Monday, 28 December 2015

बिहार सामान्य अध्ययन (मेन्स स्पेशल):ट्रेंड एनालाइसिस भारत और बिहार का इतिहास:

"भारत और बिहार का इतिहास" खण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्नों के ट्रेंड पर ग़ौर करें, तो हम पाते हैं कि ऐसे प्रश्नों का वर्गीकरण इस तरह से किया जा सकता है:
1. कला एवं संस्कृति:
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इस खंड से सामान्यत: निम्न टाॅपिकों पर प्रश्न पूछे जाते हैं: मौर्य कला एवं स्थापत्य
                पाल स्थापत्य एवं कला
                पटना क़लम चित्रकला
                मधुबनी पेंटिंग्स
इनमें पहले के तीन टाॅपिक से सामान्यत: एक प्रश्न पूछे ही जाते हैं। चूँकि मौर्य कला पर प्रश्न पूछे गए हैं, इसीलिए पाल कला और पटना क़लम से एक प्रश्न पूछे जाने की प्रबल संभावना है। ख़ुद को सुरक्षित करने के लिए मौर्य कला और मधुबनी पेंटिंग्स को भी तैयार कर लें, ताकि अगर ट्रेंड में बदलाव होते हैं, तो भी आप सुरक्षित हों।
2. बिहार: जनजातीय विद्रोह:
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सामान्यत: इस खण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्न निम्न टाॅपिक से संबंधित हो सकते हैं:
                    संथाल विद्रोह
                    मुण्डा विद्रोह
इन दोनों टाॅपिकों से संबंधित प्रश्न या तो कारण और स्वरूप से संबंधित होंगे या फिर व्यक्तित्व-आधारित। सामान्यत: इन टाॅपिकों पर छात्र एक ही प्रश्न तैयार करते हैं और कुछ भी पूछा जाए, उसी उत्तर को लिखकर आते हैं। ऐसी िस्थति में अच्छे अंक मिलने मुश्किल हैं। आपके उत्तर का प्रस्तुतिकरण प्रश्न की माँग के अनुरूप होने चाहिए, तभी आप अच्छे अंक हासिल कर पायेंगे।पिछली परीक्षा में मुंडा विद्रोह पर प्रश्न पूछा जा चुका है, अत: संथाल विद्रोह और सिद्धू-कान्हू  पर  प्रश्न पूछे जाने की संभावना प्रबल है। फिर भी, मैं मुंडा विद्रोह और बिरला मुंडा को भी तैयार करने की सलाह दूँगा।

3. आधुनिक भारत और बिहार का इतिहास:
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इस खंड से पूछे जाने वाले प्रश्न मुख्यत: बिहार से संबंधित होते हैं। सामान्यत: इन प्रश्नों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
             औपनिवेशिक शासन के दौरान बिहार
             राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित प्रश्न
             व्यक्तित्व-आधारित प्रश्न
           
>>>>>>>>>>"औपनिवेशिक शासन के दौरान बिहार" उपखण्ड से पूछे जाने वाले प्रश्न सामान्यत: निम्न होने की संभावना है:
             बिहार पर  औपनिवेशिक शासन का
             सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
             बिहार में पश्चिमी एवं तकनीकी व
             वैज्ञानिक शिक्षा  का विकास 
             प्रेस का विकास
ये सारे टाॅपिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहाँ से पिछले वर्ष प्रश्न नहीं पूछे गए हैं।
>>>>>>>>>>राष्ट्रीय आंदोलन खंड से बिहार के विशेष संदर्भ में निम्न टाॅपिकों को देखा जाना अपेक्षित है: 
            1857 का विद्रोह
            बंगाल-विभाजन और आधुनिक बिहार
            का उदय
            चम्पारण सत्याग्रह 
            असहयोग आंदोलन और बिहार
            सविनय अवज्ञा आंदोलन और बिहार
            व्यक्तिगत सत्याग्रह और बिहार
            भारत छोड़ो आंदोलन और बिहार:
            आज़ाद दस्ता के विशेष संदर्भ में
उपरोक्त टाॅपिकों में  1857 के विद्रोह और >>>>>>>>>>व्यक्तिगत सत्याग्रह पर पिछले वर्ष प्रश्न पूछे जा चुके हैं, अत: शेष टाॅपिक महत्वपूर्ण हैं जिनपर विशेष ध्यान दिया जाना महत्वपूर्ण है।
व्यक्तित्व आधारित प्रश्न कँुअर सिंह,बिरसा मंुडा,सिद्धू-कान्हू, गाँधी,नेहरू, टैगोर और जयप्रकाश से संबंधित हो सकते हैं। इनमें पिछली परीक्षा में कुँअर सिंह और बिरसा आंदोलन पर प्रश्न पूछे जा चुके है।अत: शेष व्यक्तित्व इस बार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
स्रोत-सामग्री:
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1.सार्थक बिहार सामान्य अध्ययन
   (मेन्स स्पेशल)
2.अपारंपरिक स्रोत
             
