Wednesday, 13 January 2021

66वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा हिन्दी साहित्य: रणनीति एवं कार्यक्रम

 

66वीं बीपीएससी (मुख्य) परीक्षा

हिन्दी साहित्य: रणनीति एवं कार्यक्रम

बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त प्रतियोगिता प्रवेश परीक्षा में हिन्दी साहित्य सर्वाधिक लोकप्रिय वैकल्पिक विषयों में से एक है, सन्दर्भ चाहे इसको लेकर मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की संख्या का हो, या इससे सफल होने वाले छात्रों की संख्या और सफलता-अनुपात का, या फिर मार्किंग-पैटर्न का लेकिन, विशेष रूप से बिहार में गुरुदेव डॉ. बलराम तिवारी द्वारा पढ़ाना बन्द किये जाने के बाद हिन्दी साहित्य में मार्गदर्शन को लेकर एक शून्य सृजित हुआ और इस शून्य के कारण वैकल्पिक विषय के रूप में हिन्दी साहित्य लेकर तैयारी करने वाले छात्रों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसी शून्य को भरने का प्रयास है ‘सार्थक संवाद’ की यह पहल, जिसके जरिये पटना सहित बिहार के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले और यहाँ तक कि देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले छात्रों को हिन्दी साहित्य में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मार्गदर्शन उपलब्ध करवाने की कोशिश की गयी है।

शुरूआत कैसे करें:

वैसे छात्र जो हिन्दी-इतर अकादमिक पृष्ठभूमि से आते हैं, उनके लिए वैकल्पिक विषय के रूप में हिन्दी साहित्य को पढने की रणनीति क्या हो? ऐसे छात्रों को सबसे पहले प्रेमचंद की उन कहानियों को पढ़ना चाहिए जिन्हें ‘मानसरोवर भाग-एक’ में शामिल किया गया है। उन्हें इसके जरिये साहित्य में अपनी रूचि भी विकसित करने की कोशिश करनी चाहिए और विषय के साथ कनेक्ट भी करना चाहिए। फिर, प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ और भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक ‘अन्धेर नगरी’ को पढ़ना चाहिए। इन तीनों टेक्स्टों को पढ़ लेने के बाद उन्हें जय शंकर प्रसाद का नाटक ‘चन्द्रगुप्त’ पढ़ना चाहिए, और सबसे अंत में अज्ञेय का उपन्यास ‘शेखर: एक जीवनी’।बीच-बीच में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के ‘चिंतामणि भाग 1’ में संकलित निबंधों को पढ़ते रहें। भले ही ये प्रश्नों की दृष्टि से उतने महत्वपूर्ण नहीं है, पर इससे साहित्य की समझ विकसित होगी और साहित्य में बेहतर प्रदर्शन करना आपके लिए संभव हो सकेगा।

इसी क्रम में हिन्दी साहित्य से जुड़ी तकनीकी शब्दावलियों की सामान्य समझ विकसित करने के लिए उन्हें राधा वल्लभ त्रिपाठी का ‘साहित्यशास्त्र’ परिचय’ (एनसीईआरटी क्लास XI) पढ़नी चाहिए। इसमें जितनी आसानी से साहित्य से जुडी चीजों को समझाया गया है, उतनी आसानी से शायद आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।

जहाँ तक हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रश्न है, तो इस सन्दर्भ में इसकी आरंभिक समझ के लिए विश्वनाथ त्रिपाठी का ‘हिन्दी साहित्य का सरल इतिहास’आपके लिए अत्यन्त उपयोगी हो सकता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास के गहन अध्ययन के लिए और परीक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मेरी पुस्तक ‘सार्थक हिन्दी साहित्य का इतिहास’ आपके लिए काफी उपयोगी है। मैं यह कह सकता हूँ कि संघ लोक सेवा आयोग से लेकर बिहार लोक सेवा आयोग और अन्य लोक सेवा आयोगों तक हिन्दी साहित्य के इतिहास से पूछे जाने वाले 95 प्रतिशत प्रश्न यहीं से होंगे।

अध्ययन की रणनीति:

हिन्दी साहित्य में बेहतर अंक प्राप्त करने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि अपनी सोच (Subjectivity) विकसित की जाए, और यह तबतक संभव नहीं है जब तक कि टेक्स्ट पर पकड़ विकसित न हो और सोचने का अपना तरीक़ा न हो। इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि:

a.  टेक्स्ट को बारम्बार पढ़ा जाए,

b.  टेक्स्ट को नोट्स एवं समीक्षाओं के साथ कनेक्ट करके देखा जाए, और

c.  इसके माध्यम से अपने आलोचनात्मक विवेक को विकसित किया जाए।

दूसरी बात यह है कि हिन्दी साहित्य में आपका प्रदर्शन बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि हिन्दी साहित्य के इतिहास की आपकी समझ कितनी विकसित है, और हिन्दी साहित्य की समझ के विकसित होने से आशय है भक्ति आंदोलन एवं भक्ति-साहित्य, नवजागरण आन्दोलन (भारतेन्दु-युग, द्विवेदी-युग एवं छायावाद) और छायावादोत्तर काव्यान्दोलन (उत्तर छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद एवं नई कविता) की समझ का विकसित होना। इनमें भक्ति-आन्दोलन और नवजागरण आन्दोलन की समझ बहुत हद तक इतिहास-दृष्टि और आलोचना—दृष्टि (विशेष रूप से आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, एवं नामवर सिंह) की समझ पर निर्भर करती है।

तीसरी बात यह कि बेहतर समझ के लिए आवश्यकता इस बात की है कि व्याख्या को लेकर अपनी समझ विकसित की जाए, भले ही इस खंड से एक ही प्रश्न पूछे जाते हों और इसके लिए अपेक्षाकृत अधिक मेहनत की ज़रूरत हो। कारण यह हे कि व्याख्या में माइक्रो-स्कोपिक नज़रिए को अपनाया जाता है जिसके कारण रचना, रचनाकार एवं रचना-दृष्टि की बेहतर समझ भी विकसित होती है और सब्जेक्टिव नज़रिए का विकास भी होता है जो वैल्यू एडिशन में सहायक होता है।

