Monday, 5 December 2016

विमौद्रीकरण-IV: आन्तरिक सुरक्षा और नकली नोट

       विमौद्रीकरण: आन्तरिक सुरक्षा और नकली नो
नवम्बर के दूसरे सप्ताह में नोटबंदी की घोषणा करते हुए मादक पदार्थों एवं  हथियारों की तस्करी, नकली नोटों के कारोबार, कालेधन और आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन अंतर्संबंधों का हवाला देते हुए कहा था कि इससे आतंकी गतिविधियों का वित्तीयन बाधित होगा जिससे उनपर अंकुश लगाया जाना संभव हो सकेगा. इसके बाद लगातार ये दावे किये गए कि नोटबंदी के कारण आतंकी एवं नक्सल  गतिविधियों में तेजी से कमी आयी है. जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक इसके असर को देखा जा सकता है.
नोटबंदी की पृष्ठभूमि: आतंरिक सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में:
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वाकई नोटबंदी आतंरिक सुरक्षा के समक्ष मौजूद चुनौतियों से निबटने में सहायक है? यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखने की ज़रुरत है कि आतंकवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद, अपराध और तस्करी जैसे आपराधिक कामों में बड़े पैमाने पर नकदी  का इस्तेमाल होता है. फलतः इन गतिविधियों के प्रचालन के लिए इन्हें भारी मात्रा में नकदी की जरूरत होती है. इसी ज़रुरत को पूरा करने के लिए इन गतिविधियों में शामिल लोगों की अपहरण, फिरौती एवं लेवी वसूली से लेकर मादक पदार्थों, हथियारों, मवेशियों और मानवों की तस्करी तक की गतिविधियों में संलिप्तता देखी जा सकती है। इससे जुटाए गए संसाधनों को ये नकदी के रूप में अपने पास बनाये रखते हैं. फलतः इनके पास भारी मात्रा में नकदी स्टॉक के रूप में उपलब्ध होती हैं.
इसी नकदी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से उन आतंकवादियों द्वारा, जिन्हें सीमा-पार से सक्रिय सहयोग और समर्थन मिल रहा है,  नकली नोटों का भी सहारा लिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि नकली नोटों के कारोबार के पीछे पाकिस्तान का हाथ है. इन नकली नोटों के जरिये एक ओर आतंकी गतिविधियों की फंडिंग की जाती है, दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जाती है. नकली नोटों की मात्रा अर्थव्यवस्था में जितनी होगी, मौद्रिक नीतियों की प्रभावकारिता उतनी ही कम होगी. 
नोटबंदी से अपेक्षाएं:
स्पष्ट है कि कई बार सरकार को नोटबंदी जैसे कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं, ताकि नकली नोटों से छुटकारा पाया जा सके और अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निबटा जा सके. साथ ही, देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बने आतंकी, नक्सली एवं उग्रवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सका और इसके लिए उसकी फंडिंग के स्रोतों पर प्रहार किया जा सके. इस कदम के जरिये सरकार नकली नोटों से छुटकारा पाने के लिए पुराने नोट बदल देती है और उसकी जगह पर नयी करेन्सी लाई जाती है जो बेहतर सुरक्षा मानकों और तकनीकी पर आधारित होती है जिसके कारण उसकी नक़ल मुश्किल होती है. स्पष्ट है कि जालसाजी पर रोक के मद्देनजर नई तकनीकी से तैयार किए गए ज्यादा सुरक्षित नोट लाने के लिए भी सरकार पुराने नोटों का विमुद्रीकरण कर देती है।
                   नकली मुद्रा का कारोबार
इसी आलोक में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के औचित्य को साबित करते हुए कहा कि नकली मुद्रा (Fake Currency) के बढ़ते कारोबार और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तीयन पर अंकुश लगाने के लिए उन्होंने इस दिशा में पहल की. लेकिन, नकली मुद्रा पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट और अगस्त,2016 में संसद में सरकार द्वारा दिए गए बयान से इसका मेल नहीं बैठता है. अगस्त,2016 में सरकार ने संसद को सूचित किया था कि नकली मुद्रा का मसला उतना महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि कुल मिलाकर 400 करोड़ की नकली मुद्राएँ भारतीय बाज़ार में मौजूद हैं जो बाज़ार में प्रचलित कुल मुद्रा का 0.028% है. जाली नोटों के बारे में रिजर्व बैंक तथा सरकार ने नियमित जानकारी दी है. इसकी वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015-16 में लगभग 28 करोड़ रुपए मौद्रिक मूल्य के 500 रुपए के 2.61 लाख नोट तथा 1000 रुपए के 1.43 लाख नोट पकड़े गए. 2015-16 में रिज़र्व बैंक और बैंकों द्वारा ज़ब्त नकली नोटों में 6.47% की वृद्धि हुई.
