भारतीय राजव्यवस्था: ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति
(BPSC)
बिहार लोक सेवा
आयोग के द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा में भारतीय राजव्यवस्था खंड से पूछे जाने
वाले प्रश्नों और उनके रूझानों पर अगर गौर करें, तो वे सामान्यतः भारतीय संविधान
एवं भारतीय राजव्यवस्था की व्यापक समझ एवं अवधारणाओं के साथ-साथ एप्लीकेशन पर आधारित
होते हैं। साथ ही, इसके लिए अपडेशन
की भी ज़रूरत होती है। इस खंड की तैयारी करते वक़्त इन पहलुओं के साथ-साथ इस बात
को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कई बार ऐसे प्रश्न बिहार के विशेष सन्दर्भ से
जोड़कर पूछे जाते हैं। इसीलिए मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की तैयारी
की रणनीति भी इसी के परिप्रेक्ष्य में निर्धारित होनी चाहिए।
बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित
मुख्य परीक्षा में भारतीय राजव्यवस्था खंड से अबतक पूछे गए प्रश्न
(56-59)th
BPSC
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(53-55)th
BPSC
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(48-52)th
BPSC
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47th BPSC
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46th
BPSC
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1.भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मौलिक अधिकारों का वर्णन
कीजिये. किस प्रकार अनु. 21 की न्यायिक व्याख्याओं ने जीवन के अधिकार के विषय
क्षेत्र का विस्तार किया है?
2.भारतीय चुनावी राजनीति में जाति की भूमिका का आकलन
कीजिये. बिहार के 2015 के चुनाव को जाति की भूमिका ने किस सीमा तक प्रभावित
किया?
3.भारतीय संघात्मक व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के
मध्य तनाव के क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिये. वर्तमान समय में संघीय सरकार तथा
बिहार राज्य के मध्य संबंधों का वर्णन कीजिये.
4.न्यायिक पुनरीक्षण से आपका क्या अभिप्राय है? भारत के
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित ‘मूल ढांचे’ के सिद्धांत का आलोचनात्मक
वर्णन कीजिये.
5.एक सुनिश्चित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन प्रणाली
के अभाव में पंचायतें एवं समीतियाँ, मुख्यत: राजनीतिक संस्थाएं बनी रहती हैं और
शासन प्रणाली की उपकरण नहीं बन पाती हैं. आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये.
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1.भारतीय संघीय व्यवस्था और केंद्र-राज्य के प्रशासनिक
सम्बन्ध का राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी परिषद (NCTC) के विशेष सन्दर्भ में वर्णन
कीजिये.
2.राज्यपाल की शक्ति और कार्यों तथा इनकी बिहार में
भूमिका का वर्णन कीजिये.
3.भारत में निर्वाचन आयोग की शक्ति और कार्यप्रणाली एवं
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में इनकी भूमिका का परिक्षण कीजिये.
4.विभिन्न नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्णन कीजिये.
१९५० के बाद बिहार में इन्हें किस तरह से क्रियान्वित किया गया है?
5.1991 से बिहार के राजकीय शासन के राजकीय परिवर्तन की
चर्चा करें.
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1.जाति एवं वर्ग भारतीय राजनीति में महतवपूर्ण भूमिका
निभाते हैं. इस उक्ति की व्याख्या बिहार के सन्दर्भ में करें.
2.बिहार के सन्दर्भ में ग्राम्य स्थानीय सरकार की कार्यों
की 1994 से आज तक की व्याख्या करें.
3.मिली जुली राजनीति भारतीय सन्दर्भ का प्रमुख लक्ष्ण हो
गया है. परंतु यह व्यवस्था अभी तक स्थायी सरकार देने में असफल रही है. अपनी राय
दें.
4.भारतीय संघीय व्यवस्था में सामयिक दिगों (Recent
Trends) की व्याख्या करें. क्या राज्यों को अधिक क्षमता (Autonomy) की आवश्यकता
है?
5.किन्हीं दो पर टिप्पणी लिखे-
a.
मनरेगा
b.
सार्वभौम मानव
अधिकार घोषणा
c.
भारत में
साम्प्रदायिकता की समस्या
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1.“चुनाव लोकतंत्र की ह्रदय गति के समान है. यदि वे भुत
जल्दी-जल्दी या बहुत अनियमित रूप से होते है तो लोकतंत्र का पतन हो सकता है.”
भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में मध्यावधि चुनावों पर अपने विचार अभिव्यक्त करें.
2.आरक्षण का मुद्दा राजनैतिक दलों के वोट-बैंक के दृढ़ीकरण
के अतिरिक्त कुछ नही है. शोषित वर्ग को सामाजिक न्याय प्रदान करवाने के लिए
आरक्षण के अतिरिक्त आप क्या उपाय सुझायेंगे?
3.टिप्पणी लिखे-
a.
पारदर्शी एवं
जवाबदेह शासन के साधन RTI अधिनियम-
b.