              

Wednesday, 16 December 2015

बीपीएससी मेन्स स्पेशल भारतीय राजव्यवस्था

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भारतीय राजव्यवस्था 
बीपीएससी मेन्स स्पेशल
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प्रश्नों की प्रवृत्ति:
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बीपीएससी मुख्य परीक्षा में भारतीय राजव्यवस्था खंड से जो प्रश्न पूछे जाते हैं, वे सामान्यत: इस खंड की व्यापक समझ और अवधारणाओं के साथ-साथ एप्लीकेशन पर आधारित होते हैं। साथ ही, इसके लिए अपडेशन की भी ज़रूरत होती है। इनकी तैयारी करते वक़्त इन पहलुओं के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कई बार ऐसे प्रश्नों को बिहार के विशेष संदर्भों से भी जोड़कर पूछा जाता है।
महत्वपूर्ण टाॅपिक:
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सबसे पहले भारतीय संविधान की प्रस्तावना को लिया जाय। यहाँ से सामान्य प्रकृति के यह प्रश्न पूछे जा सकते हैं कि:
"भारतीय संविधान में प्रस्तावना के महत्व को रेखांकित करते हुए इसकी वैधानिक िस्थति को स्पष्ट करें।" 
लेकिन,हाल में प्रस्तावना जिस तरह से चर्चा में रही है, उसके मद्देनज़र इस प्रश्न के पूछे जाने की संभावना प्रबल है कि:
" 'पंथनिरपेक्षता' और 'धर्मनिरपेक्षता' के फ़र्क़ को स्पष्ट करें। साथ ही,बयालीसवें संविधान-संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' शब्द को शामिल करने के औचित्य के प्रश्न पर विचार करते हुए बतलाइए कि क्यों नहीं इन्हें प्रस्तावना से हटा दिया जाए?"
यहाँ से भारतीय राज्य की समाजवादी एवं धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को आधार बनाकर भी प्रश्न पूछे जाने की संभावना बनती है।प्रस्तावना से ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय महत्वपूर्ण टापिक है जो पूरे बिहार चुनाव के दौरान चर्चा में रहा है।
प्रस्तावना के बाद मौलिक अधिकार,नीति निदेशक तत्व तथा मौलिक कर्तव्य दूसरा महत्वपूर्ण टाॅपिक है जहाँ से प्रश्न की संभावना बनती है। यहाँ से सामाजिक न्याय से जुड़े हुए पहलू से प्रश्न पूछे जाने की पूरी सम्भावना है। आरक्षण और इससे सम्बद्ध पहलुओं, विशेषकर आरक्षण की समीक्षा, बिहार में महिला सशक्तीकरण में आरक्षण की भूमिका, अल्पसंख्यकों की िस्थति, बढ़ती हुई असहिष्णुता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा का अधिकार अधिनियम और इसका बिहार में क्रियान्वयन,सोशल मीडिया की भूमिका, बीफ-बैन,धर्मांतरण आदि टाॅपिक हाल-फ़िलहाल चर्चा में रहे हैं जिन्हें विशेष रूप से तैयार करने की ज़रूरत है।
सरकार के विभिन्न अंगों में विधायिका से अध्यादेश,धनविधेयक, संयुक्त विधेयक, विपक्षी दल के नेता, राज्यसभा का औचित्य और प्रासंगिकता, संसदीय गतिरोध, संसदीय-सुधार: विशेष रूप से राज्यसभा-सुधार आदि टाॅपिक महत्वपूर्ण हैं।
जहाँ तक न्यायपालिका का प्रश्न है, न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित विवाद, कालेजियम व्यवस्था, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग और इसको लेकर न्यायपालिका-विधायिका टकराव आदि महत्वपूर्ण हैं।
जहाँ तक बिहार की राजनीति, मतदान-आचरण और चुनाव-सुधार का प्रश्न है, तो चुनावी आचार संहिता, हालिया सम्पन्न बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों का विश्लेषण,राजनीति का अपराधीकरण, भारत-सह-बिहार की राजनीति में धर्म-जाति- लिंग-भाषा, धनबल,सोशल मीडिया और तकनीक की भूमिका तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव को सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग एवं ब्यूरोक्रेसी की भूमिका आदि से संबंधित प्रश्न पूछे जाने की संभावना है।
संघ-राज्य संबंध वाले खंड से सहकारी संघवाद, प्रतिस्पर्धी संघवाद, योजना आयोग-नीति आयोग-चौदहवें वित्त आयोग के आलोक में संघ-राज्य संबंध, राज्यपाल की नियुक्ति-स्थानांतरण-बर्खास्तगी से संबंधित विवाद, आपातकालीन प्रावधान आदि महत्वपूर्ण टाॅपिक हैं। इसके अलावा स्थानीय संस्थाएँ एवं राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक समावेशन में इसकी भूमिका के साथ-साथ हाल में न्यूनतम शैक्षिक एवं स्वच्छता मानदंड के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण है।
स्रोत-सामग्री:
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१.समाचार-पत्र
२.मैगजीन: प्रतियोगिता दर्पण 
फ्रंटलाइन
इंडिया टुडे
३. सार्थक बीपीएससी स्पेशल: 
कुमार सर्वेश एवं अन्य