नकली करेंसी की चुनौती से निबटने के अन्य विकल्प मौजूद:
इसीलिए नोटबंदी के औचित्य के सन्दर्भ में नकली नोटों से सम्बंधित सरकार की दलील बहुत आश्वस्त नहीं करती है क्योंकि नोटबंदी इसका विकल्प नहीं हो सकती है. नक़ल तो पराने नोटों की तरह नई नोटों का भी किया जा सकता है. दूसरी बात यह कि रिज़र्व बैंक और सरकार दोनों ने बारम्बार यह स्पष्ट किया है कि नकली नोटों की संख्या उतनी गंभीर नहीं है. तीसरी बात यह कि नई तकनीक और नए सुरक्षा मानकों को अपनाकर नकली नोटों की चुनौती से प्रभावी तरीके से निबटा जा सकता है. इसके लिए एक झटके में लगभग 86% मुद्रा को बाज़ार से बाहर कर देना बेहतर विकल्प नहीं मन जा सकता है. यह काम चरणबद्ध तरीके से पुरानी श्रृंखला के नोटों को वापस लेकर और उसकी जगह बेहतर सुरक्षा मानकों एवं नवीनतम सुरक्षा तकनीकों पर आधारित नई करेन्सी को जारी कर भी किया जा सकता था, जैसा 2005 में RBI ने चरणबद्ध तरीके से पुराने नोटों को वापस लेकर उसकी जगह नयी श्रृंखला के पांच सौ के नोट को जरी किया था. तकनीक  छपाई की तकनीक से जुड़ा हुआ है. यह दावा इस बात पर आधारित है कि नोटों की छपाई की नई टेक्नालॉजी की नकल नहीं की जा सकती, जबकि तथ्य इसके विपरीत है.
नयी करेंसी नक़ल रोकने को लेकर गंभीर नहीं:
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या नयी करेन्सी नक़ल की संभावनाओं को निरस्त करती है? इस प्रश्न का उत्तर बहुत आश्वस्त करने वाला नहीं है. नई करेंसी को बिना किसी अतिरिक्त सिक्यूरिटी फीचर्स के जारी किया गया है और रिज़र्व बैंक ने भी यह स्वीकार किया है कि समयाभाव के कारण अतिरिक्त सिक्यूरिटी फीचर्स को जोड़ा जा सकना संभव नहीं है, ऐसी स्थिति में नयी करेंसी की नक़ल बहुत मुश्किल नहीं होगी, विशेषकर इस बात को देखते हुए कि नकली करेंसी के कई मामले प्रकाश में आ चुके है. दूसरी बात यह कि रिज़र्व बैंक द्वारा जो नयी करेन्सी जारी की जा रही है, उसमें भी कई कमियाँ मौजूद हैं. स्पष्ट है कि नई करेंसी न तो नए सुरक्षा-मानकों को समाहित करती है जो उसकी नक़ल को रोकने में सहायक साबित हो सके और न ही त्रुटियों से रहित है जो उसमें विश्वास पैदा कर सके. आवश्यकता इस बात की थी कि सिक्यूरिटी फीचर्स के रूप में अन्य देशों की तरह तकनीक का सहारा लिया जाता और इसके मद्देनजर पॉलीमर सब्सट्रेट (Polymer Substrate) का इस्तेमाल किया जाता, जो काफी सुरक्षित माना जाता है. दूसरी बात यह कि नई करेंसी को जारी करते वक़्त पर्याप्त सावधानियां भी नहीं बरती गयीं जिसके कारण बाज़ार में दो तरह की करेंसियाँ उपलब्ध हैं जो लोगों में भ्रम सृजित कर रहा है. स्वयं रिज़र्व बैंक ने यह स्वीकार किया है कि जल्दबाजी के कारण पांच सौ की नई करेंसी में कुछ त्रुटियाँ रह गई हैं, पर वह करेंसी भी असली ही है. इसी तरह