क्लास-रूम रणनीति और आपसे अपेक्षाएँ:

जहाँ तक क्लास-रूम की रणनीति का प्रश्न है, तो किसी भी टॉपिक पर क्लास को हिस्सों में विभाजित होगा: पहले उस टॉपिक पर आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य में विस्तार से चर्चा होगी, और फिर उस टॉपिक पर अबतक पूछे गए प्रश्नों एवं भविष्य में संभावित प्रश्नों पर विस्तार से चर्चा होगी। यह चर्चा एप्लिकेशन, प्रश्नों की माँग समझने और उत्तर-लेखन शैली एक विकास की दृष्टि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। किसी टॉपिक पर क्लास का यह हिस्सा उस टॉपिक पर क्लास के पहले हिस्से की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। आप परीक्षा में कैसा परफॉर्म करेंगे, यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आप इस डिस्कशन को लेकर कितने गंभीर हैं और इससे सीखने की कहाँ तक कोशिश करते हैं। इसका लाभ उठामे के लिए आपको बेहतर होमवर्क करना होगा।

स्पष्ट अहि कि अगर आप सार्थक के ऑनलाइन/ऑफलाइन क्लास-रूम प्रोग्राम का लाभ बेहतर उठाना चाहते हैं, तो आपको क्लास के साथ चलने की रणनीति अपनानी चाहिए। इसके लिए आपसे यह अपेक्षा की जाती है कि जिस टॉपिक पर क्लास में चर्चा होनी है, उसे एक बार घर से पढ़कर आएँ, चाहे वो चीजें आपकी समझ में आ रही हों अथवा नहीं। क्लास में निरंतरता एवं फोकस बनाये रखें और फिर घर लौटने के बाद पहले क्लास-नोट्स एवं उसके बाद एक बार फिर से नोट्स पढ़ें। इससे बेहतर समझ भी विकसित होगी और विषय आसान होता चला जाएगा। जब आप दोबारा पढ़ रहे होंगे, तो धीरे-धीरे चीजें स्पष्ट होती चली जायेंगी। खंड ख के अंतर्गत शामिल टॉपिकों के सन्दर्भ में जो भी रचनाएँ हैं, उन्हें क्लास के पहले एक बार पढ़ें और फिर उस टॉपिक के समाप्त होने के बाद दोबारा उस टेक्स्ट को पढ़ें। दोबारा पढ़ते वक़्त अब आप अपना नजरिया बदला हुआ पायेंगे।

बेहतर अंक की रणनीति:

अगर आप हिन्दी साहित्य में बेहतर करना चाहते हैं, तो आपको निम्न सावधानियाँ बरतनी होगी:

1.  भाषा-खण्ड से दो-से-तीन प्रश्नों को करने की कोशिश, और विशेष रूप से व्याकरणिक प्रकृति वाले प्रश्न को प्राथमिकता क्योंकि यहाँ पर मार्किंग गणितीय पैटर्न पर होती है।

2.  गद्य-खण्ड की तुलना पद्य-खण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्नों को प्राथमिकता, क्योंकि यहाँ उद्धरणों को याद रखना अपेक्षाकृत आसान होता है।

3.  ऐच्छिक होने के बावजूद व्याख्या वाले प्रश्न को प्राथमिकता, क्योंकि एक तो यहाँ मार्किंग बेहतर होती है और दूसरे, परीक्षक के परसेप्शन को निर्धारित करने में इसकी भूमिका अहम् होती है।

4.  प्रश्न की माँग के अनुरूप उत्तर लिखना। तथ्यों से लेकर प्रस्तुतीकरण तक के स्तर पर सटीकता (Accuracy) का निर्वाह।

5.  वैज्ञानिक लेखन, अर्थात् उत्तर में कार्य-कारण परम्परा और तार्किक क्रम का निर्वाह।

6.  उद्धरणों का प्रयोग, ताकि उत्तर को प्रामाणिक बनाया जा सके।

7.  तुलनात्मक लेखन।

8.  भूमिका और निष्कर्ष-लेखन पर विशेष ध्यान।

लेखन-शैली का विकास:

सामान्यतः छात्र परीक्षा-भवन में उत्तर के रूप में वह नहीं लिखते हैं जो पूछा जा रहा है, वरन् वे वह लिखकर आते हैं जो वो जानते हैं, जबकि आपको अंक उस बात को लिखने के लिए दिए जाते हैं जिसके बारे में पूछा जा रहा है। इसीलिए आवश्यकता इस बात की है कि:

a.  उत्तर लिखना शुरू करने के पहले प्रश्न की माँग को समझने की कोशिश की जाए।

b.  अगर प्रश्न में एक से अधिक आयाम हैं, तो यह निर्धारित किया जाए कि उनके बीच का आनुपातिक सन्तुलन क्या होगा, प्रश्न के किस हिस्से को अपेक्षाकृत अधिक विस्तार देना है और किस हिस्से को अपेक्षाकृत कम;

c.   उत्तर-लेखन शुरू करने से पहले प्रश्न के प्रारूप तैयार किए जाएँ, और उनके अन्तर्सम्बंधों को सुनिश्चित किया जाए, और

d.  फिर उत्तर लिखे जाएँ।

e.  यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि आप क्या लिख रहे हैं, इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि आप कैसे लिख रहे हैं।

स्पष्ट है कि पूरी तैयारी के क्रम में आपको लेखन की अहमियत को समझना होगा, और इसके जरिए आपको अपनी लेखन-शैली विकसित करनी होगी।

हाल के कुछ वर्षों के दौरान सिविल सेवा और राज्य सेवाओं की तैयारी करने वाले छात्रों का बाजार विकसित हुआ, और समय के साथ यह भी बाज़ारवाद की चपेट में आया।फलतः टेस्ट-सीरीज का भी बाजार विकसित हुआ और यह धारणा बनी कि लेखन-शैली के विकास के लिए टेस्ट-सीरीज ज्वाइन करना ज़रूरी है। लेकिन, इस बात को समझने की ज़रूरत है कि न तो लेखन-शैली का विकास पन्द्रह-बीस दिनों/ महीने-दो महीने में संभव है और न हीमहज़टेस्ट-सीरीज ज्वाइन करने मात्र से।इसके लिए आपको निरन्तर कोशिश करनी हो, निरन्तर अभ्यास करना होगा। साथ ही, आपको उत्तर के मूल्यांकन के पश्चात् मिलने वाले फ़ीडबैक को गम्भीरता से लेना होगा, और तदनुरूप सुधार की दिशा में पहल करनी होगी। यह एक निरन्तर प्रक्रिया है, ऐसी प्रक्रिया जो सुधार के लिए लम्बा समय लेती है

