Monday 7 November 2016

NDTV बैन और अभिव्यक्ति की आज़ादी

                                 NDTV बैन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले जटिल होते हैं। ऐसे अवसरों पर मीडिया के लिए भी काम करना आसान नहीं होता हैं। उन्हें एक ओर जनता तक जानकारियाँ पहुँचानी होती हैं, दूसरी ओर यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता और संयम से काम लेना पड़ता है कि इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रतिकूल असर न पड़े। पठानकोट आतंकी हमले के दौरान ऐसी ही चुनौती भारतीय मीडिया के सामने भी उभरकर सामने आई, पर सरकार की नज़रों में NDTV इस दायित्व के निर्वाह में असफल रहा।

NDTV पर एक दिन के लिए बैन:
NDTV इंडिया  भारत का पहला चैनल है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के आरोप में सरकार ने एक दिन (नौ नवम्बर) के लिए बैन करने का नोटिस भेजा. सूचना-प्रसारण मंत्रालय के एक अंत:मंत्रालयीय पैनल ने पठानकोट में चरमपंथी हमले को लेकर NDTV के कवरेज को राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट उत्पन्न करने वाला बताया।  पैनल ने NDTV पर पठानकोट आतंकी हमले की रिपोर्टिंग के दौरान आग्नेयास्त्र डिपो, स्कूल एवं आवासीय क्षेत्रों के लोकेशन से संबंधित जानकारियाँ के साथ-साथ उस स्थल की ‘रणनीतिक रूप से संवेदनशील सूचनाएं’ प्रसारित करने का आरोप लगाया। इससे रणनीतिक रूप से संवेदनशील सूचनाओं तक आतंकवादियों की पहुँच आसान हुईं और यह नागरिकों के साथ-साथ सुरक्षा बलों के जीवन को ख़तरा में डालने वाला था। ऐसा उस समय किया गया जब चार जनवरी,2016 को  पठानकोट एयर बेस पर आतंकी हमला जारी था। इसी आलोक में पैनल ने एनडीटीवी इंडिया को केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम-1994 की धारा 6(1p) के उल्लंघन का दोषी ठहराया है और नौ नवंबर को प्रसारण से विरत रहने को कहा है। NDTV ने  संसार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ न्यायालय की ओर रूख किया, जिसकी सुनवाई न्यायालय में होनी है। सरकार ने न्यायालय के फ़ैसले के आने तक प्रसारण के रोक पर अपने फ़ैसले को अस्थाई रूप से रोक लगाने की घोषणा की।
लेकिन, सरकार और पैनल यह स्पष्ट कर पाने में असफल रहे कि ऐसी कौन-सी रणनीतिक रूप से संवेदनशील सूचना NDTV के द्वारा उजागर की गई  जो पहले से ही सार्वजनिक जानकारी में न रही हो। इससे इस आरोप को बल मिला है कि यह सरकार असहमति और आलोचना को सहन नहीं कर पा रही है और किसी-न-किसी बहाने उसे कुचलने पर आमादा है।






                                  पार्ट वन: मीडिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी

स्थिर की बजाय विकसनशील संकल्पना :

सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस की स्वतंत्रता को अनु. 19(1क) में अंतर्निहित माना है। यह कोई स्थिर संकल्पना नहीं है, वरन् समय और परिस्थितियों के सापेक्ष परिवर्तनशील है। इसीलिए यह 1950 में जो इसकी स्थिति थी, वही आज नहीं है और जो स्थिति आज है, वही आज से पचास साल बाद नहीं रहेगी। इस सन्दर्भ में अक्सर वाल्तेयर को उद्धृत किया जाता है जिन्होंने कहा है कि “तुम जो कहते हो, उसे मैं अस्वीकारता हूँ, लेकिन मैं मरने तक तुम्हारी आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करूंगा.” इसी आलोक में अमेरिकन अभिनेत्री जेन फोंदा ने का उदाहरण भी दिया जाता है जिन्होंने न केवल वियतनाम युद्ध का विरोध किया था, वरन वियतनामी रेडियो से इस युद्ध में लड़ रहे अमेरिकी सैनिकों से हथियार छोड़ने की अपील भी की थी. बाद में अमेरिकी सरकार ने इस कारण से उनके विरुद्ध कार्रवाई से परहेज किया कि इससे अमेरिका में अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर दुनिया में गलत मैसेज जाएगा. इससे स्पष्ट है कि जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकास के शिखर की ओर बढ़ती जाती है, अभिव्यक्ति की आज़ादी के मायने बदलते चलते हैं.
जहाँ तक भारत की बात है, तो भारतीय संविधान से इतना तो स्पष्ट है कि यहाँ पर इसे अमर्यादित नहीं माना गया है, संविधान की धारा 19(2) उन आधारों की चर्चा करती है जिनके आलोक में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाया जा सकता है और उस युक्तियुक्त निर्बंधन आरोपित किए जा सकते हैं। इनमें ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा’ भी एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में शामिल है। लेकिन, यह भी सच है कि पिछले  छियासठ वर्षों के दौरान सुप्रीम कोर्ट की व्याख्याओं ने इसके दायरे को काफ़ी फैला दिया है। यही कारण है कि आज देश-विरोधी नारों तक को भी इसमें स्थान दिया जा रहा है और उसे तबतक सेडिशन नहीं माना जाता जबतक कि यह हिंसा को प्रत्यक्षतः उत्प्रेरित न करे.

युक्तयुक्तता का निर्धारण:

