Friday 26 June 2020

निकटस्थ प्रथम और फिर नेपाल : नयनिमा बासु


मोदी ने कहा: निकटस्थ प्रथम, और फिर नेपाल को भारतीय प्राथमिकता में निम्न स्थान
(द प्रिंट में 16 जून को प्रकाशित नयनिमा बासु के आलेख का हिन्दी  भावनुवाद और यथा संशोधित)
प्रमुख आयाम
1. निकटस्थ पड़ोस प्रथम के लिए झटका
2. स्वप्निल दौर का आभास अच्छी शुरुआत को जारी नहीं रख पाना सामरिक दृष्टि से चीन के करीब आता नेपाल:
3. पाकिस्तान को अलग-थलग करने की नीति के जरिये प्रतिस्थापित:
4. गहराता सीमा-विवाद: विवादित क्षेत्र का विस्तार
5. नए भारतीय राजनीतिक नक्शे का प्रकाशन, नवम्बर,2019:
6. नेपाल द्वारा संयुक्त राष्ट्र के समक्ष नया नक्शा:
7. नीतिगत हस्तक्षेप अपेक्षित:
निकटस्थ पड़ोस प्रथम के लिए झटका
सन 2018 में के. पी. ओली, जिनकी पहचान ऐसे राजनेता के रूप में है जिनकी राजनीति भारत-विरोध की बुनियाद पर टिकी है और जो चीन के करीब हैं, दूसरी बार सत्ता में लौटे। इनका दूसरी बार सत्ता में लौटना भारत की निकटस्थ पड़ोस प्रथम की भारतीय नीति के लिए जोरदार झटका है, कम-से-कम नेपाल के हालिया घटनाक्रम इसी ओर इशारा करते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि लम्बे समय से नेपाल से बातचीत की प्रक्रिया को अवरुद्ध कर भारत एक ओर चीन के मंसूबे को पूरा कर रहा है, दूसरी ओर नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. ओली को यह अवसर उपलब्ध करवा रहा है कि वे भारत के विरुद्ध अपने राष्ट्रवादी एजेंडे को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाते हुए अपनी राजनीतिक स्थिति मज़बूत कर सकें।
स्वप्निल दौर का आभास:
अगस्त,2014 में बहुपक्षीय बातचीत में भाग लेने के लिए मोदी की नेपाल-यात्रा जून,1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल की नेपाल-यात्रा करीब सत्रह वर्षों बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली नेपाल-यात्रा थी वे नेपाली संविधान सभा-सह-संसद को सम्बोधित करने वाले पहले विदेशी नेता बने और उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री सुशील कोइराला को द्विपक्षीय सीमा-विवाद के स्थायी समाधान का वादा भी किया इस आलोक में सीमा-स्तंभों के निर्माण,पुनरोद्धार और मरम्मत अधिकार के साथ के लिए बाउंड्री वर्किंग ग्रुप की स्थापना की दिशा में पहल भी की भारतीय पीएम उस यात्रा के दौरान जीत बहादुर से भी मिले जिसकी तलाश उन्हें 1998 से ही थी और जिसे भारत-नेपाल के बीच की जोड़ने वाली कड़ी के रूप में देखा गया दोनों देशों ने अपने विदेश सचिवों को कालापानी और सुस्ता समेत सीमा-विवाद के लम्बित मसलों पर बात के लिए निर्देश भी दिए। भारत ने नेपाल से इस बात के लिए आग्रह किया कि 98 प्रतिशत सीमा, जिनको लेकर किसी प्रकार का विवाद नहीं है और जिन पर सहमति बन चुकी है, से सम्बंधित नक़्शे पर हस्ताक्षर करे
अच्छी शुरुआत को जारी नहीं रख पाना:
प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी देशों के साथ सम्बन्ध के फ्रंट पर अच्छी शुरुआत की और यह संकेत दिया कि भारत की विदेश नीति उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है और वे उसे जड़ता की अवस्था से बाहर निकलकर गतिमान करेंगे, लेकिन वे उस शुरुआत को जारी नहीं रख पाए। सितम्बर,2015 तक आते-आते के. पी. ओली के प्रधानमंत्रित्व काल में नए संविधान, उसमें मधेशी आकांक्षाओं की अनदेखी और उसके अन्य उपबंधों को लेकर द्विपक्षीय संबंधों में तनाव के बिंदु उभरने लगे और भारत इस सन्दर्भ में सकारात्मक पहल के लिए नेपाल पर दबाव बनाने लगा जिससे सम्बन्ध बेपटरी होने लगी। इस पृष्ठभूमि में भारत के अनुसार मधेशियों ने और नेपाल के अनुसार भारत ने नेपाल की आर्थिक