Saturday, 23 July 2016

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता(RCEP)

    क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता(Regional Comprehensive Economic Partnership)

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौता हेतु वार्ता औपचारिक रूप से नवम्बर,2012  में कम्बोडिया में आसियान सम्मलेन के दौरान वार्ता शुरू की गई. चीन के नेतृत्व में ्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)समझौता अमेरिका के नेतृत्व में TTP और TTIP जैसे मेगा FTA की दिशा में की गई पहल का जवाब है. यह समझौता आसियान के सदस्य-देशों के इर्द-गिर्द केन्द्रित है. माना जाता है कि यह आसियान के छः देशों(ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया) के साथमुक्त व्यापार समझौते का विस्तार है. इसके जरिये क्षेत्रीय आर्थिक समेकन की प्रक्रिया को आगे बढाने की कोशिश की गई है. अगर यह समझौता-वार्ता तार्किक परिणति तक पहुँचती है, तो RCEP जिस व्यापारिक ब्लाक का सृजन करेगा वह दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक ब्लाक होगा जो दुनिया की 45% जनसँख्या, एक तिहाई वैश्विक जीडीपी और 20% वैश्विक सेवा-व्यापार का प्रतिनिधित्व करेगा और जिसका समेकित सकल घरेलु उत्पाद 23 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा. इस समझौते के दायरे में वस्तु एवं सेवा-व्यापार, निवेश, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, प्रतिस्पर्धा और बौद्धिक सम्पदा  आयेंगे.

ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से भिन्नता:

ऐसे मेगा व्यापारिक ब्लॉक के निर्माण के लिए भूराजनीति और वैश्विक आर्थिक स्लोडाउन कहीं कम ज़िम्मेवार नहीं हैं जिसने घरेलू आर्थिक संकट से निबटने के लिए वैश्विक शक्तियों को नए बाज़ार की तलाश के लिए विवश किया है. TPP से RCEP की भिन्नता को निम्न सन्दर्भों में देखा जा सकता है:

1.
जिस तरह TPP अमेरिकी ‘पिवोट टू एशिया’ (Pivot To Asia) की पृष्ठभूमि में अमेरिका की एशिया-पेसिफिक रणनीति का अहम् हिस्सा है, उसी प्रकार RCEP अमेरिकी ‘पिवोट टू एशिया’ के जवाब में  एशिया-पेसिफिक में चीन के क्षेत्रीय आर्थिक एवं सामरिक वर्चस्व को बनाये रखने की कोशिश है.
2.
TPP का स्वरुप अन्तःमहाद्वीपीय है, जबकि RCEP का क्षेत्रीय.
3.
टीपीपी द्वारा कठोर श्रम एवं पर्यावरण मानकोंसरकारी ख़रीदऔर बौद्धिक सम्पदा अधिकार के संदर्भ में WTO प्लस मानकों पर ज़ोर भारत के लिए TPP की तुलना में RCEP ो बेहतर बना देता है।
4.
टीपीपी की तुलना में RCEP का नन-टैरिफ़ बैरियर की ओर भी वैसा रुझान नहीं है।
5.
जहाँ RCEP में अल्पविकसित देशों के लिए व्यापार उदारीकरण और मूल्य-समर्थन की चरणबद्ध समाप्ति हेतु अपेक्षाकृत अधिक समय दिए जाने के प्रश्न पर आसियान देशों के बीच सैद्धांतिक सहमति हैपर टीपीपी में ऐसा नहीं है।

बौद्धिक संपदा से सम्बंधित विवादास्पद प्रावधान:

RCEP के समझौता-प्रारूप का बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) से सम्बंधित लीक दस्तावेज़ इस बात का संकेत करता है कि TPP में शामिल RCEP के जापान और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ सदस्य-देश बौद्धिक संपदा से सम्बंधित TPP मानकों को RCEP के दायरे में लाना चाहते हैं जो भारत जैसे विकसित देशों में दवाओं तक आसान पहुँच को सीमित करने वाला साबित होगा.