अब प्रश्न यह उठता है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा’ का निर्धारण कौन करेगा? श्रेया सिंघल बनाम् भारत संघ वाद,2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटी को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि किसी भी छद्म रूप में सेंसरशिप, जो अनु. 19(1क) में उल्लिखित कोर वैल्यू को नुक़सान पहुँचाता है, का अभिव्यक्ति की आज़ादी पर घातक प्रभाव पड़ता है।  इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने एस. रंगराजन बनाम् जगजीवन राम वाद, 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर महज़ प्रदर्शन और जुलूस या हिंसा की आशंका के आधार पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रत्याशित ख़तरा अनुमान पर आधारित या दूरस्थ नहीं होना चाहिए। चिंतामन राव बनाम् मध्यप्रदेश वाद, 1954 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “युक्तियुक्त निर्बंधन मनमाना या अत्यधिक नहीं होना चाहिए।” इसी बाद में युक्तियुक्त शब्द की व्याख्या उस मार्ग के चयन के परिप्रेक्ष्य में की जो उचित, बुद्धि-सम्मत और तार्किक हो। लक्ष्मी गणेश फिल्म्स बनाम् आँध्रप्रदेश सरकार वाद, 2006 में इसने कहा कि युक्तियुक्तता का निर्धारण उस आधार पर नहीं किया जाना चाहिए जिस आधार पर इसे आरोपित किया गया है, वरन् उन मूलाधिकारों के सापेक्ष होना चाहिए जिन्हें यह सीमित करता है। इस मामले में युक्तियुक्तता के परीक्षण के निम्न आधारों की ओर संकेत किया:
1. क्या यह उस दायरे में आता है जिनके संदर्भ में युक्तियुक्त निर्बंधन का प्रावधान किया गया है?
2. क्या यह युक्तियुक्त है?
3. क्या राज्य ने इस विकल्प को अपनाने के पहले अपेक्षाकृत कम प्रतिबंधात्मक विकल्पों को आज़माने की कोशिश की है? मौजूद थे? स्पष्ट करते हुएआधारों  इस आलोक में प्रश्न यह उठता है कि क्या यह प्रतिबंध ‘स्पष्ट और वर्तमान खतरे’ की कसौटी पर खड़ा उतरता है?
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में ‘इंस्टीट्यूशनल इंटिग्रिटी’ (Institutional Integrity) के प्रश्न को उठाते हुए कहा है कि निर्णय देते वक़्त संस्थाओं को निष्पक्ष और पूर्वाग्रह-मुक्त होना ही नहीं चाहिए, वरन् उसे स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रतीत भी होना चाहिए।
संक्षेप में कहें, तो सुप्रीम कोर्ट का रख सामान्यतः मौलिक अधिकारों के पक्ष में रहा है और उसने युक्तियुक्त निर्बंधन की व्याख्या सीमित परिप्रेक्ष्य में की है। यह उन्हीं आधारों पर आरोपित किया जा सकता है जिनकी चर्चा संविधान में स्पष्टत: की गई है। यदि राज्य किसी नये आधार पर युक्तियुक्त निर्बंधन को आरोपित करना चाहता है, तो इसके लिए उसे संविधान में संशोधन करने होंगे। साथ ही, यदि निर्बंधन की युक्तियुक्तता को लेकर कोई भी प्रश्न उठता है, तो इसका विनिर्धारण न्यायालय के द्वारा किया जाएगा और इस संदर्भ में न्यायालय का निर्णय अंतिम होगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो यह न्यायिक पुनर्विलोकन के दायरे में आएगा।
अपने विभिन्न निर्णयों के ज़रिये युक्तियुक्ता के निर्धारण के आधारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि:
1. निर्बंधन का सामूहिक हित के साथ युक्तियुक्त संबंध होना चाहिए।
2. निर्बंधन आरोपित करने की प्रक्रिया न्यायोचित होनी चाहिए।
3. निर्बंधन आरोपित करने की प्रक्रिया में नैसर्गिक न्याय की संकल्पना को ध्यान में रखा गया हो।
4. निर्बंधन आरोपित करने से होनेवाले लाभ हानि की तुलना में अधिक हो।
स्पष्ट है कि यदि  युक्तियुक्त निर्बंधन की संकल्पना के ज़रिए  सामूहिक हित एवं व्यक्तिगत हित के बीच सामंजस्य को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है, तो इसे न्यायिक पुनर्विलोकन के दायरे में रखकर इसके मनमाने एवं अनुचित होने की संभावना को भी निरस्त किया गया है।
प्रेस की स्वतंत्रता और इसके नियमन का प्रश्न:
प्रेस और मीडिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी को लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता की बुनियादी शर्त के रूप में देखा गया है। इसीलिए प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सरकार द्वारा नियमन के बजाय मीडिया द्वारा आत्मनियमन पर बल दिया जाता है। इसी आलोक में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियमन के लिए न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) द्वारा न्यूज़ ब्राडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) की स्थापना की गई। 26/11 की पृष्ठभूमि में यह धारणा बनी कि एंटी-टेररिस्ट ऑपरेशनों के मीडिया द्वारा अधिक संयमित एवं ज़िम्मेवार तरीक़े से कवरेज की ज़रूरत है। इसने NBSA को गाइडलाइन्स जारी करने के लिए उत्प्रेरित किया। सभी चैनल इसकी परिधि में आते हैं और इसके द्वारा चैनलों द्वारा की गई ग़लती के आलोक में सज़ा दी जाती है। यह दोषी चैनलों को प्रतिबंधित करने तक की सज़ा दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश के इसके चेयरमैन होने के कारण इसकी स्वतंत्रता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता संदेह से परे है।
सरकार द्वारा जारी एडवाइज़री:
26/11 के मुंबई हमले के समय भी टीवी चैनलों पर ऐसे आरोप लगे थे, लेकिन उस वक्त सरकार ने संयम से काम लिया था।  बाद में सरकार ने 2008 और 2009 में दो बार टीवी चैनलों को नोटिस के बजाय ‘एडवाइजरी’ भेजा था. इस एडवाइजरी में चैनलों से किसी भी एंटी-टेरर ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों की लोकेशन और मूवमेंट के बारे में रिपोर्टिंग न करने को कहा था. 29 अगस्त 2013 को इस मसले पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई हमले के समय भारतीय टीवी चैनलों की कवरेज को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाला’ बताया और कहा कि इससे देश-समाज को कोई फायदा नहीं हुआ.
संशोधित केबल टेलिविज़न नेटवर्क नियमावली:
1995 में लाई गई यह नियमावली सरकार को किसी भी चैनल को बैन करने के लिए सरकार को अधिकृत करता है। इस ऐक्ट में वाजपेयी सरकार द्वारा संशोधन के ज़रिए कुछ नए प्रावधान जोड़े गए। आगे चलकर 2015 में केन्द्र सरकार ने केबल टी.वी. नेटवर्क नियमावली, 1994 में संशोधन के ज़रिए एक नया क्लॉज़ 6(1)p जोड़ा। इसके तहत् टी.वी. चैनलों को सेक्युरिटी फोर्सेज के द्वारा आतंक-विरोधी अभियानों के लाइव प्रसारण से रोका गया और ऑपरेशन के पूरा होने तक मीडिया कवरेज को सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी की आवधिक ब्रीफिंग तक सीमित रखा गया। इस संशोधन का उद्देश्य ऐसी सूचनाओं के प्रकाशन को रोकना है जो किसी भी प्रकार से राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल सकते हैं।
इस नियमावली की अपनी सीमाएँ हैं। यह टेलिविज़न कार्यक्रमों के प्रसारण को विनियमित करने या प्रतिबंधित करने के लिए सरकार को अधिकृत करता है, लेकिन इसके अंतर्गत सरकार द्वारा की जाने वाली कार्यवाही के विरूद्ध अपील की कोई व्यवस्था नहीं है। दूसरी बात यह कि न तो सरकार द्वारा गठित अधिकारियों का पैनल ऐसे मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त संस्था है और न ही सरकार को ऐसे मामलों में दंडित करने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण माना जा सकता है। यह काम स्वतंत्र और स्वायत्त प्राधिकरण के ज़िम्मे होना चाहिए। तीसरी बात यह कि क्या सरकार द्वारा गठित इस पैनल में विभिन्न हितधारकों का प्रतिनिधित्व हुआ है?
चौथी बात यह कि यह नियमावली “ऑपरेशन के दौरान सूचनायें उपलब्ध कराने हेतु सरकार के लिए औपचारिक प्रवक्ता के रूप में किसी को अधिकृत किया जाना आवश्यक होगा या नहीं” के प्रश्न पर मौन है। पाँचवीं बात, प्रेस ब्रीफ़िंग के लिए प्रयुक्त ‘समय-समय पर’ (Periodic) शब्द को अपरिभाषित रखा गया है। छठी बात, इसी प्रकार ब्रीफ़िंग का मतलब सावधानीपूर्वक सोच-समझकर तैयार किया गया वक्तव्य है। इसमें प्रश्न पूछने की इजाज़त नहीं होती है, जबकि मीडिया की भूमिका पर्यवेक्षक एवं निगरानीकर्ता की होती है और उससे अपेक्षा की जाती है कि वह सत्य की तह तक पहुँचने के लिए सत्ता से प्रश्न करे। यहाँ तक कि ज़रूरत पड़ने पर सत्य की पड़ताल के क्रम में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के द्वारा जारी दिशानिर्देशों के आलोक में जाँच भी करे!


