क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौता हेतु वार्ता औपचारिक रूप से नवम्बर,2012 में कम्बोडिया में आसियान सम्मलेन के दौरान वार्ता शुरू की गई. चीन के नेतृत्व में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)समझौता अमेरिका के नेतृत्व में TTP और TTIP जैसे मेगा FTA की दिशा में की गई पहल का जवाब है. यह समझौता आसियान के सदस्य-देशों के इर्द-गिर्द केन्द्रित है. माना जाता है कि यह आसियान के छः देशों(ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया) के साथमुक्त व्यापार समझौते का विस्तार है. इसके जरिये क्षेत्रीय आर्थिक समेकन की प्रक्रिया को आगे बढाने की कोशिश की गई है. अगर यह समझौता-वार्ता तार्किक परिणति तक पहुँचती है, तो RCEP जिस व्यापारिक ब्लाक का सृजन करेगा वह दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक ब्लाक होगा जो दुनिया की 45% जनसँख्या, एक तिहाई वैश्विक जीडीपी और 20% वैश्विक सेवा-व्यापार का प्रतिनिधित्व करेगा और जिसका समेकित सकल घरेलु उत्पाद 23 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा. इस समझौते के दायरे में वस्तु एवं सेवा-व्यापार, निवेश, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, प्रतिस्पर्धा और बौद्धिक सम्पदा आयेंगे.
ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से भिन्नता:
ऐसे मेगा व्यापारिक ब्लॉक के निर्माण के लिए भूराजनीति और वैश्विक आर्थिक स्लोडाउन कहीं कम ज़िम्मेवार नहीं हैं जिसने घरेलू आर्थिक संकट से निबटने के लिए वैश्विक शक्तियों को नए बाज़ार की तलाश के लिए विवश किया है. TPP से RCEP की भिन्नता को निम्न सन्दर्भों में देखा जा सकता है:
बौद्धिक संपदा से सम्बंधित विवादास्पद प्रावधान:
RCEP के समझौता-प्रारूप का बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) से सम्बंधित लीक दस्तावेज़ इस बात का संकेत करता है कि TPP में शामिल RCEP के जापान और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ सदस्य-देश बौद्धिक संपदा से सम्बंधित TPP मानकों को RCEP के दायरे में लाना चाहते हैं जो भारत जैसे विकसित देशों में दवाओं तक आसान पहुँच को सीमित करने वाला साबित होगा.
टैरिफ-कटौती के प्रश्न पर मतभेद:
RCEP के सन्दर्भ में भारत ने टैरिफ-कटौती के सन्दर्भ में त्रिआयामी रणनीति (Three Tier Approach) को अपनाने का संकेत दिया है:
जून, 2016 में न्यूजीलैंड में संपन्न तेरह्वें राउंड की वार्ता में टैरिफ-कटौती के सन्दर्भ में भारत के त्रिस्तरीय सेलेक्टिव एप्रोच को नकारते हुए चीन ने आसियान देशों को भी इसके विरोध के लिए प्रोत्साहित किया. प्रस्तावित RCEP समझौते में शामिल आधे से अधिक सदस्य-देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले आसियान देशों ने सिंगल टैरिफ के विरोध में अपना प्रस्ताव पेश किया, यद्यपि चीन भारत के रूख के विरोध में अपने प्रस्ताव के लिए आसियान-समूह में फूट डालते हुए कम्बोडिया, लाओस, मलेशिया और इंडोनेशिया का समर्थन हासिल करने में सफल रहा. आसियान के सदस्य-देश जल्द-से-जल्द इस समझौते को अंतिम रूप देना चाहते हैं और चीन सेवा-मसले पर भारत के आक्रामक रूख के मद्देनजर दबाव बनाने के लिए उनका इस्तेमाल भारत के विरुद्ध करने कि कोशिश कर रहा है. ध्यातव्य है कि चीन और जापान का जोर इस बात पर है कि भारत या तो दस वर्ष की समयावधि में सभी सदस्य-देशों के लिए एकसमान टैरिफ व्यवस्था कोस्वीकार करे या फिर आरंभिक व्यापार-उदारीकरण को अधिक महत्वाकांक्षी बनाये. RCEP के गैर-आसियान देश भारत के संरक्षणवादी आग्रहों और वस्तु, सेवा एवं निवेश के उदारीकरण के बजाय केवल श्रमिकों की मुक्त आवाजाही पर विशेष फोकस से नाखुश हैं.
भारत का रूख:
भारत RCEP को अपने लुक ईस्ट पालिसी से सम्बद्ध करके देखता है.आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते, जिसमें भारत ने सेवा-व्यापार के मसले पर ठोस प्रगति के बिना ही वस्तुगत व्यापार समझौते पर अपनी सहमति दे दी थी और इस कारण सेवा-व्यापार के मसले पर उसकी मोल-भाव की क्षमता कमजोर पड़ी, के अनुभवों के मद्देनजर भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि व्यापारिक उदारीकरण के मसले पर वह तबतक कोई बात करने के लिए तैयार नहीं है जबतक आसान वीज़ा नार्म्स और कुशल श्रमिकों की मुक्त आवाजाही पर ठोस प्रगति नहीं हो जाती है. आसान वीज़ा नार्म्स, प्रोफेशनल्स की मुक्त आवाजाही और कुछ क्षेत्रकों में बाज़ार-पहुँच को लेकर चौकसी के साथ भारत विधि, शिक्षा, मनोरंजन और ई-कामर्स जैसी सेवाओं के उदारीकरण की दिशा में पहल कर सकता है। इसी आलोक में भारत ने आनुबंधिक सेवा आपूर्तिकर्ता और स्वतंत्र कुशल श्रमिकों की मुक्त आवाजाही पर विशेष दस्तावेज के जरिये अन्य देशों के समर्थन जुटाने की कोशिश की है.
