को पुलिस-उपाधीक्षक
(DSP), कारा-अधीक्षक और बिहार प्रोबेशन
सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिए। बिहार पुलिस सेवा में फील्ड-पोस्टिंग की
सम्भावना कहीं अधिक है, लेकिन ये ऐसी सेवाएँ हैं जो आपको 24X7 व्यस्त रखती हैं और
जिनमें व्यक्तिगत-पारिवारिक ज़िंदगी तक से समझौता करना पड़ता है। इसमें आपको अपने
लिए, अपने पति/अपनी पत्नी के लिए और अपने बच्चों के लिए समय निकल पाना मुश्किल
होता है। साथ ही, इसके लिए उच्च कोटि कई शारीरिक एवं मानसिक सक्षमता की ज़रुरत होती
है लेकिन, यहाँ पर इस बात को ध्यान में
रखा जाना चाहिए कि आपको बोर्ड के सामने अपने निर्णय को जस्टिफाई करना होगा और फिर
इससे सम्बंधित प्रश्नों को समुचित तरीके से रेस्पोंड करना होगा। जिन लोगों ने पुलिस-उपाधीक्षक (DSP) के पद को प्राथमिकता दी
है, उन्हें पुलिस-सुधार और इस सन्दर्भ में बिहार की प्रगति से सम्बंधित प्रश्नों
के लिए तैयार रहना होगा। इसी प्रकार कारा-सेवा को प्राथमिकता देने की स्थिति में
जेल-सुधार से सम्बंधित विविध पहलुओं और मानवाधिकार से सम्बंधित प्रश्नों के लिए
तैयार रहना होगा।
3.
पर्सनल लाइफ़ के लिए स्पेस: आपमें से जो लोग
पारिवारिक ज़िंदगी को प्राथमिकता देते हैं और ऐसी शान्तिपूर्ण ज़िंदगी व्यतीत करना
चाहते हैं जिसमें अपने परिवार, दांपत्य-जीवन और बच्चों के लिए समय एवं स्पेस हो, उन्हें
प्रशासनिक सेवा (SDM-BDO) और पुलिस सेवा(DSP) से परहेज़ करना चाहिए। कारण यह कि
इनमें व्यस्तताएँ भी ज्यादा रहती हैं और काम का दबाव भी अपेक्षाकृत ज्यादा होता है।
ऐसे लोगों के लिए बिहार वित्त सेवा(BFS) और अवर-निबंधक, बिहार निबंधन सेवा एक
बेहतर विकल्प है। इन दोनों में फर्क बस यह है कि बिहार वित्त सेवा(BFS) 5,400
रुपये के ग्रेड-पे में है और इस दृष्टि से बिहार प्रशासनिक सेवा और बिहार पुलिस
सेवा के समक्ष है, जबकि बिहार निबंधन सेवा 4,800 के ग्रेड पे में आता है और इसीलिए
प्रशासनिक पदानुक्रम में यह नीचे आता है।
4. पे-स्केल
और ग्रेड-पे: पे-स्केल और ग्रेड-पे ऐसा पहलू है जिसकी वरीयता देते हुए अक्सर अनदेखी
की जाती है, जबकि वास्तविकता यह है कि ऑफिसियल पदानुक्रम का निर्धारण इसी के
अनुरूप होता है और तदनुरूप सरकार की ओर से आपको सुविधाएँ उपलब्ध करवायी जाती हैं। इसीलिए
इस बात को ध्यान में रखें कि लेवल 9 को पड़ आपकी प्राथमिकता सूची में शीर्ष पर हों
और फिर उसके नीचे लेवल 8 एवं लेवल 7 के पद। अगर लेवल 9 के पदों पर लेवल 8 एवं लेवल
7 के पदों को और लेवल 9 एवं लेवल 8 के पदों पर लेवल 7 के पदों को प्राथमिकता देंगे,
तो वह आगे के लिए समस्याजनक होगा और
ऐसी स्थिति में उस पर साक्षात्कारकर्ता का ध्यान साक्षात्कार के क्रम में आपके लिए
परेशानियां उत्पन्न कर सकता है। वहाँ से प्रश्न पूछे जाने की संभावना अधिक होगी।