भारतीय जीवन व
संस्कृति पर मीडिया (प्रसार माध्यम) का प्रभाव
c.
भारतीय
राजनीति में जातीवाद- बिहार के विशेष सन्दर्भ में.
4.ग्राम्य स्तर पर राजनैतिक चेतना एवं नारी-सशक्तिकरण पर 73वें
संविधान-संशोधन के प्रभावों का बिहार के विशेष सन्दर्भ में परिक्षण कीजिये.
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1.भारतीय चुनाव आयोग के निर्देशन के अंतर्गत अबाध और
निष्पक्ष चुनाव के संचालन में नौकरशाही की भूमिका की चर्चा करें.
2.73वें संवैधान-संशोधन अधिनियम के आधारभूत प्रावधानों का
वर्णन करें.
3.चुनाव-प्रचार से आप क्या समझते है? बिहार के चुनाव
प्रचार की महत्वपूर्ण पद्धतियों पर प्रकाश डालें.
4.भारतीय राजनीति में भाषा की भूमिका का विवेचन करें.
बिहार में भाषाई संख्या लघुओं (Linguistic Minorities) के लिए प्रावधानों का
वर्णन करें.
5.सामजिक-राजनितिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में बिहार में
कारागृह प्रशासन पर अपना मत दीजिये
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मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण टॉपिक:
सबसे पहले भारतीय संविधान की प्रस्तावना को लिया जाय।
यहाँ से सामान्य प्रकृति के यह प्रश्न पूछे जा सकते हैं कि:
a.
"भारतीय संविधान में प्रस्तावना
के महत्व को रेखांकित करते हुए इसकी वैधानिक स्थिति को स्पष्ट करें।"
लेकिन, हाल
में प्रस्तावना जिस तरह से चर्चा में रही है, उसके
मद्देनज़र इस प्रश्न के पूछे जाने की संभावना प्रबल है कि:
b. " 'पंथनिरपेक्षता' और
'धर्मनिरपेक्षता' के
फ़र्क़ को स्पष्ट करें। साथ ही, बयालीसवें
संविधान-संशोधन के द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता और 'समाजवाद' शब्द
को शामिल करने के औचित्य के प्रश्न पर विचार करते हुए बतलाइए कि क्यों नहीं इन्हें
प्रस्तावना से हटा दिया जाए?"
यहाँ से भारतीय राज्य की
समाजवादी एवं धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को आधार बनाकर भी प्रश्न पूछे जाने की संभावना
बनती है। प्रस्तावना से ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय
महत्वपूर्ण टॉपिक है जो पूरे बिहार विधानसभा-चुनाव के दौरान चर्चा में रहा था।
प्रस्तावना के बाद मौलिक अधिकार, नीति निदेशक-तत्व तथा मौलिक कर्तव्य
दूसरा महत्वपूर्ण टॉपिक है जहाँ से प्रश्न की संभावना बनती है। यहाँ से सामाजिक
न्याय से जुड़े हुए पहलू से प्रश्न पूछे जाने की पूरी सम्भावना है। आरक्षण और इससे
सम्बद्ध पहलुओं, विशेषकर आरक्षण की समीक्षा, बिहार
में महिला-सशक्तीकरण में आरक्षण की भूमिका, अल्पसंख्यकों
की स्थिति, बढ़ती हुई असहिष्णुता, सोशल
मीडिया की भूमिका, मान-हानि, अभिव्यक्ति की आजादी, आधार-मसला
एवं निजता के अधिकार के आलोक में आधार-कानून पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, शिक्षा
का अधिकार अधिनियम और इसका बिहार में क्रियान्वयन,
गोमांस-निषेध एवं गोरक्षा के नाम पर भीड़ के द्वारा हिंसा, धर्मांतरण
एवं घर-वापसी, समान नागरिक संहिता(UCC), ट्रिपल तलाक और सुप्रीम कोर्ट, शराबबंदी, बिहार
में नीति निदेशक-तत्वों के क्रियान्वयन की दिशा में पहल आदि टॉपिक हाल-फिलहाल
चर्चा में रहे हैं जिन्हें विशेष रूप से तैयार करने की जरूरत है।
सरकार
के विभिन्न अंगों में विधायिका
से अध्यादेश, धन-विधेयक, संयुक्त
विधेयक, विपक्षी दल की भूमिका, राज्यसभा
का औचित्य और प्रासंगिकता, संसदीय गतिरोध,
संसदीय सुधार, विशेष रूप से राज्यसभा-सुधर जैसे टॉपिक महत्वपूर्ण हैं। कार्यपालिका के अंतर्गत हालिया सम्पन्न
राष्ट्रपति-चुनाव, प्रधानमंत्रीय शासन की संकल्पना एवं कैबिनेट-व्यवस्था तथा लाभ
के पद से सम्बंधित विवाद से जोड़कर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। जहाँ तक न्यायपालिका का प्रश्न है, न्यायाधीशों
की नियुक्ति से संबंधित विवाद, कालेजियम व्यवस्था, राष्ट्रीय