की समस्या 2000 रूपये की नयी करेंसी के सन्दर्भ में भी सामने आयी है जो कलर छोडती है. तीसरी बात यह कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने नई करेंसी के मुद्रण के लिए पेपर एवं इंक की आपूर्ति के लिए उसी डे ला रु जियोरी (UK) और लौइसेंथल (जर्मनी) के साथ अनुबन्ध किया है जिन्हें क्रमशः 2011 एवं 2015 में प्रतिबंधित किया गया था. इन कम्पनियों पर यह आरोप था कि उन्होंने समझौते की शर्तों का उल्लंघन करते हुए सिक्योरिटी पेपर की प्रिंटिंग की शर्तों को पाकिस्तान के साथ साझा किया था. अबतक पाकिस्तान इसी पेपर का इस्तेमाल भारतीय नकली मुद्रा छपने के लिए करता रहा है. इस आरोप की पुष्टि व्यापक जाँच के बाद संसदीय समिति के द्वारा भी की गई थी, लेकिन, बाद में यह कहते हुए प्रतिबन्ध हटा लिया गया: ”जाँच के बाद यह पाया गया कि दोनों फर्मो ने सुरक्षा शर्तों से समझौता नही किया है.” ध्यातव्य है कि यूनाइटेड किंगडम की थॉमस डे ला रु ही वर्त्तमान में केबीए जियोरी, स्विट्ज़रलैंड नाम से जाती है|
इसी का परिणाम है कि नयी करेंसी के जारी होने के महज़ बीस दिनों के भीतर हैदराबाद पुलिस ने दो लाख बाईस हज़ार रूपए मूल्य के दो हज़ार के नक़ली नोट पकड़े। पंजाब के मोहाली में 2000 के नकली नोटों का एक ऐसा रैकेट पकड़ा गया है जो 30% के कमीशन पर कालेधन को नकली नोटों के ज़रिये सफ़ेद कर रहा था. इसके द्वारा कंप्यूटर और स्कैनर के जरिए करीब 3 करोड़ कीमत के 2000 के नकली नोट छाप लिए। नए नोट की पहचान के बारे में लोगों की अनभिज्ञता के मद्देनज़र करीब दो करोड़ के नोट मार्किट में चला भी दिए गए। यह इस बात का संकेत देता है कि नयी करेंसी जारी करते वक़्त जो सावधानियां अपेक्षित थीं, वो नहीं बरती गईं, अन्यथा यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती. यह इस बात का संकेत भी देता है कि कम-से-कम नोटबंदी से नकली करेंसी के कारोबार और इसके जरिये आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन की प्रक्रिया अस्थाई रूप से तबतक के लिए थमेगी जबतक नई करेंसी की डिजाईन विकसित नहीं कर ली जाती है और नई करेंसी की तर्ज पर नकली करेंसी की प्रिंटिंग एवं आपूर्ति नहीं शुरू हो जाती है. इससे हुआ सिर्फ इतना कि लगभग 400 करोड़ की नकली करेंसी जो भारतीय बाज़ार में उपलब्ध थी, वो बेकार हो गई. साथ ही, जो छपी हुई नकली करेंसी बाज़ार में नहीं आई है, वो भी बेकार हो गई. इससे अस्थाई रूप से सीमा-प्रेरित आतंकवाद का वित्तीयन अवरुद्ध होगा और इससे कुछ समय के लिए आतंकी गतिविधियाँ थमती दिख सकती हैं. यहाँ पर इस बात को भी ध्यान में रखने की ज़रुरत है कि नकली नोटों के कारोबार को पूरी तरह से समाप्त करना संभव भी नहीं है क्योंकि कोई भी तकनीक अपनाई जाय, उसकी नक़ल को पूरी तरह से रोक पाना तो मुश्किल है.
