Tuesday 24 July 2018

बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या


बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या

बांग्लादेश और भारत की सीमा पिछले पाँच-छह दशकों के दौरान भारत की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती चली गई है दोनों देशों के बीच 4096 किलोमीटर लम्बी द्विपक्षीय सीमा में महज साढे छह किलोमीटर की सीमा अस्पष्ट और अनिर्दिष्ट है और इसको लेकर विवाद की स्थिति बनी हुयी है फिर भी, बांग्लादेश की ओर से अवैध घुसपैठियों का भारतीय सीमा में प्रवेश निरंतर जारी है तमाम कोशिशों के बावजूद इसे नियंत्रित कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है और आज यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुका है एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में भारत में ढाई-तीन करोड़ अवैध बंगलादेशी घुसपैठिये मौजूद हैं
बढ़ते अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण:
मुम्बई हमले के आलोक में तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत देते हुए यह प्रश्न उठाया था कि बांग्लादेश के लोगों को इतनी बड़ी संख्या में वीजा क्यों दी जा रही है उन्होंने इससे जुड़ी समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि निगरानी-व्यवस्था के लचर होने के कारण वीजा-समाप्ति के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अपने मूल देश वापस लौटने के बजाय यहीं पर रह जाते हैं सन् 2015 में गठित भूपेन हजारिका समिति ने ‘ज़मीन के प्रति भूख’ को अवैध आव्रज़न का प्राथमिक कारण बतलाया है  
इतना ही नहीं, इस्लामिक चरमपंथी संगठनों के द्वारा धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के कारण भी धार्मिक अल्पसंख्यकों में असुरक्षा का गहराता अहसास उनके भारत, जो उन्हें अपेक्षाकृत सुरक्षित प्रतीत होता है, की ओर पलायन को उत्प्रेरित कर रहा है इसके अतिरिक्त, अक्सर अविकास, गरीबी और बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे बांग्लादेशी नागरिकों को तेजी से विकसित हो रहा भारत आकर्षित करता है और  वे बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में भारतीय सीमा में अवैध रूप से प्रवेश कर जाते हैं फिर, स्थानीय बांग्लादेशी आबादी के साथ घुल-मिल जाते हैं और स्थानीय राजनीतिज्ञों एवं दलालों के सहयोग से उनके लिए भारत की नागरिकता एवं यहाँ पर मताधिकार के साथ-साथ सरकार के द्वारा भारतीय नागरिकों को उपलब्ध करवायी जा रही सारी सुविधाएँ हासिल कर पाना संभव हो पाता है ऐसा दो कारणों से संभव हो पाता है: एक तो यह कि भारत एवं बांग्लादेश की सीमा खुली है और इसकी अबतक पूरी तरह से बाड़बंदी नहीं हो पाई है, तथा दूसरे, सीमा सुरक्षा बल में व्याप्त भ्रष्टाचार और इसके कारण निगरानी की व्यवस्था के अप्रभावी होने के कारण भी इनका भारतीय सीमा में प्रवेश आसान हो जाता है ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार के अवैध घुसपैठ को सीमा सुरक्षा बल के जवानों के सहयोग से अंजाम दिया जा रहा है
अवैध घुसपैठ का असर:
