Saturday 30 January 2016

"गाँधी को गोडसे ने नहीं मारा!"

बापू, हम सब आपके गुनाहगार हैं। हम सबने आपकी हत्या की है।आपको गोडसे नहीं मारा।ज़रूर ग़लतफ़हमी हुई है लोगों से। गोडसे तो मोहरा बना। उसे तो नाहक ही सज़ा मिली। वास्तव में जो हत्यारे थे वे बच निकले। आज भी वे फल-फूल रहे हैं। चलें, थोड़ी देर के लिए मान ही लेते हैं कि आपको गोडसे ने ही मारा, तो क्या गोडसे को फाँसी के साथ मर गया गोडसे,नहीं न? तो फिर••••••••••• गोडसे ने तो सिर्फ़ एक बार मारा था आपको, हम सब तो बार-बार मार रहे हैं आपको। जब कभी ज़रूरत पड़ती, आपका इस्तेमाल करते हैं और जैसे ही ज़रूरत समाप्त होती है, कभी आपको धकियाते हैं और कभी आपकी सोच को। आपके प्रति ऐसी सोच यत्र-तत्र-सर्वत्र मौजूद है। देखें न,हम भारतवासी आपका कितना सम्मान करते हैं? आपके नाम पर लोकोक्ति और मुहावरे चल पड़े हैं: मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी, अब गाँधी बनने से काम नहीं चलेगा, आज गाँधी भी  होते, तो ऐसा ही करते वग़ैरह - वग़ैरह।बापू, आप हमारा इशारा नहीं समझ रहे हैं। जानते हैं आप, हम भारतीय आपको याद क्यों करते हैं? क्योंकि, आपके नाम पर साल में एक दिन छुट्टी मिल जाती है। अन्यथा सालों भर, तीन सौ चौसठों दिन डाक विभाग के बहाने हम तो आपके मुँह पर कालिख पोतते रहते हैं।
दरअसल बापू, गोडसे कोई व्यक्ति नहीं था। गोडसे एक सोच था, ऐसी सोच जो समय के साथ प्रभावी होती चली गई, जो सोच कभी १९८४ में दिखती है, तो कभी २००२ में और कभी २०१५ में। यह सोच कभी समाप्त नहीं हुई। अत: ज़रूरत इस सोच से लड़ने की है। यह सोच काँग्रेस में भी है और भाजपा में भी। यह सोच वामपंथियों के यहाँ भी है और आपाइटों के यहाँ भी। इस सोच से लड़ने की क़ीमत है और वही व्यक्ति इस सोच के साथ लड़ सकता है जो इसकी क़ीमत चुकाने के लिए तैयार है।

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