                          पार्ट टू: NDTV पर बैन से जुड़े प्रमुख पहलू



प्रतिबंध का आधार:

प्रसारण पर प्रतिबंध का यह आदेश इस अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए जारी किया गया। यह धारा भारत की सम्प्रभुता, अखंडता या सुरक्षा, पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक-व्यवस्था, सदाचार या नैतिकता के मद्देनज़र कार्रवाई के लिए केन्द्र सरकार को सक्षम बनाती है। ये वही प्रावधान हैं जिनकी चर्चा संविधान के अनु. 19(2) के अंतर्गत युक्तियुक्त निर्बंधनों के आधार के रूप में की गई है। स्पष्ट है कि इस विधायन का उद्देश्य अंतिम विकल्प के रूप में संवैधानिक फ़्रेमवर्क के दायरे में रहते हुए कार्यवाही हेतु कार्यपालिका को सक्षम बनाना है। इसी आलोक में सरकार द्वारा गठित इस अंत:मंत्रालयीय पैनल ने NDTV के एंकर और संवाददाताओं के बीच होने वाली बातचीत के निम्न अंशों को उद्धृत करते हुए तीस दिनों के लिए NDTV के प्रसारण को प्रतिबंधित करने की अनुशंसा की::

1. संवाददाता: “दो आतंकी जिंदा है, और उसी जगह पर हथियारों का डिपो जाओ वहाँ बिलकुल उनके करीब है. और हो सेना के जवान, NSG के जवान आतंकिओं से लोहा ले रहे है, उनको दर इस बात का कई, चिंता इस बात का है, कहीं आतंकियों की पहुँच उस हथियार के डिपो तक हो जाती है, तो फिर उन आतंकियों से निपटना आसान नहीं होगा, बहुत मुश्किल हो जायेगा. क्योंकि उस हथियार के डिपो में राकेट लांचर, मोर्टार जैसे कई हथियार कें, जो और ज्यादा तबाही मचा सकते हैं”

2. संवाददाता: “दो आतंकियों का ग्रुप आया था, जो कही इधर-उषर गए होंगे, हो सकता है ठीक उसके सामने वहां एअरपोर्ट भी है, दूसरा आर्मी का बेस भी है, तो कहीं भी जा सकते हैं. इस तरह पूरी पक्की सावधानी के साथ चप्पे-चप्पे में छान लेना चाहते हैं, उसके बाद ही इस ऑपरेशन को ख़त्म करने का ऐलान किया जायेगा.”

3. एंकर: “साथ ही आखिरी सवाल राजीव, जैसे की बड़े इलाके में एयरफोर्स बेस फैला हुआ है, जिसमें परिवार भी है, स्कूल भी है शायद, वहाँ हेलीकाप्टर भी है, मिग है, तो इतने बड़े इलाके में जब छानबीन की जाती है, इतने बड़े इलाके में फिजिकली जाकर जब इंस्पेक्ट किया जाता है, तो चुनौतियाँ क्या रहती हैं?”

4. संवाददाता: “बिलकुल चुनौतियाँ बहुत ज्यादा और खासतौर से शुरू से ही जैसे की पठानकोट एयरबेस पर आतंकियों ने हमला किया, तो वहाँ जो एयरफोर्स के जवान थे, स्पेशल फ़ोर्स के जवान थे, उनको चिंता इस बात की थी, की वह  टेक्निकल एरिया में न जा पायें.. आपको यह बता दें कि वहाँ टेक्निकल एरिया में मिग-२१, बीसों अटैक हेलीकाप्टर, MI-35, MI-25 है, और यहाँ फ्यूल टैंक वहाँ पर मौजूद था, यह बहुत बम की तरह होते हैं, अगर आतंकी वहां पहुँच जाते, तो उस इलाके में बस तबाही का अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है, चूंकि आज पठानकोट एयरबेस जो है, वहाँ सिविलियन आबादी के बिलकुल करीब हो चुका है,  तो तबाही बहुत भारी भरकम होती. उनकी कोशिश यह थी कि आतंकियों को डोमेस्टिक एरिया में लिमिट किया जाए, एक छोटे से एरिया में लिमिट किया जाए ताकि अपने ऑपरेशन को बेहतर तरीके से चला सके और आतंकी ज्यादा डैमेज ना कर पाए”


पहली बार नहीं लगा बैन:

इससे पहले भी UPA के शासन (2014-14) के दौरान  20 चैनलों को 28 बार ऑफ-एयर किया गया. ये बैन एक दिन से लेकर दो महीने तक के थे. 2007 में न्यूज चैनल ‘जनमत TV’  का प्रसारण एक महीने के लिए रोक दिया गया था. वजह, एक फर्जी स्टिंग, जिसमें एक लेडी स्कूल टीचर को सेक्स रैकेट मामले में फंसाया गया था. टीचर का नाम उमा खुराना था और स्टिंग का दावा था कि वह स्कूली छात्राओं का सेक्स रैकेट चलाती हैं. खबर के बाद तुर्कमान गेट स्थित सरकारी स्कूल के बाहर भीड़ ने उमा खुराना को जान से मारने की कोशिश की थी, लेकिन छानबीन के बाद उमा को बेकसूर पाया गया. उस समय सुधीर चौधरी (अब ज़ी न्यूज के संपादक) इसके सीईओ-संपादक थे. बाद में उन पर कोल स्कैम की खबर न दिखाने के एवज में जिंदल ग्रुप से 100 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का आरोप है. फिलहाल वो इस केस में जमानत पर बाहर हैं.
फैशन के ग्लोबल ट्रेंड्स दिखाने वाले फैशन टीवी(FTV) को 2007 से 2013 के बीच नौ दिन से लेकर दो महीने के लिए तीन बार ऑफ एयर किया गया.
अप्रैल, 2013 को महुआ टीवी एवं  AXN,  मई, 2013 को मूवीज ओके चैनल  और जनवरी, 2014 को ‘WB’ चैनल  पर ‘ए’ सर्टिफिकेट वाली फिल्म दिखाने की वजह से तथा एक दिन के बैन का आदेश जारी हुआ था. मई, 2013 को कॉमेडी सेंट्रल चैनल के खिलाफ स्टैंड अप क्लब’ प्रोग्राम के प्रसारण के कारण 10 दिनों के बैन का आदेश जारी हुआ था.

अबतक के बैन से NDTV बैन की भिन्नता:

पिछली सरकार के समय में जिन चैनलों को प्रतिबंधित किया गया, उनमें ‘जनमत टीवी’ को छोड़कर अन्य सभी चैनल फिल्मों और मनोरंजन से संबंधित थे जिन पर एडल्ट कन्टेंट परोसने के आरोप थे। ज्यादातर मामले केबल टीवी ब्रॉडकास्टिंग नियमों को तोड़ने के थे. ‘जनमत टीवी’ वाला केस बेहद लापरवाही भरा था और उसमें एक बेकसूर महिला को एक बेहद गंभीर और घिनौने अपराध में फंसाने की कोशिश की गई थी. अत: सरकार ने इस पर बड़ा फैसला लिया. लेकिन, NDTV इंडिया का मसला इससे अलग है।
इससे पूर्व भी वर्तमान सरकार ने 2015 में भारत का गलत नक्शा दिखाने के आरोप में कतर आधारित ‘अल जजीरा (English)’ का प्रसारण पाँच दिनों के लिए रोका था। सरकार ने NDTV इंडिया पर एक दिन के बैन की वजह ‘कूटनीतिक तौर पर संवेदनशील’ जानकारी के उद्घाटन को बताया है. यूपीए के समय प्रतिबंधित चैनलों का नैतिक पक्ष कमज़ोर था और उसका कोई राजनीतिक एंगल नहीं था। लेकिन, NDTV का मसला इससे भिन्न है। NDTV का नैतिक पक्ष भी सबल है और इस प्रतिबंध का एक राजनीतिक एंगल भी है।
एनडीटीवी का जवाब
उसका तर्क है कि पठानकोट हमले की हर न्यूज चैनल और अखबार ने ऐसी ही रिपोर्टिंग की थी और सरकार जान-बूझकर सिर्फ उन्हें निशाना बना रही है. NDTV ने 2-4 नवम्बर के बीच विभिन्न समाचारपत्रों और चैनलों द्वारा दी गई सूचनाओं और उनसे संबंधित लिंक भी उपलब्ध करवाए। रिपोर्टिंग के इस अंश को इस आर्टिकल के पार्ट थ्री में दिया गया है। स्पष्ट है कि NDTV ने बिंदुसार पैनल की आपत्तियों को ख़ारिज किया। उसने स्पष्ट किया कि:
1. उसने कोई भी गोपनीय सूचना सार्वजनिक नहीं की है.
2. उसकी कवरेज में जो चीजें आईं, वो पहले से ही सार्वजनिक हैं.
3. उसकी रिपोर्टिंग मुख्यत: ऑफिशियल ब्रीफ़िंग पर आधारित थी।
4. पूरी रिपोर्टिंग जवाबदेह तरीक़े से की गई और इसीलिए यह संतुलित है।

समझना होगा हमें NDTV और रवीश को:

सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि NDTV क्या है? यह सामाजिक संस्था है या ग़ैर-सरकारी संगठन(NGO) है या लोककल्याणकारी संस्था है? मेरी नज़रों में न तो यह NGO है और न ही लोक-कल्याणकारी संस्था। यह भी अन्य चैनलों की तरह एक मीडिया हाउस ही है जो व्यावसायिक उद्देश्यों से परिचालित है। इसलिए यह अपेक्षा करना कि अन्य मीडिया हाउसों की जो कमज़ोरियाँ हैं, NDTV उससे पूरी तरह से मुक्त हो, यह इस वास्तविकता की अनदेखी करना है। स्पष्ट है कि इसके भी अपने व्यावसायिक हित हैं और उन व्यावसायिक हितों को साधना उसकी ज़रूरत भी है और मजबूरी भी। इसी से उसके राजनीतिक रूझान भी निर्धारित होते हैं। यही बातें रवीश के बारे में भी कही जा सकती हैं। रवीश की अपनी सीमाएँ हो सकती हैं और हैं भी। रवीश को उन सीमाओं के दायरे में रखकर देखे जाने की ज़रूरत है। लेकिन, एक दर्शक के रूप में हमारे लिए महत्वपूर्ण यह है कि चाहे NDTV हो या फिर रवीश, अपने व्यावसायिक हितों से परे हटकर वे अपने व्यावसायिक दायित्वों और पत्रकारिता-धर्म का निर्वाह कर पा रहे हैं या नहीं? अगर नहीं, तो निश्चय ही यह देश के लिए और हमारे लिए भी चिंतनीय स्थिति है। यहाँ पर भी हमसे व्यावहारिक नज़रिया अपेक्षित है। पहली बात यह कि रवीश न तो सुपरमैन हो सकते हैं और न हैं। मैं तो कहूँगा कि उनके ऐसा होने की ज़रूरत भी नहीं है। दूसरी बात यह कि रवीश को उनके सहकर्मियों और NDTV को उसके प्रतिस्पर्धी अन्य चैनलों के सापेक्ष रखकर देखे जाने की ज़रूरत है, तभी हम NDTV और रवीश का वास्तविक मूल्याँकन कर पायेंगे।
आप यहाँ पर प्रश्न उठायेंगे कि राष्ट्र-हित और राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई व्यक्ति या संस्था महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है। मैं इस बिन्दु पर आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ। न तो रवीश और न ही NDTV, न राहुल गाँधी और न ही काँग्रेस, न तो अरविंद केजरीवाल और न ही आप तथा न तो नरेन्द्र मोदी और न ही भाजपा राष्ट्र एवं राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण हो सकते हैं। लेकिन, प्रश्न यह उठता है कि राष्ट्र-हित और राष्ट्रीय सुरक्षा को परिभाषित कौन करेगा? हो सकता है कि राष्ट्र-हित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की मेरी परिभाषा आपकी परिभाषा से भिन्न हो और किसी अन्य की परिभाषा हम दोनों की परिभाषा से भिन्न। ऐसी स्थिति में वाद, विवाद और संवाद ही वह माध्यम है जिसके ज़रिए दूरियाँ कम करते हुए आम सहमति क़ायम की जा सकती है। इसलिए बहस की गुंजाइश बने रहने दीजिए। असहमति, मतभेद और विरोध के प्रति सम्मान आम सहमति की पूर्व शर्त है।
रवीश और NDTV विलेन नहीं हैं और न ही हमारे राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद की परिभाषा इतनी संकीर्ण हो कि बड़ी आसानी से हम इन्हें एंटी-नेशनल घोषित कर दें। एक बात मुझे अब भी समझ नहीं आती है कि जिन लोगों के लिए यूपीए शासन के दौरान रवीश हीरो हुआ करते थे, आज वही रवीश उन्हीं की नज़रों में विलेन कैसे बन गए? क्या महज़ इसलिए कि यूपीए के सत्ता में रहने पर रवीश के निशाने पर यूपीए सरकार होती थी जिसकी आलोचना इनके राजनीतिक हितों को साधने में सहायक थी, पर आज सत्तारूढ दल की यही आलोचना इन्हें भारी पड़ती है। आज हमें रवीश एंटी-नेशनल, काँग्रेसी और आपाइट लगने लगे हैं।
यहाँ बार-बार रवीश की बात इसलिए आ रही है कि हमने रवीश को NDTV का सिंबल मान लिया है जिसके कारण रवीश के कारण ही NDTV इंडिया की आलोचना होती है और जब हमें NDTV की आलोचना करनी होती है, तो हम रवीश की आलोचना शुरू कर देते।
यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हम हर मुद्दे पर NDTV से सहमत हों, यह जरूरी नहीं है। लेकिन, जितना हमें NDTV से असहमत होने का हक है, उतना ही सरकार से एनडीटीवी को भी। अगर असहमति और आलोचना के लिए जगह नहीं होगी, तो फिर लोकतंत्र का मतलब ही क्या रह जाएगा? अगर नागरिक अधिकारों की इसी तरह उपेक्षा की जाएगी, तो फिर लोकतंत्र के क्या मायने रह जायेंगे? लोकतंत्र का मतलब सिर्फ चुनाव नहीं होता है।
दूसरी बात यह कि सुप्रीम कोर्ट ने एकाधिकार अवसरों पर जानने के अधिकार को अनु. 19(1क) में अंतर्निहित माना है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी आतंकी हमले के बारे में नागरिकों को सिर्फ उतना और सिर्फ वही जानना तथा बताया जाना चाहिए जितना और जैसा सरकार बताना चाहती है?  यह स्थिति सरकार को चीज़ों और घटनाओं को अपने हिसाब से प्रस्तुत करने की असीमित छूट प्रदान करेगी। और, अगर ऐसा है, तो सरकार की जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाएगी

NDTV और सरकार के तनावपूर्ण संबंध:

सबसे पहली बार 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जी ने स्थानीय केबल वितरकों को NDTV के प्रसारण को रोकने का निर्देश दिया था। तब से लेकर अबतक समय के साथ ये मतभेद कम होने का  गुजरात दंगे की पृष्ठभूमि में चौदह वर्षों पहले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में NDTV के साथ जो मतभेद शुरू हुए, वे मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद कम नहीं हुए, वरन् गहराते चले गए। NDTV का रूख सरकार की नीतियों के प्रति आलोचनात्मक रहा है और यह सरकार के लिए परेशान करने वाला रहा है। इसीलिए इस प्रतिबंध को सरकार की NDTV से नाराज़गी से जोड़कर देखा जा रहा है। यही कारण है कि NDTV को उन लोगों का पूरा समर्थन मिल रहा है जो सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों को पसंद नहीं करते हैं या फिर जो सरकार के साम्प्रदायिक-राष्ट्रवादी एजेंडे से नाराज़ हैं।
यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें NDTV ने रचनात्मक प्रतिरोध का रास्ता चुना ताकि ज्यादा-से-ज्यादा लोगों से खुद को जोड़ सकें. रवीश कुमार ने चार नवम्बर के प्राइम टाइम में मूक अभिनय वाले दो कलाकारों को इस तरह से पेश किया जिससे यह लगे कि सरकार द्वारा आरोपित प्रतिबंध राजनीतिक कारणों और बदले की भावना से प्रेरित है।
NDTV के बारे में यह धारणा बनाई गई है कि उसका सत्ता-विरोध जितना मोदी सरकार के समय मुखर है, उतना यूपीए के समय नहीं था. इसका एक कारण यह भी है कि प्रणय राय और NDTV के शीर्ष पर विद्यमान कई लोगों के काँग्रेस एवं वामपंथी नेतृत्व के साथ निकट के पारिवारिक संबंध हैं। इसलिए भी सत्ता-प्रतिष्ठान एनडीटीवी को पसंद नहीं करता है.

क्यों इस प्रतिबंध का विरोध किया जाना चाहिए?