1.  जनांकिकीय संरचना में बदलाव: बांग्लादेश की ओर से अवैध घुसपैठ के कारण इससे सटे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा एवं असम जैसे भारतीय राज्यों में जनांकिकीय संरचना में बदलाव आ रहे हैं इस बदलाव को बांग्लाभाषी जनसंख्या और इसके सापेक्ष असमी-भाषी जनसंख्या और अन्य भाषा-भाषी जनसंख्या के आनुपातिक संतुलन में बदलाव के रूप में देखा जा सकता है साथ ही, चूँकि ऐसे अवैध प्रवासियों में मुसलमानों की संख्या अधिक है, इसीलिए हिन्दू-मुस्लिम जनसंख्या का आनुपातिक संतुलन भी बिगड़ रहा है जो स्थानीय स्तर पर तनाव को बढ़ाने में भी सहायक है   
2.  आर्थिक स्तरों पर बढाती मुश्किलें: इसके कारण उपलब्ध संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है साथ ही, सरकार के द्वारा स्थानीय लोगों के लिए जो बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करवायी जा रही है, उन पर भी दबाव बढ़ रहा है और उनकी उपलब्धता भी प्रभावित हो रही है इतना ही नहीं, इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पहले से ही रोजगार उपलब्धता सीमित है और समय के साथ इनमें भी कमी आ रही है, ऐसी स्थिति में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का बढ़ता हुआ दबाव स्थानीय स्तर पर रोजगार हेतु प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ा भी रहा है और उसकी उपलब्धता को और भी सीमित कर रहा है
3.  स्थानीय लोगों की विशिष्ट भाषायी-सांस्कृतिक पहचान खतरे में: इसने औपनिवेशिक विरासत के रूप में प्राप्त भाषा-समस्या को कहीं अधिक जटिल बनाया है इस घुसपैठ ने सीमावर्ती क्षेत्रों में बांग्लाभाषियों एवं अन्य भाषियों के बीच के आनुपातिक संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया है जिसके कारण स्थानीय लोगों की विशिष्ट भाषायी-सांस्कृतिक पहचान भी खतरे में पड़ती चली जा रही है फलतः स्थानीय स्तर पर सामाजिक-सांस्कृतिक टकराव तेजी से बढ़ा है इसका प्रमाण सन् 1979 में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध ऑल असम स्टूडेंट यूनियन(AASU) के नेतृत्व में शुरू हुआ आन्दोलन है जो लगातार छह वर्षों तक चला और जिसकी परिणति असम समझौता,1985 के रूप में हुई उल्फा का गठन भी अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध ही हुआ था और उन्होंने उन्हें निकाल-बाहर के लिए सशक्त अभियान भी चलाया, यह बात अलग है कि बाद में इसके चरित्र में बदलाव आया इसने गैर-असमी भारतीयों के विरोध को अपना एजेंडा बनाया और इसके लिए हिंसक अभियान भी चलाया आज भी गैर-असमी भारतीय इसके निशाने पर होते हैं    
4.     नागालैंड में बढ़ता असंतोष: अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों के विरुद्ध असम की तरह नागालैंड में भी माहौल बन रहा है नागाओं को इस बात का डर है कि अगर समय रहते उन्होंने पहल नहीं की, तो उन्हें अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बनकर रह जाना पड़ेगा अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को खोने का खतरा भी उन्हें परेशान कर रहा है इनका आरोप है कि ये अवैध बंगलादेशी घुसपैठिये असम सरकार द्वारा जारी दस्तावेज लेकर उपस्थित होते हैं और दीमापुर में प्रशासन के सहयोग से घूस की बदौलत इनर लाइन परमिट हासिल करते हैं कई बार तो ये बिना इनर लाइन परमिट के ही घुमते दिखाई पड़ते इनका यह भी आरोप है कि हाल में दीमापुर में हिंसा, चोरी और बलात्कार की बढ़ी हुयी घटनाओं के लिए मुख्य रूप से ये ही जिम्मेवार हैं इस पृष्ठभूमि में नागा स्टूडेंट फेडरेशन और एनजीओ सर्वाइवल नागालैंड लोगों को संगठित कर रहा है और उसके इस प्रयास को पार्टी लाइन से इतर हटकर समर्थन मिल रहा है   