हिन्दी साहित्य: संभावित टॉपिक्स

पेपर की संरचना:

60-62वींबीपीएससी (मुख्य) परीक्षा के दौरान बिहार लोक सेवा आयोग ने मुख्य परीक्षा के पैटर्न में बदलाव की दिशा में पहल की है सामान्य अध्ययन के भारांश को दोगुना किया गया है और वैकल्पिक विषय के भारांश को आधाअब वैकल्पिक विषय के केवल एक पेपर होते हैं जो दो खण्डों में विभाजित होते हैं प्रश्नों के पैटर्न पर गौर करें, तो हम पाते हैं कि:

1.          प्रथम खंड में हिन्दी भाषा एवं हिन्दी साहित्य के इतिहास से प्रश्न पूछे जाते हैं, द्वितीय खंड में गद्य-खंड एवं पद्य-खंड से प्रश्न पूछे जाते हैंदोनों खण्डों से छह-छह प्रश्न पूछे जाते हैं, और इनमें दूसरे खंड में दो प्रश्न व्याख्या से पूछे जाते हैं। अगर आप हिन्दी साहित्य में बेहतर अंक हासिल करना चाहते हैं, तो आपको व्याख्या खंड से प्रश्न करने की कोशिश करनी चाहिए और कोशिश हो कि व्याख्या खंड से दोनों प्रश्न किये जाएँ।

2.          (60-62)वीं मुख्य परीक्षा में खंड क में चार प्रश्न भाषा-खंड से पूछे गए और दो प्रश्न साहित्य के इतिहास से; जबकि 63वीं मुख्य परीक्षा के दौरान दो प्रश्न भाषा-खंड से और चार प्रश्न हिन्दी साहित्य के इतिहास से64वीं एवं 65वीं मुख्य परीक्षा में 3 प्रश्न भाषा-खंड से पूछे गए और तीन प्रश्न साहित्य के इतिहास खंड से

3.          इसी प्रकार (60-62)वीं मुख्य परीक्षा में खंड ख में चारों प्रश्न गद्य-भाग से पूछे गए और व्याख्या वाले दोनों प्रश्न पद्य-भाग से; जबकि 63वीं मुख्य परीक्षा के दौरान व्याख्या वाले प्रश्न गद्य एवं पद्य दोनों से सम्बंधित थे और शेष प्रश्नों में तीन प्रश्न पद्य से थे एवं एक प्रश्न गद्य से64वीं एवं 65वीं मुख्य परीक्षा में तीन प्रश्न गद्य से पूछे गए और दो प्रश्न पद्य से। जहाँ 64वीं मुख्य परीक्षा में छठा प्रश्न पद्य-खण्ड की व्याख्या से सम्बंधित था, वहीं 65वीं मुख्य परीक्षा में छठा प्रश्न गद्य एवं पद्य की व्याख्या से सम्बंधित

इस प्रकार ऐसा देखा जा सकता है कि प्रश्न की संरचना अब स्थिर होती दिख रही है, फिर भी 66वीं मुख्य परीक्षा हेतु तैयारी के दौरान रणनीतिक लोचशीलता बनाए रखने की ज़रुरत है क्योंकि प्रश्नों की संरचना में बदलाव की सम्भावना के साथ-साथ भाषा एवं इतिहास और गद्य एवं पद्य के बीच के आनुपातिक संतुलन में परिवर्तन की संभावनाओं को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है

भाषा-खंड से सम्बंधित प्रश्न:

भाषा-खंड में देखा जाय, तो निम्न टॉपिकों से प्रश्न पूछे जाने की पूरी संभावना है:

1.  अपभ्रंश, अवहट्ट एवं प्रारंभिक हिन्दी का अंतर्संबंध:

a.  (48-52)th BPSC: परवर्ती अपभ्रंश और पुरानी हिन्दी के समय-वैषम्य का सोदाहरण निरूपण कीजिए

b. (48-52)th BPSC: अवहट्ट

c.  (53-55)th BPSC: आदिकालीन हिन्दी भाषा की प्रमुख प्रवृत्तियों का परिचय देते हुए डिंगल एवं पिंगल का अन्तर स्पष्ट करें

d. (56-59)th BPSC: अपभ्रंश एवं प्रारंभिक हिन्दी की व्याकरण सम्बंधी एवं शाब्दिक विशेषताएं सोदाहरण स्पष्ट कीजिए

e.  60th-62nd BPSC: अपभ्रंश और प्रारंभिक हिन्दी की व्याकरण-सम्बंधी और शाब्दिक विशेषताओं की उदाहरण सहित विवेचना कीजिए

f.   64th BPSC: अवहट्ट से क्या अभिप्राय है? अवहट्ट की व्याकरणिक एवं शाब्दिक विशेषताएँ सोदाहरण स्पष्ट कीजिए

