Wednesday 6 January 2021

ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति: पार्ट 3 भारतीय अर्थव्यवस्था (For 66th BPSC)

 

भारतीय अर्थव्यवस्था

ट्रेंड-विश्लेषण और रणनीति

(For 66th BPSC)

 

अर्थव्यवस्था खण्ड की अहमियत:

बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित मुख्य परीक्षा में भारतीय अर्थव्यवस्था खंड से प्रश्न सामान्य अध्ययन द्वितीय पत्र में भूगोल के साथ पूछे जाते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए, तो इस खंड से कुल-मिलाकर 4 प्रश्न पूछे जाते हैं, लेकिन वास्तव में अर्थव्यवस्था खंड का महत्व उससे कहीं ज्यादा है जितना यह दिखता है कारण यह कि कई बार सामान्य अध्ययन प्रथम पत्र में करेंट सेक्शन और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सेक्शन के अंतर्गत भी अर्थव्यवस्था से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।

अपडेशन और इंटर-डिस्सिप्लिनरी एप्रोच की बढ़ती अहमियत

जहाँ तक अर्थव्यवस्था खंड से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति का प्रश्न है, तो कुछ समय पहले तक पारंपरिक प्रकृति वाले प्रश्नों की ओर रुझान कहीं अधिक था, यद्यपि समसामयिक परिदृश्य से भी प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। ऐसे प्रश्न सामान्यतः कृषि, गरीबी, बेरोजगारी एवं जनांकिकी से सम्बंधित होते थे, लेकिन हाल के वर्षों में समसामयिक परिदृश्य से प्रश्न पूछे जाने की प्रवृत्ति तेज़ हुई है। यहाँ तक कि पारंपरिक टॉपिकों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति में भी बदलाव देखे जा सकते हैं।

यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि अर्थव्यवस्था से सम्बंधित प्रश्न करेंट सेक्शन और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सेक्शन के अंतर्गत भी पूछे जा रहे हैं। उदाहरण के रूप में, 65वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में कर्रेंट सेक्शन में दो प्रश्न: ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स,2020 और लॉकडाउन के सामाजिक, आर्थिक एवं पारिस्थितिक निहितार्थ आर्थव्यवस्था से सम्बंधित थे 64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में भी कर्रेंट सेक्शन में अर्थव्यवस्था से सम्बंधित दो प्रश्न: मानव-विकास रिपोर्ट,2019 और संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क(UNSDNS) पूछे गए इसी प्रकार (60-62)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में कर्रेंट सेक्शन के अंतर्गत दो प्रश्न: विमुद्रीकरण एवं जीएसटी और (55-59)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में 13वें वित्त-आयोग और विश्व व्यापार संगठन(WTO) के कृषि-समझौता करार से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए, जो अर्थव्यवस्था से सम्बंधित थे

इतना ही नहीं, पिछले कुछ वर्षों से साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेक्शन से भी ऐसे प्रश्न पूछे जा रहे हैं जो आर्थिक सन्दर्भों से सम्बंधित हैं65वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सेक्शन के अंतर्गत पूछे गए तीन प्रश्नों: ‘मेक इन इंडिया’ को गति प्रदान करने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका; बढ़ती हुई जनसंख्या, उच्च स्वास्थ्य ज़ोखिम, घटते हुए प्राकृतिक संसाधन और घटती जा रही कृषि-भूमि: जैसी आर्थिक चुनौतियों से निबटने में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका और नौकरियों पर संकट की स्थिति को नियंत्रित करने तथा राष्ट्र के विकास की गति को बनाये रखने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका से सम्बंधित प्रश्नों को देखा जा सकता है 64वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में भी इस सेक्शन से जल-प्रबंधन, शहरीकरण-प्रबंधन और ऊर्जा-प्रबंधन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका से सम्बंधित तीन प्रश्न पूछे गए। उपरोक्त विश्लेषण न केवल अर्थव्यवस्था-खण्ड की अहमियत को उद्घाटित करता है, वरन् उसमें अपडेशन एवं इंटर-डिस्सिप्लिनरी एप्रोच की महत्ता को भी रेखांकित करता है।

65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा:

65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा के दौरान पूछे गए प्रश्नों पर गौर करें, तो सहज ही यह निष्कर्ष सामने आता है कि पूछे गये दो प्रश्न भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र समझ पर, एक प्रश्न बिहार की अर्थव्यवस्था की समझ पर और एक प्रश्न समसामयिक आधारित हैं इसके अलावा, अपडेशन और इंटर-डिस्सिप्लिनरी पर आधारित प्रश्न कर्रेंट सेक्शन और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सेक्शन में अलग से पूछे गए अब इस वर्षग पूछे गए प्रश्नों पर गौर करें:

1. भारतीय कृषि में सन् 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिए बिहार में कृषि-उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए क्या व्यावहारिक उपाय किये जाने चाहिए?