5.  कानून एवं व्यवस्था के लिए चुनौती: समस्या सिर्फ इतनी नहीं है जब इन घुसपैठियों के लिए जीविका के समुचित साधन उपलब्ध नहीं होते हैं, तो ये गैर-कानूनी गतिविधियों में संलिप्तता के जरिये अपने आर्थिक हितों को संरक्षित करने की कोशिश करते हैं और इसकी पृष्ठभूमि में ये कानून एवं व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाते हैं और, सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि आज ये केवल सीमावर्ती इलाकों तक सीमित नहीं हैं, वरन पूरे भारत में फ़ैल चुके हैं बांग्लाभाषियों से इनके सादृश्य के कारण इन्हें शेष आबादी से अलगाना अगर असंभव नहीं, तो अत्यंत मुश्किल अवश्य हो चुका है 
6.  आतंरिक सुरक्षा के समक्ष जटिल होती चुनौतियाँ: समस्या आतंरिक सुरक्षा के समक्ष जटिल होती चुनौतियों की भी है और इसमें इन अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की भूमिका कहीं महत्वपूर्ण है पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में आतंकी गतिविधियों में जो तेजी आयी है, उसके लिए पाकिस्तानी ख़ुफ़िया संस्था इन्टर सर्विसेज इंटेलिजेंस(ISI), जिसने बांग्लादेश को नया रूट बनाया है, और बांग्लादेश से परिचालित हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी(HUJI) को जिम्मेवार माना जा रहा है इन संगठनों के द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों, विशेषकर मुस्लिम घुसपैठियों का सॉफ्ट टारगेट के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है इन्हें उनकी अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक मजबूरियों और कट्टरपंथी रुझानों के करण विश्वास में लेना आसान होता है और जिनका इस्तेमाल इनके द्वारा भारत-विरोधी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए किया जाता है भारतीयों के साथ पूरी तरह से घुले-मिले होने के करण इनकी मारक क्षमता बढ़ जाती है
7.  इसके अलावा, बांग्लादेश की सीमा से लगा यह इलाका देह-व्यापार, नकली नोटों के कारोबार, मादक पदार्थों की तस्करी और हथियारों की तस्करी के अड्डे के रूप में विकसित हो चुका है और इन तमाम गतिविधियों में अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की संलिप्तता के संकेत मिले हैं यहाँ तक कि नोटबंदी के दौरान नए फर्जी नोटों की पहली खेप भी इसी सीमावर्ती क्षेत्र से मिली
बांग्लादेशी घुसपैठियों की वापसी से सम्बद्ध समस्याएँ:
1.  मानवीय पहलू: बांग्लादेशी घुसपैठियों से मानवीय पहलू जुड़े हुए हैं क्योंकि न्यूनतम जीविका की तलाश इन्हें सीमा पर जाकर प्रवासी की ज़िंदगी जीने को विवश कराती है जब वहाँ पर भी इन्हें जीविका का न्यूनतम आधार भी उपलब्ध नहीं हो पाता है, तो वे आपराधिक एवं अनैतिक गतिविधियों (चोरी, डकैती, लूट-पाट, हत्या, देह-व्यापार आदि) में शामिल होने को विवश होते हैं इन्हें वापस भेजे जाने का मतलब उन्हें जीविका के अल्पतम साधन से वंचित करना होगा साथ ही, स्थिति के सामान्य हुए बिना उन्हें जबरन वापस भेजा जाना उनकी जान-माल को भी खतरे में दाल सकता है
2.  वैधानिक पहलू: इन घुसपैठियों की वापसी से जुड़ा वैधानिक पहलू भी है क्योंकि नागरिकता अधिनियम,1955 के मुताबिक भारत में जन्मे लोगों को जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता मिलती है ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि इन अवैध घुसपैठियों की भारत में जन्मी संतानों की वैधानिक स्थिति क्या होगी?    