नाकेबन्दी कर दी। इसने सन् 1989 के उस आर्थिक नाकेबन्दी की याद दिला दी जिसे राजीव गाँधी की सरकार के द्वारा 21 बॉर्डर प्वाइंट्स में से 19 बॉर्डर प्वाइंट्स को ब्लॉक करके राजशाही के नेतृत्व वाले नेपाल पर आरोपित किया गया था। इस नाकेबन्दी ने भारत-नेपाल द्विपक्षीय संबंधों को निम्नतम बिंदु पर पहुँचा दिया और तब से लेकर आजतक द्विपक्षीय संबंधों में तनाव बढ़ाते ही चले गए। इस नाकेबंदी के द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव का आकलन नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है कि नेपाल ने 1989 की आर्थिक नाकेबन्दी के लिए भारत को कभी माफ़ नहीं किया क्योंकि इसने न केवल नेपाली पंचायत-व्यवस्था को ध्वस्त किया, वरन् नेपाली राजशाही के पतन का मार्ग प्रशस्त करते हुए नेपाल में लोकतंत्र की पुनर्बहाली सुनिचित की इसने नेपाल में भारत के गुडविल को इतना डैमेज किये जिसे पुनर्बहाल होने में दशकों लग जायेंगे
उस समय से नेपाल विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों से सम्बंधित मसलों के समाधान हेतु बातचीत के लिए भारत पर निरंतर दबाव बना रहा है, पर इस मसले पर भारत उदासीन रहा है मई,2014 में जब भारत और चीन ने व्यापारिक मार्ग के रूप में लिपुलेख के इस्तेमाल का निर्णय लिया, तो नेपाल ने उसके इस निर्णय का विरोध करते हुए भारत सरकार से आग्रह किया कि सीमा-विवाद के समाधान के लिए विदेश-सचिव स्तर की वार्ता शुरू की जाए, लेकिन नेपाल की इस माँग पर भारत ने चुप्पी साधे रखी 
फिर, नवम्बर,2016 में भारत द्वारा नोटबन्दी की दिशा में की गयी पहल से नेपाली लोग बुरी तरह प्रभावित हुए और नेपाल की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत ने मधेशियों के बहाने इस मसले के समाधान की दिशा में पहल करने से परहेज़ किया और इसने करेंसी-डेडलॉक की स्थिति पैदा की पुरानी भारतीय करेंसी के बदले नई भारतीय करेंसी जारी करने की प्रक्रिया अवरुद्ध होने के कारण नेपालियों को काफी परेशानियाँ हुईं और इसने नेपाली लोगों के साथ-साथ मधेशियों के बीच भारत के गुडविल को ऐसा झटका दिया जैसा झटका उसे अबतक नहीं लगा था, यहाँ तक कि आर्थिक नाकेबन्दी के कारण भी नहीं; और आलम यह कि इसके कारण नेपाल में भारत के पारंपरिक समर्थक माने जाने वाले मधेशियों में भी नाराज़गी बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप भारत से दूरी भी।  
सामरिक दृष्टि से चीन के करीब आता नेपाल:
इस स्थिति का फायदा उठाते हुए चीन ने नेपाल को अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’(BRI) के लिए राजी किया और इस परियोजना के अंतर्गत सन् 2013 में आरम्भ ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क को इसके अंतर्गत शामिल किया जब ओली ने दूसरी बार नेपाल का नेतृत्व संभाला, तो उन्होंने नेपाल-चीन सम्बन्ध को प्राथमिकता देते हुए उसे मजबूती प्रदान करने की कोशिश की और इसकी पृष्ठभूमि में भारत-नेपाल सम्बन्ध हाशिये पर पहुँचता चला गया  
पाकिस्तान को अलग-थलग करने की नीति के जरिये प्रतिस्थापित:
पहले कार्यकाल के मध्य तक आते-आते निकटस्थ पड़ोस प्रथम की नीति पाकिस्तान को अलग-थलग करने की नीति के जरिये प्रतिस्थापित होने लगी और इस बीच ओली भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काते हुए अपने नेशनलिस्ट एजेंडे को लागू करवाने में लगे रहे। भारत की बेरुखी कुछ इस कदर रही कि उसने भारत-नेपाल सम्बन्ध पर विशेषज्ञ लोगों के समूह की रिपोर्ट को भी गंभीरता से लेने की बात तो छोड़ ही दें, उसे नोटिस तक नहीं लिया। फिर, अक्टूबर,2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत से लौटते हुए नेपाल भी गए और उनके उस दौरे के क्रम में चीन ने नेपाल को अपना सामरिक भागीदार बनाया। तब से भारत की नेपाल पर पकड़ कमजोर होती चली गयी और नेपाल भारत के हाथों से फिसलकर चीन के हाथों में जा रहा है।