स्पष्ट है कि नोटबंदी ने नकली करेन्सी के कारोबार को तो तत्काल थामा है, लेकिन यदि इस पर प्रभावी अंकुश लगाना है, तो बैंकों, विशेष रूप से सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों को इसकी पहचान के लिए मानकों को विकसित करना होगा, ताकि ये आसानी से पकड़ में आ सकें. इसके लिए फोरेंसिक सेल की स्थापना भी करनी होगी ताकि नकली नोटों के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक को बेहतर तरीके से समझा जा सके और भविष्य में नक़ल रोकने के लिए इसके अनुरूप आवश्यक सुरक्षा मानकों को विकसित किया जा सके. इसके अतिरिक्त इस कारोबार में पाकिस्तान की संलिप्तता के सन्दर्भ में विशेष अदालत द्वारा 2014 में दिए गए निर्णय को अधार बनाते हुए उसपर अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव बढ़ाये जाने की जरूरत है.


            आतंकी एवं उग्रवादी गतिविधियों का वित्तीयन
कैसे होता है इनका वित्तीयन:
जहाँ तक भारत में आतंकी एवं उग्रवादी गतिविधियों के वित्तीयन का प्रश्न है, तो इसका सम्बन्ध नकली मुद्रा के कारोबार से उतना नहीं जुड़ता है, जितना मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी से. यह वित्तीयन आंतरिक स्रोतों से भी किया जाता है और बाहरी स्रोतों से भी, जिसका सम्बन्ध सीमा-पार से जाकर जुड़ता है. आतंकी गतिविधियों की फंडिंग औपचारिक स्रोतों से भी होती है और अनौपचारिक स्रोतों से भी. औपचारिक स्रोतों के अंतर्गत बैंकिंग और मनी ट्रान्सफर सर्विस स्कीम के जरिए फण्ड ट्रान्सफर किया जाता है और इसके लिए असंदिग्ध मध्यस्थों का सहारा लिया जाता है. इसी प्रकार भारत के पकिस्तान एवं पश्चिम एशिया के साथ होने वाले व्यापार का भी इस्तेमाल फण्ड-ट्रान्सफर और आतंकी गतिविधियों की फंडिंग के लिए किया जाता है. इसके लिए कस्टम अधिकारियों की मिली-भगत से भारत के द्वारा किये जाने वाले निर्यात को बढा-चढ़ाकर (Over Voicing) दिखाया जाता है, आयात को कम करके (Under Voicing) दिखाया जाता है और व्यापार-अधिशेष का इस्तेमाल आतंकी-गतिविधियों की फंडिंग के लिए किया जाता है. अनौपचारिक स्रोतों के अंतर्गत फंडिंग के लिए नकली मुद्राओं को पश्चिम, दक्षिण या दक्षिण-पूर्व एशिया के किसी अन्य देश के ज़रिये, तो कभी पार्सल के ज़रिये भारत तक पहुँचाया जाता है, ताकि स्क्रुटनी से बचा जा सके. इसे नेपाल, बांग्लादेश या फिर भारत के अन्य सीमावर्ती देशों के आपराधिक चैनलों के जरिये तस्करी के माध्यम से भारत तक पहुंचाया जाता है ताकि अर्थव्यवस्था में इसके पुनर्वितरण को सुनिश्चित किया जा सके. इसी प्रकार एक प्रचलित तरीका है कूरियर के माध्यम से नकदी के रूप में मनी को सीमापार पहुँचाना और फिर आतंकी गतिविधियों के लिए उसे भारतीय करेन्सी में तब्दील करना. इसके अतिरिक्त अपहरण और फिरौती के जरिये भी संसाधन जुटाकर उसे नकद या गोल्ड के रूप में स्टोर किया जाता है. साथ ही, दीर्घावधिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उसका रियल एस्टेट या कारोबार में अस्थाई रूप से निवेश भी किया जाता है. इन सबमें हवाला पारंपरिक रूप से फंडिंग का सबसे लोकप्रिय तरीका रहा है, जिसके माध्यम से फण्ड भारत तक पहुँचाया जाता है और आतंकियों के बीच उन्हें वितरित किया जाता है. लेकिन, अंतर्राष्ट्रीय रूझान इस बात का संकेत देते हैं कि हाल में ई-ट्रान्सफर आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन के लिए सबसे लोकप्रिय तरीके के रूप में उभरा है. 
आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन के नए रूझान:
वैश्विक अनुसंधान बतलाता है कि आतंकी कभी-कभी ही कर-चोरों या फिर हवाला-रूट का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि स्थानीय एजेंसीज उनसे परिचित होती हैं और इस कारण उनके आसानी से पकड़ में आ जाने की सम्भावना होती हैं. साथ ही, संदेहास्पद निष्ठा के कारण आतंकी संगठित अपराधियों एवं आउटसोर्सिंग से भी दूरी बनाकर चलते हैं. इसी प्रकार उनके द्वारा कालेधन के इस्तेमाल  करने से भी परहेज़ किया जाता है क्योंकि मात्रा, जोखिम, सुविधा, सहजता, लागत और गति के सिद्धांत पर ये फिट नहीं बैठते हैं. वे सामान्यतः जहाँ रहते हैं या फिर जहाँ उन्हें अपने ऑपरेशन को अंजाम देना होता है, वहां से सामान्यतः उनके द्वारा फण्ड इकठ्ठा नहीं किया जाता है. अमेरिकी ट्रेज़री डिपार्टमेंट के नेशनल टेररिस्ट फाइनेंसिंग रिस्क असेसमेंट रिपोर्ट, 2015 आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन के नए तरीकों की ओर संकेत करता है जिसके लिए कानूनी मुखौटे का इस्तेमाल किया जाता है. इससे निबटने के लिए आवश्यक है कि अपहरण, फिरौती, मादक पदार्थों की तस्करी, चैरिटीज, बैंक-धोखाधड़ी और राज्य-प्रायोजित जैसी वैश्विक आपराधिक गतिविधियों से सम्बंधित फंडिंग के लिंकेजेज  से निबटने के लिए केंद्रीकृत अन्तः एजेंसीज समन्वयन को सुनिश्चित किया जाय. अक्सर लोग अपने व्यक्तिगत खतों के जरिये फण्ड इकठ्ठा कर उसे समुचित कवर प्रदान करते हुए आतंकी संगठनों को ट्रान्सफर करते हैं. अमेरिका में इसके लिए उन विदेशी बैंकों का भी इस्तेमाल किया जाता है जो अमेरिकी मानकों और व्यवहारों से बंधे हुए नहीं होते हैं. इसी प्रकार इनके द्वारा उन फर्मों का भी इस्तेमाल किया जाता है जो करेंसी एक्सचेंज के कारोबार में संलग्न हैं. इसकी पुष्टि फ्रांस स्थित फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की उस रिपोर्ट से भी होती है जो ISIS के वित्तीयन से सम्बंधित है. दोनों ही रिपोर्टों में इस बात का उल्लेख है कि वैधानिक चैनल से आतंकी गतिविधियों के होने वाले  वित्तीयन की पहचान अत्यंत मुश्किल है.
नक्सालियों पर असर:
ख़ुफ़िया संस्थाओं की रिपोर्ट यह बतलाती है कि नोटबंदी ने सबसे अधिक वामपंथी उग्रवादियों को प्रभावित किया है और अपने विश्वस्त सहयोगियों, निकट सम्बन्धियों और जन-धन खातों के जरिये उनके द्वारा पुरानी करेन्सी में रखी गई लगभग 9000 करोड़ की राशि खतरे में पड़ गई है और उनके द्वारा अपनी नकद जमाओं को नई करेन्सी में बदलने की कोशिश की जा रही है. इसे ध्यान में रखते हुए सुरक्षा एजेंसियों ने इन क्षेत्रों में मुद्रा-प्रवाह पर अपनी निगरानी बढ़ा दी है. ख़ुफ़िया संस्थाओं और सुरक्षा एजेंसियों के आकलन के मुताबिक माओवादियों के द्वारा वार्षिक स्तर पर लगभग 1500 करोड़ की धन-राशि विभिन्न स्रोतों से जुताई जाती है. अकेले तेंदू पत्ता से लगभग 200 करोड़ की राशि हर राज्य से जुटाई जाती है. इसके अलावा सड़कों का निर्माण करने वाले ठेकेदारों और खनन गतिविधियों में संलग्न बड़े औद्योगिक घरानों से लेवी की वसूली भी की जाती है.