2.  अवधी, ब्रज और खड़ी बोली:

a.  (48-52)th BPSC: मध्यकाल में काव्य-भाषा के रूप में ब्रजभाषा के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए

b.  (48-52)th BPSC: ब्रजबुलि

c.  (53-55)th BPSC: मध्यकाल में ब्रजी एवं अवधी को मिलकर ब्रजावधी का जो प्रचालन हुआ था, उसकी उपलब्धियों एवं सीमाओं की सोदाहरण समीक्षा कीजिए

d.  (56-59)th BPSC: मध्यकाल में साहित्यिक भाषा के रूप में विकसित होने वाली ब्रजभाषा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए हिन्दी एवं हिन्दी-इतर प्रान्तों के कवियों के द्वारा ब्रजभाषा में विरचित साहित्य का उल्लेख कीजिए।

e.  (56-59)th BPSC: साहित्यिक भाषा के रूप में अवधी का विकास और ‘रामचरित मानस’ (टिप्पणी)

f.   60th-62nd BPSC: मध्यकाल में अवधी भाषा का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास पर प्रकाश डालिए

g.  64th BPSC: मध्यकाल में साहित्यिक भाषा के रूप में अवधी के विकास पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए अवधी में रचित प्रेममार्गी एवं रामभक्ति काव्य का उल्लेख करें।

h.  65th BPSC: मध्यकालीन साहित्यिक भाषा के रूप में ब्रजभाषा के विकास पर सविस्तार प्रकाश डालते हुए ब्रजभाषा में रचित भक्तिकाव्य और रीतिकाव्य का उल्लेख कीजिए

3.  पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी:

a.  (48-52)th BPSC: हिन्दी और उसकी उपभाषा भोजपुरी के पारस्परिक संबंधों पर विचार कीजिए

b.  (56-59)th BPSC: हिन्दी की उपभाषाओं और बोलियों का सामान्य परिचय देते हुए पाँचों उप-भाषाओं के पारस्परिक सम्बन्ध को रेखांकित करें

c.   60th-62nd BPSC: हिन्दी की प्रमुख उपभाषाओं का परिचय देते हुए उनके पारस्परिक संबंधों पर प्रकाश डालिए

d.    65th BPSC: हिन्दी भाषा के उद्भव एवं विकास पर विचार करते हुए हिन्दी भाषा की उपभाषाओं के पारस्परिक सम्बंध को सोदाहरण विवेचित कीजिए।

4.  19वीं सदी में खड़ी बोली का विकास:

a. (53-55)th BPSC: ‘हिन्दी नयी चाल में ढली’ इस कथन के आलोक में भारतेंदु की समकालीन हिन्दी भाषा के नयेपन का सप्रमाण विश्लेषण कीजिए

b. (53-55)th BPSC: दक्कनी हिन्दी

c.  (56-59)th BPSC: 19वीं सदी में साहित्यिक भाषा के रूप में खड़ी बोली के विकास में योगदान करने वाले विद्वानों की भूमिका पर प्रकाश डालिए

5.  देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा का मानकीकरण:

a. (48-52)th BPSC: प्रमुख हिन्दी वैयाकरण

b. (53-55)th BPSC: हिन्दी भाषा का मानकीकरण

c.  (53-55)th BPSC: देशान्तरी हिन्दी

d.  (56-59)th BPSC: हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि का मानकीकरण (टिप्पणी)

e.  63rd BPSC: देवनागरी लिपि की विशेषताओं और गुणों पर संक्षेप में विचार कीजिये

f.       65th BPSC: भाषा के मानकीकरण से क्या अभिप्राय है? हिन्दी भाषा के मानकीकरण के विभिन्न बिन्दुओं को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

6.  आधुनिक हिंदी की संवैधानिक स्थिति:

a. (48-52)th BPSC: बिहार की द्वितीय राजभाषा

b.  (53-55)th BPSC: हिन्दी की राजभाषा बनाम् राष्ट्रभाषा संज्ञा संसदीय अंतर्विरोध की देन है इस कथन को स्पष्ट करते हुए इनके एकीकरण के उपाय सुझाइए

c.  (56-59)th BPSC: स्वातंत्र्योत्तर भारत में राजभाषा हिन्दी का विकास और उपेक्षा (टिप्पणी)

d.  (56-59)th BPSC: स्वाधीनता संघर्ष में राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास (टिप्पणी)

e.  60th-62nd BPSC: स्वतन्त्रता के बाद भारत संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी के विकास पर निबन्ध लिखिए

f.    63rd BPSC: स्वाधीनता संघर्ष के समय हिन्दी का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास का उल्लेख कीजिये

g.  64th BPSC: स्वाधीनता संघर्ष के कालखंड में राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास एवं योगदान पर प्रकाश डालिए।

7.  हिन्दी भाषा का वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास:

a.  (48-52)th BPSC: कम्प्यूटरीकरण की दृष्टि से देवनागरी लिपि की सीमाओं एवं संभावनाओं का आकलन कीजिए

b. (53-55)th BPSC: इन्टरनेट में हिन्दी की स्थिति

इतिहास-खंड से पूछे गए प्रश्न:

इतिहास-खंड में देखा जाय, तो निम्न टॉपिकों से प्रश्न पूछे गए हैं:

1.  आदिकाल:

a. (48-52)th BPSC: आदिकाल के विभिन्न नामान्तरों और उनके अभिलक्षणों का उल्लेख कीजिए

b.  (56-59)th BPSC: हिन्दी साहित्येतिहास के आदिकालीन काव्य की प्रवृत्तियों को सोदाहरण स्पष्ट करते हुए ‘पृथ्वीराज रासो’ के महत्त्व पर प्रकाश डालिए

c.   63rd BPSC: उपलब्ध सामग्री के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य के कल-विभाजन पर अपने विचार व्यक्त कीजिये

d.  64rd BPSC: हिन्दी साहित्य के आदिकाल की प्रवृत्तियाँ स्पष्ट करते हुए सोदाहरण विचार कीजिये कि आदिकाल में समाज-सुधार एवं व्यक्ति-निर्माण के लिए भी काव्य-रचना हुई है

2.  भक्तिकाल:

a.  (53-55)th BPSC: सूफीकाव्य में प्राप्य सांप्रदायिक सौहार्द्र पर प्रकाश डालिए

b.  (56-59)th BPSC: भक्ति-काव्य की प्रवृत्तियों के आलोक में सिद्ध कीजिए कि भक्ति-काल हिन्दी साहित्येतिहास का स्वर्ण-युग है

c.  64th BPSC: भक्ति-काव्य की वे कौन-कौन सी प्रवृत्तियाँ हैं जिनके कारण भक्तिकाव्य का महत्व सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में सर्वोपरि है, सोदाहरण विचार कीजिए

d.    65th BPSC: हिन्दी साहित्येतिहास के भक्तिकाल को स्वर्ण-युग की संज्ञा क्यों प्रदान की गयी है? इस प्रश्न का तथ्यात्मक विवेचन कीजिए।