Tuesday, 15 December 2015

प्रतिपक्ष


" नहीं, यहाँ कोई नहीं है,

 मूल्य और नैतिकता,

 सिद्धांत और आदर्श

 ईमानदारी का दामन थामकर

 सत्ता के पक्ष में चले गए हैं,

 और प्रतिपक्ष में शेष रह गए हैं

 चोर और बेईमान सारे,

 अनैतिक और मूल्यहीन सब।"


Friday, 11 December 2015

कविता और मैं

"कविता क्या है?"
विकट प्रश्न है यह
मेरे लिए............
वर्ड्सवर्थ से शेली तक,
पंत से आचार्य शुक्ल तक,
सबने परिभाषा दी इसकी,
अपनी-अपनी तरह से।
तुमने भी कहा इसे
"फ़्रस्ट्रेशन की अभिव्यक्ति",
"मेरे फ़्रस्ट्रेशन की अभिव्यक्ति"।
मैं तुमसे असहमत नहीं,
पर इसे सहज तरीक़े से
स्वीकार नहीं पाता;
क्योंकि
रह-रहकर
एक प्रश्न कौंधता है
कि कवि ही फ्रस्ट्रेट क्यों होता है,
क्यों होता है वह विद्रोही, 
कौन बनाता है उसे कुंठित?
आख़िर, शुरू से ही तो
ऐसा नहीं होगा वह।
जवाब मिलता है:
क्योंकि ज़िन्दा है वह, 
ज़िन्दा रहने का अहसास है उसे,
उसकी आत्मा अब भी जीवित है,
अपने ज़मीर को बेचा नहीं है उसने,
उसकी संवेदनायें मरी नहीं हैं अभी।
वह ख़ुद तो तिल-तिलकर मर रहा है,
पर अपनी अनुभूतियों के सहारे
कोशिश कर रहा है वह,
ज़िन्दा रखने की 
अपनी संवेदनाओं को।
और, जितनी ही वह 
करता है कोशिश
अपनी संवेदनाओं को बचाने की,
छिटककर उतनी ही दूर 
पड़ती चली जाती है संवेदना उसकी।
फिर, संवेदनाओं के 
चटकने और छिटकने का अहसास 
हर पल 
गहराता चला जाता है।
कविता 
इन्हीं चटकती और छिटकती
संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है
मेरे लिए।
जानना चाहोगे तुम,
कि कविता क्या है मेरे लिए?
कविता ढाल है;
हाँ,ढाल है मेरे लिए,
अपने को टूटने से बचाने का;
कविता ज़रिया है 
आत्माभिव्यक्ति का,
उस आत्माभिव्यक्ति का
जो मेरा पुनर्सृजन करती है
और जिस पुनर्सृजन के ज़रिए
जनता हूँ मैं ख़ुद को
हर उस क्षण में,
और बचाए रखता हूँ मैं
अपने अहसासों को,
अपनी संवेदनाओं को
और उससे जुड़ी अनुभूतियों को।
तुम्हारे लिए
यह एक कविता भर है,
पर,मेरे लिए 
यह एक उपक्रम है
ज़िन्दा रहने के अहसास को महसूसने का,
यह मेरी ऊर्जा है,
शक्ति है मेरी,
साधना और आराधना भी।
मैं हूँ जबतक,
तबतक मेरी कविता भी रहेगी;
नहीं, जबतक मेरी कविता रहेगी
तबतक मैं भी रहूँगा
और मेरी संवेदनाएँ भी रहेंगीं।
कविता नहीं,
तो मैं भी नहीं,
मेरी संवेदनाएँ भी नहीं
और मेरे जीने का अहसास भी नहीं।
मैं और कविता,
कविता और मैं,
मैं-कविता, या फिर 
कविता-मैं!
27th January,2011