यह प्रश्न भारतीय कृषि की समग्र समझ पर आधारित है इस प्रश्न के दो हिस्से हैं:

a.  प्रश्न के पहले हिस्से में पिछले तीन दशकों के दौरान संवृद्धि एवं उत्पादकता के सन्दर्भ में उभरने वाले उन रुझानों की चर्चा करनी है जो भारतीय कृषि में उभरकर सामने आई है इसमें उत्पादकता में ठहराव की चुनौतियों की चर्चा करनी है और यह भी कि भूमि-सुधार, भारतीय कृषि का आधुनिकीकरण एवं तकनीकी उन्नयन, जलवायु-परिवर्तन और मौसम की अनिश्चितता, बदलते फसल-पैटर्न, जल-प्रबंधन, सतत कृषि, कृषि-अवसंरचना, पश्च-फसल प्रबंधन और कृषि एवं खाद्य-प्रसंस्करण के मोर्चे पर मौजूद चुनौतियाँ किस प्रकार इसमें अवरोध उत्पन्न कर रही है साथ ही, हरित-क्रान्ति के अंतर्विरोधों से लेकर सरकार की बेरुखी तक इस स्थिति को किन रूपों में प्रभावित कर रही है?

b.  प्रश्न के दूसरे हिस्से में इस प्रश्न को बिहार के विशेष सन्दर्भों से जोड़ दिया गया है और यह पूछा गया है कि बिहार में कृषि-उत्पादन एवं उत्पादकता में सुधार के लिए क्या किया जाना चाहिए

2.   भारत में आर्थिक सुधारों के बाद के काल में आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए इस सन्दर्भ में समझाइए कि किस प्रकार राज्य और बाज़ार देश के आर्थिक विकास में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं?

64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में भी आर्थिक नियोजन की मुख्य उपलब्धियों के मूल्यांकन से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए थे। इस बार एक बार फिर से आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए हैं। अक्सर आर्थिक नियोजन की संकल्पना को समाजवादी अर्थव्यवस्था और राज्य की नियंत्रणकारी व्यवस्था से सम्बद्ध कर देखा जाता है, और उस सबक को भुला दिया जाता है जो सबक सन् (1929-33) की वैश्विक आर्थिक महामन्दी ने दिया था। इसीलिए भारत में जब सन् 1991 में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू हुई, तो आर्थिक नियोजन और योजना आयोग को केन्द्रीकरण का प्रतीक मानते हुए उसे अप्रासंगिक घोषित करने का सिलसिला शुरू हुआ। इस बात को भुला दिया गया कि आर्थिक उदारीकरण ने राज्य की भूमिका को समाप्त करने की बजाय उसे पुनर्परिभाषित किया है और इसके कारण राज्य एवं सरकार की जिम्मेवारियाँ और भी अधिक हो गई हैं। अन्ततः सन् 2015 में योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन करते हुए आर्थिक आयोजन की रणनीति को छोड़ दिया गया, लेकिन नीति आयोग के सन्दर्भ में अबतक के अनुभव बहुत सुखद नहीं रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि नीति आयोग एक स्वतंत्र थिंक-टैंक की भूमिका के निर्वाह की बजाय सरकारी रुखों के प्रस्तोता के रूप में सामने आया है, और इसीलिए अब उसकी भूमिका को लेकर लगातार प्रश्न उठा रहे हैं।

यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें इस प्रश्न में सुविधाप्रदायक के रूप में राज्य की भूमिका, बाज़ार की स्वेच्छाचरिता पर अंकुश लगते हुए एक नियमनकारी के रूप में राज्य की भूमिका, समाज के कमजोर एवं वंचित समूह के पक्ष में हस्तक्षेपकारी के रूप में राज्य की भूमिका, देश के तात्कालिक एवं दीर्घकालिक हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में राज्य की भूमिका और वैश्वीकरण की तेज होती प्रक्रिया के साथ बढ़ाते हुए अंतर्राष्ट्रीय दबाव एवं भारत के परस्पर-विरोधी हितों के प्रबंधन में राज्य की भूमिका को रखांकित करते हुए आयोजन की प्रासंगिकता के प्रश्न पर विचार करना है।

3. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों की नयी परिभाषा बतलाइए भारत में औद्योगिक संवृद्धि की गति को तीव्र करने और आत्मनिर्भर अभियान की सफलता को सुनिश्चित करने में इन उपक्रमों की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए

जून,2020 में केंद्र सरकार ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में पहल की क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि पुरानी परिभाषा के कारण उद्यमता-बाज़ार में गतिशीलता अवरुद्ध होती है, इसलिए यह निवेश और संवृद्धि में बाधक है। निश्चय ही निवेश-लागत और टर्नओवर पर आधारित नयी परिभाषा उन अवरोधों को दूर करती है जिनके सन्दर्भ में अबतक बातें की जाती रही हैं, लेकिन इसको लेकर कई आशंकाएं भी हैं। अगर बड़े कॉर्पोरेट्स की नज़रों में निवेश-लागत और टर्नओवर के सन्दर्भ में नवनिर्धारित सीमा अव्यावहारिक है, वहीं छोटे निवेशक बड़े कॉर्पोरेट्स के दबदबे में वृद्धि को लेकर आशंकित हैं। इन्हीं विरोधाभासों के परिप्रेक्ष्य में उपरोक्त संशोधित परिभाषा का विश्लेषण अपेक्षित है।    

4.     बिहार के तीव्र आर्थिक विकास में क्या बाधाएँ हैं? इन बाधाओं को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?