गहराता सीमा-विवाद: विवादित क्षेत्र का विस्तार
अगर भारत ने सीमा-विवाद को समय रहते निपटाया होता, तो सीमा-विवाद का समाधान अधिकतम 35 वर्ग किलोमीटर के लेन-देन के सम्भव हो पाता, लेकिन नए नक़्शे को लेकर जारी विवाद के पश्चात् सीमा-विवाद का विस्तार करीब 335 वर्ग किलोमीटर तक हो चुका है जो पूर्व में विवादित क्षेत्र का दस गुना है कहा जाता है कि 1950 के दशक में चीन के साथ सीमा-विवाद के सन्दर्भ में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु ने जो गलती की, जिसकी बड़ी कीमत भारत को चुकानी पड़ी और आज भी पड़ रही है, उसी गलती को नेपाल के सन्दर्भ में वर्तमान सरकार और उसका नेतृत्व दोहरा रहा है   
नए भारतीय राजनीतिक नक्शे का प्रकाशन, नवम्बर,2019:
नवम्बर,2019 में भारत ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, और तबसे लेकर अबतक नेपाल ने कूटनीतिक चैनल से सीमा-विवाद के समाधान के लिए भारत से चार बार औपचारिक रूप से आग्रह किया है, लेकिन भारत ने उसके आग्रह को तवज्जो नहीं दिया हाँ, भारत ने इस बात का संकेत दिया कि उसने नए नक़्शे से सम्बन्धित संविधान-संशोधन विधेयक पेश करने के पहले अनौपचारिक रूप से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये विदेश-सचिव स्तर की वार्ता का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन नेपाल ने उस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया भारत के इस दावे को स्वीकार भी कर लिया जाए, तो तबतक बहुत देर हो चुकी थी और नेपाल उस दिशा में काफी आगे बढ़ चुका था 
नेपाल द्वारा संयुक्त राष्ट्र के समक्ष नया नक्शा:
जब नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष अपना नया नक्शा पेश किया, तो भारत ने ‘भू-क्षेत्र में कृत्रिम वृद्धि’ की संज्ञा देते हुए नेपाल के इस नए नक़्शे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इस तरह से हिमालयी क्षेत्र में टकराव का नया मोर्चा खुला जो आनेवाले समय में भारत के लिए परेशानियाँ उत्पन्न करता रहेगा अब, उपरोक्त विवादों के आलोक में भारत के लिए लिपुलेख होते हुए कैलाश-मानसरोवर यात्रा का सञ्चालन मुश्किल होगा क्योंकि आनेवाले समय में चीन भारत पर नेपाल के साथ सीमा-विवाद के द्विपक्षीय समाधान के लिए दबाव डालेगा जो आसान नहीं होने जा रहा है 
नीतिगत हस्तक्षेप अपेक्षित:
इस आलोक में देखें, तो आवश्यकता इस बात की है कि श्रीलंका,  नेपाल एवं पाकिस्तान के मोर्चे पर उभर रही नवीन चुनौतियों और चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण दक्षिण एशिया में तेजी से बदलते क्षेत्रीय समीकरणों के मद्देनज़र भारत निकटस्थ पड़ोस प्रथम की अपनी नीति को भारत पुनर्परिभाषित करे और निकटस्थ पड़ोस प्रथम 2.0 के जरिये इन चुनौतियों का प्रभावी तरीके से सामना करने की रणनीति तैयार करे। और, यह तबतक संभव नहीं है जबतक कि तमाम मतभेदों को दरकिनार करते हुए संवाद कायम करने की कोशिश नहीं की जाती और उन संवादों के माध्यम से समस्या के समाधान तक पहुँचने का सकारात्मक नज़रिया नहीं अपनाया जाता।    
[द प्रिंट से साभार, इस शानदार आलेख के लिए नयनिमा बासु को धन्यवाद]
Modi said Neighbourhood First and then ranked Nepal low in India’s priority list, The Print: Nayanima Basu, 16 June, 2020
Link: https://theprint.in/opinion/modi-said-neighbourhood-first-and-then-ranked-nepal-low-in-indias-priority-list/442657/

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