3.  रीतिकाल:

a.  (53-55)th BPSC: हिन्दी रीति-काव्य के प्रमुख प्रदी का आकलन कीजिए

b.  (56-59)th BPSC: रीति-काव्य केवल सामन्ती मानसिकता की देन है, या उसका महत्व भी है। (टिप्पणी)

4.  आधुनिक काल:

a.  (48-52)th BPSC: छायावाद और रहस्यवाद के अंतर्संबंध का उद्घाटन कीजिए

b.  (48-52)th BPSC: चौथे सप्तक में प्रयोगवाद

c.  (48-52)th BPSC: अकविता

d. (53-55)th BPSC: नवगीत

e.  (56-59)th BPSC: प्रयोगवाद की विशेषताएँ सोदाहरण स्पष्ट करते हुए अज्ञेय के योगदान का उल्लेख कीजिए

f.    (56-59)th BPSC: छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है। (टिप्पणी)

g.  60th-62nd BPSC: हिन्दी की नयी कविता की विभिन्न प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए

h.  63rd BPSC: भारतेंदु युग और द्विवेदी-युग के नवजागरण में कुछ मूलभूत अंतर है, स्पष्ट कीजिये

i.   64th BPSC: छायावाद की उन विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए जिनसे भारतीय संस्कृति के उदात्त स्वरुप का परिज्ञान होता है।

j.       65th BPSC: द्विवेदीयुगीन काव्य की उन प्रवृत्तियों को काव्य-पंक्तियों के उद्धरण के साथ विवेचित कीजिए जिनसे तद्युगीन समाज-सुधार एवं स्वातंत्र्य-बोध को बल प्राप्त होता है।

5.  कथा-साहित्य:

a.  (48-52)th BPSC: यथार्थवाद

b.  (48-52)th BPSC: समसामयिक प्रतिनिधि आत्मकथाएँ

c.  (48-52)th BPSC: हिन्दी के आंचलिक उपन्यासों के परिप्रेक्ष्य में रेनू और नागार्जुन के प्रदेय का तुलनात्मक मूल्यांकन कीजिए

d.  (53-55)th BPSC: एब्सर्ड नाटक

e.  (53-55)th BPSC: हिन्दी कथा-साहित्य के विशिष्ट शिल्पगत प्रयोगों की समीक्षा कीजिए

f.    (56-59)th BPSC: हिन्दी नाटक और रंगशाला। (टिप्पणी)

g.  (56-59)th BPSC: हिन्दी उपन्यास: आदर्श एवं यथार्थ। (टिप्पणी)

h.  63rd BPSC: प्रसादोत्तर हिन्दी नाटक एवं रंगमंच की प्रमुख प्रवृत्तियों का सोदाहरण उल्लेख कीजिए

i.    63rd BPSC: नयी कहानी के कथ्य और शिल्पगत वैशिष्ट्य की सोदाहरण समीक्षा कीजिए

j.       65th BPSC: हिन्दी नाटक और रंगशाला के इतिहास पर प्रकाश डालिए।

6.  आलोचना:

a.  (48-52)th BPSC: हिन्दी की निजी समीक्षा-सरणि के विकास में आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी के योगदान को रेखांकित कीजिए

b.  (53-55)th BPSC: हिन्दी समीक्षा के विकास में आचार्य शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन कीजिए

c.  (53-55)th BPSC: संरचनावाद

d.  (53-55)th BPSC: समकालीन साहित्य की पठनीयता एवं पाठकीयता का द्वंद्व

e.  (56-59)th BPSC: आचार्य रामचंद्र शुक्ल के रचना-कर्म का उल्लेख करते हुए उनकी आलोचना-दृष्टि की उपलब्धियों एवं सीमाओं का मूल्यांकन कीजिए

f.   62rd BPSC: आचार्य शुक्ल के आलोचना-सिद्धांतों पर प्रकाश डालिए

गद्य-खंड से पूछे जाने वाले प्रश्न:

1.  प्रेमचन्द का ‘गोदान’:

a.  48th-52nd BPSC: ‘गोदान’ का सर्वाधिक सशक्त नारी-पत्र आप किसे मानते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

b. 48th-52nd BPSC: प्रेमचंद की कहानियों में समकालीन समाज का यथार्थ-चित्रण है। कथन की व्याख्या कीजिए।

c.   53rd-55th BPSC: ‘गोदान’ एक यथार्थवादी उपन्यास है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

d.  53rd-55th BPSC: प्रेमचंद की कहानियों में समकालीन समाज के चित्रण पर प्रकाश डालिए।

e. (56-59)th BPSC: प्रेमचन्द ने ‘गोदान’ में तत्कालीन समाज का यथार्थ-चित्रण किया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।

f.    60th-62nd BPSC: ‘गोदान’ के आधार पर किसान-जीवन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए

g.  64th BPSC: “ ‘गोदान’ में कृषक-जीवन की त्रासदी के साथ कृषक-जीवन में विद्यमान उन मूल्यों को भी उद्घाटित किया गया है जिनसे उस समाज की नैतिकता का परिज्ञान होता है, जो कृषकेतर समाज में नहीं हैं अथवा न्यून हैं।” इस कथन की समीक्षा ‘गोदान’ से उद्धरण देते हुए कीजिये।

2.  अज्ञेय की शेखर: एक जीवनी:

a.  48th-52nd BPSC: ‘शेखर: एक जीवनी’ उपन्यास पर फ्रायड के चिंतन के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए

b.  53rd-55th BPSC: ‘शेखर: एक जीवनी’ उपन्यास पर किस विचारधारा का प्रभाव परिलक्षित होता है? सतर्क उत्तर दीजिए

c.   (56-59)th BPSC: ‘शेखर: एक जीवनी’ के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए

d.  60th-62nd BPSC: शेखर: एक जीवनी’ के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिये

e.  65th BPSC: ‘शेखर: एक जीवनी’ उपन्यास को व्यक्तिवादी या मनोविश्लेषणवादी उपन्यास की श्रेणी में सम्मिलित कर उपन्यास में व्याप्त सूक्ष्म समष्टि-चिंतन की उपेक्षा करना एकपक्षीयता है। इस कथन का विश्लेषण उपन्यास की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कीजिए।

