गुरुदेव को समर्पित !
श्रद्धांजलि
उस गुरू को,
जिसने मुझे सिरजा,
जिसने मुझे बनाया,
जिसने मुझे संस्कार दिए,
और
जिसकी बदौलत संभव हो सका
वहाँ खड़ा होना,
जहाँ पर आज मैं खड़ा हूँ,
जिसके कारण डटा रह सका मैं
जीवन-समर में,
अपनी शर्तों पर
और अपनी शर्तों के साथ।
श्रद्धांजलि
उस गुरू को,
जिसने मेरे गूँगेपन को स्वर दिया,
िजसने मुझ अंधे को दृष्टि दी,
और दी सम्वेदना
और दिए अहसास
ताकि महसूस कर सकूँ
दूसरे की वेदना को,
दी जिसने ऐसी इच्छाशक्ति
जिसकी बदौलत
झेल सकूँ उस पीड़ा को,
जो होती है दूसरों के शागिर्द बनने पर।
इस क्रम में
मैं
गिरा भी,
टूटा भी,
बिखरा भी,
पर डटा रहा मैं संघर्ष-पथ पर,
बिना समर्पण किए
अविचल प्रतिपल अनवरत्!
श्रद्धांजलि:
कैसी,कैसे और किस तरह?
श्रद्धांजलि
उन मूल्यों को अपनाकर,
जिसके साथ उसने जीने की कोशिश की;
श्रद्धांजलि
उसको ज़िन्दा रखने के आग्रह के साथ,
श्रद्धांजलि
हर क्षण,हर पल
उसको याद करते हुए!
पुष्पांजलि
उन गुरुओं को,
उन छात्रों को,
उन मित्रों को,
उन सगे-संबंधियों को,
अपने बच्चों को
और अपनी जीवन-संगिनी को,
जिसने जीवन के किसी-न-किसी मोड़ पर
सँवारा मुझे,
सँभाला मुझे,
सिखाया मुझे।
और इन सबसे परे
शुक्रगुज़ार हूँ
उन आलोचकों का,
जिन्होंने मुझे रूकने न दिया,
झुकने न दिया।