Thursday, 9 January 2020

हाँ, मैं निष्पक्ष नहीं!



हाँ, मैं निष्पक्ष नहीं!
हाँ, तुम निष्पक्ष हो!
हाँ, तुम निष्पक्ष हो,
क्योंकि.....
क्योंकि.....
तुम राष्ट्र के साथ खड़े हो,
राष्ट्रवाद के साथ खड़े हो,
सरकार के साथ खड़े हो,
चाटुकार के साथ खड़े हो,
पत्तलकार के साथ खड़े हो!
शासन भी तुम्हारा है,
प्रशासन भी तुम्हारा है;
साहस भी तुम्हारा है,
दुस्साहस भी तुम्हारा है;
छल भी तुम्हारा है,
बल भी तुम्हारा है,
कल भी तुम्हारा है;
प्रेस भी तुम्हारा है,
संचार भी तुम्हारा है;
सभा भी तुम्हारी है,
प्रभा भी तुम्हारी है।
हाँ, इसीलिए तुम निष्पक्ष हो!
लेकिन,
मैं निष्पक्ष नहीं,
न हूँ, और
न ही होना चाहता।
मेरा एक पक्ष है,
मैं ही प्रतिपक्ष हूँ,
मैं ही विपक्ष हूँ!
मेरी एक दरकार है,
मेरी एक सोच है,
मेरा एक विचार है,
मेरी अपनी आस्था है,
मेरे अपने संस्कार हैं।
मैं ज़िन्दा हूँ,
क्योंकि मैं सोचता हूँ,
मैं विचारता हूँ।
सोचने में मुझे अपने होने का बोध होता है।
मेरी सोच ने,
मेरे अनुभव ने
मुझे इस निष्कर्ष पर पहुँचाया
कि कोई निष्पक्ष हो ही नहीं सकता,
(निष्पक्षता का भ्रम चाहे वह जितना पाल ले।)
और होने की ज़रूरत भी नहीं।
मेरी आत्मा जीवित है,
अपना ज़मीर अभी मैंने बेचा नहीं है,
इसीलिए मेरा एक पक्ष है, और
मैं पक्षधर हूँ।
इस दौर में पक्षधरता बहुत ज़रूरी है,
क्योंकि जब अधिकांश लोग
निष्पक्ष होने लगें, तो
पक्षधरता ज़रूरी हो जाती है;
इसीलिए पक्षधरता है मेरी
उनके प्रति जिनका तुम इस्तेमाल करते हो;
अब वो चाहे अल्पसंख्यक हों,
या बहुसंख्यक;
दलित हों,
या आदिवासी;
महिलाएँ हों,
या बच्चे।
मेरा तो एक पक्ष है,
शायद इसीलिए
मेरे लिए सेक्यूलर होना
सिकुलर होना नहीं,
और न ही है मुस्लिम-तुष्टिकरण का पर्याय;
मेरे लिए ‘हिन्दुइज्म’
हिन्दुत्व का पर्याय नहीं, और
न ही हिन्दू होने का मतलब
साम्प्रदायिक हो जाना है;
मेरा धर्म मुझे
प्रेम का संदेश देता है,
न कि घृणा का।;
मैं खुद को कबीर की परम्परा में पाता हूँ,
तुलसी हैं आदर्श मेरे,
गाँधी को भी जानने की कोशिश की है मैंने।
मेरे लिए ‘विकास’ का मतलब
अम्बानी-अडानी का विकास नहीं,
जिसकी क़ीमत दलितों और आदिवासियों को चुकानी पड़ती है;
मेरे लिए विकास का मतलब है
उन आँखों में आशा,
उन चेहरों पर मुस्कान,
जिसके आँसू पोंछने का सपना प्यारे बापू ने देखा था।
इसीलिए मैंने कहा
कि न तो मैं निष्पक्ष हो सकता हूँ, और
न ही निष्पक्षता का दम्भ भर सकता।
यही फ़र्क़ है मुझमें और तुममें:
तुम्हारे लिए राष्ट्र ही सब कुछ है, पर
मेरे लिए मानव सर्वोपरि है।
तुम राष्ट्र के लिए
इन्सान और इन्सानियत को दाँव पर लगा सकते हो, और
मैं इन्सान और इन्सानियत के लिए
राष्ट्र को दाँव पर लगा सकता हूँ।
तुम्हारे लिए
पश्चिम से राष्ट्र की आयातित संकल्पना मायने रखती है,
और मेरे लिए ‘वसुधैवकुटुम्बकम’ के भारतीय आदर्श;
तुम्हारे लिए एकरंगा महत्वपूर्ण है,
पर मेरे लिए तिरंगा।
हाँ, मेरा एक पक्ष है,
मैं संविधान के पक्ष में खड़ा हूँ, और
संविधान
‘हम भारत के लोग’ के पक्ष में;
इसीलिए मैं भी
‘हम भारत के लोग’ के पक्ष में खड़ा हूँ।
मेरा पक्ष प्रेम का है,
घृणा का नहीं;
समन्वय का है,
टकराव का नहीं;
समर्पण का है,
अहम् का नहीं;
इसीलिए तो मैं निष्पक्ष नहीं।
हाँ, तुम निष्पक्ष हो सकते हो,
मैं नहीं;
तुम निष्पक्षता का दम्भ भर सकते हो,
मैं नहीं।
(अजीत अंजुम सर से प्रेरित)
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