इस प्रतिबंध को स्वतंत्र रूप से देखे जाने की बजाय निरंतरता में देखा जाना चाहिए। पहले भोपाल इनकाउंटर के प्रश्न पर गहराते मतभेद की पृष्ठभूमि में सरकार द्वारा अपनी कमियों को ढकने के लिए राष्ट्रवाद का सहारा लिया जाना, फिर राहुल गाँधी एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आत्महत्या करने वाले सैनिक के परिजनों से मिलने नहीं देना और अब NDTV पर बैन। इसे देखा जाना चाहिए उस सरकार के आदेश के रूपमें जो हर स्थिति में असहमति, मतभेद और विरोध को कुचलने पर आमदा है। इसीलिए सरकार के इस फ़ैसले के बाद कहा जा रहा है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला कर रही है. दूसरी बात यह कि यह प्रतिबंध संविधान-प्रदत्त और अनु. 32  के साथ-साथ न्यायपालिका द्वारा संरक्षित प्रेस की आज़ादी का अतिक्रमण करता है। भारत जैसे गतिशील लोकतंत्र में इसके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। तीसरी बात यह कि जिस तरीक़े से केबल अधिनियम के प्रावधानों का NDTV के ख़िलाफ़ प्रयोग किया गया, वह भैदभावकारी है और विधि के शासन की संकल्पना का मज़ाक़ बनाता है।
सम्बद्ध मसले:
अब इस प्रतिबंध के आलोक में देखें, तो एक साथ कई प्रश्न उभरते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि विवादास्पद ब्राडकास्टिंग लाइव कवरेज के दायरे में आएगी या फिर रिपोर्टिंग के दायरे में?
1. पहला प्रश्न, NDTV 24*7 ने भी तो वही फ़ुटेज दिखाए, तो फिर NDTV इंडिया पर ही प्रतिबंध क्यों? क्या सिर्फ़ इसलिए तो नहीं कि हिंदी चैनल होने और रवीश की बढ़ती लोकप्रियता के कारण NDTV इंडिया की पहुँच आमलोगों तक ज़्यादा है, विशेषकर गंभीर दर्शकों तक, जिनकी धारणाओं के निर्माण में अहं भूमिका है।
2. दूसरा प्रश्न, केवल NDTV इंडिया ने ही नहीं, वरन् सभी न्यूज़ चैनलों ने पठानकोट ऑपरेशन का सीधा प्रसारण किया और जिन सूचनाओं को लीक करने के आरोप पर जो आरोप NDTV इंडिया पर  लगे हैं, वे आरोप तो अन्य न्यूज़ चैनलों पर भी लगते हैं और उन आरोपों के आधार पर तो अन्य टीवी चैनलों पर भी प्रतिबंध बनता है।
3. तीसरी बात, जिन सूचनाओं को गोपनीय बतलाया जा रहा है, क्या वाक़ई वे सूचनाएँ गोपनीय हैं? वे सूचनाएँ पहले से ही पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं और उन सूचनाओं तक किसी भी आसानी से पहुँच संभव है। NDTV इंडिया द्वारा इन सूचनाओं पर चर्चा से पूर्व ही समाचारपत्रों में इन सूचनाओं का प्रकाशन हो चुका था और कई न्यूज़ चैनल पर इसकी रिपोर्टंग भी हो चुकी थी। साथ ही, ये सूचनाएँ हाई रिज़ोल्यूशन वाले गूगल मैप एवं अन्य ऑन लाइन साइट्स पर भी उपलब्ध हैं।

4. चौथी बात, समिति का यह तर्क भी समझ से परे है कि समाचारपत्रों की सूचनाएँ आतंकी तत्वों के लिए कम उपयोगी होती हैं, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विजुअल इफ़ेक्ट और त्वरित पहुँच के कारण अधिक प्रभावी होती है। ये बातें कुछ हद तक ही सही है क्योंकि इंटरनेट ने इस फ़र्क़ को बहुत हद तक कम कर दिया है।
5. पाँचवीं बात, ऑपरेशन के दौरान जारी लाइव ऑफिशियल ब्रीफ़िंग में भी एयर बेस में सिविलियन एवं स्कूल की मौजूदगी की बात की गई, यद्यपि ब्रीफ़िंग में आतंकी ख़तरे को टालने और नागरिक एवं सैन्य परिसम्पत्तियों के ख़तरे से बाहर होने की बात की गई।
6. छठी बात यह कि जब पहले से जस्टिस रविन्द्रन की अध्यक्षता वाला न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) नियामक संस्था के रूप में मौजूद है, तो सरकार ने इसके समक्ष शिकायत करने और इसके ज़रिए आरोपों की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जाँच करवाने के बजाय सरकार द्वारा गठित पैनल के ज़रिए जाँच क्यों करवाई? अगर NDTV इंडिया दोषी थी, तो सरकार को NBSA के पास शिकायत करनी चाहिए थी और फिर NBSA उन शिकायतों के आलोक में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जाँच को सुनिश्चित करते हुए आरोप के सच होने की स्थिति में कार्रवाई करती, जिसके लिए वह अधिकृत है। अगर ऐसा होता और यह कार्रवाई NBSA की अनुशंसा के आलोक में की गई होती, तो ये समस्या नहीं आती।





                                  पार्ट  तीन: पैनल की रिपोर्ट

The content was aired on NDTV India on 4th January 2016, from 12:25:45 hours to 12:31:25 hours while anti-terror ops were still underway at Pathankot. During this period, after reporting  the press briefing of the armed forces, the anchor asked the correspondent on the ground for further information. According to the IMC PanelAt this stage, i.e. at 12:28:16 hours, the IMC notes that the correspondent divulges “sensitive” information as below:
1. The correspondent revealed that 2 terrorists were nearby, and could have gone to an airport nearby, or to the 2nd army base. Thus, they (the army) want to scan the entire area bit by bit, with full precautions, only then will the operations be declared as over.
2. Next, the IMC notes that the anchor asks the correspondent what sort of challenges lie in scanning such a large area, where families, schools, helicopters and MIGs are present. To which the correspondent replies: According to the IMC NDTV India gave away information such as details of ammunition stockpiled in the airbase, MIGs, fighter planes, rocket launchers, mortars, helicopters, fuel tanks which was likely to be used by the terrorists themselves or their handlers to cause massive harm not only to national security, but also to civilians and defence personnel.
3. The channel also gave details of school and residential areas located in the airbase which could have been used by the terrorists or their handlers to cause violence to the innocent in the school and the residential area.
4. Real time information: The correspondent clearly states that 2 terrorists are alive, and at the same place where the weapons depot is located. And that the army is worried that if the terrorists reaches this depot, then it would be much harder to contain the terrorists, because the depot has rocket launchers, mortar and other destructive weapons.
5. The IMC also noted that initially NDTV India stuck to the information revealed by armed forces press briefing, but later “changed its tone, and added a contrarian stance”. This can be seen from line two in excerpt 3 above, as per the IMC’s report.
6.
Response of NDTV:
1. The entire coverage was deferred, and the details such as those of the weapons, ammunition and equipment present, and the presence of schools and residential areas, was already reported by the print media.
2. NDTV India cited specific references of news items from the Indian Express, the Times of India, the Hindustan Times etc from 3rd and 4th January which revealed similar information.
3. NDTV India also cited the press briefings by the army personnel.
4. and finally said that this was a case of subjective interpretation.
5. Hence it  requested the Ministry to view the reportage from the perspective as given by them.
On the basis of NDTV’s reply in written and personal hearing, IMC Panel concluded that the information regarding location and expanse of the assets at the airbase, was available in “bits and pieces” in various media, but, NDTV appeared to give out the exact location of the remaining terrorists, with regards to the sensitive assets around them, when they telecast in real time as follows.