3.  पहचान की समस्या: बांग्लादेशी घुसपैठियों की वापसी तब तक संभव नहीं है जबतक इनकी पहचान नहीं की जाती है अब समस्या यह है कि पश्चिम बंगाल के लोगों और बांग्लादेशी लोगों को एक दूसरे से अलग पाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि इनके बीच परम्परागत, भाषाई और सांस्कृतिक दृष्टि से इतनी समानताएँ हैं इसके कारण अक्सर निर्दोष बांग्लाभाषी नागरिकों को भी बांग्लादेशी घुसपैठिया समझ लिया जाता है जिसके कारण उसके साथ ज्यादती होने की सम्भावना बनी रहती है  
4.  बांग्लादेश के द्वारा इन्हें अपना नागरिक मानने से इन्कार: बांग्लादेश अक्सर इन अवैध घुसपैठियों को अपना नागरिक मानने से इन्कार करता है और जब वह इन्हें अपना नागरिक मानने के लिए ही तैयार नहीं है, तो इन्हें वापस लेने का प्रश्न कहाँ से उठता है देश से इनके निकल-बाहर के लिए कोई तयशुदा प्रणाली नहीं है सरकार का कहना है कि वह न्यायिक आदेश पर ही इन्हें स्वीकार करेगी इनकी संख्या, जो करीब-करीब दो-ढ़ाई करोड़ होने का अनुमान लगाया जा रहा है, को देखते हुए भी इनकी वापसी मुश्किल प्रतीत होती है क्योंकि किसी भी सरकार के लिए इतनी बड़ी संख्या में अपने लोगों को वापस लेना और उनके पुनर्वास के साथ-साथ उनके लिए बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करना बहुत ही मुश्किल है       
5.  बांग्लादेशी घुसपैठियों से सम्बंधित प्रश्न का राजनीतिकरण:  आज इस प्रश्न का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो चुका है और इसने परिदृश्य को कहीं अधिक जटिल बनाया है भारतीय जनता पार्टी आरम्भ से ही इन्हें भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा मान रही है, लेकिन उसकी आपत्ति केवल बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को लेकर है वोटेबैंक की राजनीति के कारण बांग्लादेश से अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले हिन्दू घुसपैठियों के प्रति उसका रुख उदार है और वह उन्हें भारत की नागरिकता प्रदान करने को इच्छुक है प्रमाण है नागरिकता अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन, जो बांग्लादेश से आनेवाले गैर-मुस्लिमों, जिसमें बहुलांश में हिन्दू हैं, को नागरिकता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करता है और जिसपर विस्तार से चर्चा बाद में की जायेगी इसीलिए इस मसले पर उसके रुख को उसकी मुस्लिम-विरोधी मानसिकता से जोड़कर देखा जाता है उधर वोटबैंक की राजनीती के कारण काँग्रेस का रुख बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर आरम्भ से ही नरम है और उन्हें भारतीय नागरिकता से लेकर मताधिकार एवं राशन कार्ड दिलवाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति के कारण काँग्रेस सहित तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल इस समस्या की गंभीरता को नज़रंदाज़ करते हैं      
बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति भारतीय जनता पार्टी की नीति:
बांग्लादेश से होनेवाली घुसपैठ को लेकर भाजपा संवेदनशील रही है आरम्भ से ही वह अवैध घुसपैठियों के प्रति सख्त नीति की हिमायती रही है इस मसले पर उसका रूख हिंदुत्व को लेकर उसके स्टैंड के हिसाब से भी फिट बैठता है 2014 में सोलहवीं लोकसभा चुनाव के दौरान उसने बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ पर अंकुश लगाने और अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को वापस बंगलादेशी भेजने का वादा किया था लेकिन, हाल में बंगलादेशी घुसपैठियों को लेकर उसके रूख में परिवर्तन दिखाई पड़ता है ऐसा लगता है कि उसे समस्या बंगलादेशी घुसपैठियों से उतनी नहीं है, जितनी बंगलादेशी मुसलमानों से, जो अवैध घुसपैठिये के रूप में भारत प्रवेश कर गए हैं, या फिर प्रवेश करना चाहते हैं वह बांग्लादेश से आने वाले हिन्दुओं को तो शरणार्थी मानती है और उसके प्रति नरम रूख अपनाने के पक्ष में है, जबकि बंगलादेशी मुसलमानों को वह अवैध घुसपैठिया मानती है और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए उन्हें खतरा मानती है उसका यह भी मानना है कि नेशनल सिटीजन रजिस्टर (NCR) के लिए 1952 की मतदाता सूची को आधार बनाया जाना चाहिये, जबकि असम समझौता,1985 के अनुसार 1971 से पहले जो लोग भारत आ चुके थे और जिनका नाम मतदाता सूची में शामिल किया जा चुका था, उन्हें भारत का नागरिक माना गया है
बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रति कांग्रेस की नीति:
बंगलादेशी घुसपैठियों को लेकर कांग्रेस का रूख नरम है अवैध घुसपैठ को लेकर वह भी चिंतित है, पर उसकी चिंता पर कहीं-न-कहीं वोट बैंक की राजनीति और अल्पसंख्यक मुसलमानों के प्रति तुष्टिकरण की नीति भारी पड़ रही है कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रति सहानुभूतिशील है उनकी ही मदद से इन अवैध घुसपैठियों ने अपना राशन कार्ड, और आधार कार्ड भी बनवा रखा है उनका नाम मतदाता सूची में भी दर्ज है और सरकारी सब्सिडी के लाभान्वितों की सूची में भी ये अवैध घुसपैठिये काँग्रेस के लिए मज़बूत वोट बैंक का भी काम करते हैं एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में असम की आबादी में मुसलमानों का अनुपात चौंतीस प्रतिशत के स्तर पर है जिनमें  महज दो प्रतिशत मुसलमान ही मूल रूप से असमी हैं मतलब यह कि असम की बत्तीस प्रतिशत आबादी या तो अवैध रूप से भारत में घुसपैठ करने वाले बंगलादेशी मुसलमानों की है, या फिर बांग्लाभाषी भारतीय मुसलमानों की, जिन्हें यहाँ लाकर बसाया गया है या फिर जो संभावनाओं की तलाश में पश्चिम बंगाल से यहाँ पर आकर बस गए हैं आज ये बंगलादेशी घुसपैठिये असम के तीस विधानसभा क्षेत्रों में अहम् और निर्णायक है
यहाँ पर इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिये कि काँग्रेस बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या का हल असम समझौते के प्रावधानों के मुताबिक चाहती है उसका मानना है कि 1971 के पहले भारत आ चुके बंगलादेशियों को भारत के नागरिक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या का हल असम समझौते के प्रावधानों के मुताबिक हो साथ ही, नेशनल सिटीजन रजिस्टर (NCR) के लिए 1971 की मतदाता सूची को आधार बनाया जाना चाहिये ध्यातव्य है कि काँग्रेस के शासन-काल में ही असम समझौते को अंतिम रूप दिया गया था इसके विपरीत भाजपा असम समझौते को दरकिनार कर इस समस्या का हल चाहती है, लेकिन इस मसले पर खुलने से भी बचाना चाहती है 
अवैध घुसपैठ को लेकर वैधानिक उपबंध:
कुछ समय पहले तक भारत में मौजूद विदेशी नागरिकों का विनियमन दो कानूनों के अंतर्गत किया जाता है: असम में प्रवर्तमान अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम [Illegal Migrants (Determiner Of Foreigners) Act,1983] और शेष देश में प्रवर्तमान विदेशी अधिनियम,1946 के अंतर्गत जहाँ 12 दिसम्बर,1983 से असम में लागू IMDT अधिनियम के प्रावधानों के तहत् किसी विदेशी के सन्दर्भ में शिकायत करने पर शिकायतकर्ता को ही यह साबित करना होगा कि आरोपी व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, वरन वह विदेशी प्रवासी है इसके विपरीत अन्य राज्यों में लागू विदेशियों के लिए अधिनियम (Foreigner’s Act),1946 के मुताबिक आरोपित व्यक्ति को ही इस बात का प्रमाण देना होता है कि वह इस देश का नागरिक है इस एक्ट के तहत् अगर कोई बांग्लादेशी व्यक्ति अपना राशन कार्ड दिखाता, तो वैसे स्थिति में ट्रिब्यूनल के द्वारा उसके साथ नरमी बरती जाती और उसी के आलोक में उसे वापस भेजे जाने से सम्बंधित निर्णय लिया जाता दरअसल इस एक्ट के जरिये बांग्लादेशी घुसपैठियों को असमी चरमपंथियों से संरक्षण प्रदान किया गया  