वाणिज्य मंत्रालय का आकलन बतलाता है कि भारत द्वारा सोलह सदस्यीय क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) समझौते पर हस्ताक्षर से सकल घरेलु उत्पाद के 1.6% तक राजस्व-हानि की सम्भावना है जो चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते कि स्थिति में होने वाली हानि के समान है. भारत में सीमा-शुल्क की दरों के उच्च स्तर पर रहने के कारण ऐसे समझौतों में शामिल होने के लिए उसे इसमें तीव्र कटौती करनी होगी, जबकि इस समझौते में शामिल अन्य सदस्य-देशों में निम्न टैरिफ के कारण कटौती मामूली होगी. लेकिन, भारत ऐसे समझौतों से खुद को बहुत दिनों तक अलग नहीं रख सकता है क्योंकि ऐसी स्थिति में इसके अलग-थलग पड़ने और मुख्याधरा से काटने की सम्भावना बढ़ जायेगी जो इसके आर्थिक हितों को प्रतिकूलतः प्रभावित करेगा. इसीलिए भारत की रणनीति सेवा-क्षेत्र में बेहतर बाज़ार-पहुँच को सुनिश्चित करने और कुशल श्रमिकों की निर्बाध आवाजाही के लिए दबाव डालने की है ताकि भारत अधिशेष श्रमिकों की चुनौती का मुकाबला कर सके और उनके लिए उपलब्ध रोजगार-अवसरों को बाधा सके. इस समझौते में अपनी भागीदारी को जस्टिफाई किया जा सके और वस्तुगत व्यापार के क्षेत्र में होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को प्रति-संतुलित किया जा सके, यद्यपि सेवा-व्यापार में भी दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ार में भारत के लिए सीमित संभावनाएं हैं क्योंकि फिलीपींस जैसे देश इस क्षेत्र में भारत के प्रबल प्रतिद्वंद्वी हैं. इसीलिए भारत को अपने बाज़ार का विविधीकरण करना होगा और सेवा-क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी जो तकनीक-हस्तांतरण और रोजगार-अवसरों के सृजन में सहायक होगा. भारत की इच्छा पर्यटन और बिज़नेस-सम्बन्धी यात्रा करने वालों के लिए ‘वीजा ऑन अरायवल’ सुविधा प्राप्त करने की है.
भारत यह चाहता है कि समझौते में भागीदार देश भारत की दवाओं और टेक्सटाइल्स-उत्पादों के लिए अपने बाज़ार को खोलें ताकि उन बाजारों तक भारत के इन उत्पादों की आसान पहुँच संभव हो सके. साथ ही, स्वच्छता एवं पादप-स्वच्छता मानकों के सहारे सृजित तकनीकी अवरोधों को दूर किया जाय. विकसित देश अक्सर इसका इस्तेमाल नन-टैरिफ बैरियर के रूप में दूसरे देशों से आयात को हतोत्साहित करने और अपने देश के उत्पादों को संरक्षण प्रदान करने के लिए करते हैं.
नवीन व्यापारिक चुनौतियों और इसका सामना करने की उपयुक्त भारतीय रणनीति:
TTP और TTIP जैसे मेगा मुक्त व्यापार समझौते भारत-जैसे विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरकर सामने आये हैं जिसे वे न तो स्वीकार करने की स्थिति में है और न ही अनदेखी कर पाने की स्थिति में. ये समझौते न केवल WTO के अंतर्गत होने वाले बहुपक्षीय व्यापार समझौते के विकल्प के रूप में उभरकर सामने आये हैं, वरन इनके जरिये दोहा दौर की वार्ता के एजेंडे को भी परिभाषित करने की कोशिश की जा रही है.उदाहरण के रूप में TPP के दायरे में शामिल किये जानेवाले नए मुद्दों: श्रम, निवेश, पर्यावरण, ई-कॉमर्स, प्रतिस्पर्धा और सरकारी खरीद को लिया जा सकता है जो WTO के दायरे में शामिल नहीं हैं और जिनका भारत सहित तमाम विकसित देशों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अतः यह उपयुक्त समय है जब भारत को अंतर्राष्ट्रीय और घरेलु स्तर पर उभरने वाली व्यापारिक चुनौतियों का सामना करने की रणनीति निर्धारित करनी चाहिए.इसे निम्न परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है:
स्पष्ट है कि TPP के कारण भारत को होने वाली अनुमानित हानि भारतीय व्यापारिक हितों को संरक्षण और प्रोत्साहन के लक्ष्यों को लेकर चलने वाली समग्र व्यापारिक नीतियों के जरिये ही कम की जा सकती हैं जो अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलु मोर्चों को ध्यान में रखकर निर्धारित की गई हो.
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