1.
ये देश पेटेंट-अवधि को पांच वर्षों का अतिरिक्त विस्तार देना चाहते हैं, अर्थात इसे बीस साल से बढाकर पच्चीस साल करना चाहते हैं.
2.
ये देश विकसित यूरोपीय देशों द्वारा संपन्न एंटी-काउंटरफ़ीटिंग ट्रेड एग्रीमेंट (ACTA) की तर्ज़ पर कुछ प्रावधानों को शामिल करना चाहते हैं.
3.
ये कॉपीराइट नियमों के अपवादों को प्रतिबंधित करनेवाले प्रावधानों को शामिल करना  चाहते हैं.
4.
इसके अलावा ये ज्ञान तक पहुँच, नवोन्मेष की स्वतंत्रता और स्वास्थ्य के अधिकार को प्रतिकूलतः असर डालनेवाले लोकतान्त्रिक निर्णयन की शक्ति को सीमित करना चाहते हैं और इसके लिए अत्यंत गोपनीय तरीके से 
व्यापार वार्ताओं के संचालन हेतु अधिकार-धारक समूहों को शक्ति-संपन्न बनाना चाहते हैं.
5.
ट्रिप्स प्लस:  भारत के नज़रिए से ड्राफ्ट-प्रस्ताव ट्रिप्स के नए संस्करण ‘ट्रिप्स प्लस’ के प्रति प्रतिबद्धता के लिए बाध्य करेगी जिसमें जेनेवा में सम्पन्न पेटेंट लॉ संधि,2000 शामिल है जो पेटेंट आवेदन के परीक्षण और पेटेंट-आवश्यकताओं के संगतीकरण का प्रावधान करता है. अबतक भारत इस सन्दर्भ में किसी भी दबाव का प्रतिरोध करता रहा है क्योंकि एवर ग्रीनिंग जैसे लोकहित से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर भारतीय पेटेंट कानून की लोचशीलता को समाप्त करेगा. इससे भारतीय जेनेरिक मेडिसिन कारोबार प्रतिकूलतः प्रभावित होगा और म्यांमार, थाईलैंड, कम्बोडिया, लाओस, और वियतनाम के लोगों के लिए वहनीय कीमतों पर दवाओं की उपलब्धता सीमित होगी.RCEP का ड्राफ्ट दस्तावेज म्यांमार, कम्बोडिया और लाओस जैसे अल्पविकसित देशों को ट्रिप्स समझौते के तहत् बौद्धिक सम्पदा कानून के क्रियान्वयन के सन्दर्भ में 2033 तक के लिए दी गई छूटों को वापस लेना चाहता है.

टैरिफ-कटौती के प्रश्न पर मतभेद:

RCEP के सन्दर्भ में भारत ने टैरिफ-कटौती के सन्दर्भ में त्रिआयामी रणनीति (Three Tier Approach) को अपनाने का संकेत दिया है:

1.
इसके तहत् भारत ने आसियान देशों को 80% टैरिफ-कटौती का प्रस्ताव दिया है. 65% कटौती समझौते के लागू होते ही प्रभावी होगी, जबकि 15% कटौती के लिए दस वर्षों का समय मिलेगा.
2.
दक्षिण कोरिया और जापान, जिनके साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता पहले से है, को 65% टैरिफ-कटौती का प्रस्ताव किया गया है,जबकि भारत को इन दोनों देशों ने 80% टैरिफ-कटौती का प्रस्ताव दिया है.
3.
चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भारत ने 42.5% टैरिफ-कटौती का प्रस्ताव दिया है, जबकि इन देशों ने भारत को क्रमशः 42.5%,80% और 65% टैरिफ-कटौती का प्रस्ताव दिया है.