न्यायिक नियुक्ति आयोग और इसको लेकर न्यायपालिका-विधायिका टकराव, मेमोरेंडा ऑफ़
प्रोसीड्योर(MOP), न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता, न्यायिक-सुधार, न्यायिक
सक्रियता-न्यायिक अतिक्रम आदि से सम्बंधित टॉपिक महत्वपूर्ण हैं।
जहाँ तक संघ-राज्य सम्बन्ध और संघवाद का प्रश्न है, तो यह
खंड मुख्य परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान
केंद्र सरकार के द्वारा अनु. 356 के दुरूपयोग, दल-बदल क़ानून की विधानसभा स्पीकर के
द्वारा मनमानी व्याख्या, विधानसभा स्पीकर एवं राज्यपाल के द्वारा संविधान-प्रदत्त
शक्तियों का दुरूपयोग और इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने संघ-राज्य
सम्बन्ध और संघवाद के प्रश्न को एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। इन
पहलुओं पर विचार के क्रम में इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आखिर वे
कौन-सी चीजें हैं जो राज्यपाल एवं स्पीकर के पद को विवादास्पद बनाती हैं और इन्हें
राजनीति एवं विवाद से परे रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए। निश्चय ही, इसका
सम्बन्ध राज्यपाल की नियुक्ति, स्थानांतरण एवं बर्खास्तगी की प्रक्रिया के साथ-साथ
राज्यपाल के विवेकाधिकार से जाकर जुड़ता है। इसी प्रकार सहकारी एवं प्रतिस्पर्धी
संघवाद के प्रश्न पर भारत के समक्ष मौजूद राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय चुनौतियों और
हाल में लागू वस्तु एवं सेवा कर(GST) के आलोक में पुनर्विचार अपेक्षित है। साथ ही,
इसे आयोजनोत्तर परिदृश्य (Post-Planning Period) में नीति-आयोग एवं चौदहवें वित्त-आयोग
के आलोक में भी देखा जाना चाहिए।
इसके अलावा स्थानीय संस्थाएँ एवं राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक
समावेशन में इसकी भूमिका के साथ-साथ हाल में न्यूनतम शैक्षिक एवं स्वच्छता
मानदंड के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त
केंद्र सरकार के हालिया निर्देशों के आलोक में राजभाषा हिन्दी के सन्दर्भ में
उत्पन्न विवाद और आठवीं अनुसूची में भोजपुरी को शामिल करने को लेकर विवाद वाले
पहलुओं को भी करना जरूरी है।
जहाँ तक चुनावी-राजनीति,
मतदान-आचरण और चुनाव-सुधार का प्रश्न है, तो
पिछले ढ़ाई दशकों के दौरान बिहार में आनेवाले सामाजिक बदलावों में चुनावी राजनीती
और इनमें आनेवाले परिवर्तनों की भूमिका, चुनावी आचार-संहिता, हालिया
सम्पन्न बिहार विधानसभा-चुनाव के परिणामों का विश्लेषण; राजनीति का अपराधीकरण;
भारतीय राजनीति के साथ-साथ बिहार की राजनीति में जाति एवं धर्म के साथ-साथ लिंग
एवं भाषा, धनबल, सोशल मीडिया और तकनीक की
भूमिका; पहचान-आधारित चुनावी-राजनीति एवं इस
सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव को सुनिश्चित
करने में चुनाव आयोग एवं ब्यूरोक्रेसी की भूमिका, राजनीतिक दलों में आतंरिक
लोकतंत्र का प्रश्न, वंशवादी राजनीति (Dynestic Politics), चुनावी-चंदे में
पारदर्शिता, लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव साथ-साथ, मुद्दों पर आधारित राजनीति बनाम्
व्यक्ति-केन्द्रित राजनीति, हालिया लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनावों में
मतदान-आचरण के निर्धारक तत्व एवं इसके निहितार्थ, चुनाव-सुधार के सन्दर्भ में
चुनाव आयोग के सुझाव(अद्यतन) आदि से संबंधित प्रश्न पूछे जाने की संभावना है। हाल
में महागठबंधन के बिखराव ने गठबंधन राजनीति और जनादेश के उल्लंघन के प्रश्न को एक
बार फिर से प्रासंगिक बना दिया है जिसे मुख्य परीक्षा के मद्देनज़र ध्यान में रखा
जाना चाहिए।
स्रोत-सामग्री:
1. समाचार-पत्र: जनसत्ता, प्रभात खबर, द हिन्दू, द इंडियन एक्सप्रेस आदि.
2. पत्रिकायें: प्रतियोगिता दर्पण, फ्रंटलाइन, इंडिया
टुडे
3. सार्थक बीपीएससी स्पेशल: कुमार सर्वेश, संजय कुमार सिंह, डॉ. संजय सिंह एवं अन्य
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