सन् 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने IMDT एक्ट को बांग्लादेशी नागरिकों के पक्ष में और विभेदकारी बतलाते हुए कहा कि यह अधिनियम भारत के वास्तविक नागरिकों के बचाव एवं सुरक्षा प्रदान करने में विफल है क्योंकि इसका इस्तेमाल अक्सर उनके विरुद्ध किया जाता है साथ ही, यह देश की संप्रभुता को भी प्रतिकूलतः प्रभावित करता है इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान एवं उनकी वापसी के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा मानते हुए असंवैधानिक करार दिया सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में यह स्पष्ट किया कि अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में रह्हने और भारतीयों की तरह शिक्षा, सुविधा, नागरिकता, मताधिकार, राशन कार्ड एवं नौकरी पाने का अधिकार नहीं है, इसीलिए इन्हें देश से निकाल-बाहर किया जाए साथ ही, उन लोगों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाय, जो इन अवैध घुसपैठियों को नौकरी उपलब्ध करवा रहे हैं अपने इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अपने देश वापस भेजने के लिए ट्रांजिट कैम्पों में रखे गए अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को वे सारी सुविधाएँ देना अस्वीकार्य है जो भारतीय नागरिकों को उपलब्ध करवाए जा रहे हैं अपने इसी निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों देशों की सीमा पर बाड़बंदी का भी आदेश देते हुए कहा कि भारत से लगे बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में इसकी अविलम्ब व्यवस्था की जाय
असम समझौता,1985:
ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU) और भारत सरकार के बीच सम्पन्न इस समझौते के अनुसार 25 मार्च,1971 को अवैध बंगलादेशियों की पहचान और निर्वासन के लिए कट-ऑफ तिथि निर्धारित की गई, लेकिन इसके रास्ते में कई अवरोध उत्पन्न किए गए। इस समझौते के अनुसार:
1.   25 मार्च,1971 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले उन विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी माना जायेगा जिनके पास पासपोर्ट, यात्रा-दस्तावेज या फिर अन्य विधिक प्राधिकार उपलब्ध नहीं है
2.  इस तिथि के पूर्व भारत में प्रवास करने वाले नागरिकों को इस एक्ट के अधीन अवैध घुसपैठिया नहीं माना जायेगा
3.  ऐसे मामले को बातचीत (negotiation) के जरिये सुलझाया जायेगा  
2005 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादास्पद अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा पहचान) अधिनियम,1983 को अवैध घोषित कर दिया गया। इसने पहचान और विशेष रूप से निर्वासन को और ज्यादा मुश्किल बनाया। बंगलादेश हमेशा घुसपैठ की बात से इन्कार करता रहा है।
बाड़बंदी और फ्लड लाइटिंग:
अवैध घुसपैठ पर अंकुश लगाने के लिए बंगलादेश की सीमा से लगे असम के सीमावर्ती इलाक़े में 176.314 किलोमीटर लंबी सीमा की ताड़बंदी का काम हो चुका है। केवल 0.06 किलोमीटर सीमा, जो ब्रिज तक एप्रोच रोड के रूप में है, की बाड़बंदी का काम मृदा-क्षरण के कारण अधूरा है। 3.57 किलोमीटर की विवादित सीमा की बाड़बंदी का काम केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। साथ ही, असम-बांग्लादेश के बीच लगभग 213 किलोमीटर लम्बी सीमा पर भी फ्लडलाइट लगाने का काम लगभग पूरा हो चुका है।  
हजारिका समिति रिपोर्ट,2015:
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अस में बंगलादेशी घुसपैठियों के अवैध आव्रजन के प्रश्न पर विचार के लिए उपमन्यु हजारिका के नेतृत्व में गठित एक सदस्यीय आयोग ने अक्टूबर,2015 में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि अगर बंगलादेशी घुसपैठियों का अवैध रूप से आना इसी तरह से जारी रहा, तो 2047 तक आते-आते असम के मूल निवासी अल्पसंख्यक में तब्दील हो जायेंगेसमिति ने सरकार को इस मसले पर विचार के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन का सुझाव दिया समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया है कि :
1.     भारत-बांग्लादेश सीमा पर नदी क्षेत्र में विशिष्ट पट्टी (stretch) की पहचान करते हुए एक ऐसे आदमी-रहित जोन (sterile zone) का सृज़न किया जाय