उपरोक्त प्रश्न का एक विशिष्ट सन्दर्भ है, और वह यह कि सुशासन के तमाम दावों के बावजूद बिहार में विकास की गति मंथर है। तमाम कोशिशों के बावजूद बिहार निवेश एवं निवेशकों को आकर्षित कर पाने और अपने विकास को उत्प्रेरित कर पाने में असमर्थ रहा है। हाल में बिहार के मुख्यमंत्री ने बिहार के औद्योगिक अविकास एवं पिछड़ेपन के लिए बिहार के ‘लैंडलॉक्ड’ होने को जिम्मेवार ठहराया। यहाँ पर इस बात को स्पष्ट करना अपेक्षित है कि अक्सर बिहार के औद्योगिक विकास के प्रश्न को बिहार के विशिष्ट भूगोल से अलगाकर देखा जाता है और इस क्रम में यह समझने की कोशिश नहीं की जाती है कि बिहार के ग्रोथ का अपना अलग मॉडल होगा जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप आकार ग्रहण करेगा। इस क्रम में राज्य और सरकार को अग्रणी भूमिका निभाते हुए संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। लेकिन, राज्य सरकार संसाधनों की किल्लत का सामना कर रही है, और केन्द्र सरकार बिहार को संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए तैयार नहीं है। साथ ही, यह तबतक संभव नहीं होगा जबतक कि बिहार के प्रति बिहारियों का नज़रिया नहीं बदलता है और ब्रेन-ड्रेन के साथ-साथ रिसोर्स-ड्रेन की प्रक्रिया को रिवर्स नहीं किया जाता है। इस क्रम में बिहार के प्रति वित्तीय संस्थाओं के नज़रिए को भी बदलने की ज़रुरत है।

64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा:   

भारतीय अर्थव्यवस्था खंड से पूछे गए प्रश्न पारंपरिक प्रकृति के कहीं अधिक हैं: प्रश्न चाहे खाद्य-सुरक्षा का हो, या डब्ल्यूटीओ की भूमिका का, या फिर आर्थिक आयोजन की उपलब्धियों का मूल्यांकन और जनसंख्या-वृद्धि बनाम् आर्थिक विकास लेकिन, इन अति-सामान्य से दिखने वाले प्रश्नों के उत्तर की मार्किंग एकसमान नहीं होगी, क्योंकि अधिकांश लोगों ने सामान्यीकृत उत्तर लिखा होगा, जबकि कुछ लोगों ने अपडेशन एवं समग्रता के जरिये प्रश्न के उत्तर को विशिष्ट बनाने की कोशिश की होगी। निश्चय ही इस दूसरी श्रेणी में आनेवाले छात्रों को बेहतर अंक मिलने की सम्भावना होगी, जबकि पहली श्रेणी में आनेवाले अधिकांश लोगों को औसत से भी कम अंक मिलने की संभावना है। मार्किंग में यह उतना मैटर नहीं करता है कि आप क्या लिखते हैं, यह कहीं अधिक मैटर करता है कि आप कैसे लिखते हैं; जो पूछा जा रहा है, आप वही लिखते हैं या कुछ और; तथा आप अपने उत्तर को औरों के उत्तर से कैसे भिन्न एवं विशिष्ट बनाने की कोशिश करते हैं।

1.  भारत में खाद्य-सुरक्षा की आवश्यकता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

यह प्रश्न दिखने में पारम्परिक प्रकृति का प्रतीत है, लेकिन इस प्रश्न का सीधा सम्बन्ध समसामयिक सन्दर्भों से जाकर जुड़ता है। एक तो भारत की करीब-करीब आधी जनसंख्या गरीबी-रेखा के आस-पास है, और दूसरे सन् 2014 से अबतक ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 55वें स्थान से फिसलकर 102वें स्थान पर पहुँच गयी है। निश्चय ही ये दोनों ही चीजें खाद्य-सुरक्षा के प्रश्न को महत्वपूर्ण बना देती हैं। तीसरी बात यह कि खाद्य-सुरक्षा स्थिर न होकर विकसनशील संकलपना है। संकीर्ण अर्थों में यह मात्रात्मक संकल्पना है, पर व्यापक सन्दर्भों में यह गुणात्मक संकल्पना है जो खाद्य के साथ-साथ पोषण-सुरक्षा के प्रश्न को भी अपने भीतर समाहित करती है। भारत में अल्प-वजन के शिकार बच्चों का उच्च अनुपात बाल-कुपोषण की गंभीर समस्या की ओर इशारा करता है जो शारीरिक के साथ-साथ मानसिक विकास को भी प्रभावित करता है। इन सबके बीच बीपीएल जनसंख्या के अनुपात में हालिया वृद्धि और शिक्षा एवं स्वास्थ्य के मद में सार्वजनिक व्यय में कटौती के कारण उपभोक्ता-व्यय का खाद्यान्न-मदों से गैर-खाद्यान्न-मदों की ओर रुझान ने भी खाद्य-सुरक्षा के प्रश्न को महत्वपूर्ण बना दिया है। ये वे बिंदु हैं जिसके आलोक में इस प्रश्न को रेस्पोंड करना आपके उत्तर को अन्य से भिन्न बनाएगा और इससे वैल्यू एडिशन भी सम्भव हो सकेगा।

