आयकर (संशोधन) विधेयक, 2016
सरकार ने काले धन
से निपटने के नाम पर 30 नवम्बर को लोकसभा में आयकर कानून में संशोधन करारोपण कानून (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2016 पेश किया. सरकार ने राज्यसभा
में अपनी अल्पमत वाली स्थिति को ध्यान में रखते हुए धन विधेयक के रूप
में पेश किया। इसलिए लोकसभा से
पारित होने के बाद इसके लागू होने में अब औपचारिकता मात्र शेष रह गयी है। ध्यातव्य
है कि धन विधेयक के लिए राज्यसभा की मंजूरी अनिवार्य नहीं होती है और न ही वह उसमें किसी प्रकार का संशोधन
कर सकती है। इस तरह लोकसभा से पारित होते ही विधेयक के कानून की शक्ल अख्तियार करने
का रास्ता साफ हो गया है।
संशोधन की पृष्ठभूमि:
इस
संशोधन की ज़रुरत इसीलिए पड़ी कि नोट्बंदी के सन्दर्भ में वर्तमान दिशानिर्देशों को
न केवल धता बताया जा रहा था, वरन् आयकर अधिनियम,1961 के कुछ
प्रावधानों की आड़ में कुछ लोग अपने कालेधन को सफ़ेद करने की प्रक्रिया में लगे थे. बैंकरों और विश्लेषकों के अनुसार 30 दिसबंर
तक (90-95) प्रतिशत 500 रुपये और हज़ार
रूपये के नोट वापस बैंकों में आ जायेंगे जो इस पूरे अभियान की ही प्रासंगिकता पर
प्रश्न खड़ा करेगा। रिज़र्व बैंक की हाल की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है. रिजर्व
बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार 10
नवंबर से 27 नवंबर तक सभी बैंकों से कुल 844,982
करोड़ रुपए जमा और बदलवाए गए हैं। इसमें से 33,948 करोड़ रुपए बदलवाए गए हैं और 811,033 करोड़ रुपए जमा
करवाए गए हैं। वहीं रिजर्व बैंक की 2015-16 की वार्षिक
रिपोर्ट बताती है कि 31 मार्च 2016 तक 500
और 1000 की कुल 14,17,950 करोड़ रुपए की राशि चलन में थी। इस दौरान
लोगों ने लोगों के द्वारा अपने
खाते से
2.16 लाख करोड़
रुपये की निकासी की गई.
प्रमुख प्रावधान:
1.
इस विधेयक के ज़रिये 30 दिसंबर, 2016 तक कालाधन रखने वालों को 50% टैक्स चुका कर
उसे सफेद बनाने का मौका दिया है। विधेयक में प्रावधान है कि खुद कालेधन का खुलासा
करने पर 50% कर चुकाना होगा. शेष पचास फीसदी रकम में आधी रकम अर्थात कुल आय का 25%
चार साल तक सरकार के पास जमा रहेगी।
2. नई व्यवस्था के अंतर्गत अघोषित आय (नकद एवं बैंक जमा) का 30% कर के
रूप में, कर-दायित्व का 33% सरचार्ज के रूप में और आय का 10% जुर्माने के रूप में
देना होगा. साथ ही, घोषित आय का 25% चार वर्षों के लिए ब्याज-मुक्त डिपाजिट स्कीम
में जमा करना होगा.
3. स्वयं द्वारा घोषित न किये जाने की स्थिति में पकड़ें जाने पर जुर्माने
के साथ कर-दायित्व घोषित आय का 85% होगा.
4. यह संशोधन विधेयक प्रधानमंत्री
गरीब-कल्याण जमा योजना (PMGKY),2016 का प्रस्ताव करता है जिसे RBI
के साथ विचार-विमर्श के पश्चात् अधिसूचित किया जाएगा। यह स्वैच्छिक उद्घोषणा एवं
निवेश स्कीम है जिसके तहत् प्राप्त होनेवाले अतिरिक्त कर-राजस्व का इस्तेमाल
सामाजिक कल्याण योजनाओं के लिए किया जाएगा. साथ ही, इसका वित्तीयन घोषित आय के उस एक चौथाई हिस्से के
ज़रिये किया जायेगा जिसका लॉक-इन पीरियड चार वर्षों का होगा।
5.
इस योजना के तहत प्राप्त होनेवाली रकम का
इस्तेमाल सिंचाई, आवास, शौचालय, बुनियादी ढांचा, प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य और आजीविका से जुडी हुई परियोजनाओं में किया जाएगा।
6.
प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक अघोषित आय जमा
कराने वाले लोगों का नाम सार्वजनिक नहीं किया जाएगा और न ही
घोषित आय के स्रोतों के बारे में पूछताछ की जायेगी।
7.