3.  भारतेन्दु की ‘अंधेर नगरी’:

a.  (56-59)th BPSC: भारतेंदु हरिश्चंद्र की नाट्य-कला पर प्रकाश डालिए

b.  60th-62nd BPSC: ‘अन्धेर नगरी’ के आधार पर सामाजिक-राजनीतिक अव्यवस्था का चित्रण कीजिये

c.  64th BPSC: क्या भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘अंधेर नगरी’ की रचना तद्युगीन शासन-व्यवस्था की अन्यायपूर्ण एवं मूर्खतापूर्ण नीति को उजागर करने के लिए की थी, सोदाहरण विचार कीजिये

4.  प्रसाद का ‘चन्द्रगुप्त’:

a.  64th BPSC: “ ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक में भारतीय संस्कृति के उदात्त स्वरुप का सफल चित्रण हुआ है।” इस कथन का परीक्षण करते हुए नाटक से उद्धरण प्रस्तुत कीजिये।

b.    65th BPSC: ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक में चित्रित भारतीय संस्कृति के उदात्त पक्षों का विश्लेषण नाट्य-पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कीजिए।

5.  आचार्य शुक्ल का ‘चिंतामणि भाग 1’:

a.  48th-52nd BPSC: आचार्य शुक्ल के भाव एवं मनोविकार विषयक निबंधों की विशेषताएँ पठित निबंधों के आधार पर बताइए

b.  53rd-55th BPSC: पठित निबंधों के आधार पर आचार्य शुक्ल की निबंध-कला पर प्रकाश डालिए

c.   (56-59)th BPSC: पठित निबंधों के आधार पर आचार्य शुक्ल के भाव एवं मनोविकार विषयक निबंधों का विश्लेषण कीजिए

d.  63rd BPSC: ‘श्रद्धा और भक्ति’ निबंध के माध्यम से आचार्य शुक्ल ने जो व्यक्त करना चाहा है, उसकी प्रासंगिकता पर विचार कीजिये

e.  60th-62nd BPSC: पठित निबंधों के आधार पर आचार्य शुक्ल की निबंध-कला की समीक्षा कीजिये

पद्य-खंड से पूछे जाने वाले प्रश्न:

1.  कबीरदास की कबीर-ग्रन्थावली:

a. 48th-52nd BPSC: कबीर की भक्ति वह लता है जो ज्ञान के खेत में भक्ति का बीज पड़ने से उत्पन्न हुई है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।

b.  53rd-55th BPSC: कबीर के व्यक्तित्व की अक्खड़ता उन्हें सच्चे सन्त की तरह कर्म ‘कर्म की रेख पर मेख’ मारने के लिए उकसाती है। इस कथन की समीक्षा कीजिए

c.  (56-59)th BPSC: कबीर रहस्यवादी संत और धर्मगुरु होने के साथ-साथ भाव-प्रवण कवि भी थे। इस कथन की समीक्षा कीजिए।

d.  63rd BPSC: कबीरदास और तुलसी के राम में अंतर सोदाहरण स्पष्ट कीजिये

e.  64th BPSC: कबीर के समाज-दर्शन की विवेचना करते हुए सिद्ध कीजिये कि कबीर का काव्य इक्कीसवीं सदी में भी प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण है

f.       65th BPSC: कबीर के काव्य के कालजयी पक्षों का विश्लेषण सोदाहरण कीजिए।

2.  सूरदास का भ्रमर-गीत:

a. 48th-52nd BPSC: ‘भ्रमर-गीत के आधार पर सूरदास के वाग्वैदग्ध्य का उदाहरण सहित चित्रण कीजिए।

b.  53rd-55th BPSC: श्रृंगार एवं वात्सल्य के क्षेत्र में सूर की समता को और कोई कवि नहीं पहुँचा। कथन की पुष्टि उदाहरण सहित कीजिए।

c.   (56-59)th BPSC: सूरदास में जितनी सहृदयता और भावुकता है, प्रायः उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी। पठित अंश के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

d.    65th BPSC: ‘भ्रमर-गीत’ की रचना के कारणों पर विचार करते हुए उन्हें सूरदास के पदों से पुष्ट कीजिए

3.  तुलसीदास: रामचरित मानस (अयोध्याकाण्ड), कवितावली (उत्तरकाण्ड):

a. 48th-52nd BPSC: तुलसी के समन्वयवाद का निरूपण कीजिए।

b.  53rd-55th BPSC: ‘तुलसी का रूपक-विधान’ अयोध्याकाण्ड के आधार पर विश्लेषित कीजिए।

c.   (56-59)th BPSC: ‘तुलसीदास का सामाजिक आदर्श और लोकमंगल की साधना’ विषय पर लेख लिखिए

d.  64th BPSC: “तुलसीदास ‘कवितावली’ के उत्तरकाण्ड में तद्युगीन परिवेश में व्याप्त विपन्नता, विवशता, अमानुषिकता एवं अनैतिकता को रेखांकित करते हुए भगवन के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने एवं नैतिकतापूर्ण जीवन-दृष्टि अपनाने की प्रेरणा देते हैं।” इस कथन का सोदाहरण परीक्षण कीजिये।

e.  65th BPSC: ‘रामचरितमानस’ के अयोध्या काण्ड के आधार पर तुलसीदास की आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि का विश्लेषण उदाहरण सहित कीजिए

4.  निराला की ‘राम की शक्ति-पूजा’ और ‘सरोज-स्मृति’:

a. 48th-52nd BPSC: एक शोक-गीति के रूप में ‘सरोज-स्मृति’ कविता की विशेषताएँ बतलाइए।

b.  53rd-55th BPSC: ‘राम की शक्ति-पूजा’ निबंध की मौलिक कल्पना है। कथन की समीक्षा कीजिए।

c.   (56-59)th BPSC: निराला की भाषा-शैली की विवेचना ‘राम की शक्ति-पूजा’ कविता के आधार पर कीजिए

d.  63rd BPSC: निराला की ‘राम की शक्ति-पूजा’ का वस्तु-विन्यास की दृष्टि से मूल्यांकन कीजिये

