हिन्दी साहित्य
(60-62)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा
के लिए गेस-वर्क
पेपर की संरचना:
इस बार बिहार लोक सेवा आयोग ने मुख्य परीक्षा पैटर्न में बदलाव की
दिशा में पहल की है। सामान्य अध्ययन के भारांश को दोगुना किया गया है
और वैकल्पिक विषय के भारांश को आधा। इसके परिणामस्वरूप वैकल्पिक विषय के अब केवल एक
पेपर होंगे। सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में प्रश्नों को
संख्या कितनी होगी, किस खंड से कितने प्रश्न होंगे और प्रश्नों की प्रकृति कैसी
होगी? संभावना इस बात की है कि पेपर के अंतर्गत दो या तीन खंड हों। अगर इस पेपर के अंतर्गत दो खंड
होते हैं, तो ये निम्न होंगे:
1.
भाषा
एवं इतिहास-खंड
2.
गद्य
एवं पद्य-खंड
ऐसी स्थिति में संभावना इस बात की है कि दोनों खंड में एक-एक प्रश्न
अनिवार्य हों: भाषा एवं इतिहास-खंड से टिप्पणी वाले प्रश्न और गद्य एवं पद्य-खंड
से व्याख्या वाले प्रश्न। ऐसा भी संभव
है कि पूरे पेपर को तीन खंड में विभाजित किये जाएँ
और फिर पेपर की संरचना इस रूप में हों:
1.
भाषा
खंड
2.
इतिहास-खंड
3.
गद्य
एवं पद्य-खंड
और, इस स्थिति में पेपर में इन खण्डों के भारांश क्रमशः 20%, 40% और
40% रहने की संभावना है। इसमें संभव
है कि केवल एक ही प्रश्न अनिवार्य हों और वे या तो केवल व्याख्या से सम्बंधित हो, या फिर टिप्पणी एवं
व्याख्या वाले प्रश्न एक साथ हों। इनमे संभावना इस बात की है कि या तो टिप्पणी एवं व्याख्या से सम्बंधित दो प्रश्न अनिवार्य हो या फिर एक
अनिवार्य प्रश्न के अंतर्गत टिप्पणियाँ
एवं व्याख्यायें दोनों समाहित हो। इसीलिए परीक्षा-भवन में इनमें से किसी भी स्थिति के लिए
मानसिक रूप से तैयार रहें और लोचशीलता बनाये रखें।
भाषा-खंड से सम्बंधित प्रश्न:
भाषा-खंड में देखा जाय, तो निम्न टॉपिकों से प्रश्न पूछे जाने की पूरी
संभावना है:
1.
अपभ्रंश,
अवहट्ट एवं प्रारंभिक हिन्दी का अंतर्संबंध।
2.
साहित्यिक भाषा के रूप में अवधी का विकास, अवधी एवं ब्रज
का अंतर, ब्रज भाषा की अपार लोकप्रियता के कारण।
3.
पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ: मैथिली एवं भोजपुरी की
विशेषतायें।
4.
साहित्यिक
भाषा के रूप में खड़ी बोली का विकास और इसमें विभिन्न संस्थाओं का योगदान।
5.
देवनागरी
लिपि की वैज्ञानिकता, दोष और सुधार के उपाय; देवनागरी लिपि का मानकीकरण और
कम्प्यूटरीकरण।
6.
संपर्क
भाषा, राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर्संबंध, राजभाषा के रूप में हिन्दी की अद्यतन
स्थिति और हालिया विवाद।
7.
हिन्दी
भाषा का वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास।
इतिहास-खंड से पूछे जाने वाले
प्रश्न:
इतिहास-खंड में देखा जाय, तो निम्न टॉपिकों से प्रश्न पूछे जाने की
पूरी संभावना है:
1.
आदिकाल:
नामकरण-विवाद, आदिकालीन साहित्य में फैक्ट और फिक्शन का समावेश,
सामाजिक-सांस्कृतिक बोध, विद्यापति और उनकी पदावली।
2.