साथ ही, यह संपत्ति कर, दीवानी और अन्य
कर-कानूनों से छूट प्रदान करेगा। लेकिन फेमा, मनी लॉन्ड्रिंग, नारकोटिक्स, बेनामी और कालाधन कानून से कोई छूट नहीं मिलेगी।
8.
यद्यपि अधिकारियों
का कहना है कि तकनीकी रूप से ये संशोधन भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं होंगे, लेकिन
व्यावहारिक रूप में ये संशोधन अप्रैल,2016 से लागू होंगे क्योंकि चालू वित्त वर्ष
समाप्त नहीं हुआ है और लोगों ने रिटर्न दाखिल करना नहीं शुरू किया है. लेकिन,
जुर्माने का प्रावधान इसे भूतलक्षी प्रभाव वाला बनाता है.
आय उद्घोषणा स्कीम (IDS) से
भिन्नता:
यह स्कीम पूर्वर्ती आय उद्घोषणा स्कीम के
ही समान है, बस फर्क यह है कि इसमें कर की दर 45% के बजाय 50% है. साथ ही, इसे
गरीबों के कल्याण से जोड़ा गया है. इसके मद्देनज़र घोषित आय का 25% चार साल के
लॉक-इन पीरियड के साथ ब्याज-मुक्त निवेश का प्रावधान किया गया है. ध्यातव्य है कि आय उद्घोषणा स्कीम के तहत् आय की उद्घोषणा के लिए चार महीने का समय
दिया गया था और सितम्बर,2017 तक देय करों के तीन किश्तों में भुगतान की छूट दी गई
थी. इसके पहले किश्त का भुगतान नवम्बर,2016 तक किया जाना था.
अबतक के प्रावधानों से
भिन्नता:
1. जुर्माने के
सामान्य प्रावधान को यथावत बनाये रखा गया है. इस अधिनियम की धारा 270A के तहत् अंडर-रिपोर्टिंग और गलत रिपोर्टिंग की स्थिति में आयकर अधिनियम के
वर्तमान प्रावधान ही प्रभावी होंगे. इसके अंतर्गत अंडर-रिपोर्टिंग की स्थिति में
50% और गलत रिपोर्टिंग की स्थिति में 200% जुर्माने का प्रावधान है. इसका सम्बन्ध
रिटर्न्ड इनकम और आकलित इनकम के अंतर से जुड़ा हुआ है.
2. इस अधिनियम की धारा
115 BBE के तहत् अघोषित साख, निवेश, नकदी और अन्य परिसंपत्तियों की स्थिति में
पहले 30% कर के अलावा सरचार्ज एवं उपकार देने पड़ते थे. लेकिन, अब इनके अलावा 60%
कर, कर-दायित्व का 25% सरचार्ज अर्थात् 75% कर का भुगतान करना होगा. इसके अलावा
10% जुर्माने का प्रावधान किया गया है जिसे कर-अधिकारियों के विवेक पर छोड़ा गया
है.
3. इस अधिनियम की धारा
271 AAB के अनुसार सर्च और ज़ब्त किये जाने की स्थिति में अगर उस जब्त परिसंपत्ति या आय को करदाता के द्वारा स्वीकार किया जाता है और आयकर रिटर्न फाइल करने के साथ-साथ देय करों का भुगतान किया जाता है, तो जुर्माने की रक़म अब 10% की जगह 30% होगी.
4. अगर करदाता इसे
अपनी आय के रूप
में नहीं
स्वीकार करता
है, पर आयकर रिटर्न फाइल किया जाता है और देय करों का भुगतान किया जाता है, तो जुर्माने की रकम पूर्ववत् 60% होगी.
विपक्ष की आपत्ति:
इस विधेयक को मनी बिल के रूप में पेश किया
गया और इस क्रम में संसदीय परम्परा की अनदेखी करते हुए बिना किसी बहस के इसे पारित
घोषित किया गया. फलतः न तो विपक्ष के सदस्यों को अपना पक्ष रखने का अवसर ही मिल
पाया और न ही किसी संशोधन का सुझाव देने का. कांग्रेस संशोधन के ज़रिये प्रस्तावित विधेयक में किसानों के अल्पावधिक
ऋणों, मछुआरों के ऋणों और उन छात्रों, जिन्हें अबतक नौकरी नहीं मिली है और जो अबतक
बेरोजगार हैं, के शिक्षा-ऋणों की माफी से सम्बंधित प्रावधानों को जोड़ना चाहती थी,
लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई. यहाँ तक कि सरकार इस संशोधन को प्रस्तावित्
करने के लिए आवश्यक राष्ट्रपति की अनुमति तक को सुनिश्चित करने के लिए तैयार नहीं
हुई. विपक्षी दल के सदस्य इस विधेयक पर
बहस के लिए समय चाह रहे थे और उनकी इच्छा थी कि नोटबंदी पर बहस के बाद इस बिल पर
बहस हो. ध्यातव्य है कि मनी बिल में किसी भी प्रकार के संशोधन के लिए राष्ट्रपति
की अनुमति की ज़रुरत होती है जिसके लिए सरकार तैयार नहीं थी. लोकसभा स्पीकर का कहना
था कि अविलम्ब सार्वजानिक महत्त्व का विषय होने के कारण इसे तुरंत पारित किया जाना
आवश्यक है.
