Wednesday, 13 February 2019

प्रेम (कविता)

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      प्रेम
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प्रेम
एक सुखद अहसास, पर
जिस तक पहुँचने के लिए
पीड़ा एवं वेदना की घाटियों से पड़ता है गुजरना;
फिर भी मुमकिन है
कि यात्रा अधूरी रह जाए,
जिसके अधूरेपन में ही है
उसकी पराकाष्ठा,
उसका उत्कर्ष।
प्रेम नहीं है परीक्षा;
प्रेम है
सम्पूर्ण आनत समर्पण,
सन्देह से परे।
प्रेम नहीं है
पाने का नाम,
प्रेम है
सब कुछ की तथता,
और सब कुछ की तथता का
सम्पूर्ण समर्पण,
उसे दे देने का नाम।
प्रेम है
वेदना की अनुभूति,
उस अनुभूति को भी बार-बार जीने की चाह,
और उन अनुभूतियों को बार-बार जीते हुए
सुख एवं संतुष्टि का अहसास।
प्रेम नहीं है शरीर की चाह,
प्रेम नहीं है उन्नत उरोजों का आकर्षण,
प्रेम नहीं है योनि की गहराइयों को मापने वाली कामजन्य वासना;
प्रेम है उरोजों की थाप,
जो हमें आश्वस्त करते हैं;
प्रेम है आँखों के रास्ते दिल में उतर जाना,
प्रेम है आश्रय की तलाश,
प्रेम है समा जाने की चाह,
प्रेम है अस्तित्व का विसर्जन,
प्रेम है खुद को खो कर
खुद को पाना,
प्रेम है असीम में विलीन होने की चाह,
प्रेम है अनन्त में लीन हो जाना।
प्रेम है निःशब्द हो जाना,
प्रेम है निर्वाह हो जाना,
प्रेम है भावों की ताल-तलैया में गोते लगाना,
प्रेम है भावों, अनुभूतियों और शब्दों में लीयमान हो जाना;
अगर ऐसा नहीं, तो
प्रेम अधूरा है।



1 comment:

  1. प्रेम एक अथाह सागर है फिर भी बहुतो की प्यास नही बुझा पाती

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