जून, 2016 में न्यूजीलैंड में संपन्न तेरह्वें राउंड की वार्ता में टैरिफ-कटौती के सन्दर्भ में भारत के त्रिस्तरीय सेलेक्टिव एप्रोच को नकारते हुए चीन ने आसियान देशों को भी  इसके विरोध के लिए प्रोत्साहित किया. प्रस्तावित RCEP समझौते में शामिल आधे से अधिक सदस्य-देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले आसियान देशों ने सिंगल टैरिफ के विरोध में अपना प्रस्ताव पेश किया, यद्यपि चीन भारत के रूख के विरोध में अपने प्रस्ताव के लिए आसियान-समूह में फूट डालते हुए कम्बोडिया, लाओस, मलेशिया और इंडोनेशिया का समर्थन हासिल करने में सफल रहा.  आसियान के सदस्य-देश जल्द-से-जल्द इस समझौते को अंतिम रूप देना चाहते हैं और चीन सेवा-मसले पर भारत के आक्रामक रूख के मद्देनजर दबाव बनाने के लिए उनका इस्तेमाल भारत के विरुद्ध करने कि कोशिश कर रहा है. ध्यातव्य है कि चीन और जापान का जोर इस बात पर है कि भारत या तो दस वर्ष की समयावधि में सभी सदस्य-देशों के लिए एकसमान टैरिफ व्यवस्था कोस्वीकार करे या फिर आरंभिक व्यापार-उदारीकरण को अधिक महत्वाकांक्षी बनाये. RCEP के गैर-आसियान देश भारत के संरक्षणवादी आग्रहों और वस्तु, सेवा एवं निवेश के उदारीकरण के बजाय केवल श्रमिकों की मुक्त आवाजाही पर विशेष फोकस से नाखुश हैं.

भारत का रूख:

भारत RCEP को अपने लुक ईस्ट पालिसी से सम्बद्ध करके देखता है.आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौतेजिसमें भारत ने सेवा-व्यापार के मसले पर ठोस प्रगति के बिना ही वस्तुगत व्यापार समझौते पर अपनी सहमति दे दी थी और इस कारण सेवा-व्यापार के मसले पर उसकी मोल-भाव की क्षमता कमजोर पड़ीके अनुभवों के मद्देनजर भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि व्यापारिक उदारीकरण के मसले पर वह तबतक कोई बात करने के लिए तैयार नहीं है जबतक आसान वीज़ा नार्म्स और कुशल श्रमिकों की मुक्त आवाजाही पर ठोस प्रगति नहीं हो जाती है. आसान वीज़ा नार्म्सप्रोफेशनल्स की मुक्त आवाजाही और कुछ क्षेत्रकों में बाज़ार-पहुँच को लेकर चौकसी के साथ भारत विधिशिक्षामनोरंजन और ई-कामर्स जैसी सेवाओं के उदारीकरण की दिशा में पहल कर सकता है। इसी आलोक में भारत ने आनुबंधिक सेवा आपूर्तिकर्ता और स्वतंत्र कुशल श्रमिकों की मुक्त आवाजाही पर विशेष दस्तावेज के जरिये अन्य देशों के समर्थन जुटाने की कोशिश की है.

वाणिज्य मंत्रालय का आकलन बतलाता है कि भारत द्वारा सोलह सदस्यीय क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) समझौते पर हस्ताक्षर से सकल घरेलु उत्पाद के 1.6% तक राजस्व-हानि की सम्भावना है जो चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते कि स्थिति में होने वाली हानि के समान है. भारत में सीमा-शुल्क की दरों के उच्च स्तर पर रहने के कारण ऐसे समझौतों में शामिल होने के लिए उसे इसमें तीव्र कटौती करनी होगी, जबकि इस समझौते में शामिल अन्य सदस्य-देशों में निम्न टैरिफ के कार कटौती मामूली होगी. लेकिन, भारत ऐसे समझौतों से खुद को बहुत दिनों तक अलग नहीं रख सकता है क्योंकि ऐसी स्थिति में इसके अलग-थलग पड़ने और मुख्याधरा से काटने की सम्भावना बढ़ जायेगी जो इसके आर्थिक हितों को प्रतिकूलतः प्रभावित करेगा. इसीलिए भारत की रणनीति सेवा-क्षेत्र में बेहतर बाज़ार-पहुँच को सुनिश्चित  करने और कुशल श्रमिकों की निर्बाध आवाजाही के लिए दबाव डालने की है ताकि भारत अधिशेष श्रमिकों की चुनौती का मुकाबला कर सके और उनके लिए उपलब्ध रोजगार-अवसरों को बाधा सके. इस समझौते में अपनी भागीदारी को जस्टिफाई किया जा सके और वस्तुगत व्यापार के क्षेत्र में होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को प्रति-संतुलित किया जा सके, यद्यपि सेवा-व्यापार में भी दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ार में भारत के लिए सीमित संभावनाएं हैं क्योंकि फिलीपींस जैसे देश इस क्षेत्र में भारत के प्रबल प्रतिद्वंद्वी हैं. इसीलिए भारत को अपने बाज़ार का विविधीकरण करना होगा और सेवा-क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी जो तकनीक-हस्तांतरण और रोजगार-अवसरों के सृजन में सहायक होगा. भारत की इच्छा पर्यटन और बिज़नेस-सम्बन्धी यात्रा करने वालों के लिए ‘वीजा ऑन अरायवल’ सुविधा प्राप्त करने की है.