सरकार की मंशा:
अब सवाल यह है कि
इस विधेयक या कानून के जरिए सरकार क्या संदेश देना चाहती है? अबतक सरकार यह कहती रही है कि कालाधन भ्रष्टाचार के अलावा हथियारों की
तस्करी और आतंकवाद समेत संगठित अपराधों का कारण और स्रोत दोनों है। ऐसी स्थिति में
काले धन का खुलासा करने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाने और आय के स्रोत के
बारे में नहीं पूछने का आश्वासन कहीं-न-कहीं अचंभित करता है. साथ ही, काले धन के आधे
हिस्से का सरकार को भुगतान कर शेष हिस्से को सफ़ेद करना कालेधन को समाप्त करने के
प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिह्न लगाता है और काली कमाई करने वालों के
प्रति उसकी नरमी का संकेत देता है।
सरकार की यह पहल
उसकी विश्वसनीयता को भी प्रश्न के दायरे में लाकर खड़ा कर देती है। पिछली योजना के
दौरान सरकार ने बार-बार ताकीद की थी कि यह अंतिम अवसर है. इसके बाद किसी को बख्शा
नहीं जाएगा. नोटबंदी की दिशा में पहल करते हुए भी सरकार ने इस बात को बारम्बार
दुहराया. ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि पिछले बीस दिनों से भारतीय जनता ने
अपनी तमाम परेशानियों के बावजूद सरकार के साथ जो सहयोग किया और इस क्रम में अस्सी
से अधिक लोगों की जानें भी गईं, क्या ऐसी ही पहलों एवं रियायतों के लिए? सरकार ही
नहीं, इस मसले पर विपक्ष की भी चुप्पी सालती है. ऐसा लगता है कि सत्ता पक्ष और
विपक्ष, दोनों ने जनता का मजाक बना दिया है.
इसके अतिरिक्त यह
तकनीकी प्रकृति के प्रश्न के प्रश्न को भी जन्म देता है क्योंकि पांच सौ और हजार
के नोटों को अमान्य करने के बाद रिजर्व बैंक की देनदारी केवल एक निश्चित अवधि में
जमा कराए गए उन नोटों के प्रति रह गई है जो सफेद धन की श्रेणी में आते हैं।
सरकार की मंशा:
जहाँ तक मकसद का
प्रश्न है, तो सरकार का मकसद क्या माना जाय: राजस्व बढ़ाना या भ्रष्टाचार और
बेईमानी को खत्म करना? इस कदम से तो ऐसा ही लगता है कि सरकार
विमौद्रीकरण के कारण उत्पन्न परिस्थितियों से घबड़ा गयी है. उसने यह स्वीकार कर
लिया है कि नोटबंदी की दिशा में की गयी पहल विफल हो चुकी है और अब वह इस विफलता को
ढकना चाहती है. साथ ही, इस कदम के ज़रिये अपने परंपरागत वोटबैंक व्यापारी और
छोटे-मोटे कारोबारी समूह को एक विकल्प देकर उनकी नाराजगी को कम करना चाहती है.इस विधेयक के ज़रिये सरकार ने गैर-कानूनी
तरीके से कालेधन को सफ़ेद करने की कोशिश में लगे लोगों को एक विकल्प उपलब्ध करवाया.
इसके ज़रिये सरकार के लिए राजस्व की संभावनाओं को तलाशने की कोशिश भी की गयी. साथ
ही, नोटबंदी के कारण उपजे रोष को दूर करते हुए सरकार की प्रो-कॉर्पोरेट इमेज को
धोने का प्रयास किया गया और यह सन्देश देने की कोशिश की गयी कि सरकार अमीरों से
छीनकर गरीबों को देना चाहती है ताकि समाज के अभावग्रस्त, वंचित और गरीब तबके का
कल्याण हो सके. स्पष्ट है कि सरकार अपनी गरीब-समर्थक छवि निर्मित करने के लिए कालेधन के विरुद्ध
अपने अभियान को सीधे गरीबों के कल्याण से जोड़ना चाहती है. लेकिन,
वह इस तथ्य की अनदेखी कर रही है कि नोटबंदी की पहल के ज़रिये उसने अपने पक्ष में जो
माहौल बनाया था और इसके कारण एक समूह में कालेधन एवं भ्रष्टाचार के प्रति सरकार की
मंशा को लेकर जो गुडविल बना था, वह गुडविल इस कदम के कारण खतरे में पड़ गया है।
इस पहल का औचित्य
यह कहते हुए साबित करने की कोशिश की जा रही है कि इससे नोटबंदी के कारण सृजित घबराहट
और अफरातफरी का माहौल खत्म होगा, लेकिन पिछले बीस
दिनों के दौरान जिस तरह से सरकार ने निर्णय लिए हैं, उसने विश्वास पैदा करने की
बजाय आशंकाओं को गहराने का काम किया है. इससे इस धारणा को बल मिला है कि सरकार ने
बिना सोचे-विचारे एवं बिना किसी पूर्व तैयारी के यह निर्णय लिया है और इस के कारण
जो परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं, वे सरकार की कल्पना से परे हैं. फलतः उसके
द्वारा एक के बाद दूसरे निर्णय लिए जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि वह अँधेरे में तीर
चला रही है.