आर्थिक मन्दी और वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता की पृष्ठभूमि में नोटबन्दी, जीएसटी और कोविड-संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर विद्यमान संकट को गहराने का काम किया है। इसके परिणामस्वरूप संवृद्धि एवं विकास के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आयी है और इसने गरीबी, विशेष रूप से ग्रामीण गरीबी में तीव्र वृद्धि को संभव बनाया है। हाल में जारी मानव विकास रिपोर्ट,2020, ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-20) की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है। इसलिए 66वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में इस तरह के प्रश्नों की सम्भावना अपेक्षाकृत ज्यादा है।

2.  भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका की व्याख्या कीजिये।

यद्यपि यह प्रश्न भी पारम्परिक प्रकृति का ही है, फिर भी इसका उत्तर लिखते वक़्त वर्तमान परिप्रेक्ष्य और मौजूद चुनौतियों से जोड़ते हुए उत्तर को नयी दिशा डी जा सकती है। आर्थिक संरक्षणवाद, विश्व व्यापार संगठन का लोकतान्त्रिक स्वरुप, ट्रेड-वॉर, मुक्त-व्यापार समझौता बनाम् बहुपक्षीय व्यापार समझौता, खाद्य-सुरक्षा सब्सिडी विवाद,  आदि से जोड़कर उत्तर की मार्क्स-संभावनाओं को विस्तार दिया जा है। साथ ही, अबतक कृषि, उद्योग एवं सेवा-क्षेत्रों के सन्दर्भ में भारतीय हितों को संरक्षित करने में इसकी भूमिका को भी रेखांकित किया जाना चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखते हुए मार्क्स-संभावनाओं को विस्तार दिया जा सकता है

3.  भारतीय आर्थिक नियोजन की मुख्य उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिये

चूँकि जनवरी,2015 में ही योजना आयोग को भंग करते हुए नीति आयोग का गठन किया गया, इसलिए इस प्रश्न की उम्मीद नहीं थी; लेकिन बीपीएससी ने उसके बाद कई परीक्षाओं में योजना आयोग एवं आयोजन से प्रश्न पूछे हैं। दरअसल पिछले कुछ समय से नीति आयोग के औचित्य एवं प्रासंगिकता को लेकर प्रश्न उठते रहे हैं और इस क्रम में नीति आयोग के औचित्य एवं उसकी उपलब्धियों का मूल्यांकन योजना आयोग एवं आयोजन की उपलब्धियों के सापेक्ष अपेक्षित है इसी आलोक में यह प्रश्न डाला गया है जिसमें अपेक्षा की गयी है कि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों और उनसे सम्बद्ध विकास-संकेतकों के आलोक में आयोजन की उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाए

4.  जबतक भारत में जनसंख्या-वृद्धि अवरुद्ध नहीं की जाती, तब तक आर्थिक विकास को उसके सही रूप में नहीं देखा जा सकता। इस कथन का परीक्षण कीजिये।

यह प्रश्न बढ़ती हुई जनसंख्या को कहीं-न-कहीं अभिशाप के रूप में देखता है और उसे आर्थिक विकास में अवरोधक मानता है, अब यह बात अलग है कि जनसंख्या में वृद्धि को लेकर पारंपरिक धारणा में बदलाव आ चुके हैं और आज इसे चुनौती की बजाय अवसर के रूप में देखा जा रहा है लेकिन, जिस तरह से डेमोग्राफिक डिविडेंड डेमोग्राफिक डिजास्टर में तब्दील होता दिख रहा है, उसकी पृष्ठभूमि में इस तरह के प्रश्न किसी-न-किसी रूप में अपेक्षित थे लेकिन, इस प्रश्न को लिखते वक़्त इस सन्दर्भ में नयी जनसंख्या नीति की धारणा, संसाधनों की किल्लत, और जनसँख्या को मानव-संसाधन में तब्दील कर पाने में सरकार की विफलता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसका एक एंगल जनसंख्या-नियंत्रण की सरकार की मंशा और उसके राजनीतिक निहितार्थों से भी जुड़ता है

63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा:

यदि 63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों पर विचार करें, तो पहले प्रश्न को छोड़ दें, तो ये प्रश्न पारंपरिक प्रकृति के कहीं अधिक प्रतीत होते हैं। इस खंड से पूछे गए चार प्रश्नों में एक प्रश्न कृषि से, एक प्रश्न गरीबी से, एक प्रश्न बृहत् उद्योगों के संकेन्द्रण एवं उनकी भौगोलिक अवस्थिति के बीच का सम्बंध और एक प्रश्न खनिजों के वितरण से सम्बंधित हैं। इन प्रश्नों का निम्न सन्दर्भों में विश्लेषण किया जा सकता है:

1.  वर्तमान में भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें दूर करने हेतु सुझाव दें साथ ही, भारतीय कृषि के विकास हेतु सरकार द्वारा चलाये जा रहे प्रमुख कार्यक्रमों की चर्चा कीजिए

यह प्रश्न पारंपरिक प्रकृति का है, विशेषकर इसका पहला भाग; लेकिन इसके दूसरे भाग को बिना अपडेशन के रेस्पोंड करना मुश्किल होगा। इस प्रश्न को रेस्पोंड करने के क्रम में पारंपरिक चुनौतियों के साथ-साथ नवीनतम चुनौतियों, चाहे वे चुनौतियाँ जलवायु-परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो रही हों अथवा आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि में बाज़ार एवं अंतर्राष्ट्रीय दबावों के कारण, को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। साथ ही, भारत सरकार के साथ-साथ बिहार सरकार के द्वारा चलायी जा रही योजनाओं एवं कार्यक्रमों और विद्यमान चुनौतियों से निबटने में इनकी प्रभावशीलता की भी चर्चा अपेक्षित है। 

2.  भारत में गरीबी के अनुमान पर चर्चा करते हुए गरीबी के लिए जिम्मेदार कारकों की व्याख्या करें भारत सरकार द्वारा गरीबी दूर करने के लिए कौन-कौन से कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं?

इस प्रश्न के तीन हिस्से हैं: गरीबी का अनुमान, इसका कारण और इसके उन्मूलन के लिए चलायी जा रही योजनाएँ इसका उत्तर लिखते हुए भारत में गरीबी के अनुमान को लेकर चल रही चर्चा और इससे सम्बद्ध विवादों पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए गरीबी के कारणों की व्याख्या विस्तार से करनी है और, फिर अंत में भारत सरकार के गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रमों और उनके वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालना है 

3.  भारत के प्रमुख बड़े पैमाने के उद्योग भौगोलिक दृष्टि से कुछ विशेष क्षेत्रों में ही स्थापित हो पाए हैं इसके कारणों की व्याख्या करें एवं भारत के प्रमुख बुनियादी उद्योगों की व्याख्या करें

यह प्रश्न बुनियादी रूप से अर्थव्यवस्था-खण्ड से सम्बंधित न होकर भूगोल से सम्बंधित है। इस प्रश्न में बृहत् उद्योगों के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या और इस क्रम में यह दिखलाना अपेक्षित है कि कौन-कौन से बुनियादी उद्योग कहाँ पर अवस्थित हैं और क्यों।

4.  भारत में पाए जाने वाले प्रमुख खनिजों की विस्तार से व्याख्या करें भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में इनके योगदान की चर्चा करेंसाथ ही, भारत की नई खनिज नीति के प्रमुख बातों को बताएँ

यह प्रश्न भी मूल रूप से भूगोल से सम्बंधित है। इस प्रश्न के पहले हिस्से में प्रमुख खनिजों के वितरण के वितरण के प्रश्न पर विचार करना है, जबकि दूसरे खण्ड में आर्थिक विकास में उनकी भूमिका को रेखांकित करना है। जहाँ प्रश्न का पहला दो हिस्सा पारंपरिक प्रकृति का है, वहीं प्रश्न का तीसरा हिस्सा, जिसमें नयी खनिज नीति पर विचार करना है, समसामयिक प्रकृति का, जिसे अपडेशन के बिना रेस्पोंड नहीं किया जा सकता है।

इस प्रकार 63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा में इस खण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्नों पर गौर करें, तो इस बार अर्थव्यवस्था और भूगोल खण्ड से दो-दो प्रश्न पूछे गए।

(60-62)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा: प्रश्नों का रुझान:

(60-62)वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा में भी अर्थव्यवस्था-खण्ड के अलावा अर्थव्यवस्था खंड से सम्बंधित दो प्रश्न करेंट सेक्शन के अंतर्गत पूछे गएप्रश्नों के रुझानों से न केवल समसामयिक परिदृश्य से सम्बद्ध प्रश्नों को पूछने की प्रवृति की पुष्टि होती है, वरन् इस बात की भी पुष्टि होती है कि पारंपरिक प्रतीत होने वाले टॉपिकों से पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति भी बदल रही है। उदाहरण के रूप में 60-62वीं मुख्य परीक्षा के दौरान पूछे गए बेरोजगारी से सम्बंधित इस प्रश्न को देखें:

1.  भारत में दीर्घकालिक रोजगार-नीति का मुख्य मुद्दा रोजगार प्रदान करना नहीं, वरन् श्रम-शक्ति की रोजगार-क्षमता को बढ़ाना है। इस कथन का विवेचन गुणवत्तापूर्ण शिक्षण एवं प्रशिक्षण के मार्फ़त ज्ञान एवं दक्षता के विकास के विशेष सन्दर्भ में कीजिये। देश में सन् 2000 के बाद क्षेत्रवार रोजगार-सृजन की प्रवृत्तियों एवं फलितार्थों को भी समझाइए।

