बिहार लोक
सेवा आयोग के द्वारा आयोजित (60-62)वीं लोक सेवा (मुख्य) परीक्षा: ट्रेंड-विश्लेषण
और रणनीति
बिहार
लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम सामने आ चुका है। अब
आपकी नज़रें चक्रव्यूह के दूसरे द्वार को भेदने पर टिकी होंगी, पर सही मार्गदर्शन
और गुणवत्तापूर्ण अध्ययन-सामग्रीके अभाव के कारण इसे भेदना उतना आसान नहीं है।
अबतक का अनुभव यह बतलाता है कि BPSC के द्वारा
आयोजित परीक्षा UPSC के साथ-साथ अन्य राज्य सेवाओं के द्वारा
आयोजित परीक्षाओं की तुलना में आसान है, परन्तु इसके फिक्स्ड शेड्यूल का न होना, परीक्षाओं
को लेकर अनिश्चितता औरपरीक्षाओं का टलनाइसे अत्यन्त कठिन बना देता है। ऐसी स्थिति
में लम्बे समय तक अपने टेम्परामेंट को बनाये रख पाना मुश्किल होता है जिसके कारण
छात्रों को अक्सर आधी-आधी तैयारी के साथ परीक्षायें देनी होती हैं। असफलता के रूप में
इसका परिणाम सामने होता है।यही वह पृष्ठभूमि है जिसने संस्थान को आपकी मदद हेतु एक
ईमानदार प्रयास के लिए प्रेरित किया।
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मुख्य परीक्षा का बदलता पैटर्न:
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हाल
में बिहार लोक सेवा आयोग ने मुख्य परीक्षा के पैटर्न में बदलाव की दिशा में पहल की
है। अबतक मुख्य परीक्षा का पैटर्न था:
1. सामान्य
अध्ययन: 400 अंक
2. वैकल्पिक
विषय-1: 400 अंक
3. वैकल्पिक
विषय-2: 400 अंक
लेकिन,
नये पैटर्न के अनुसार सामान्य अध्ययन के भारांश को दोगुना कर दिया गया है, जबकि वैकल्पिक
विषय के भारांश को घटाकर आधा कर दिया गया है। नये पैटर्न के अनुसार:
1. सामान्य
अध्ययन: 600 अंक
2. वैकल्पिक
विषय : 300 अंक
परीक्षा
के पैटर्न में इस बदलाव के कारण चयन में सामान्य अध्ययन की भूमिका पहले की तुलना
में कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जायेगी, जबकि वैकल्पिक विषय की भूमिका सीमित।
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अपरिवर्तित सिलेबस, पर बदलती प्रश्नों की प्रकृति:
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यहाँ
पर यह भी स्पष्ट करना आवश्यकहै कि बदलाव सिर्फ़ परीक्षा के पैटर्न में है, न कि
सिलेबस में। लेकिन, बात इतनी आसान भी नहीं है। (56-59)वीं
संयुक्त प्रवेश (मुख्य) परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों की प्रकृति इस ओर इशारा
करती है कि आनेवाले समय में प्रश्नों की प्रकृति में तेज़ी से बदलाव की संभावना
है। उदाहरण के लिए:
1. गाँधी-नेहरू-टैगोर की ओर बढ़ सकता
है रूझान: भारत
एवं बिहार का इतिहास एवं संस्कृति खंड को लिया जा सकता है जहाँ से दो प्रश्न
‘गाँधी, नेहरू एवं टैगोर’ टॉपिक से पूछा गया है। पिछले कुछ समय से इस टॉपिक से
प्रश्न नहीं पूछे जाते थे, पर अब ‘आइडिया ऑफ़ इंडिया’ के प्रश्न पर तेज़ होते बहस
की पृष्ठभूमि में इस टॉपिक और इसके बहाने नेहरू-युग से प्रश्न पूछे जाने की
संभावना प्रबल है।
2. करेंट आधारित प्रश्नों की ओर बढ़ता
रूझान:भारतीय अर्थव्यवस्था खंड: यदि
भारतीय अर्थव्यवस्था खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति पर ग़ौर किया जाय,
तो पिछले कुछ वर्षों के दौरान करेंट से पूछे जाने वाले प्रश्नों की ओर रूझान बढ़ा