2.     रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि असम से लगे भारत-बांग्लादेश सीमा की निगरानी की जिम्मेवारी जिस सुरक्षा एजेंसी के पास है, वह ऐसे ज़ोन के सृज़न के प्रस्ताव से सहमत है, लेकिन इस सन्दर्भ में केंद्र और राज्य सरकार को सिद्धान्तः नीतिगत निर्णय लेने होंगे

3.   वहाँ पर ग्रामीणों को पहचान-पत्र का प्रावधान किया जाय ध्यातव्य है कि सन् 2003 में तत्कालीन गृह-मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने दो करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठियों को दुश्मन देश के एजेंट और भारत के लिए खतरा बतलाते हुए भारतीय नागरिकों के लिए पहचान-पत्र जारी करने की बात की     
4.   लेकिन, समस्या यह है कि जब किसी व्यक्ति का नाम़ मतदाता-सूची में शामिल किया जाता है, तो उपलब्ध करवाए गए दस्तावेज़ों की जाँच-पड़ताल नहीं की जाती है। आज असम में अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को प्रवेश दिलाने और उन्हें नागरिकता, मताधिकार और राशन कार्ड-आधार कार्ड दिलाने का एक संस्थागत मैकेनिज़्म विकसित हो चुका है और ये सारा काम बड़े ही प्रोफ़ेशनल तरीक़े से होता है। ।
5.    रिपोर्ट में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के हवाले से यह कहा गया कि फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के सामने आने की बात के बावजूद किसी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई।
6.     रिपोर्ट में ज़मीन के प्रति भूख’ को अवैध आव्रज़न का प्राथमिक कारण बतलाते हुए आयोग ने भूमि के हस्तांतरण को उन लोगों तक सीमित करने का सुझाव दिया जो और जिनके वंशज 1951 से देश के नागरिक रहे हैं; चाहे यह हस्तांतरण खरीद-बिक्री, उपहार या किसी अन्य तरीके से हो रही हो, या फिर सरकार या किसी अन्य एजेंसी द्वारा आवंटन जरिये ऐसी रोक को जनजातीय क्षेत्रों से गैर-जनजातीय क्षेत्रों तक विस्तार दिया जाय ताकि अवैध बंगलादेशी प्रवासियों को ज़मीन हासिल करने से रोका जा सके
7.     अक्सर अवैध अप्रवासी अन्य जिलों के बाढ़ और कटाव प्रभावितों के नाम पर भ्रष्ट और अक्षम प्रशासन से सहायता के साथ ज़मीन हासिल करते हैं। उन्होंने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनवा रखें हैं और इन फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों की बदौलत वे आरक्षित वन और चारागाह रिज़र्व सहित सरकारी ज़मीन हथियाने में सफल रहते हैं। ऐसी मदद और सहायता के लिए भी ऐसे ही कठोर मानकों का सहारा लिया जाना चाहिए, तभी स्थानीय मूल निवासियों के हितों को संरक्षित किया जा सकता है
8.     अवैध घुसपैठियों की बढती संख्या ने सरकारी संस्थाओं में रोजगार को लेकर मूल निवासियों के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा की स्थिति सृजित की हैसमस्या यह है कि इनके पिछले जीवन की विस्तृत जाँच-पड़ताल के बिना ही उन्हें नौकरियाँ दे दी जाती हैं
सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट के आलोक में केंद्र और राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया
भविष्य की रणनीति:
अब तक के अनुभवों के आलोक में यदि बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या से निपटने के लिए भविष्य की रणनीति के प्रश्न पर विचार किया जाय, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि बिना समेकित रणनीति के इस पर अंकुश लगा पाना मुश्किल है इसके तहत्:
1.  अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या के राजनीतिकरण से परहेज किया जाए. यह बातें सभी राजनीतिक दलों पर लागू होती हैं
2.  पहली प्राथमिकता बांग्लादेश से होने वाले अवैध घुसपैठ पर अंकुश लगाने को दी जाए इसके लिए भारत-बांग्लादेश भूमि-सीमा समझौता, सीमा पर तारबंदी और फ्लड लाइटिंग के जरिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित हो चुकी हैं आज आवश्यकता इस बात की है कि:
a.   सीमा पर निगरानी-तंत्र को मजबूत और प्रभावी बनाया जाए
b.  इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार की ज़रुरत है कि आखिर क्यों सीमा सुरक्षा बल की अवैध घुसपैठ के मामलों में संलिप्तता की बात सामने आती है और उनकी वास्तविक शिकायतों का समाधान करते हुए कैसे इसे दूर किया जा सकता है? इसके लिए सीमा सुरक्षा बल स्थानीय पुलिस के बीच बेहतर तालमेल की भी आवश्यकता है
c.  इस सन्दर्भ में हजारिका समिति के द्वारा स्थानीय ग्रामीणों को पहचान-पत्र देने  और मानव-रहित क्षेत्र के सृज़न की सलाह उपयोगी हो सकती है
d.  बांग्लादेशी नागरिकों को वीजा देने की प्रक्रिया कठोर बनायी जाय साथ ही, उस वीजा पर जो लोग भी भारत आ रहे हैं, उनके लिए उपयुक्त एवं प्रभावी निगरानी तंत्र को विकसित किया जाए, ताकि उनकी समयबद्ध वापसी को सुनिश्चित किया जा सके और उन्हें अवैध रूप से भारत में रुकने से रोका जा सके
3.  भारत सरकार बांग्लादेश सरकार को इस बात के लिए तैयार करे कि वह भारत से लगे बंगलादेशी सीमावर्ती इलाकों में समयबद्ध तरीके से सामाजिक-आर्थिक विकास योजनायें और कार्यक्रम की शुरुआत करे इसके लिए भारत-बांग्लादेश सरकार को वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करवाए अगर ऐसा किया जाता है, तो बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में ही आर्थिक अवसर उपलब्ध करवाए जा सकते हैं और भारत की ओर अवैध माइग्रेशन के आकर्षण को कम किया जा सकता है
4.  भारत सरकार चीन की तर्ज पर सीमावर्ती इलाके के बंगलादेशी नागरिकों को वर्क परमिट भी उपलब्ध करवाने पर विचार करे ऐसी स्थिति में अवैध घुसपैठ पर अंकुश लगाना भी संभव है और उनकी बेहतर निगरानी भी संभव है
5.  अब प्रश्न उठता है कि भारत में गैर-कानूनी रूप से रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने की रणनीति क्या हो और यह कहाँ तक व्यावहारिक है? इस संदर्भ में समस्या यह है कि:
a.   भाषाई और सांस्कृतिक दृष्टि से ये मुख्यधारा में इतने घुल-मिल चुके हैं कि इनकी पहचान ही मुश्किल है
b.   अगर इन्हें पहचाना भी जाता है, तो इन्हें वापस भेजने का काम और भी मुश्किल है बांग्लादेश की सरकार यह स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है कि उसके यहाँ से घुसपैठ हो रही है
c.    घुसपैठियों की जबरन वापसी स्थानीय स्तर पर असंतोष को भी जन्म दे सकती है क्योंकि स्थानीय नागरिकों के साथ उनके रोटी-बेटी के संबंध स्थापित हो चुके हैं ऐसी स्थिति में जबरन वापसी की कोशिश का स्थानीय स्तर पर प्रतिरोध भी संभव है
d.  इससे जुड़ा हुआ एक मानवीय पहलू भी है जिन पर विस्तार से चर्चा पहले ही की जा चुकी है
इसलिए व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो भारत आ चुके, भारत के विभिन्न हिस्सों में फैल चुके और भारत के विभिन्न भागों में बस चुके बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने का प्रश्न बहुत व्यावहारिक नहीं लगता है अबतक के अनुभवों से भी यही लगता है कि यह कोशिश बहुत सफल हो पायेगी, इसमें संदेह है इसलिए हमें अन्य विकल्पों की पड़ताल करनी होगी करनी होगी
2.  ऐसी स्थिति में हमें भारत के विभिन्न हिस्सों में बस चुके बांग्लादेशी घुसपैठियों के विनियमन का कोई-न-कोई मैकेनिज्म विकसित करना होगा, ताकि उन्हें क़ानून एवं व्यवस्था के लिए खतरा बनाने से रोका जा सके   साथ ही, हमें इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि भारत-विरोधी शक्तियाँ सॉफ्ट टारगेट के रूप में इनका इस्तेमाल न कर सकें इन्हें आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बनने से रोकना वर्तमान में भारत के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है इस चुनौती से निबटना भारत के लिए तभी संभव होगा, जब इन्हें पहचानते हुए अलग से पहचान-पत्र जारी किये जाएँ और इनकी सतत निगरानी सुनिश्चित की जाय  

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