5.  प्रसाद की कामायनी:

a. 48th-52nd BPSC: ‘लज्जा-सर्ग’ के आधार पर लज्जा के मानवीकरण का चित्रण कीजिए।

b.  53rd-55th BPSC: ‘कामायनी’ के पठित अंश के आधार पर कवि प्रसाद के बिम्ब-विधान का चित्रण कीजिए।

c.  (56-59)th BPSC: ‘कामायनी’ एक सफल महाकाव्य है। इस कथन की समीक्षा कीजिए

6.  मुक्तिबोध की कविता ‘अँधेरे में’:

a.  48th-52nd BPSC: ‘अँधेरे में’ कविता की प्रासंगिकता निरुपित कीजिए

b.  53rd-55th BPSC: मुक्तिबोध की कविताओं में फैंटेसी (Fantasy) का विवेचन कीजिए

c.   (56-59)th BPSC: ‘अँधेरे में’ कविता के माध्यम से मुक्तिबोध समाज की किन विसंगतियों को सामने लाना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए

d.  63rd BPSC: मुक्तिबोध की कविता ‘अँधेरे में’ का क्या मर्म है, बताइए

66वीं बीपीएससी हेतु महत्वपूर्ण टॉपिक

इतिहास-खंड में देखा जाय, तो निम्न टॉपिकों से प्रश्न पूछे जाने की पूरी संभावना है:

1.  भाषा-खण्ड:

a.  अपभ्रंश, अवहट्ट एवं प्रारंभिक हिन्दी का अंतर्संबंध (Most Impt.): अपभ्रंश, अवहट्ट और प्रारंभिक हिन्दी: व्याकरणिक एवं अन्य विशेषताएँ

b.  अवधी(Imp.), ब्रज और खड़ी बोली: साहित्यिक भाषा के रूप में ब्रज का विकास, अवधी एवं ब्रज का अंतर, ब्रज भाषा की अपार लोकप्रियता के कारण, अवधी भाषा का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास, साहित्यिक भाषा के रूप में खड़ी बोली का विकास और इसमें विभिन्न संस्थाओं का योगदान

c.  पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी: पूर्वी हिन्दी एवं पश्चिमी हिन्दी का अंतर्संबंध, मैथिली एवं भोजपुरी की विशेषतायें।

d.  19वीं सदी में खड़ी बोली का विकास (Most Impt.)

e.  देवनागरी लिपि (Most Impt.) और हिन्दी भाषा का मानकीकरण: देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता, दोष और सुधार के उपाय; देवनागरी लिपि का मानकीकरण और कम्प्यूटरीकरण

f.   आधुनिक हिंदी की संवैधानिक स्थिति (Most Impt.): संपर्क भाषा, राजभाषा और राष्ट्रभाषा का अंतर्संबंध, राजभाषा के रूप में हिन्दी की अद्यतन स्थिति और हालिया विवाद: त्रिभाषा फॉर्मूला

2.  हिन्दी साहित्य का इतिहास:

a.  आदिकाल (Most Impt.): नामकरण-विवाद, आदिकालीन साहित्य, विशेष रूप से रासोकाव्य: पृथ्वीराज रासो  में फैक्ट और फिक्शन का समावेश, प्रवृत्तियाँ एवं विशेषताएँ, सामाजिक-सांस्कृतिक बोध, विद्यापति और उनकी पदावली: भक्त या श्रृंगारी

b.  भक्तिकाल: प्रेरणा-स्रोत, इस्लाम की भूमिका और इससे सम्बंधित विवाद, सन्त-काव्य की वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता, सूफी-काव्य की सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना और इसका प्रदेय, तुलसी की समन्वयवादी चेतना, सामंत-विरोधी मूल्य, लोकधर्म आदि।

c.  रीतिकाल (Most Impt.): प्रवृत्तियाँ एवं विशेषताएँ: रीति-निरूपक आचार्यों के योगदान और महत्व का मूल्यांकन,रीतिकालीन कवियों की श्रृंगार-चेतना; बिहारी एवं घनानंद के विशेष सन्दर्भ में।

d.  आधुनिक काल (Most Impt.): आधुनिक हिन्दी कविता में अभिव्यक्त नवजागरण-चेतना का स्वरुप, छायावाद: स्थूल के खिलाफ सूक्ष्म का विद्रोह, रहस्यवाद एवं स्वच्छन्दतावाद के विशेष सन्दर्भ में, प्रगतिवाद, नयी कविता और समकालीन कविता: स्त्री-विमर्श एवं दलित विमर्श।

e.  कथा-साहित्य (Most Impt.): प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों में अभिव्यक्त यथार्थवाद का स्वरुप, आँचलिक औपन्यासिक परम्परा में रेणु का योगदान और महत्व, नाटक-रंगमंच सम्बन्ध और प्रसाद के नाटक, नयी कहानी की प्रवृत्तियाँ और विशेषतायें।

f.   आलोचना (Most Impt.): आचार्य शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नागेन्द्र और रामविलास शर्मा, नामवर सिंह।

3.  गद्य-खण्ड:

a.  प्रेमचन्द का ‘गोदान’ (Most Impt.): कृषक से मजदूर में रूपांतरण, गोदान में चित्रित नारी-समस्या, पात्र-योजना और चरित्रांकन-पद्धति, कृषक जीवन की त्रासदी के रूप में गोदान, गोदान की महाकाव्यात्मकता, वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता

b.  अज्ञेय की शेखर: एक जीवनी: एक व्यक्ति का अभिन्नतम निजी दस्तावेज़, व्यक्ति बनाम् समाज, जीवनी या उपन्यास, मनोविश्लेषणवादी यथार्थवाद और शेखर एक जीवनी, शेखर का चरित्र-चित्रण और अज्ञेय के आत्मप्रक्षेप के रूप में शेखर।

c.  भारतेन्दु की ‘अंधेर नगरी’ (Most Impt.): भारतेन्दुयुगीन युगबोध, नवजागरणपरक चेतना, प्रहसन के रूप में, रंगमंचीयता, वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता

d.  प्रसाद का ‘चन्द्रगुप्त’: राष्ट्रीय-सांस्कृतिक चेतना, नायकत्व की समस्या, प्रसाद के नारी-पात्र, प्रसाद का इतिहास-बोध और इतिहास एवं कल्पना, अभिनेयता।

e.  आचार्य शुक्ल का ‘चिंतामणि भाग 1’ (Most Impt.): ‘कविता क्या है’ के आधार पर आचार्य शुक्ल की कविता-विषयक दृष्टि, भाव एवं मनोविकार विषयक निबंध के आधार पर आचार्य शुक्ल की निबंध-शैली की विशेषता