Tuesday, 8 December 2015

"विद्रोही" तुम!

"विद्रोही तुम"
विद्रोही चिंता है तुमको
रामायण के धोबन की,
इसीलिए लिखते हो तुम:
" लेकिन, उस धोबन का पता नहीं चलता,
जिसके कारण सारा काण्ड हुआ था।
धोबी ने धोबन को रक्खा कि छोड़ा,
पंचायत ने दण्ड ठोंका, कि माफ़ किया ,
क्या कोई होगा बचा, उसके भी वंश खूँट में!"
पता नहीं , सीता थी भी या नहीं,
धोबन भी थी अथवा नहीं,
संभव है वह कोरी कल्पना हो वाल्मीकि की।
तुम्हें बहुत चिंता है उसकी,
शायद बौद्धिक हो तुम,
और बौद्धिकों की भी अजीब बीमारी है,
कल्पना लोक में विचरण करना
और विचारों की दुनिया में खोये रहना।
मैं न तो बौद्धिक हूँ
और न मेरी संवेदना ही देती है मुझे इजाज़त
उतनी दूर जाने की।
मैं तो एक अदद इन्सान हूँ,
ख़ुद में उलझा हुआ,
ख़ुद में खोया हुआ।
मैं न तो सीता की पीड़ा महसूस कर सकता
और न ही उस धोबन की पीड़ा को;
न तो मुझे सीता की चिन्ता सताती है
और न ही उस धोबन की।
मेरी चिंता तो 
हाड़-माँस के उस जीव की है,
जिसे मैं अपने ही भीतर महसूस करता हूँ,
मेरी महसूसने की क्षमता अत्यंत सीमित है,
ख़ुद की पीड़ा को महसूसने से मुझे फ़ुर्सत कहाँ?
जानते हो विद्रोही,
क्या फ़र्क़ है तुझमें और मुझमें:
तुम ज़िन्दा हो,
और मैं ज़िन्दा होने के अहसास को
जिलाए रखने के लिए संघर्षरत्;
तुम या तो बेफ़िक्र हो
या फिर उबर चुके हो अपनी पीड़ा से,
और मैं अपनी पीड़ा से उबरने को प्रयासरत्।
शायद इसीलिए मुझे 
सीता या धोबन की पीड़ा से 
अधिक प्यारी है 
अपनी पीड़ा,
शायद उस पीड़ा को भी
अपने भीतर समाहित करता जा रहा;
पर तुमने तो
अपनी पीड़ा उड़ेलने की कोशिश की
धोबन की पीड़ा में, 
पर शायद 
धोबन की पीड़ा को 
अपने में घुलाते,
तो बेहतर होता!

Full n Final Papers 11 and 12 of Hindi Literature Optional Mains 2015

हिंदी साहित्य सम्पूर्ण प्रथम प्रश्न पत्र 

 हिंदी साहित्य सम्पूर्ण द्वितीय  प्रश्न पत्र