भारत यह चाहता है कि समझौते में भागीदार देश भारत की दवाओं और टेक्सटाइल्स-उत्पादों के लिए अपने बाज़ार को खोलें ताकि उन बाजारों तक भारत के इन उत्पादों की आसान पहुँच संभव हो सके. साथ ही, स्वच्छता एवं पादप-स्वच्छता मानकों के सहारे सृजित तकनीकी अवरोधों को दूर किया जाय. विकसित देश अक्सर इसका इस्तेमाल नन-टैरिफ बैरियर के रूप में दूसरे देशों से आयात को हतोत्साहित करने और अपने देश के उत्पादों को संरक्षण प्रदान करने के लिए करते हैं.

नवीन व्यापारिक चुनौतियों और इसका सामना करने की उपयुक्त भारतीय रणनीति:

TTP  और TTIP जैसे मेगा मुक्त व्यापार समझौते भारत-जैसे विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरकर सामने आये हैं जिसे वे न तो स्वीकार करने की स्थिति में है और न ही अनदेखी कर पाने की स्थिति में. ये समझौते न केवल WTO के अंतर्गत होने वाले बहुपक्षीय व्यापार समझौते के विकल्प के रूप में  उभरकर सामने आये हैं, वरन इनके जरिये दोहा दौर की वार्ता के एजेंडे को भी परिभाषित करने की कोशिश की जा रही है.उदाहरण के रूप में TPP के दायरे में शामिल किये जानेवाले नए मुद्दों: श्रम, निवेश, पर्यावरण, ई-कॉमर्स, प्रतिस्पर्धा और सरकारी खरीद को लिया जा सकता है जो  WTO के दायरे में शामिल नहीं हैं और जिनका भारत सहित तमाम विकसित देशों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अतः यह उपयुक्त समय है जब भारत को अंतर्राष्ट्रीय और घरेलु स्तर पर उभरने वाली व्यापारिक चुनौतियों का सामना करने की रणनीति निर्धारित करनी चाहिए.इसे निम्न परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है:

1.
भारत को WTO के एजेंडे को पुनर्परिभाषित करने की विकसित देशों की किसी भी कोशिश का विरोध करना चाहिए और इसके लिए विकासशील देशों को एक प्लेटफ़ॉर्म पर इकठ्ठा करना चाहिए ताकि विकसित देशों पर दबाव बनाया जा सके.
2.
साथ ही, अत्यंत सावधानीपूर्वक इस बात की निगरानी की जानी चाहिए कि  TPP के क्रियान्वयन के क्रम में कहीं WTO की प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है. और, अगर ऐसा होता है, तो ऐसे मसले को WTO के विवाद निपटारा तंत्र (DSM) के समक्ष उठाना चाहिए. उदाहरण के रूप में किसी TPP - देश द्वारा श्रम-मानकों के आधार पर गैर-TPP सदस्य-देशों के लिए बाज़ार-पहुँच को बाधित करने की कोशिश को लिया जा सकता है जो WTO के दायरे से बाहर हैं.
3.
TPP के सन्दर्भ में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसके जरिये विकसित देश उन निजी मानकों को प्रसारित करने की कोशिश करें जो पिछले कुछ समय से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में समानांतर नियामकीय व्यवस्था के रूप में विद्यमान है. भारत को WTO के प्लेटफ़ॉर्म से निजी मानकों को विस्तार देने की किसी भी कोशिश का पुरजोर विरोध करना चाहिए. WTO के माध्यम से ऐसे निजी मानकों को अनुशासित किये जाने की सख्त जरूरत है ताकि उस तरह की घटनाओं के दुहराव को रोका जा सके जो नाइके द्वारा बाल-श्रम मानकों के उल्लंघन के आधार पर सियालकोट स्पोर्ट्स क्लस्टर (पाकिस्तान) से फुटबॉल की खरीद को प्रतिबंधित करने के रूप में  घटित हुई थी और नाइके को निजी संस्था होने का लाभ मिला क्योंकि WTO के प्रावधान राज्य पर लागू होते हैं, न कि निजी संस्थाओं पर. स्पष्ट है कि राज्य के साथ-साथ निजी संस्थाओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में विकृति पैदा करने की किसी भी कोशिश को WTO की नियामकीय व्यवस्था के अंतर्गत लाये जाने की दिशा में भारत सहित सभी विकसित देशों को पहल करनी चाहिए.
4.
भारत को यूरोपियन यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौते के साथ-साथ ्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते को जल्द-से-जल्द तार्किक परिणति तक पहुंचाना चाहिए ताकि TPP के कारण लेदर, टेक्सटाइल्स और प्लास्टिक उत्पादों के निर्यात पर पड़नेवाले प्रतिकूल प्रभावों को कम (mitigate) किया जा सके.
5.
भारत को लैटिन अमेरिका और अफ्रीका की ओर रूख करते हुए अपने निर्यात-गंतव्यों को  विविधीकृत करना चाहिए. साथ ही, उन व्यापारिक क्षेत्रों की पहचान के जरिये निर्यात मदों का विविधीकरण करना चाहिए जिसमें इसकी रुचि है और इसके लिए सम्भावना है.
6.
भारत को अपने व्यापारिक हितों की पहचान करनी चाहिए पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण के लिए बायो-पायरेसी (अमेरिका द्वारा हल्दी या नीम के औषधीय गुणों की पेटेंटिंग) तथा ट्रिप्स समझौते एवं जैव-विविधता पर कन्वेंशन के लिंकेज को प्रस्तावित FTA के दायरे में लाने की कोशिश करनी चाहिए. दुनिया के बारह सर्वाधिक जैव-विविधता वाले देशों की श्रेणी में होने के कारण इस दिशा में पहल भारत के आर्थिक हितों के मद्देनज़र जरूरी है.
7.
घरेलु मोर्चे पर भारत को व्यापारिक अवसंरचना के विकास के जरिये अपने उत्पादों को अधिक लागत-प्रतिस्पर्धी बनाना चाहिए जो न केवल भारत के निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा, वरन भारत के वैश्विक मूल्य-श्रृंखला के साथ समेकन को अधिक आकर्षक बनाएगा.
8.
इसी प्रकार आयात-बाज़ार में विद्यमान प्रचलित मानकों के अनुपालन और उचित समनुरूपता मूल्यांकन प्रक्रियाओं के द्वाराअनुपालन के प्रदर्शन में भारतीय निर्यातकों को सक्षम बनाने के लिए समग्र पहल करनी चाहिए.
9.
भारत को अपने घरेलु सार्वजानिक मानकों को TPP देशों के प्रभावी निजी मानकों के साथ समेकित करने से परहेज़ करना चाहिए क्योंकि यह घरेलु बाज़ार के साथ-साथ विदेशी बाज़ार में होने वाली बिक्री पर समान रूप से लागू होगा और इसीलिए  अधिकांश उत्पादकों को निर्यात-बाज़ार के साथ-साथ घरेलु बाज़ार से बाहर कर देगा.

स्पष्ट है कि TPP के कारण भारत को होने वाली अनुमानित हानि भारतीय व्यापारिक हितों को संरक्षण और प्रोत्साहन के लक्ष्यों को लेकर चलने वाली समग्र व्यापारिक नीतियों के जरिये ही कम की  जा सकती हैं जो अंतर्राष्ट्रीय एवं घरेलु मोर्चों को ध्यान में रखकर निर्धारित की गई हो.