है। 56-59वीं मुख्य परीक्षा में जनांकिकीय लाभांश और कृषि-विपणन, 53-55वीं
मुख्य परीक्षा में खाद्य-संरक्षण में कृषि-विविधता एवं जैविक कृषि की भूमिका तथा
तेरहवीं वित्त-आयोग की सिफ़ारिशें और 48-52वीं मुख्य
परीक्षा के दौरान भारत-निर्माण योजना एवं ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजनाइसी ओर इशारा
करती हैं।
3. करेंट आधारित प्रश्नों की ओर बढ़ता
रूझान:भारतीय राजव्यवस्था खंड: इसकी पुष्टि भारतीय राजव्यवस्था खंड
से पूछे जानेवाले प्रश्नों से भी होती है। 56-59वीं
मुख्य परीक्षा में स्थानीय स्व-शासन की प्रभावोत्पादकता, बिहार विधान-सभा चुनाव,2015 में
जाति की भूमिका औरकेन्द्र-राज्य संबंध में तनाव के महत्वपूर्ण बिन्दु; 53-55वीं मुख्य
परीक्षा मेंकेन्द्र-राज्य संबंध पर राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी परिषद का असर, और 48-52वीं
मुख्य परीक्षा में भारतीय संघवाद के वर्तमान रूझान, गठबंधन सरकार की संस्कृति का
विकास एवं अबतक स्थानीय सरकार की क्रिया-प्रणाली का परीक्षण इसी ओर इशारा करते
हैं।
4. बिहार-आधारित पारंपरिक एवं
समसामयिक प्रश्नों की ओर बढ़ता रूझान: इधर
बिहार से जोड़कर प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति भी ज़ोर पकड़ रही है। इतिहास-खंड में
दो-से-तीन प्रश्न हमेशा इस तरह के पूछे जाते रहे हैं। इससे इतर भी56-59वीं
मुख्य परीक्षा में जलवायु-परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्यवाही योजना का क्रियान्वयन
और बिहार, बिहार के विशेष संदर्भ में सार्वजनिक स्वास्थ्य-प्रणाली के पूरक के रूप
में निजी क्षेत्र की भूमिका, बिहार के विशेष संदर्भ में जाति की भूमिका, केन्द्र
सरकार के साथ बिहार सरकार का सम्बंध, कृषि-विपणन व्यवस्था में सुधार की दिशा में
बिहार के द्वारा किये जा रहे प्रयास, बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन
की भूमिका और बिहार में बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपेक्षित सुझाव;
53-55वीं मुख्य परीक्षा में बिहार की बिगड़ती वित्तीय स्थिति, पिछले दो
दशकों के दौरान बिहार में राजनीतिक परिवर्तन, बिहार में राज्यपाल की भूमिका, 1950
के दशक के बिहार में नीति-निदेशक तत्वों का क्रियान्वयन, बिहार की
कृषि पर मानसून के परिवर्तनशील स्वभाव का प्रभाव, बिहार के विशेष संदर्भ मेंखाद्य-संरक्षण
में कृषि-विविधता एवं जैविक कृषि की भूमिका, और बिहार में आपदा-पूर्वानुमान एवं आपदा-प्रबंधन
(बाढ़-सूखा) में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका, और 48-52वीं
मुख्य परीक्षा में बिहार के विशेष संदर्भ में राजनीति में धर्म एवं जाति की
भूमिका, 1994 से अबतक बिहार में ग्राम्य स्थानीय सरकारों के कार्यों की समीक्षा,
बिहार में ग़रीबी-उन्मूलन में पंचवर्षीय योजनाओं की भूमिका इसी ओर इशारा करते हैं।
5. इस पूरी-की-पूरी चर्चा के क्रम में इस बात को ध्यान में रखा जाना
चाहिए कि प्रश्न बहुत विशिष्ट नहीं पूछे जा रहे, लेकिन सामान्य प्रश्नों को ही एप्लिकेशन-आधारित
प्रश्न का रूप देते हुए बिहार के विशेष सन्दर्भों से जोड़ा जा रहा है। इसीलिए
तैयारी करते वक़्त इन दोनों बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
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