Tuesday, 4 February 2020

पार्ट 2: नागरिकता-संशोधन अधिनियम, एनआरसी और एनपीआर


पार्ट 2: नागरिकता-संशोधन अधिनियम, एनआरसी और एनपीआर
प्रमुख पहलू:
1.  एनआरसी के सन्दर्भ में सरकार का दावा
2.  सरकार के रुख को लेकर अस्पष्टता: विरोधाभासी स्थिति
3.  अधिनियम से एनआरसी के अंतर्संबंध
4.  असम के अनुभव
5.  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(NPR) से एनआरसी के अंतर्संबंध

एनआरसी के सन्दर्भ में सरकार का दावा:
यह कहा जा रहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम को नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर(NRC) से सम्बद्ध कर देखना और इस आधार पर  इसका विरोध उचित नहीं है, क्योंकि न तो सरकार ने अखिल भारतीय स्तर पर एनआरसी को लागू करने का निर्णय लिया है और न ही नागरिकता की पहचान के मानकों, प्रक्रियाओं और इसके लिए आवश्यक दस्तावेजों के सन्दर्भ में अबतक कोई निर्णय ही हुआ है। इस सन्दर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री ने भी यह कहते हुए मामले को शान्त करने की कोशिश की कि मई,2014 से अबतक इस पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है, इसीलिए एनआरसी के संदर्भ में देशव्यापी आंदोलन का कोई तार्किक औचित्य नहीं है। लेकिन, प्रधानमंत्री का ऐसा कहना बहुत आश्वस्त नहीं करता है, और इसके समुचित एवं पर्याप्त कारण हैं।
सरकार के रुख को लेकर अस्पष्टता: विरोधाभासी स्थिति
एनआरसी के सन्दर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री के दावों को संसद के भीतर एवं बाहर केन्द्रीय गृह-मंत्री के द्वारा दिया गया बयान ही झुठला रहा है। ध्यातव्य है कि प्रधानमंत्री के द्वारा इस मसले पर बयान देने के पहले ही 10 दिसम्बर,2019 को संसद में केन्द्रीय गृह-मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि उनकी सरकार अवैध प्रवासियों की चुनौतियों के मद्देनजर दो अलग-अलग क़ानून लाने जा रही है:
a.  तीनों पड़ोसी इस्लामिक देशों से आने वाले अवैध गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों हेतु भारतीय नागरिकता से सम्बंधित प्रावधानों को उदार बनाना और इसके लिए नागरिकता क़ानून में संशोधन, ताकि उनके लिए आसानी से भारतीय नागरिकता की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके; और
b.  पूरे देश में नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर(NRC) को लागू करना।
पहले के जरिए अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक उत्पीड़न के शिकार ग़ैर-मुस्लिम आप्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी, तो दूसरे के जरिए अवैध विदेशियों की पहचान कर उन्हें या तो उनके मूल देश वापस भेजा जायेगा, या फिर उन्हें डिटेंशन कैम्पों में रखा जायेगा। पहले उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रव्यापी एनआरसी की प्रक्रिया में असम को भी शामिल किया जायेगा, लेकिन बाद में जब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की चर्चा शुरू हुई, तो असम को इससे बाहर रखने का निर्णय लिया गया।
इससे पहले, एनआरसी के मसले को राष्ट्रपति के अभिभाषण में स्थान देते हुए इसे अखिल भारतीय स्तर पर लागू करने के प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया गया। लेकिन, जब एनआरसी का मसला गरमाया और भारतीय प्रधानमंत्री ने अबतक इस मसले पर किसी भी चर्चा से इन्कार किया, तो सरकार एवं सत्तारूढ़ दल दोनों ने इसकी जगह राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(NPR) पर जोर देना शुरू किया, लेकिन प्रधानमंत्री एवं सरकार की ओर से भविष्य में एनआरसी की संभावनाओं को कभी स्पष्ट शब्दों में खारिज नहीं किया गया। अबतक उसने सिर्फ इतना कहा है कि अबतक इस मसले पर कोई फैसला नहीं किया गया है। मतलब यह कि भविष्य में इस दिशा में पहल की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है, इसके रास्ते खुले हुए हैं।  
अधिनियम से एनआरसी के अंतर्संबंध:
भले ही सरकार एनआरसी से पल्ला झाड़ रही हो और कह रही हो कि एनआरसी को संशोधित नागरिकता अधिनियम से जोड़ना उचित नहीं है, पर अधिनियम का एनआरसी से सीधे-सीधे सम्बन्ध जुड़ता है। यह अधिनियम बांग्लादेश से वैध या अवैध रूप से भारत आनेवाले अवैध प्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता का प्रावधान करता है जिन्हें नागरिकता रजिस्टर में जगह नहीं मिल पाई है, बशर्ते वे गैर-मुस्लिम हैं। यहाँ गैर-मुस्लिम को व्यावहारिक रूप से हिन्दू पढ़ा जाए क्योंकि ऐसे लोगों में 90 प्रतिशत से अधिक लोग हिन्दू धार्मिक समुदाय से ही आते हैं। यह सुविधा बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों के लिए उपलब्ध नहीं होगी। दरअसल, यह अधिनियम लाया ही इसलिए गया है कि असम में जिन गैर-मुस्लिमों के नाम नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल नहीं हो पाए