सरकार एवं सुरक्षा एजेंसियों का तर्क है कि इन्हें बौद्धिक समर्थन प्रदान करने वाले वर्ग के द्वारा नोटबंदी का खुलकर विरोध किया जा रहा है और शहर-केन्द्रित विरोध-प्रदर्शन भी आयोजित किये जा रहे हैं. हो सकता है कि इसमें कुछ सच्चाई हो, लेकिन इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकलना विध्वंसक होगा कि जितने भी लोग नोटबंदी के विरोध में हैं, वे माओवादियों और आतंकवादियों के समर्थक हैं. यह निष्कर्ष उतना ही गलत होगा जितना यह निष्कर्ष कि नोटबंदी के समर्थन का मतलब कालेधन एवं भ्रष्टाचारियों का समर्थन है. नोटबंदी के विरोध में बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी खड़े है जिनका मानना है कि सरकार ने बिना समुचित तैयारी के यह निर्णय लिया या फिर गलत समय में यह निर्णय लिया. इसके अलावा कालेधन के सन्दर्भ में सरकार की गलत समझ, जो कालेधन को काली नकदी के सीमित परिप्रेक्ष्य में देख रही है, का भी विरोध किया जा रहा है जिसके कारण भारी मात्रा में कालेधन रखने वालों को बाख निकलने का मौका मिला है और आमलोग न केवल परेशान हो रहे हैं वरन् उनका एक हिस्सा तबाही के कगार पर पहुँच चुका है.
कश्मीरी अलगाववाद पर असर:
कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के लिए भी नोटबंदी एक ज़बर्दस्त झटका है क्योंकि हवाला के जरिये उन्हें होने वाला फण्ड-ट्रान्सफर कुछ समय के लिए थम-सा गया है और ऐसी स्थिति में उनके लिए भारत-विरोधी गतिविधियों की फंडिंग मुश्किल होती जा रही है. वैसे, आतंकियों के पास नई करेंसी का मिलना इस दिशा में संकेत करता है कि अब वे नोटबंदी के झटके से उबड़ने लगे हैं. नोटबंदी के शुरुआती सप्ताह में आतंकी गतिविधियों थमती हुई लग तो रही थीं, पर हाल की तेजी भी इसी दिशा में संकेत करती है कि वे इस झटके से उबड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

विमौद्रीकरण का प्रभाव:
इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि नोटबंदी ने डिजिटल इकॉनोमी और लेस कैश इकॉनोमी की दिशा में भारत के मार्ग को प्रशस्त किया है, जो वित्तीय लेन-देन में अपेक्षाकृत अधिक पारदर्शिता को सुनिश्चित करता हुआ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएगा. साथ ही, इससे मनी लॉन्ड्रिंग जैसी आपराधिक गतिविधियों में भागीदारी के जरिये आय के सृजन पर भी अंकुश लगाएगा और इससे आतंकी गतिविधियों के जरिये फण्ड ट्रान्सफर की प्रक्रिया बाधित होगी. इसीलिए आवश्यकता इस बात की है कि सरकार ई-लेनदेन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करे.
जहाँ तक औपचारिक चैनल से फण्ड-ट्रान्सफर, मनी-ट्रान्सफर और व्यापार-अधिशेष के जरिये नकदी-ट्रान्सफर का प्रश्न है, तो इन सब पर नोटबंदी का सीमित असर पड़ेगा. कुछ समय के लिए फण्ड-ट्रान्सफर एवं फंडिंग की समस्या रहेगी और फिर वे नई व्यवस्था के अनुरूप वे अपने को ढाल पाएंगे. संभव है कि NGO और व्यापार-अधिशेष वाले चैनल से औपचारिक स्रोतों के रास्ते नकदी के प्रवाह को बढाने की कोशिश की जाय. संभव है कि वे किसी अन्य देश के रास्ते प्रोक्सी के माध्यम से फंडिंग की कोशिश करें. इस आलोक में पश्चिम एशिया से आतंकी गतिविधियों की फंडिंग के लिए NGO चैनल के इस्तेमाल के मद्देनज़र ऐसे फण्ड को रिसीव करने वाले प्रत्येक NGO के लिए पंजीकरण को अनिवार्य बनाया जाय. उनके लिए विदेशी स्रोतों से प्राप्त फण्ड के क्लीयरेंस को आवश्यक बनाया जाय और उनकी अनिवार्य ऑडिटिंग की व्यवस्था की जाय. साथ ही, उनकी निरंतर निगरानी के लिए उपयुक्त मैकेनिज्म का विकास किया जाय.
