अपराधी
अपराधी है वह,
अपराध किया है उसने,
ये मत पूछो-
"किसके प्रति"?
पूछो उससे-
किस-किस के प्रति नहीं,
किस-किस को नहीं छला है उसने?
क्या निभाई उसने अपनी ज़िम्मेवारियाँ
अपने माँ-बाप के प्रति?
क्या निभाया है उसने
अपना पुत्र-धर्म?
क्या खड़ा उतरा वह
अपनी पत्नी की अपेक्षाओं पर?
और तो और,
बच्चे की उससे जुड़ी अपेक्षाएँ भी
रह गई अधूरी?
लोक भी है संतप्त
उससे जुड़ी अपनी अपेक्षाओं से।
अब तुम्हीं बतलाओ-
कैसे माफ़ करूँ उसको?
उसका अपराध महज़ इतना नहीं,
दोहरा अपराध है उसका।
और धृष्टता देखो उसकी-
ऐसा नहीं कि उसे इसका अहसास नहीं,
पर वह इन अहसासों को भी नकारता।
अक्षम्य है उसका अपराध,
उसे तो सज़ा मिलनी ही चाहिए,
उसे सज़ा मिलकर रहेगी,
माफ़ नहीं करूँगा
उसे मैं,
सज़ा दिलवाकर ही रहूँगा,
सज़ा दिलवाकर ही रहूँगा ।
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