5. फ़ील्ड-पोस्टिंग
और प्रमोशन: सेवाओं की वरीयता के
निर्धारण के क्रम में फील्ड-पोस्टिंग और प्रमोशन से सम्बद्ध पहलुओं को भी ध्यान
में रखे जाने की ज़रुरत है। कई ऐसी
सेवाएँ हैं जिनमें फील्ड पोस्टिंग की सम्भावना अपेक्षाकृत अधिक है और कई सेवाओं
में कम। यही कारण है कि बेहतर फील्ड-पोस्टिंग की सम्भावना के मद्देनज़र
कई लोग वरीयता-क्रम में बिहार
प्रशासनिक सेवा की तुलना में पुलिस-उपाधीक्षक (DSP) को प्राथमिकता देते हैं। इसी प्रकार कई
सेवाओं में प्रमोशन
जल्दी एवं समय पर मिल जाता है, और कई सेवाओं में देर से और लेट-लतीफ़। इसीलिए आवश्यकता
इस बात की है कि इसके सन्दर्भ में पर्याप्त जानकारियाँ जुटाई जाएँ और उन सेवाओं को
प्राथमिकता दी जाए जिनमें प्रमोशन का स्कोप बेहतर है और जहाँ प्रमोशन जल्दी मिल जाता है।
6. प्राथमिकता
क्षेत्र और क्वालिटी ऑफ़ लाइफ: यह पूरी तरह से आप पर निर्भर करता
है कि आप किस तरह की लाइफ-स्टाइल जीना चाहते हैं और आप राजधानी में रहना चाहते
हैं, या जिला मुख्यालय में, या फिर आप रिमोट एरिया में भी रहने के
लिए तैयार हैं? विधानसभा सचिवालय से सम्बद्ध जन-संपर्क पदाधिकारी एवं प्रशाखा
पदाधिकारी, सहायक निदेशक (दिव्यांग-सामाजिक कल्याण) और बिहार प्रोबेशन सेवा (कारा-सुधार)
ऐसे पड़ हैं जिसमें राजधानी में पोस्टिंग की संभावना है और ऐसी स्थिति में
‘क्वालिटी ऑफ़ लाइफ’ अपेक्षाकृत बेहतर रहने की संभावना है। इसी प्रकार ऐसी सेवाओं, जिनमें जिला-मुख्यालय
में नियुक्ति होती है, बेहतर एवं गुणवत्तापूर्ण जीवन की संभावनाएँ अपेक्षाकृत अधिक
हैं क्योंकि वहाँ अवसंरचनात्मक ढाँचे कहीं अधिक विकसित होते हैं और स्कूल से
हॉस्पिटल तक की सुविधा कहीं बेहतर होती है।
पहले से जॉब में होने की स्थिति
में:
अगर वर्तमान में आप जॉब में हैं, तो उसके पे-स्केल, प्रमोशन
और काम के दायरे को सापेक्षिक सन्दर्भ में रखकर देखें, और
उसे ध्यान में रखते हुए प्राथमिकताओं का निर्धारण करें। इस सन्दर्भ में जल्दबाजी न
करें, क्योंकि आपको इस जल्दबाजी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अगर आप प्राइवेट
सेक्टर की नौकरी छोड़कर लोक सेवा में शामिल होना चाहते हैं, तो वैसी स्थिति में
सैलरी के फर्क को ज़रूर ध्यान में रखें और उसके जस्टिफिकेशन के लिए तैयार रहें। कई
बार ऐसे निर्णयों को जस्टिफाई करना आसान नहीं होता है। इस बात का विशेष रूप से
ध्यान में रखें कि आपके पास अपने निर्णय को जस्टिफ़ाई करने कि लिए समुचित एवं
पर्याप्त तर्क हों।
Very useful information sir thank you very much
ReplyDeleteVery useful information sir thank you very much
ReplyDeleteVery useful information..... Thank u.. Sir
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