इस प्रश्न में बेरोजगारी एवं रोजगार-सृजन के प्रश्न को कौशल-विकास के प्रश्न से सम्बद्ध करके देखा गया है। साथ ही, प्रश्न के दूसरे हिस्से में आर्थिक उदारीकरण की रणनीति के रोजगार-सृजन पर असर के आलोक में पिछले डेढ़ दशकों के दौरान रोजगार-परिदृश्य की क्षेत्रवार समीक्षा करनी है रोजगार-सृजन एवं कौशल-विकास के जटिल अंतर्संबंधों और रोजगार-सृजन के सन्दर्भ में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों पर आर्थिक उदारीकरण के प्रभाव को समझे बिना इस प्रश्न को रेस्पोंड करना संभव नहीं है स्पष्ट है कि बिना अपडेशन एवं बिना विस्तृत समझ के ऐसे प्रश्नों को टैकल कर पाना मुश्किल है।

2.  भारतीय कृषि में संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिये। देश में उत्पादकता में सुधार लाने और कृषि-आय को बढ़ाने के उपाय भी सुझाइए।

(60-62)वीं (मुख्य) परीक्षा में पूछाया कृषि से सम्बंधित यह प्रश्न बतलाता है कि अब कृषि, वैश्वीकरण एवं WTO से सम्बंधित प्रश्नों को भी समसामयिक संदर्भों से जोड़ा जा रहा है पारंपरिक प्रकृति के प्रतीत होने वाले इस प्रश्न के पहले हिस्से में कृषि-संवृद्धि एवं उत्पादकता के सन्दर्भ में हालिया रुझानों की चर्चा करनी है, जबकि प्रश्न के दूसरे हिस्से में उत्पादकता में ठहराव की चुनौती से निबटने की रणनीति पर चर्चा करते हुए किसानों की आय बढ़ाने के प्रश्न पर विचार करना है इस प्रश्न के दूसरे हिस्से का सम्बन्ध कहीं-न-कहीं किसानों की आय दोगुनी किये जाने के लिए चल रहे विमर्श से जाकर जुड़ता है। अगर परीक्षार्थी इस विमर्श से वाकिफ हैं, तो वे इस प्रश्न के साथ न्याय कर पाने की स्थिति में होंगे, अन्यथा नहीं।

3.  हाल की अवधि में पंचायत व्यवस्था के सशक्तीकरण के माध्यम से विकेन्द्रित नियोजन भारत की आयोजन का केंद्र-बिंदु रहा है। इस कथन को समझाते हुए समन्वित प्रादेशिक विकास-नियोजन की एक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये। संविधान के 73-74वें संशोधन के बाद भारत में विकेन्द्रित नियोजन के परिदृश्य का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

इस प्रश्न का सम्बन्ध सीधे-सीधे नीति-आयोग के गठन और इसकी पृष्ठभूमि में विकेन्द्रीकृत आयोजन के एजेंडे से जाकर जुड़ता है जिसके लिए उपयुक्त संस्थागत मैकेनिज्म का विकसित न हो पाना स्थानीय स्वशासन की दिशा में की गयी पहलों की विफलता को दर्शाता है ऐसा नहीं कि योजनावधि के दौरान इस दिशा में प्रयास नहीं किये गए, क्षेत्रीय नियोजन की दिशा में की गयी पहल इसका प्रमाण है अब यह बात अलग है कि यह प्रयास बहुत प्रभावी नहीं रहा और इसीलिए अपेक्षित परिणामों को दे पाने में विफल भी इतना ही नहीं, नीति आयोग के गठन के बावजूद वर्तमान सरकार ऐसा कर पाने में असफल रही

यहाँ पर विकेन्द्रीकृत आयोजन को जिस प्रकार समन्वित प्रादेशिक विकास-नियोजन से सम्बद्ध किया गया है, वह इन्टर डिसिप्लिनरी एप्रोच के विकास की आवश्यकता की ओर इशारा करता है जिसके बिना प्रश्न की ज़रूरतों को पूरा कर पाना मुश्किल होगा इस प्रश्न का उत्तर लिखते वक़्त पंचायती-राज व्यवस्था के पिछले ढ़ाई दशकों के अनुभवों को ध्यान में रखे जाने की ज़रुरत है और इस बात को भी कि किस प्रकार संसाधनों की किल्लत और प्रभावी निगरानी-तंत्र के अभाव के साथ-साथ जिला योजना समिति(DPC) के सुदृढ़ीकरण के प्रति राज्य सरकारों की उदासीनता ने विकेन्द्रीकृत नियोजन की रणनीति की प्रभावशीलता को बाधित किया

4.  भारत में सार्वजानिक वस्तु-अनुदान, मेरिट वस्तु-अनुदान और नन-मेरिट वस्तु अनुदानों से आपका क्या तात्पर्य है? देश में उर्वरक, खाद्य एवं पेट्रोलियम अनुदानों की समस्या तथा हाल ही की प्रवृत्तियों को समझाइए।