हाँ, इनके पास जो नकदी मौजूद थी, वह बेकार और अनुपयोगी हो चुकी है. विशेष रूप से नक्सलवादी संगठन और पूर्वोत्तर के उग्रवादी इससे विशेष रूप से प्रभावित होंगे जो स्थानीय स्तर पर ही फण्ड जुटाते हैं. आज अपहरण, फिरौती एवं हफ्ता-वसूली के अलावा मादक पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी में संलिप्तता इनके लिए संसाधनों की उपलब्धता को सुनिश्चित करती है. इनके पास फंडिंग के स्रोत इस मायने में सीमित हैं कि इनकी पहुँच स्थानीय स्रोतों तक सीमित है. इनकी फंडिंग का निरंतर जारी रहना राज्य मशीनरी की विफलता को दर्शाता है. यह इस बात का संकेत देता है कि राज्य इनपर प्रभावी तरीके से अंकुश लगा पाने में असफल रहा है. नोटबंदी से इस क्षेत्र में, विशेष रूप से पूर्वोत्तर में भ्रष्टाचार, अपराध, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन का अंतर्संबंध बाधित होगा.मणिपुर, नागालैंड, असम और अरुणाचल के कुछ हिस्सों में सक्रिय उग्रवादियों की जमाओं के लिए भी यह एक झटका है और इस कारण कहीं-न-कहीं वे भी वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं. साथ ही, अबतक इनके द्वारा अधिशेष धन की पार्किंग रियल एस्टेट, सोने एवं बुलियन में की जाती थी क्योंकि तत्काल नकदीकरण की इसकी क्षमता इन्हें अस्थायी प्रकृति वाले निवेश के आकर्षक गंतव्य में तब्दील कर देती थी. लेकिन, आनेवाले समय में तत्काल नकदीकरण की इसकी क्षमता नकदी की सीमित उपलब्धता, गैर-नकदी लेन-देन और रियल एस्टेट सेक्टर की मंदी के कारण प्रभावित होगी. लेकिन, जबतक इस क्षेत्र में होने वाले लेन-देन को पारदर्शी नहीं बनाया जाता है और यह वास्तविक बाज़ार मूल्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, तबतक आतंकी संगठनों के द्वारा अपनी फंडिंग के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता रहेगा.
जहाँ तक हवाला का प्रश्न है, तो तरलता-संकट के कारण हवाला के जरिये होनेवाली फंडिंग भी प्रभावित हुई है, लेकिन यह अल्पावधिक स्थिति है. कैशलेस इकॉनोमी की दिशा में की जाने वाली पहल के कारण नकदी की उपलब्धता पूर्ववत हो पायेगी, इसमें संदेह है, इससे हवाला-कारोबार कुछ प्रभावित तो हो सकता है, पर बंद नहीं हो सकता. इसीलिए यह कहा जा सकता है कि नकदी के सामान्य होने की स्थिति में हवाला के जरिये फंडिंग का काम फिर चल पड़ेगा. विशेष रूप से यह सम्भावना तब और भी प्रबल है जब लगभग 90-95 प्रतिशत 500 रुपये और हज़ार रुपये की पुरानी करेंसी के बैंकों के पास वापस आ जाने की संभावना है.

ख़ुफ़िया संस्थाओं और सुरक्षा एजेंसियों की प्रतिक्रिया:
ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियाँ के द्वारा नोटबंदी को एक अवसर के रूप में लिया जा रहा है. वे ऐसे समय में कश्मीर के आतंकवादियों और अन्य देश के अन्य उपद्रवग्रस्त इलाकों में उग्रवादियों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही हैं जब उनके लिए फण्डों की उपलब्धता बाधित हुई है और इस कारण आतंकी गतिविधियों में कमी आई है. इन्हें लगता है कि ऐसे समय में आतंक-विरोधी अभियानों को तेज़ कर उन पर दबाव बढाया जा सकता है और यह रणनीति उन पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाने में सहायक होगी. लेकिन, इसके लिए आवश्यक है कि फण्ड के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की प्रक्रिया को बाधित किया जाय ताकि संक्रमण की अवधि लम्बी हो.