हैं, उन्हें इस अधिनियम के प्रावधानों के ज़रिये भारत की नागरिकता दी जा सके। साथ ही, यदि भविष्य में अखिल भारतीय स्तर पर एनआरसी को लागू किया जाता है, तो जो गैर-मुस्लिम इसके दायरे से बाहर रह जायेंगे, उनके लिए भारतीय नागरिकता सुनिश्चित की जा सके और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को इससे वंचित रखा जा सके। जिस तरह से सरकार हिंदुत्व के एजेंडे के प्रति आग्रहशील है और आक्रामक तरीके से उसे अमल में लाने पर आमदा है, उसकी पृष्ठभूमि में आशंका इस बात की है कि आनेवाले समय में एनआरसी कहीं मुस्लिमों के उत्पीड़न के अस्त्र में तब्दील न हो जाए। इस आशंका को असम के अनुभव से भी बल मिल रहा है जो यह बतलाता है कि एनआरसी की प्रक्रिया अस्पष्ट, अपारदर्शी एवं भेदभावकारी है और इसीलिए असम में इसका लगातार विरोध होता रहा है। इसलिए यह कहना पूरी तरह से गलत है कि न तो इस अधिनियम का एनआरसी से कोई सम्बन्ध है और न ही यह अधिनियम भारतीय सीमा के भीतर रहने वाले व्यक्तियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव करता है।
असम के अनुभव:
ध्यातव्य है कि अगस्त,2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप उसकी निगरानी में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर(NRC) को अपडेट करते हुए इसकी आख़िरी लिस्ट जारी की गई। इस लिस्ट में करीब 19,06,657 लोग जगह बना पाने में असफल रहे। इनमें करीब 13 लाख लोग हिन्दू हैं और एक लाख लोग गोरखा समुदाय से आते हैं, जबकि करीब 5 लाख मुसलमान। ऐसा नहीं है कि केवल बांग्लादेशी घुसपैठिये ही इस सूची से बाहर रह गए हैं। दरअसल, जिस तरह इस सूची से बाहर रहने वाले लोगों में हिन्दू एवं मुसलमान, दोनों शामिल हैं, ठीक उसी प्रकार इस सूची से बाहर रहने वाले लोगों में भारतीय एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ-साथ वे भारतीय भी शामिल हैं जो भारत के विभिन्न हिस्सों से आकर असम में बस गए, पर जो अपने भारतीय नागरिक होने के पक्ष में समुचित एवं पर्याप्त दस्तावेज़ प्रस्तुत कर पाने में असमर्थ रहे। 
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(NPR) से एनआरसी के अंतर्संबंध:
कुछ समय पहले तक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर(NPR) की कही चर्चा नहीं थी और अखिल भारतीय स्तर पर नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर(NRC) को नागरिकता-संशोधन अधिनियम,2019 की तार्किक परिणति के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन, जैसे ही नागरिकता-संशोधन अधिनियम और नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर(NRC) को लेकर विरोध-प्रदर्शनों में तेजी आयी, वैसे ही एनआरसी के मसले को ठन्डे बस्ते में डालते हुए फोकस को एनआरसी से एनपीआर की ओर शिफ्ट कर दिया गया। परिणामतः एनपीआर विरोध-प्रदर्शनों के केंद्र में आ गया, कारण यह कि एनपीआर और एनसीआर एक दूसरे से सम्बंधित हैं।   
फोकस की इस शिफ्टिंग की पृष्ठभूमि में जब एनपीआर के इतिहास को खंगाला गया, तो यह पाया गया कि:
1.  संसद में सरकार का रुख: जून,2014 से अब तक संसद के भीतर सरकार ने अलग-अलग समय पर सांसदों के सवालों का जवाब देते हुए एनपीआर और एनआरसी के अंतर्संबंध के सन्दर्भ में सन् 2003 की नागरिकता-नियमावली के प्रावधानों की पुष्टि की।
2.  नागरिकता नियमावली,2003 का सन्दर्भ: द सिटीजनशिप (रजिस्ट्रेशन ऑफ़ सिटीजन एवं इश्यू ऑफ़ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड) रूल्स,2003 में स्पष्ट शब्दों में यह कहा गया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर हेतु संग्रहित आँकड़ों का इस्तेमाल नागरिकता के दावों की जाँच पड़ताल के लिए किया जाएगा।
3.  गृह-मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट,2018–19 इमं दोनों के सहसंबंध का उल्लेख: गृह-मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट,2018–19 भी एनपीआर एवं एनआरसी के अंतर्ससम्बंध की ओर इशारा कर रही है क्योंकि इसमें इस बात का स्पष्टतः उल्लेख है कि एनपीआर एनआरसी का पहला चरण है।
4.  एनपीआर के लिए आँकड़ों के संग्रहण हेतु प्रश्नावली-प्रारूप में संशोधन: जनगणना,2021 के क्रम में एनपीआर के लिए आँकड़ों के संग्रहण हेतु प्रश्नावली का जो प्रारूप तैयार किया गया है, उसमें माता एवं पिता की जन्म-तिथि ओर उनके जन्म-स्थान से संबंधित सूचनाएँ माँगी गयी है। इस तरह के प्रश्नों को पहली बार एनपीआर की प्रश्नावली में शामिल किया गया है। इससे पहले अबतक एनपीआर के सिलसिले में इस तरह की सूचनाएँ नहीं माँगी गयी थीं।
इसके कारण इस आशंका को बल मिला है कि एनपीआर एनआरसी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। साथ ही, यह उल्लेख सरकार के उस दावे को ख़ारिज करता है कि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है।


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