भक्तिकाल: प्रेरणा-स्रोत, इस्लाम की भूमिका और इससे
सम्बंधित विवाद, सन्त-काव्य की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता, सूफी-काव्य की
सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना और इसका प्रदेय, तुलसी की समन्वयवादी चेतना,
सामंत-विरोधी मूल्य, लोकधर्म आदि।
3.
रीतिकाल: रीति-निरूपक आचार्यों के योगदान और महत्व का
मूल्यांकन,रीतिकालीन कवियों की श्रृंगार-चेतना; बिहारी एवं घनानंद के विवेश
सन्दर्भ में।
4.
आधुनिक काल: आधुनिक हिन्दी कविता में अभिव्यक्त
नवजागरण-चेतना का स्वरुप, छायावाद: रहस्यवाद एवं स्वच्छन्दतावाद के विशेष सन्दर्भ
में, प्रगतिवाद, नयी कविता और समकालीन कविता: स्त्री-विमर्श एवं दलित विमर्श।
5.
कथा-साहित्य: प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों में
अभिव्यक्त यथार्थवाद का स्वरुप, आंचलिक औपन्यासिक परम्परा में रेणु का योगदान और
महत्व, नाटक-रंगमंच सम्बन्ध और प्रसाद के नाटक, नयी कहानी की प्रवृत्तियाँ और विशेषतायें।
6.
आलोचना: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नागेन्द्र और
रामविलास शर्मा।
गद्य एवं पद्य खंड से पूछे जाने
वाले प्रश्न:
1.
गोदान:
कृषक से मजदूर में रूपांतरण, गोदान में चित्रित नारी-समस्या, पात्र-योजना और
चरित्रांकन-पद्धति, कृषक जीवन की त्रासदी के रूप में गोदान, गोदान की
महाकाव्यात्मकता, वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता।
2.
शेखर: एक जीवनी: एक व्यक्ति का अभिन्नतम निजी दस्तावेज़,
व्यक्ति बनाम् समाज, जीवनी या उपन्यास, मनोविश्लेषणवादी यथार्थवाद और शेखर एक
जीवनी।
3.
अंधेर
नगरी: नवजागरणपरक चेतना, प्रहसन के रूप में, रंगमंचीयता, वर्तमान सन्दर्भ में
प्रासंगिकता।
4.
चन्द्रगुप्त: राष्ट्रीय-सांस्कृतिक चेतना, नायकत्व की
समस्या, प्रसाद के नारी-पात्र, प्रसाद का इतिहास-बोध और इतिहास एवं कल्पना,
अभिनेयता।
5.
कबीर: कबीर का दर्शन, कबीर की भक्ति, सामाजिक चेतना,
व्यक्तित्व-विश्लेषण, वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता, कबीर की भाषा।
6.
सूरदास: भ्रमरगीत सार का उद्देश्य एवं महत्व, सगुण-निर्गुण
विवाद, सूर की भक्ति, प्रेम-चेतना और
नारी-चेतना, सूर का विरह-श्रृंगार, सूर की अप्रस्तुत-योजना।
7.
राम की
शक्ति-पूजा: द्वंद्वात्मकता, मौलिक शक्ति की कल्पना, पौराणिकता एवं नवीनता,
नारी-अस्मिता की तलाश, महाकाव्यात्मकता।
8.
सरोज-स्मृति: आत्मकथात्मक लम्बी कविता, शोक-गीति के रूप
में, निराला की विद्रोही चेतना।
9.
कामायनी:
रूपक के रूप में, मानव-सभ्यता की कहानी के रूप में, नवजागरणपरक चेतना, श्रद्धा का
सौंदर्य-चित्रण, प्रसाद का दर्शन, आधुनिक भावबोध।
इन संभावनाओं के बीच अगर संक्षेप में कहें, कहें, तो गद्य-खंड में गोदान, प्रेमचंद की कहानियों, अंधेर नगरी और
चन्द्रगुप्त तथा पद्य-खंड में कबीर, सूर एवं निराला कर लेने पर जोखिम की संभावना
नहीं के बराबर रहेगी।
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