नोटबंदी: समस्या का समाधान नहीं नोटबंदी एवं कैशलेस इकोनॉमी का अंतर्संबंध: कितना समर्थ:
कहा जा रहा है कि नोटबंदी कैशलेस इकॉनोमी की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा जो भारत में आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन पर अंकुश लगाएगा. लेकिन, नवम्बर, 2014 में CNBC द्वारा दस सर्वाधिक कैशलेस इकॉनोमी में करवाए गए सर्वे इसकी पुष्टि नहीं करते हैं. यह सर्वे इस बात का संकेत देता है कि बेल्जियम और फ्रांस स्थानीय एवं सीमा-पार आतंकवाद की समस्या से बुरी तरह से ग्रस्त राज्य हैं, जबकि वहां 93% लेन-देन गैर-नकदी होते हैं और डेबिट कार्ड का इस्तेमाल 83% के स्तर पर है. उसके बाद फ्रांस, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया का स्थान है. हाँ, यह ज़रूर है कि इससे पहले की तुलना में फंडिंग की मुश्किलें बढेंगी.
जहाँ तक आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन पर प्रभावी अंकुश लगाने में नोटबंदी की भूमिका का प्रश्न है, तो नोटबंदी न तो हवाला कारोबार पर रोक लगती है और न ही ई-ट्रान्सफर ही इसके निशाने पर है. स्पष्ट है कि आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के सन्दर्भ में नोटबंदी की अपनी सीमायें हैं. प्रमाण है पेंगारी(असम) में उल्फा एवं NSCN(K) के संयुक्त ऑपरेशन में तीन जवानों का मारा जाना और बांदीपोरा(जम्मू-कश्मीर) में सेना द्वारा मार गिराए गए आतंकियों के पास से 2000 रुपये की नयी करेंसी का बरामद होना. इसीलिए अगर आतंकी गतिविधियों पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाना है, तो इसके लिए इसकी फंडिंग के स्रोतों पर प्रहार करना होगा और ई-ट्रान्सफर की समुचित एवं प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करनी होगी. साथ ही, इस सन्दर्भ में आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन पर अंकुश से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रावधानों को लागू करने की दिशा में भी पहल की जानी चाहिए.
दरअसल यह आतंक-निरोध मशीनरी है जो आतंकी गतिविधियों पर अंकुश लगती है, न कि करेंसी. जहाँ तक आतंक-निरोध मशीनरी का प्रश्न है, तो भारत में संरचनात्मक अपर्याप्तता और आतंकवाद के बदलते स्वरुप से निपटने के लिए नौकरशाही में पर्याप्त लोचशीलता के अभाव के कारण केंद्रीकृत निगरानी को सुनिश्चित करना बहुत ही मुश्किल है. यहाँ आतंकवादी-गतिविधियों के निरोध के लिए विकसित मशीनरी 29 राज्यों में फैली हुई है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के मैंडेट का अबतक देशव्यापी विस्तार संभव नहीं हो सका है. शायद यही कारण है कि यह 2015 के अंततक ISIS के खतरे को भांप पाने में असमर्थ रहा, जबकि इसे ब्रिटिश चैनेल 4 के द्वारा दिसम्बर,2014 में ही इस सन्दर्भ में सूचित किया गया.
निष्कर्ष:
अब अगर समग्रतः देखा जाय, तो जहाँ सीमा-प्रेरित आतंकवाद के सन्दर्भ में जम्मू-कश्मीर और पकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों एवं समूहों के लिए यह झटका अल्पकालिक है और यह स्थिति तबतक बनी रह सकती है जब तक भारत में नकदी की स्थिति सामान्य नहीं हो जाती है. उन्हें इस झटके से उबड़ने में बहुत समय नहीं लगेगा, लेकिन पूर्वोत्तर के उग्रपंथी समूहों और नक्सलवादियों के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होने जा रहा है. पर, यह संभव है कि वे वैकल्पिक रास्तों को ढूंढ निकालें. इस सन्दर्भ में अभी निर्णायक रूप से कुछ कहना मुश्किल है. हाँ, कश्मीर में स्थानीय स्तर पर उपद्रव की फंडिंग बाधित होने के कारण भारत को थोड़ी रहत मिल सकती है, पर भारत इस तात्कालिक रहत का कहाँ तक फायदा उठा पायेगा, यह तो आनेवाला समय बताएगा. हाँ, यह ज़रूर कहा जा सकता है कि नोटबंदी ने ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित की हैं जिनमें आतंकी गतिविधियों के वित्तीयन पर प्रभावी अंकुश लगाने की दिशा में पहल की जा सकती है.



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