4.  पद्य-खण्ड:

a.  कबीरदास की कबीर-ग्रन्थावली (Impt.): कबीर का दर्शन, कबीर की भक्ति, सामाजिक चेतना, व्यक्तित्व-विश्लेषण, वर्तमान सन्दर्भ में प्रासंगिकता, कबीर की भाषा

b.  सूरदास का भ्रमर-गीत: सगुण-निर्गुण विवाद, सूर की भक्ति, प्रेम-चेतना और नारी-चेतना, सूर की श्रृंगार-चेतना: संयोग एवं विरह-श्रृंगार, सूर की अप्रस्तुत-योजना: बिम्ब-विधान, प्रतीक-विधान और अलंकार योजना

c.  तुलसीदास: रामचरित मानस (अयोध्याकाण्ड), कवितावली (उत्तरकाण्ड): तुलसी की समन्वयवादी चेतना, तुल्लासी का लोकनायकत्व, ज्ञान-भक्ति-कर्म की त्रिवेणी के रूप में तुलसी की भक्ति, कलि-वर्णन और यथार्थ-चित्रण।

d.  निराला की ‘राम की शक्ति-पूजा’ और ‘सरोज-स्मृति’ (Most Impt.): राम की शक्ति-पूजा: द्वंद्वात्मकता, मौलिक शक्ति की कल्पना, पौराणिकता एवं नवीनता, नारी-अस्मिता की तलाश, महाकाव्यात्मकतासरोज-स्मृति: आत्मकथात्मक लम्बी कविता, शोक-गीति के रूप में, निराला की विद्रोही चेतना।

e. प्रसाद की ‘कामायनी’ (Most Impt.): रूपक के रूप में, मानव-सभ्यता की कहानी के रूप में, नवजागरणपरक चेतना, श्रद्धा का सौंदर्य-चित्रण, प्रसाद का दर्शन, आधुनिक भावबोध

f.   मुक्तिबोध की कविता ‘अँधेरे में’ (Most Impt.): फंतासी, आत्मसंघर्ष के कवि, व्यक्तित्वान्तरण की खोज और अस्मिता की खोज

 

हिन्दी भाषा और साहित्य(BPSC सिलेबस)

खण्ड-I

1.  हिन्दी भाषा का इतिहासः

a.  अपभ्रंश अवह्ट और प्रारंभिक हिन्दी की व्याकरणिक और शाब्दिक विशेषताएँ।

b.  मध्यकाल में अवधी और ब्रज भाषा का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास।

c.  19वीं शताब्दी में खड़ी बोली हिन्दी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास।

d.  देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा का मानकीकरण।

e.  स्वाधीनता संघर्ष के समय हिन्दी का राष्ट्रभाषा के रूप में विकास।

f.   स्वतंत्रता के बाद भारत संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी का विकास।

g.  हिन्दी का प्रमुख्य उप-भाषाएँ और उनका पारस्परिक सम्बन्ध।

h.  मानक हिन्दी के प्रमुख व्याकरणिक लक्षण।

2.  हिन्दी साहित्य का इतिहास:

a.  हिन्दी साहित्य का प्रमुख कालों; अर्थात् आदि काल, भक्ति काल, रीतिकाल, भारतेन्दु काल, द्विवेदी काल आदि की मुख्य प्रवृत्तियाँ।

b.  आधुनिक हिन्दी की छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता, नई कहानी, अकविता आदि मुख्य साहित्यिक गतिविधियाँ और प्रवृत्तियों की प्रमुख विशेषताएँ।

c.  आधुनिक हिन्दी के उपन्यास और यथार्थवाद का आविर्भाव।

d.  हिन्दी में रंगशाला और नाटक का संक्षिप्त इतिहास।

e.  हिन्दी में साहित्य समालोचना के सिद्धांत और हिन्दी के प्रमुख समालोचक।

f.   हिन्दी में साहित्यिक विधाओं का उद्भव और विकास।

खण्ड-II

इस प्रश्न पत्र में निर्धारित पाठ्य पुस्तकों का मुक्त रूप में अध्ययन अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जायेंगे, जिनसे उम्मीदवार की समीक्षा क्षमता की परीक्षा हो सके:

1.  कबीर:    कबीर ग्रंथावली (प्रारम्भ के 200 पद, सं0 श्याम सुंदर दास)

2.  सूरदास:   भ्रमरगीत सार (प्रारम्भ के केवल 200 पद)

3.  तुलसीदास: रामचरितमानस (केवल अयोध्याकांड), कबितावली (केवल उत्तरकांड)

4.  भारतेन्दु हरिश्चन्द्र:   अंधेर नगरी।

5.  प्रेमचन्द:  गोदान, मानसरोवर (भाग-1)

6.  जयशंकर प्रसाद चन्द्रगुप्त, कामायनी (केवल चिंता, श्रद्धा, लज्जा ओर इड़ा सर्ग)।

7.  रामचन्द्र शुक्ल: चिन्तामणि (पहला भाग), (प्रारम्भ के 10 निबन्ध)

8.  सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला:  अनामिका (केवल सरोज-स्मृति और राम की शक्ति-पूजा)।

9.  एस॰एच॰ वात्स्यायन अज्ञेय: शेखर: एक जीवनी (दो भाग)

10.         गजानन माधव मुक्तिबोध: चाँद का मुह टेढ़ा है (केवल अंधेरे में)