From this the IMC determined that the information broadcast by NDTV India, was “neither based, nor limited to”  to periodic briefing by a designated officer, and hence NDTV India was in violation of rule 1(p) as cited above. The IMC also observed that the guidelines governing the TV channels and Newspapers are different. They noted that “the reach of TV Is beyond physical borders and language barriers” and that “TV as an audio/visual medium have a far wider and instantaneous impact”.
IMC further noted that “threat to National Security cannot justified on any grounds whatsoever”, hence “no benefit of doubt could be given for their subjective interpretation as mentioned in the representation given by the channel”. IMC also took cognisance of the fact that this was not the first violation by NDTV group and that “there are previous incidents where the channel has violated the Program code in the Cable act”.
For deciding the quantum of punishment, IMC relied on para 8 of the Guidelines for up-linking from India, which gave the powers to the ministry to suspend permissions for 30 days, in case of first violation, and 90 days in case of second violation. Based on this, the IMC had initially recommended a 30 day ban for NDTV India.
However the I&B ministry informed the IMC, that rule 6(1) p which was violated by NDTV India was newly introduced in June 2015. The IMC then opined that perhaps news channels weren’t sensitised about the rule change, and since this was the first instance of violation by any channel of this new rule, the penalty of 30 days seemed harsh. Hence, they settled for a token one-day penalty. The IMC noted that this one day token penalty cut was recommended to ensure that NDTV India does not get away completely for this “huge indiscretion and violation of rules” and also its “unrepentant behaviour”.




                               पार्ट चार:NDTV का बचाव


On the 29th of January this year, NDTV India got a show cause notice from the Ministry of Information and Broadcasting, which said

“while reporting on the operation relating to the Pathankot terrorist attack, (on the 4th of January) NDTV India TV channel has given away information on the ammunition stockpiled in the airbase, MIGs, fighter planes, rocket launchers, mortars, helicopters, fuel tanks which was likely to be used by the terrorists themselves or their handlers to cause massive harm not only to national security, international standing of the country but also life of civilians and defence personnel. The channel has also given details of school and residential areas located in the airbase, which could have been used by the terrorists or their handlers to cause violence to the innocent lives in the school and the residential area.”
                   
सरकार द्वारा NDTV के एंकर और संवाददाताओं के बीच होने वाली बातचीत के उद्धृत अंश:

5. संवाददाता: “दो आतंकी जिंदा है, और उसी जगह पर हथियारों का डिपो जाओ वहाँ बिलकुल उनके करीब है. और हो सेना के जवान, NSG के जवान आतंकिओं से लोहा ले रहे है, उनको दर इस बात का कई, चिंता इस बात का है, कहीं आतंकियों की पहुँच उस हथियार के डिपो तक हो जाती है, तो फिर उन आतंकियों से निपटना आसान नहीं होगा, बहुत मुश्किल हो जायेगा. क्योंकि उस हथियार के डिपो में राकेट लांचर, मोर्टार जैसे कई हथियार कें, जो और ज्यादा तबाही मचा सकते हैं”

6. संवाददाता: “दो आतंकियों का ग्रुप आया था, जो कही इधर-उषर गए होंगे, हो सकता है ठीक उसके सामने वहां एअरपोर्ट भी है, दूसरा आर्मी का बेस भी है, तो कहीं भी जा सकते हैं. इस तरह पूरी पक्की सावधानी के साथ चप्पे-चप्पे में छान लेना चाहते हैं, उसके बाद ही इस ऑपरेशन को ख़त्म करने का ऐलान किया जायेगा.”

7. एंकर: “साथ ही आखिरी सवाल राजीव, जैसे की बड़े इलाके में एयरफोर्स बेस फैला हुआ है, जिसमें परिवार भी है, स्कूल भी है शायद, वहाँ हेलीकाप्टर भी है, मिग है, तो इतने बड़े इलाके में जब छानबीन की जाती है, इतने बड़े इलाके में फिजिकली जाकर जब इंस्पेक्ट किया जाता है, तो चुनौतियाँ क्या रहती हैं?”

8. संवाददाता: “बिलकुल चुनौतियाँ बहुत ज्यादा और खासतौर से शुरू से ही जैसे की पठानकोट एयरबेस पर आतंकियों ने हमला किया, तो वहाँ जो एयरफोर्स के जवान थे, स्पेशल फ़ोर्स के जवान थे, उनको चिंता इस बात की थी, की वह  टेक्निकल एरिया में न जा पायें.. आपको यह बता दें कि वहाँ टेक्निकल एरिया में मिग-२१, बीसों अटैक हेलीकाप्टर, MI-३५, MI-२५ है, और यहाँ फ्यूल टैंक वहाँ पर मौजूद था, यह बहुत बम की तरह होते हैं, अगर आतंकी वहां पहुँच जाते, तो उस इलाके में बस तबाही का अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है, चूंकि आज पठानकोट एयरबेस जो है, वहाँ सिविलियन आबादी के बिलकुल करीब हो चुका है,  तो तबाही बहुत भारी भरकम होती. उनकी कोशिश यह थी कि आतंकियों को डोमेस्टिक एरिया में लिमिट किया जाए, एक छोटे से एरिया में लिमिट किया जाए ताकि अपने ऑपरेशन को बेहतर तरीके से चला सके और आतंकी ज्यादा डैमेज ना कर पाए”
तीन रक्षा-विशेषज्ञों की प्रेस-ब्रीफ़िंग:
(लाइव रिपोर्टिंग के ठीक पहले)
इस लाइव रिपोर्टिंग के प्रमुख अंश:

1. एयर ऑफ़िसर कमांडिंग जे.एस. धूमन: “ऑपरेशन अभी भी जारी है, और जैसा की आपको बताया है, यह काफी बड़ा एयरबेस है, स्ट्रेटेजिक एसेट्स के अलावा यहाँ पर काफी फॅमिली रहती हैं, स्कूल है, यह एक मिनी-सिटी है” (

2. ब्रिगेडियर अनुपिंदर सिंह: “These terrorists came well prepared, could it be aim of targeting strategic assets, which include aircraft and helicopters located in the vital Pathankot airbase.”

“The terrorists were holed up in a double storied building, which was the living accommodation of the air force personnel and currently the operations are in progress to clear this building from terrorists.”

In other words, the army itself had given details about the:
a.location of the terrorists and
B.the fact that the airbase was like a ‘mini-city’ with families and a school.
Remember, the government was charging NDTV India with giving out “details of school and residential areas located in the airbase, which could have been used by the terrorists or their handlers to cause violence to the innocent lives in the school and the residential area.” It is clear this information was given out by the army itself in an official briefing.

The other charge against NDTV India was that it had “given away information on the ammunition stockpiled in the airbase, MIGs, fighter planes, rocket launchers, mortars, helicopters, fuel tanks which was likely to be used by the terrorists themselves or their handlers to cause massive harm.” The implication is that at 12:26 on the 4th of January, NDTV India’s reporter had given away strategically sensitive information, which was not available to the terrorists or their handlers till then.

But, on the 2nd of January, two days or 48 hours before NDTV India’s report India Today’s website reported:

1. “Terrorists were contained in the domestic area of the air-base and no damage was done to helicopters and MIG-29 fighter jets stationed at the base.”