यह प्रश्न सार्वजानिक वित्त और सब्सिडी से सम्बंधित है प्रश्न के पहले हिस्से में सब्सिडी के विविध प्रकारों की चर्चा करनी है और यह बतलाना है कि किन आधारों पर मेरिट एवं नन-मेरिट के बीच विभेद किया जाता है। प्रश्न के दूसरे हिस्से में सब्सिडी-रिफार्म एवं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर(DBT) की पृष्ठभूमि में फ़र्टिलाइजर-सब्सिडी, फ़ूड-सब्सिडी और ऑइल-सब्सिडी से सम्बंधित समस्याओं और इससे सम्बंधित नवीनतम रुझानों के प्रश्न पर विचार करना है। प्रश्न का पहला हिस्सा यदि पारंपरिक प्रकृति का है, तो दूसरा हिस्सा समसामयिक सन्दर्भों से संदर्भित।  

अर्थव्यवस्था से सम्बंधित जो दो प्रश्न करेंट सेक्शन में पूछे गए हैं, वे भी इसी तथ्य की ओर इशारा करते हैं:

5.  विमुद्रीकरण योजना को स्पष्ट कीजिये। आपके विचारों में यह योजना किस हद तक सफल या असफल रही? बिहार सरकार की शराब-प्रतिबन्ध नीति पर इसके क्या प्रभाव पड़े?

इस प्रश्न के तीन हिस्से हैं: पहले हिस्से में विमुद्रीकरण योजना को स्पष्ट करने की अपेक्षा की गयी है, दूसरे हिस्से में इसकी सफलता या असफलता का मूल्यांकन करना है और तीसरे हिस्से में बिहार में शराबबन्दी पर इसके असर की विवेचना करनी है। यहाँ पर विमुद्रीकरण से सम्बंधित प्रश्न को जिस तरह बिहार सरकार की शराब-प्रतिबन्ध की नीति से सम्बद्ध किया गया है, उसे तबतक नहीं समझा जा सकता है जबतक विमुद्रीकरण एवं शराब-प्रतिबन्ध की नीति की समझ न हो और ज़मीनी धरातल पर इसके क्रियान्वयन से परीक्षार्थी वाकिफ न हों।

6.  जी.एस.टी. क्या है? भारत में इसके परिचय के पीछे क्या कारण थे? भारत की अर्थव्यवस्था एवं मौद्रिक नीति पर इसके क्रियान्वयन से क्या लाभ एवं नुकसान हुए?

जीएसटी पर आधारित इस प्रश्न में जीएसटी के बारे में समझाते हुए उसके कारणों की चर्चा करनी है। साथ ही, इसके अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के साथ-साथ मौद्रिक नीति पर इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों की भी विवेचना करनी है।

अबतक पूछे गए प्रश्न

(56-59)th

BPSC

(53-55)th

BPSC

(48-52)th

BPSC

47th BPSC

    46th   

   BPSC       

1. जनांकिकी लाभांश’ क्या है? आर्थिक संवृद्धि पर इसके प्रभाव को स्पष्ट करें

2.भारत में ‘कृषि-विपणन’ का वर्णन कीजिए एवं ‘कृषि विपणन व्यवस्था’ की कमजोरियों को बताये कृषि उपज विपणन व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से बिहार सरकार द्वारा क्या उपाय किये गये हैं?

3.क्षेत्रीय विकास से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहाँ तक सफल रहा है? विवेचना करें 

4.एक सुनिश्चित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन-प्रणाली के अभाव में पंचायतें एवं समितियाँ मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रहती हैं और शासन-प्रणाली की उपकरण नहीं बन पाती हैं आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये

1.“कृषि-विविधता 

एवं जैव कृषि भारत में खाद्द्य संरक्षण के अच्छे विकल्प हैबिहार के विशेष सन्दर्भ में इसकी   आलोचनात्मक विवेचना करें

2.भारत सरकार के 13वें वित्त आयोग की मुख्य सिफारिशों की चर्चा करें

3.बिहार राज्य सरकार के वित्तीय संसाधनों की बिगड़ती हुई परिस्थिति को समझाये

4.विश्व व्यापार संगठन के मुख्य करारों को समझाये. कृषि के करारों की विस्तृत चर्चा करें

1.सरकार अपनी पंचवर्षीय योजनाओं से बिहार में गरीबी हटाने में किस हद तक सफल रही है?

2.“हरित क्रांति ने भारत में अनाज उत्पादन को बढाया है परन्तु इसने अनेक पर्यावर्णीय समस्याएं उत्पन्न कर दी है” इसकी व्याख्या उचित उदाहरण सहित दे

3.आप कहाँ तक सहमत हैं किजनसंख्या का अधिक घनत्व भारत में गरीबी का मुख्य कारण है?

4.वैश्वीकरण का भारत की सामजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है? लिखे

1.11वींपंचवर्षीय योजना में समावेशी संवृद्धि” क्या है? योजना आयोग द्वारा इसे प्राप्त करने के लिए क्या रणनीति अपनाई गयी है?