योजना का भविष्य:
योजना का भविष्य:
यह कहना कि इससे
सरकार के खजाने में काफी पैसा आ जाएगा, बहुत आश्वस्त नहीं करता। इस खुलासे के जरिए
प्राप्त होने वाली रकम के बारे में कुछ भी अनुमान लगा पाना कठिन है। कारण यह कि
अबतक पुराने करेंसी को नई करेंसी में बदलने की जो रफ़्तार रही है, जिस तरीके से
20%-30% की दर पर अवैध रूप से कालेधन को सफ़ेद किया जा रहा है और जिस तरह की शर्तें
इस स्कीम में रखी गयी हैं, उससे ऐसा नहीं लगता है कि इस स्कीम से बहुत उम्मीद की
जानी चाहिए। इस स्थिति में इस योजना के ज़रिये जिस प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को
वित्तीय समर्थन देने की कोशिश की जा रही है, उसका भविष्य भी अधर में लटकता दिखाई पड़ता है।
सबसे महत्वपूर्ण यह
कि जिस समूह के पास भारी मात्रा में कालाधन है, नोटबंदी के साथ उसके लिए पहले ही
विकल्प खोल दिए गए. उसने बड़ी चालाकी से गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाकर उसे लाइन
में लगवाया और उसके एवं उसके परिवार के सदस्यों के जनधन खाते में कालेधन डालकर उसे
सफ़ेद करवाए. और यह सब काम बड़े ही वैधानिक तरीके से किया गया. इन्होंने उन
प्रोफेशनल्स की भी सेवा ली जो 20%-30% की दर पर कालेधन को सफ़ेद करने के धंधे में
लग गए. भारी मात्रा में सोना, बुलियन, डॉलर और अन्य वस्तुओं की खरीद के जरिये भी पुरानी करेंसी को खपाने की कोशिश की गई. यहाँ तक कि टैक्स-अधिकारियों से मिलीभगत के जरिये अपने ही यहाँ रेड डलवाने की भी कोशिश की गई ताकि 10% के कम जुर्माने पर कालेधन को सफ़ेद किया जा सके. दूसरी बात, बैंक तक
आसान पहुँच और बैंककर्मियों के साथ उनके गुडविल ने भी काले को सफ़ेद करने की प्रक्रिया
में अहम् भूमिका निभाई. तीसरी बात, इन्होने अपने चालू खाता के सहारे भी चार्टर्ड
अकाउंटेंट और अन्य विशेषज्ञों की सेवा लेकर वैधानिक तैयारियों के साथ नकदी जमा
कराई और अपने कालेधन को सफ़ेद किया। अब आयकर अधिनियम में संशोधन ने चौथा विकल्प
उन्हें उपलब्ध करवा दिया है. अब वे आराम से 50 प्रतिशत की दर से करों का भुगतान कर
अपने कालेधन को सफ़ेद कर सकेंगे, यद्यपि वे इतना भी देने के लिए तैयार होंगे, इसमें
संदेह है। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व भी जहाँ अघोषित विदेशी परिसंपत्ति की उदघोषणा स्कीम के तहत् सरकार को महज 2400 करोड़ रुपये कर के रूप में प्राप्त हुए, वहीं आय उद्घोषणा स्कीम के तहत् लगभग 30,000 करोड़ के आसपास के
कर-राजस्व
प्राप्त होने की संभावना है. दोनों ही बार वांछित परिणाम नहीं प्राप्त हो पाए. इस बार भी कमोबेश वैसी ही स्थिति दिखाई पड़ रही है. इसीलिए सरकार
ने एक अवसर सृजित करने की कोशिश की है ताकि कुछ कर भी प्राप्त हो जाय और अर्थव्यवस्था को जहाँ तक संभव हो सके, कालेधन से मुक्त भी किया जाय.