The Hindu, too, reported on the 2nd of January:

2. “The MIG-21 BiS fighter jets and the Mi-25 and Mi-35 attack helicopters were in the technical area.”

On the 3rd of January,, the Indian Express reported:

3. “At the IAF base, MIG-21 Bison fighter jets, MI-35 attack helicopters, missiles and other critical assets were secure and the terrorists were prevented from getting near the technical area where the assets were stations, IAF sources said.”

On the same day, the Times of India reported:

4. “The airbase houses MIG-21, Bison fighter jets and MI-25 and MI-35 attack helicopters. Besides this, it also has Pechora missile – a surface to air missile – other air defence missiles and surveillance radars.”

Again, on the same day, the Telegraph reported:

5. “Officials suggested the militants wanted to destroy the 18 Wing of the air force, which has squadrons of MiG-21 Bis fighter planes and a squadron of Mi-25/35 helicopter gunshups, and is a rear area for aircraft that supply to troops in Siachen.”

On the morning of the 4th, 5-6 hours before NDTV India’s live report, the Tribune reported:

6. “The 108 Squadron “Hawkeyes” that fly the MiG-21 fighters and the 125 Helicopter Unit “Gladiators” that operate the Mi-35 helicopter gunships in support of the Army are based here, besides a Pechora air defence missile squadron and other auxiliary outfits.”


आजतक की रिपोर्टिंग:
Now let us look at how other Hindi news channels reported the Pathankot attack. At 7 AM on the 2nd of January, Aaj Tak reported:

1. “यह Mig-21 का अहम् बेस है, जो लड़ाकू विमान है, चारों आतंकी 100 मीटर अन्दर दाखिल हो गए हैं. मेन गेट है, तकनीकी एरिया जहां फाइटर विमान खड़े होते हैं, वहाँ तक नहीं पहुँच पाए हैं. अन्दर कमांडो ने मोर्चा संभाला है।”

Later, on the same day (2nd of January), Aaj Tak used animated graphics to report:

2. “वायुसेना के लड़ाकू विमान मिग-21, Bison, MI-25, MI-35, अटैक हेलीकाप्टर, पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन के अन्दर तकनिकी एरिया में यह तमाम लड़ाकू विमान खड़े थे, फ्यूल से भरे हुए।”

3. “यहाँ पर भारतीय वायु सेना का 108वा स्क्वाड्रन तैनात है, भारत-पाक सीमा पर बने इस बेस पर सबसे ज्यादा मिग-21 हैं, इसके अलावा इस बेस पर वायुसेना के दुसरे लड़ाकू विमान BIson, Mi-25 और MI- 35 और अटैक हेलीकाप्टर भी मौजूद है”

एबीपी न्यूज़ की रिपोर्टिंग:
On the same day, two days before NDTV India’s report, ABP News reporter Neeraj Rajput gave the following information in a phone report:

1. “चार में से दो आतंकी मारे जा चुके हैं. और दो आतंकी एयरबेस का जो डोमेस्टिक एरिया होता है, एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लाक होते हैं, रिहाइशी इलाके होते हैं, वहाँ पर आतंकी छिपे हैं.. टेक्निकल एरिया जहां पर फाइटर होते हैं, हेलीकाप्टर होते हैं, रनवे होता है, हैंगर तक नहीं पहुँच पाए हैं. बिल्डिंग में रोक दिए गए हैं. दोनों आतंकी एक ही बिल्डिंग में छिपे हुए हैं. बिल्डिंग में जहां आतंकी छिपे हैं वहाँ पर सैन्य कर्मी को घायल किया है. कोशिश की जा रही है, वही पर घेर लिया जाए.”
जी न्यूज़, इंडिया टीवी और न्यूज़ 24 की रिपोर्टिंग:
Again, on the 2nd of January, Similar information was given by Zee News reporter Raju Kerni and by India TV reporter Manish Prasad.

And, on the 4th of January, News 24 reported:

1. “मैं आपको दिखाना चाहूँगा एयरफोर्स स्टेशन से 200 मीटर की दूरी पर हूँ. रिहाइशी इलाका को खाली कराया जा चूका है, सेना के जवान पोजीशन लिए हुए हैं… अन्दर बताया जा रहा है की 22 फाइटर और हेलीकाप्टर हैं जिनकों नुक्सान पहुँचाने की आतंकी कोशिश कर सकते हैं. टेक्निकल एरिया है जहां पूरा एयरफोर्स स्टेशन का कण्ट्रोल रूम है, उसको बचाने की कोशिश की पूरी कोशिश की जा रही है, आतंकियों की पूरी कोशिश है वो टेक्निकल एरिया में घुसकर अंजाम दें…. अन्दर इसलिए भी परेशानी हो रही है की इसलिए की वहाँ बड़ी बड़ी घास है जो एयरफोर्स का 60 फ़ीसदी जंगली इलाका है, वहाँ आतंकियों को छुपने की जगह मिल रही है.. फिलहाल आतंकी के बारे में खबर मिल रही है, की वोह दो मंजिला इमारत में छिपे हुए हैं, जो कंक्रीट की बनी हुयी है, इसी वजह छिप कर बड़ी आसानी से फायर कर रहे हैं।”
NDTV पर आरोप सही नहीं:
It is clear from these extracts that, everything NDTV India reported on the 4th of January had ALREADY been reported by other channels, newspapers and websites, BEFORE NDTV India’s live broadcast. Nothing that NDTV India said could have given any EXTRA information to the terrorists or their handlers.
On the 5th of February, in its response to the MIB, outlining these things and  providing these  links, NDTV India euphemistically called it the ministry’s ‘subjective interpretation’. Later, NDTV India’s representatives also appeared before an Inter-Ministerial Committee and explained their position on the matter.

Faced with the evidence, the government shifted the goalpost and focused on only one part of the entire broadcast – that the reporter had said the terrorists were very close to an ammunition dump. If this had been the core charge in the original notice, NDTV India would have taken out evidence to show that other channels had reported the same thing at the same time.
[नोट: पार्ट थ्री angrylok.wordpress.com में प्रकाशित अमित सेन के आर्टिकल “How NDTV India Was Singled Out” पर आधारित है।]

References:
1. https://m.youtube.com/watch?v=NfBlV7U-Q9o
2. https://m.youtube.com/watch?v=-QndPRcE_tM
3. https://m.youtube.com/watch?v=DPTJOGXsVxI
4. http://www.opindia.com/2016/11/exclusive-the-exact-reason-why-ib-ministry-recommended-a-token-ban-on-ndtv-india/
5. angrylok.wordpress.com ( ‘How NDTV India Was Singled Out’ by Amit Sen)

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