Wednesday 29 July 2015

कैसी श्रद्धांजलि???????

               कलाम को श्रद्धांजलि
काफ़ी भीड़ थी वहाँ,अपने कलाम साहब गुज़र जो गए थे। हर कोई संजीदा था। कोई कलाम को भगवान कह रहा था, तो कोई फ़रिश्ता। हर किसी की बातों से लग रहा था कि देश ने कोई बहुत बड़ी चीज़ खोई है। तभी मेरी नज़र कलाम साहब की आत्मा पर पड़ी। मैंने उनकी आत्मा को गहरे अंतर्द्वंद्व की िस्थति में पाया। चिंता की लकीरें उसके माथे पर साफ़-साफ़ दिखाई पड़ रही थीं। हाँ, बीच-बीच में हल्की-सी िस्मत आती-जाती रहती थी, बस कुछ पल के लिए। मुझे लगा कि वे अपने लिए लोगों के प्यार को देखकर अभिभूत हो उठे हों और उनकी चिंता इस बात को लेकर बढ़ गई हो कि उनके बाद इस देश का और इन शुभचिंतकों का क्या होगा? दूसरी ओर इतने लोगों द्वारा "R.I.P." की कामना ने उन्हें आश्वस्त कर दिया हो मुक्ति को लेकर।
अचानक उस आत्मा की नज़र मेरी एहसानफरामोसी पर पड़ी । वह चौंक-सी पड़ी। मुझे क़रीब आते उसने मुझे देखा और मेरे अंदर चल रहे प्रश्नों को भी।अब चिंता की लकीरें गहराती जा रहीं थीं। मैंने क़रीब पहुँचकर उनकी आत्मा से पूछा: क्यों चिंतित हैं आप और क्या है आपकी हल्की-सी िस्मत का राज?मुझे ख़ुशी इस बात की है कि मेरा देश मुझे इतना प्यार और सम्मान देता है , तहे दिल से मेरा इस्तक़बाल करता है; कौन ऐसा होगा जो इस स्नेह से अभिभूत न हो! और चिंतित इस बात को लेकर हूँ कि अगर ऐसा पाँच प्रतिशत स्नेह और सम्मान भी अगर उन मूल्यों,सिद्धांतों, आदर्शों और सपनों के प्रति प्रदर्शित करे तथा उन्हें जीते हुए व्यवहार के धरातल पर उतारने की कोशिश करे, तो मेरे सपनों का भारत सपना नहीं रह जाएगा, हक़ीक़त में तब्दील हो जाएगा। अचानक उनके माथे की सिलबटें ग़ायब हो गयीं और वही चिर-परिचित मुस्कान उनके होंठों पर छा गई। उन्होंने "कुटिल- सी मुस्कान" के साथ प्रश्न भरी निगाहों से मुझसे पूछा:" कहो, क्या तुम दोगे मुझे श्रद्धांजलि?........ या फिर, औरों की तरह तुम भी मरे बहाने मेरे मूल्यों को श्रद्धांजलि देने आए हो?" मैं हतप्रभ, चाहकर भी मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। मेरे माथे पर सिलबटें गहराती जा रहीं थीं। पल भर में मैं पसीने से तर-बतर हो गया। साँसें तेज़ी से चलने लगीं और लगा कि किसी ने मेरी कमज़ोर नसें दबा दी हो। आँखों के आगे धुँधला-सा छा गया। जब तक सँभलता तब तक आत्मा दृष्टिपट से ओझल हो चुकी थी और शेष रह गया था उसका अट्टहास, जो शूल की भाँति मेरे हृदय को वेध रहे थे। फिर भी, हाँ कहने का साहस नहीं जुटा पा रहा था..................

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