2.“निर्धनता मानव-जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रहने का मामला है” समझाए और इसे कम करने के उपाय बताये

3.“भारत-निर्माण योजना” क्या है? भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समृद्ध बनाने में इसकी भूमिका को समझाए

1.बिहार में विभिन्न कृषि उपजों की प्रति हेक्टेयर उत्पादन स्थिर क्यों है? इनके आधारभूत कारणों और उन्हें दूर करने के महत्वपूर्ण उपायों को समझाये

2.10वीं पंचवर्षीय योजना के आधारभूत उद्देश्य क्या हैं? इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा बनाई गयी रणनीति को समझाये

3.भारत में UPA सरकार की ‘सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम क्या है? भारत में लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में इनकी भूमिका को समझाये

4. भारत में बेरोजगारी की समस्या की प्रकृति क्या है? क्या आप सोचते हैं कि राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम निर्धनों की निर्धनता और बेरोजगारी की समस्या को हल कर सकेगा?

                   

                 भारतीय अर्थव्यवस्था

संभावित प्रश्न: 66वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा  

1.  सामाजिक एवं आर्थिक विकास:

a.  जीडीपी आकलन-विधि से सम्बंधित हालिया विवाद: एनएसएसओ-सीएसओ विलय

b.  जनांकिकीय लाभांश के दोहन के रास्ते में मौजूद चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन

c.  कोरोना-संकट और भारतीय अर्थव्यवस्था: संवृद्धि एवं रोजगार का सन्दर्भ, गरीबी-उन्मूलन और बेरोजगारी-उन्मूलन के सन्दर्भ में इसके निहितार्थ: आत्मनिर्भर भारत अभियान   

d.  गरीबी-उन्मूलन रणनीति: न्याय (NyAY) अर्थात् न्यूनतम आय योजना: यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर  

e.  बिहार में स्वास्थ्य-सेवाओं की स्थिति 

2.  आयोजन:

a.  योजना आयोग-नीति आयोग तुलना: नीति आयोग: अबतक का अनुभव: इसकी भूमिका का मूल्यांकन

3.  आर्थिक उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के आलोक में कृषि-क्षेत्र:

a.  हरित-क्रांति: दूसरी हरित-क्रांति एवं पहली हरित-क्रांति के सबक़

b.  मौजूद चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ: कृषि-संकट, कृषि-सुधार और कृषि-आन्दोलन: किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य, कृषि-विपणन: न्यूनतम समर्थन मूल्य-नीति, अनुबंध कृषि और इससे सम्बंधित सुधार, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम और इसके निहितार्थ, प्रधानमंत्री किसान-सम्मान निधि स्कीम

c.  जलवायु-परिवर्तन एवं भारतीय कृषि: प्रभाव और समाधान, जल-संसाधन प्रबंधन: गहराता जल-संकट, भू-जल संकट और इससे निपटने की दिशा में हालिया पहल जेनेटिकली मॉडिफाइड क्रॉप्स

d.  बिहार में कृषि-क्षेत्र के विकास की रणनीति: तीसरा कृषि रोडमैप: बिहार में कृषि-आधारित उद्योगों की संभावनाएँ, कृषि-प्रसंस्करण एवं खाद्य-प्रसंस्करण

4.  आर्थिक एवं औद्योगिक नीति:

a.  आर्थिक उदारीकरण और पिछले ढ़ाई दशकों के दौरान इसकी उपलब्धियों का मूल्यांकन, भारतीय आर्थिक संवृद्धि का गतिरोध: आर्थिक अवमंदन और आर्थिक मन्दी, लघु उद्योगों का योगदान एवं महत्व

b.  अनौपचारिक अर्थव्यवस्था: नोटबन्दी, जीएसटी एवं कोविड के विशेष सन्दर्भ में

5.  सार्वजनिक वित्त, मुद्रा एवं बैंकिंग:

a.  सब्सिडी रिफॉर्म, प्रत्यक्ष नकदी अंतरण(DBT),

b.  शराबबन्दी एवं इसका बिहार के वित्त पर प्रभाव,

c.  पंद्रहवें वित्त आयोग; इससे सम्बंधित विवाद और इसकी अंतिम रिपोर्ट

d.  राजकोषीय संघवाद: जीएसटी विवाद

e.  आरबीआई संकट: एनपीए संकट और इससे सम्बंधित विवाद, राइट ऑफ बनाम् ऋण-माफ़ी  

6.  व्यापार एवं निवेश:

a.  वैश्वीकरण एवं विवैश्वीकरण(Deglobalisation)

b.  विश्व व्यापार संगठन: दोहा विवाद और भारत: सब्सिडी और खाद्य-सुरक्षा के विशेष सन्दर्भ में, ट्रिप्स समझौता और ट्रिप्स प्लस विवाद,

c.  मुक्त व्यापार समझौता बनाम् बहुपक्षीय व्यापार समझौता: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (RCEP) और भारत

स्रोत-सामग्री:

1.  सार्थक भारतीय अर्थव्यवस्था (बीपीएससी सीरीज पार्ट 3): कुमार सर्वेश

2.  The Hindu, The Indian Express, जनसत्ता 

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